छुट्टा पशु: इन सर्दियों में कैसे बीतती हैं किसानों की रातें, देखिए एक रात किसान के साथ

जब हम आप अपने घरों में आराम से सो रहे होते हैं, देश का किसान कैसे बिताता अपनी रात... कैसे बचाता है वो अपनी फसल ये जानने के लिए गांव कनेक्शन ने एक रात किसानों के साथ बिताई.. देखिए आंखों देखी

Arvind ShuklaArvind Shukla   4 Jan 2019 8:19 AM GMT

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लखनऊ/बाराबंकी/सीतापुर। वो जनवरी की पहली रात थी, घुप्प अंधेरा था, कोहरा इतना ज्यादा था कि 10 फीट पर खड़ा आदमी दिखाई न दे। करीब 9 बजे थे और तापमान 10 डिग्री सेल्सियस था। ठंड इतनी थी कि मुंह से भाप निकल रही थी, लेकिन उत्तर प्रदेश के गंधी गाँव के रोहित कुमार अपने खेतों में पहरा दे रहे थे।

किसानों के साथ गाँव कनेक्शन की टीम का पहला पड़ाव उत्तर प्रदेश में बाराबंकी जिले का गंधीपुर गाँव था। एक जनवरी को शाम के करीब 6 बजे गाँव कनेक्शन की टीम लखनऊ से रवाना हुई थी। रास्ते में कई जगह लाठी-डंडा और टॉर्च लिए किसान अपने खेतों में नजर आए थे। कई जगह सड़क किनारे गुट में बैठे किसान आग जलाकर अपने को सर्दी से बचा रहे थे। ये किसान उन छुट्टा पशुओं से परेशान हैं, जिनके झुंड देखते ही देखते फसल चौपट कर जाते हैं।

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रात के नौ बजे बाराबंकी जिले में लखनऊ से करीब 70 किलोमीटर दूर बेलहरा-छेदामार्ग पर गंधीपुर गाँव के पास सड़क पर अपने साथियों के साथ मिले रोहित भी लगभग कांप रहे थे।

रोहित बताते हैं, "रात करीब 8-9 बजे मैं खाना खाकर खेतों में आ जाता हूं, फिर 2-3 बजे तक रुकता हूं। मेरे घर पहुंचने पर पिता जी आ जाते हैं। इस तरह 24 घंटे खेतों को बचाते हैं। इतने सांड़ हैं कि 20-25 की संख्या में आते हैं कि फसल को आधा चरते हैं और आधा रौंद डालते हैं।"

रोहित के पास ही शॉल में मुंह ढके खड़े गाँव के सुशील बहुत परेशान हैं। उनकी दो बीघे मसूर की फसल छुट्टा पशु चर गए हैं। सुशील बताते हैं, "रोज तो खेत बचाने आते थे, दो दिन पहले जरूरी काम से लखनऊ चले गए उसी दौरान फसल बर्बाद हो गई। अब एक बीघा गेहूं बचा है उसे ही बचाने आते हैं।"

रोहित और सुशील जब गाँव कनेक्शन टीम से बात कर रहे थे, दूर खेतों में टार्च की रोशनी हो रही थी और लोगों के भागने-दौड़ने की आवाज़ें आ रही थीं। ये किसान फसल चर रहे पशुओं को भगाने में जुटे थे।

बाराबंकी से लेकर उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड के ललितपुर और सिद्धार्थनगर से लेकर हाथरस तक के किसान छुट्टा पशुओं के आतंक से परेशान हैं। ये छुट्टा पशु वो गोवंश हैं, जो पिछले कई वर्षों से देश में सुर्खियां बनते रहे हैं।

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उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग के अनुसार प्रदेश में करीब 11 लाख छुट्टा गोवंश हैं। लेकिन ग्रामीणों की मानें 59 हजार से ज्यादा ग्राम पंचायतों वाले इस प्रदेश में हर ग्राम पंचायत में 100 के करीब ऐसे जानवर होंगे। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ और हाथरस में इन छुट्टा पशुओं से परेशान किसानों ने इन जानवरों को हांककर सरकारी स्कूलों और अस्पतालों में बंद कर दिया। नाराज किसानों ने आंदोलन तक की धमकी दी है।

अपनी फसलों को बचाने के लिए किसान कैसे हाड़ कंपाती ठंड में अपनी रातें काट करे हैं, उनकी दिक्कत और दर्द को समझने के लिए गाँव कनेक्शन की टीम जब रात को खेतों की तरफ निकली तो रोहित जैसे सैकड़ों किसान खेतों में नजर आए।

जैसे-जैसे रात बढ़ रही थी, ठंड और कोहरा दोनों बढ़ते जा रहे थे। गंधीपुर वाले रास्ते पर आगे बढ़ते हुए हमारी टीम रंजीतपुर गाँव पहुंची थी। उस वक्त रात के करीब 12 बजे थे, गाँव में जंगल से करीब एक दर्जन गाएं और साड़ निकल कर आए, लेकिन गांव की नुक्कड़ पर ही अपने छप्पर में लेटे बुजुर्ग ने वहीं से उन्हें भगाया। ठंड में शायद बाहर निकलने की उनकी हिम्मत नहीं हुई थी।


रंजीतपुर से निकलकर जब टीम छेदा गाँव के थोड़ा आगे बढ़ी तो मुख्य मार्ग पर ही कुछ लोग कटीले तार लपेट रहे थे। बात करने पर मालूम हुआ वो सोनहरा गाँव के अरुण मिश्रा थे, जो अपने परिवार के साथ तार उठा रहे थे। वजह पूछने पर अरुण मिश्रा बताते हैं, "रात करीब 10 बजे मैं मोटरसाइकिल से गाँव जा रहा था, देखा कुछ चोर तार काट रहे थे। मैंने उन्हें दौड़ाया, लेकिन वो भाग गए। फिर पूरे घर को लेकर आया हूं ताकि तार उठा ले जाऊं।"

अरुण आगे बताते हैं, "पिछले 3-4 वर्षों से ये समस्या बहुत बढ़ गई है। भाजपा सरकार से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन उन्होंने भी इन गायों से किसानों को बचाने के लिए कुछ नहीं किया।"


अरुण और उनके आसपास खड़े लोगों से बात करते हुए करीब डेढ़ बज गए थे। कोहरा इतना ज्यादा हो गया था कि सड़क पर वाहन चलाना मुश्किल हो गया था। सड़क के आसपास गोवंश भी नजर नहीं आ रही थी। रंजीतपुर गाँव के ही नसीम बताते हैं, "हमारे गाँव के पास एक बड़ा तालाब है, किसान वहीं पर इन पशुओं को को घेरकर रखते हैं, ताकि ज्यादा नुकसान न हो। अब रात ज्यादा है इसलिए ये पशु बागों या पेड़ों के आसपास चले गए होंगे।"

दूसरे दिन की सुबह सीतापुर जिले में रामपुर मथुरा ब्लॉक के गोंडा देवरिया गाँव में हुई। कंबल-खटिया लिए खेतों से लौटते कई किसान मिले। इस दौरान कई जगह गन्ने के खेतों में नीलगाय भी मिलीं, लेकिन उनकी संख्या काफी कम थी।

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सुरेंद्र बहादुर सिंह यहां पर श्री राधा गोशाला चलाते हैं। किसान और गायों की दुर्दशा पर वो कहते हैं, "सबसे बड़ी समस्या बछड़े हैं क्योंकि वो किसी काम के नहीं रहे। खेतों में उनका इस्तेमाल होता नहीं है और गाय इतना कम दूध देती हैं कि किसान उनका खर्च क्यों उठाए इसीलिए ये लोग ही उन्हें छुट्टा छोड़ देते हैं। अब वो फसलें चरती हैं, किसान भगाता है तो दूसरे खेत चलती जाती हैं। जहां तार लगे हैं वहां कटकर घायल हो रही हैं। किसान और गाय दोनों की दशा दयनीय है।" इस गाँव के पास कई ऐसी गाय और गोवंश हैं, जो तारों से कटकर घायल हुए हैं।


फिर तो दीनदयाल अवस्थी और रामू से लेकर रामधन तक ने अपनी समस्या बताई। उन्हें उम्मीद थी कैमरे के सामने बोलने से शायद उनकी समस्या कुछ हल हो जाए। लेकिन गोंडा देवरिया गाँव के रामबहादुर सिंह जो पेशे से शिक्षक हैं, लोगों को पत्रकारों का काम समझाया। रामबहादुर सिंह कहते हैं, "जब तक गाय को ऐसा नहीं बनाया जाएगा कि वो किसानों के लाभकारी हो किसान उसे नहीं पालेगा। वर्तमान वो गाय को माता नहीं, सिरदर्द और सबसे बड़ा दुश्मन मानता है। और वो करे भी तो क्या?"

सूरज की रोशनी बढ़ने के साथ ही कोहरा छंटने लगा था। गोंड़ा देवरिया से सीतापुर जिले के रामपुर मथुरा कस्बे की तरफ बढ़ते ही सरसों के एक खेत से सांड़ों को भगाते कुछ किसान नजर आए। इसी जगह पर सांड के विजुअल लेते वक्त दोनों तरफ कांटों से घिरे खेतों से भागते साड़ों से कुछ किसान और गाँव कनेक्शन टीम बाल-बाल बची।

पंजाब से आकर अभिनापुर गाँव में बसे गुरविंदर सिंह बताते हैं, "सांड़ सिर्फ फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते, चूक जाने पर वो किसानों पर भी हमला कर देते हैं। मेरे भाई और पिता को भी ये चोटिल कर चुके हैं।" गुरविंदर के पास ही खड़े गोविंद बताते हैं, "पिछले साल मैं खेत में लेटा थे तभी सांड़ ने हमला कर दिया। मेरे चिल्लाने पर गाँव वाले आ गए तो जान बच गई।" सांड़ों से चोट पाने वाले किसानों में युवा से लेकर बुजुर्ग सब मिले।

गढ़चपा गाँव के एक बुजुर्ग किसान पिछले साल बाल-बाल बचे थे। समाचार पत्रों में छपी ख़बरों के मुताबिक इसी साल गौतमबुद्ध नगर के जेवर में मंगरौली गाँव के किसान राजपाल (55 वर्ष) पर सिंचाई करते वक्त सांड़ ने हमला कर दिया, जिससे उनकी मौत हो गई। किसानों के हंगामे पर 5 साल मुआवजे की आश्वासन पर मामला शांत हुआ, लेकिन हर किसान के चोटिल होने पर न हंगामा होता, न सरकारी मदद मिलती है।


सफर में पहली बार था जब एक खेत में बैलों से जुताई करता किसान मिला था। निंबा गाँव की शफीकुन्न अपनी दो बहनों के साथ खेत में पिता का साथ दे रही थी। मेंथा की जड़ें बीनते हुए शफीकुन्न अपने पिता से पहले बोल पड़ीं, "फसल नहीं बची तो जो कर्ज़ लिया था वो कहां से देंगे?"

शफीकुन्न जैसा सवाल कई किसानों ने पूछा था? जवाब था नहीं इसलिए दिया भी नहीं जा सका था। सुबह के करीब साढ़े दस बज रहे थे जब हमारी टीम गढ़चपा ग्राम पंचायत गाँव पहुंची थीं। प्रधान के मुकुंद तिवारी के घर पर करीब दर्जन भर लोग आग ताप रहे थे। जिनमें कई लोगों ने सर्दियों में राते कांटने और इन छुट्टा पशुओं के आतंक की व्यथा सुनाई। कई ग्रामीणों ने दिखाया कि कैसे वो अपने पालतू पशुओं का चारा इन छुट्टा पशुओं से बचाकर रख रहे हैं। ग्रामीणों ने ग्राम पंचायत में 4 से ज्यादा ऐसी जगह बताई जहां 100 से ज्यादा पशु अक्सर नजर आते हैं।

इसी ग्राम पंचायत में बहादुर बाजार के बाहर एक गन्ना कोल्हू के पास करीब 100 गाय और सांड़ बैठे थे। कैमरा देखकर पहुंचे दुर्जनपुर गाँव के रामतीरथ पुत्र संतू बताते हैं, "साहब चलकर हमार खेत देख लेव, रोज खेत बचावे जाइत रहे, बस कल चूक गए तो पूरे पांच बिगहा गेहूं गैया चर गईं।" रामतीरथ के खेत में अभी तक पहला पानी नहीं लग पाया था और नुकसान हो गया था।

ये पशु किसानों का कितना नुकसान कर रहे हैं, गढचपा के मुकुंद तिवारी की बातों से समझा जा सकता है। वो पंचायत के प्रधान और बड़े किसान भी हैं। मुकुंद तिवारी बताते हैं, "अकेले हम लोग साल में 5-7 लाख का मक्का बेच लेते थे, लेकिन इस बार 10-15 कुंतल (1700 रुपए कुंतल) भी नहीं हुई है। यही हाल गन्ने का है। किसानों का फसल बचा पाना बहुत मुश्किल हो गया है। जल्द ही इस दिशा में कदम नहीं उठाए गए तो किसान खेती नहीं कर पाएगा।"

मुकुंद तिवारी ने पिछले साल एक लाख रुपए के कटीले तार अपने खेतों में लगवाए थे, लेकिन उनमें से काफी टूट गए हैं। वो कहते हैं, "जानवरों को जब चारा नहीं मिलेगा, दो-तीन दिन वो भटकते हैं, फिर तार लगाओ या बाड़ वो तोड़कर अंदर घुस जाते हैं। अब उन्हें भी तो जिंदा रहना है। ऐसे वो कई बार घायल भी हो जाते हैं। हम तो गाय को पूजते हैं, नहीं चाहते वो कटीले तारों से घायल हों, लेकिन क्या करें मजबूरी है फसल भी बचानी है।"

कड़ाके की सर्दी में अपने खेतों की राात में रखवाली करते किसान। फोटो- वीरेंद्र सिंह

इस यात्रा के दौरान कई जगह किसानों ने ग्राम पंचायत स्तर गोशालाएं बनवाने का सुझाव दिया। साथ ही ये भी जो लोग छुट्टा पशु छोड़ते हैं, उन पर पाबंदी लगे।

मुकुंद तिवारी कहते हैं, "ये समस्या बहुत विकराल हो गई है। सरकार को तुरंत चाहिए कि ग्राम पंचायत स्तर पर परती जमीन, सीलिंग की जमीन या नदी-नालों के किनारे की जमीन पर एक समिति बनाकर गोशाला खुलवाएं और उसको मनरेगा से जोड़ा जाए। कई लोग उसमें दान भी देंगे। मैं भी ऐसी किसी गोशाला के लिए हर साल सरकार को 20-25 हजार रुपए दे सकता हूं, फसल बचाई का पैसा बचेगा।"

गोवंश की समस्या और गायों की दयनीय हालत देखते हुए योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश में जगह-जगह गौशाला बनवाने के निर्देश दिए हैं। ख़बरों के मुताबिक १० जनवरी तक सभी छुट्टा गायों को इन गोशाला में पहुंचाना है। इसके साथ गोवंश की नस्ल सुधार पर विदेशों से सिर्फ बछिया पैदा करने वाले सीमेन भी मंगवाए गए हैं।

रिपोर्टिंग सहयोग- दिति बाजपेई, अभिषेक वर्मा, रणविजय सिंह, वीरेंद्र सिंह

गांव कनेक्शन की सीरीज जारी रहेगी... गायों की ये दशा क्यों हुई ? क्यों किसान अब गायों के पीछे लाठीलेकर दौड़ रहा है ? पढ़िए दूसरी सीरीज में..

नोट- ये ख़बर मूल रूप से जनवरी 2019 में प्रकाशित की गई थी, जब गांव कनेक्शन की टीम ने नए साल की पहली रात उत्तर प्रदेश में कई जिलों के किसानों के बीच बिताई थी।

सीरीज का दूसरा भाग यहां पढ़िए- कमाई का जरिया और पूज्यनीय गाय सरदर्द कैसे बन गई ?


   

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