अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजना : नदियों के सहारे सागर पार करेगा भारत

Alok Singh BhadouriaAlok Singh Bhadouria   4 Feb 2018 5:53 PM GMT

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अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजना : नदियों के सहारे सागर पार करेगा भारतसाभार इंटरनेट

देश की महत्वाकांक्षी अंतर्देशीय जलमार्ग परियोजना के लिए 2018 अहम साबित होने वाला है। इसके राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-1 के लिए विश्व बैंक ने लगभग 24 अरब रूपयों के लोन को मंजूरी दे दी है। वाराणसी से हल्दिया तक लगभग 1360 किलोमीटर लंबे जलमार्ग को विकसित करने के लिए शुक्रवार को दिल्ली में भारत सरकार और विश्व बैंक के बीच समझौता हुआ। जून से यह पैसा मिलना शुरु हो जाएगा। गंगा नदी से पश्चिम बंगाल के हल्दिया स्थित समुद्रतट तक की इस परियोजना की लागत 51 अरब रूपये है। इनमें से 24 अरब विश्व बैंक से मिलेंगे बाकी का इंतजाम भारत सरकार को करना है।

अपने पूरे स्वरुप में यह योजना चीन के वन बेल्ट वन रोड या ओबीओआर परियोजना की तरह प्रभावशाली दिखेगी। चीन ओबीओर या न्यू सिल्क रुट के तहत सड़क,रेल और बंदरगाह का जाल बुनकर दुनिया के बहुत बड़े हिस्से तक पहुंच बनाने की योजना बना रहा है। इसी तरह भारत की जलमार्ग विकास परियोजना का भी लक्ष्य है देश भर में 111 नदियों को जलमार्ग से जोड़कर माल का आवागमन किफायती और तीव्र बनाना। इस योजना में मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाकर जलमार्गों को सड़क और रेल से जोड़ा जाना है। प्रस्तावित ईस्टर्न डेडिकेटिड फ्रेट कॉरिडोर, राष्ट्रीय राजमार्ग-2 के साथ राष्ट्रीय जलमार्ग-1 को जोड़ दिया जाए तो ईस्टर्न ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनता है। रेल, सड़क और नदियों के इस जाल के तैयार होने पर दिल्ली, एनसीआर इलाका नॉर्थ ईस्ट राज्यों के ईस्टर्न ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर से जुड़ जाएगा। यहीं से कोलकाता बंदरगाह और भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल रुट के जरिए भारत का बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैँड, नेपाल के अलावा पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों से वाणिज्यिक संपर्क कायम हो पाएगा।

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पिछले कुछ बरसों से देश की 111 नदियों को जलमार्ग में बदलने की इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम चल रहा है। देश में लगभग 14,500 कि.मी. लंबा नौ-संचालन जलमार्ग है। इनमें नहरें, नदियां, अप्रवाही जलसहित संकरी खाड़ियां शामिल हैं। भारत में हर साल लगभग 50 मिलियन टन माल की ढुलाई अंतर्देशीय जल परिवहन प्रणाली के जरिए की जाती है। लेकिन इस समय यह गंगा-भागीरथी-हुगली नदी के कुछ हिस्‍सों, ब्रह्मपुत्र-बराक नदी, गोवा की नदियों, केरल के अप्रवाही जल और गोदावरी-कृष्‍णा नदी के डेल्‍टा क्षेत्रों तक ही सीमित है। अब तक गंगा नदी के इलाहाबाद व हल्‍दिया के बीच के (1,620 कि.मी.) मार्ग को राष्‍ट्रीय जलमार्ग-1, ब्रह्मपुत्र नदी के सदिया से धुबरी तक के 891 कि.मी. मार्ग को राष्‍ट्रीय जलमार्ग-2, केरल की चंपाकारा तथा उद्योग-मंडल नहरों सहित पश्‍चिमी तट नहर के कोल्‍लम-कोट्टापुरम खंड (205 कि.मी.) को राष्‍ट्रीय जलमार्ग-3, काकीनाडा से मनक्कारम गोदावरी व कृष्णा नदियों पर फैले जलमार्ग को राष्‍ट्रीय जलमार्ग-4 और पूर्वी तट पर महानदी व ब्रह्माणी को जोड़कर राष्ट्रीय जलमार्ग-5 का दर्जा दिया जा चुका है।

अंतरदेशीय जल परिवहन भारत के लिए नई बात नहीं है। अतीत में भी व्यापार और यात्रियों के आने-जाने के लिए नदियों का इस्तेमाल होता रहा है। लेकिन जैसे-जैसे सड़कों और रेलमार्ग का विकास हुआ नदी पर आधारित परिवहन से सरकार का ध्यान हटने लगा। वहीं दूसरी तरफ दुनिया भर में अंतर्देशीय जल परिवहन को बराबर अहमियत दी जाती रही। आज स्थिति यह है कि भारत में कुल यातायात का महज 6 पर्सेंट जल परिवहन के जरिए होता है, जबकि चीन में यह 47 फीसदी और यूरोपियन यूनियन में 44 फीसदी है। यहां तक कि बांग्लादेश में 35 फीसदी माल ढुलाई नदियों के जरिए होती है।

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बदले हालात में जब विकास और उन्नति के साथ पर्यावरण को बनाए रखने का जोर है जल परिवहन पर खासा ध्यान दिया जाने लगा है। इसका आर्थिक पक्ष भी है, अंतरदेशीय जल परिवहन मार्ग के माध्यम से अगर माल ढुलाई की जाए तो इस पर आने वाली लागत काफी कम की जा सकती। विश्व बैंक के आंकड़ों के हिसाब से जलपरिवहन से माल ढुलाई की लागत पचास पैसे प्रति टन प्रति किलोमीटर आती है वहीं रेलमार्ग पर यह एक रूपये और सड़क मार्ग से डेढ़ रूपये है। ऊर्जा के नजरिए से देखें तो एक हार्स पावर शक्ति से सड़क मार्ग से 150 किलो सामान ढोया जा सकता है, रेलमार्ग से इतनी ताकत में 500 किलो सामान खींचा जा सकता है। लेकिन जल मार्ग इतना किफायती है कि एक हार्स पावर में चार हजार किलो माल ढोना संभव है। पानी पर तैरने वाला दो हजार टन का एक मालवाहक जहाज दो सौ ट्रकों और एक पूरी रेलगाड़ी के बराबर माल ढो सकता है।

अब बात करें जलमार्ग विकास परियोजना या जेएमवीपी परियोजना के पहले चरण यानि राष्ट्रीय जलमार्ग-1 की। कहा जा रहा है कि गंगा नदी पर यह जलमार्ग वाराणसी से पश्चिम बंगाल के हल्दिया तक यह देश के चार सबसे घनी जनसंख्या वाले राज्यों से गुजरता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के इस क्षेत्र से देश के 40 फीसदी माल का आवागमन होता है। अगर सिर्फ राष्ट्रीय जलमार्ग-1 काम करने लगे तो 150000 टन कार्बन डाइ ऑक्साइड की बचत होगी जो कि सड़क या रेल परिवहन का इस्तेमाल करने पर ईंधन के जलने से निकलती है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, जेएमवीपी से इन चारों राज्यों में अप्रत्यक्ष-प्रत्यक्ष तौर पर डेढ़ लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। यह परियोजना इन राज्यों के औद्योगिक शहरों को फायदा पहुंचाएगी। इस योजना के तहत वाराणसी, साहिबगंज, हल्दिया और फरक्का में मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाए जा रहे हैं। यहां जलमार्ग सड़क और रेल से जुड़ेगा।

अंतर्देशीय जल परिवहन के पक्ष में अक्सर कहा जाता रहा है कि यह यातायात का सबसे सस्ता साधन है। इसमें दुर्घटना की आशंका कम होती है इसलिए सड़क या रेल के मुकाबले सुरक्षित है। इस योजना को इस आधार पर मंजूरी मिली है कि इसके तहत नदी के पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा, उसके बहाव को प्रभावित नहीं किया जाएगा, पानी का संग्रह नहीं होगा, सभी जहाजों में साफ ईंधन जैसे एलपीजी का इस्तेमाल होगा, ये जहाज जीरो डिस्चार्ज की नीति का पालन करेंगे मतलब कचरा वगैरह पानी में नहीं छोड़ेंगे, किसी जलजीव अभ्यारण्य के पास से गुजरते हुए 5 किलोमीटर प्रति घंटा की स्पीड रखेंगे और नदी तली को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।

लेकिन पर्यावरण के जानकार इस योजना पर सवाल उठाते रहे हैं। उनका कहना है कि इसमें कई तरह की कठिनाइयां हैं। जैसे, भारत की नदियों में जब बाढ़ का मौसम होता है उस समय जहाज का परिवहन मुश्किल हो जाएगा। गर्मियों के सीजन में अधिकतर नदियों में पानी इतना नहीं रह जाता कि उनमें नाव या बड़े जहाज चल सकें, इस समय नदियों के जल से सिंचाई और पीने के पानी जैसी दूसरी आवश्यकताओं की पूर्ति तक करना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा दक्षिण की नदियां तो पथरीले इलाके में बहती हैं, वहां जगह-जगह झरने हैं जो जहाजों के संचालन में बाधा बनेंगे।

जलमार्गों के बीच में वाराणसी के काशी कछुआ अभ्यारण्य जैसे संरक्षित इलाके पड़ेंगे उनपर यातायात और प्रदूषण का बुरा असर पड़ेगा, इसके अलावा नदी के बाकी हिस्से में भी मछलियां रहती हैं वे भी प्रभावित होंगी। जहाज चल सकें इसके लिए बैराज बनाकर नदी में पानी का एक खास स्तर बनाए रखना होगा, तटों को पक्का करना होगा, इससे नदियां नहरों की तरह हो जाएंगी, कई जगह जहां नदियां मुड़ती हैं वहां उन्हें सीधा करना होगा, इसके अलावा तटीय इलाके की अर्थव्यवस्था और नदी का इस्तेमाल करने वाले लोगों के अधिकार प्रभावित होंगे। इन सभी मुद्दों पर सरकार का कहना है कि कदम दर कदम हर फेज का अध्ययन करके उसे मंजूरी दी जाएगी।

इसमें कोई शक नहीं है कि जलमार्ग विकास परियोजना किफायती है व सड़क और रेल यातायात की तुलना में अधिक प्रभावी है। इसके वातावरणीय पक्ष के अलावा व्यापक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए अगर बेहतर नियंत्रण के साथ लागू किया जाए तो न केवल देश के विकास को गति मिलेगी बल्कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी आर्थिक सक्रियता बढ़ाने में भी कामयाब होगा।

   

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