आजीविका को बनाए रखने, जलवायु परिवर्तन से लड़ने और कर्ज चुकाने के लिए देसी बीजों का इस्तेमाल

मध्य प्रदेश की एक महिला किसान लगभग चार दशकों से देशी बीजों का संरक्षण कर रही हैं। वह कहती हैं कि इन बीजों को कम पानी की जरुरत होती है और हाइब्रिड बीजों से सस्ते भी हैं। इस क्षेत्र की जलवायु और परिस्थितयों के अनुकूल हैं और बेहतर उपज देते हैं। इस आदिवासी महिला ने कर्ज चुकाने के लिए अपने बीज बैंक को संपत्ति के रूप में इस्तेमाल करने की भी योजना बनाई है।

Shivani GuptaShivani Gupta   16 Oct 2021 12:30 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
आजीविका को बनाए रखने, जलवायु परिवर्तन से लड़ने और कर्ज चुकाने के लिए देसी बीजों का इस्तेमाल

महिला किसान सुखमंती देवी ने देशी बीजों की 40 से अधिक किस्मों का संरक्षण किया है। सभी तस्वीरें: प्रदान

सुखमंती देवी बचपन से ही देशी बीजों को सहेज कर रखती आई हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "जब मैं सिर्फ दस साल की थी, तब से मैंने बीजों का संभाल कर रखना शुरू कर दिया था। मेरे माता-पिता भी किसान थे। एक किसान के लिए देशी बीज कितने महत्वपूर्ण हैं, ये बात उन्होंने ही मुझे सिखाई।" सुखमंती मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के देवसर ब्लॉक के चटानिहा गांव में रहती हैं।

47 साल की देवी ,लगभग चार दशकों से अपनी जमीन पर खेती के लिए स्वदेशी बीजों का संरक्षण कर रही हैं। आज उनके पास मक्का, धान, सावां चावल आदि के 40 से अधिक किस्मों के बीज हैं। वह कहती हैं, "मेरे पास मक्का, धान और तिलहन सभी की पांच से छह किस्में हैं। मैं उन्हें इकट्ठा करती हूं, कुछ को खेती के लिए इस्तेमाल करती हूं, और कटाई के बाद उन्हें नए सीजन के लिए स्टोर करती हूं।"

सुखमंती देवी बचपन से ही देशी बीजों को सहेज कर रखती आई हैं।

लेकिन उनकी कहानी में ऐसा क्या खास है?

एक गैर-लाभकारी संस्था PRADAN की सदस्य ज्योत्सना जायसवाल गांव कनेक्शन को बताती हैं, "चटानिहा गांव में कम से कम पांच सौ घर हैं। अधिकांश किसान खेती के लिए हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं। तो वहीं कुछ किसान स्वदेशी और हाइब्रिड दोनों किस्मों से खेती करते हैं। पूरे गांव में सिर्फ देवी का घर है, जहां हमेशा से पूरी तरह से स्वदेशी किस्मों पर ध्यान दिया गया है।" PRADAN (प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन) एक गैर-लाभकारी संस्था है, जो ग्रामीण भारत के बेहद गरीब समुदाय के लोगों का जीवन बदलने और गरीबी को कम करने के लिए काम कर रही है।

जायसवाल कहती हैं, "अपने गांव और वहां मौजूद संसाधनों के बारे में जाने बिना हर कोई हाइब्रिड बीज खरीदने और अपनी आय बढ़ाने में लग जाता है। लेकिन देवी अपने इलाके की जरुरतों और संसाधनों को अच्छे से समझती हैं। उन्हें पता है कि सीढीदार खेतों के लिए देसी बीजों का क्या महत्व है।"

देवी के पास कुल पांच एकड़ (दो हेक्टेयर) जमीन है। उसमें से एक एकड़ पर सीढीदार खेत बनाने में PRADAN ने मदद की है। जायसवाल ने बताया "पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन को सीढ़ीनुमा बनाकर ही खेती की जा सकती है। लेकिन समस्या ये है कि बारिश होने पर या फिर खेतों की सिंचाई करने पर मिट्टी बहने लगती है।" वह समझाते हुए कहती हैं, "लेकिन देवी के खेत के साथ ऐसा नहीं होगा। मिट्टी को रोके रखने और बांधने के लिए किनारों पर बांस और लेट्स जैसे तेजी से बढ़ने वाले पौधों को लगाया गया है। इनसे मिट्टी का कटाव रुक जाएगा और जरुरी पोषक तत्व मिट्टी में बने रहेंगे।"

अब तक PRADAN, देवसर ब्लॉक में कम से कम ऐसे 15 खेतों को बनाने में मदद कर चुका है।


ढलान वाले इलाकों में खेती

ज्यादा उपज देने वाले हाइब्रिड बीजों के लिए ज्यादा पानी, समतल जमीन और बहुत सारे पैसों की जरुरत होती है। देवी कहती हैं, "मेरे पास इनमें से कुछ भी नहीं है। हमारी जमीन समतल नहीं है। ऐसे इलाके में खेती करना बड़ा मुश्किल काम है।"

वह आगे कहती हैं, "जो लोग इसे वहन कर सकते हैं वे हाइब्रिड बीज खरीद रहे हैं। हमारे पास न तो पैसे हैं, न उपयुक्त जमीन और न ही अतिरिक्त पानी। अपनी फसलों के लिए हम बारिश पर निर्भर हैं।

देवी अपने खेत में मक्का, धान, तिलहन, जौ, सब्जियां जैसे बैंगन, टमाटर, मिर्च, सरसों, बरवटी (लोबिया) और अलसी उगाती हैं। देवी ने बताया, "देसी बीज को कम पानी की जरुरत होती है और ये ढाल वाले इलाकों में भी उग सकते हैं।"

उन्होंने कहा, "हालांकि रबी के मौसम में, हमें पास की नदी से पानी लाना पड़ता है, जो हमारे खेत से दो किलोमीटर दूर है। अपने खेतों की सिंचाई करने के लिए हम इस नदी से, दिन में कम से कम पांच बार अपना डब्बा (10 से 20 लीटर की बाल्टी) भरते हैं।"


देसी बीज के फायदे

साल 2019 में, 'भारत की स्वदेशी फसलों पर हरित क्रांति का प्रभाव' नामक एक शोध पत्र से पता चलता है कि चावल और बाजरा की स्वदेशी किस्में सूखे, लवणता और बाढ़ के लिए प्रतिरोधी हैं।

हालांकि, हरित क्रांति के बाद -1960 के दशक में भूख और गरीबी को कम करने के उद्देश्य से खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए चावल और गेहूं की उच्च उपज वाली किस्मों की शुरुआत की गई थी। इससे अन्य फसलों जैसे कि देशी चावल की किस्मों और बाजरा के उत्पादन में गिरावट आई।

पेपर में लिखा है, "इस खेती से कई अलग-अलग स्वदेशी फसलों का नुकसान हुआ और उनके विलुप्त होने का भी कारण बना। हरित क्रांति ने स्वदेशी फसलों के उत्पादन, पर्यावरण, पोषण सेवन और खाद्य पदार्थों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता को प्रभावित किया।"

जबलपुर में वैज्ञानिक और प्लांट ब्रीडर संजय सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, "स्वदेशी बीजों को हाइब्रिड बीजों की तुलना में कम पानी की जरुरत होती है। ये हाइब्रिड बीज मिट्टी के लिए भी नुकसानदायक हैं। ये मिट्टी से अधिक पोषक तत्वों को अवशोषित करते हैं। वैसे भी ढलाव वाले क्षेत्रों में बारिश होने पर पोषक तत्व मिट्टी के साथ बह जाते हैं। ऐसे जगहों पर स्वदेशी किस्में बेहतर प्रदर्शन करती हैं। इनकी सामान्य किस्मों में भी अंकुरण क्षमता अधिक होती है।"

वह बताते हैं, "इसके अलावा, हाइब्रिड बीजों को केवल एक या दो साल के लिए संरक्षित किया जा सकता है जबकि स्वदेशी को सामान्य परिस्थितियों में दो से चार साल तक संरक्षित किया जा सकता है। सावा चावल को तो सौ साल तक संभाल कर रखा जा सकता है। "

देसी फसलों से सेहत को भी कई फायदे मिलते हैं। उदाहरण के लिए, ये अनाज अपने लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स के चलते टाइप-2 डायबटीज, मोटापा और दिल की बीमारियों को बढ़ने के जोखिम को कम करने में मदद करते हैं।


पर्यावरण के अनुसार बीजों का पोषण

सिंह कहते हैं, "स्वदेशी का सीधा सा मतलब है, पर्यावरण के अनुसार पोषित किए गए बीज। वे सूखे के प्रति प्रतिरोधी हैं और उन पर कीटों का हमला कम होता है। इसका सिर्फ एक नुकसान है। हाइब्रिड की तुलना में इनका उत्पादन कम होता है। लेकिन हाइब्रिड बीजों में गुणवत्ता से समझौता करना पड़ता है।" संजय सिंह प्लांट ब्रीडिंग एंड जेनेटिक विभाग, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय, जबलपुर, मध्य प्रदेश में सार्वजनिक विश्वविद्यालय के साथ जुड़े हैं।

उन्होंने कहा, "धरती पर खुद को बनाए रखने के लिए, हमें प्रजनन कार्यक्रमों और आनुवंशिक सुधार कार्यक्रमों में स्वदेशी बीजों का उपयोग करने और उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है।"

कर्ज चुकाने के लिए बीजों का इस्तेमाल

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के हाल ही में किए गए एक सर्वे 'ग्रामीण भारत में कृषि परिवारों की स्थिति का आकलन और परिवारों की भूमि जोत-2019' से पता चलता है कि भारत में खेती के काम से जुड़ा हर दूसरा परिवार कर्ज में डूबा है।

पिछली गर्मियों में गांव कनेक्शन ने भी एक सर्वे किया था। कोविड-19 महामारी के दौरान ग्रामीण परिवार जिन परेशानियों को झेल रहे थे, यह सर्वे उन्हें सामने लेकर आया था। सर्वे में शामिल 20 प्रतिशत ग्रामीणों को लॉकडाउन में जीवन यापन के लिए अपनी जमीन, जेवर और कीमती सामान को गिरवी रखना पड़ा था या फिर बेचना पड़ा। अन्य 23 प्रतिशत को विभिन्न खर्चों को पूरा करने के लिए पैसे उधार लेने पड़े थे।


कुछ ऐसी ही कहानी देवी की भी थी। कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान, देवी के पोते की बुखार से मौत हो गई। वह कहती हैं, "जून महीने में मैंने अपने पोते को खो दिया। उसके अंतिम संस्कार करने के लिए भी पैसे नहीं थे। बनिया (साहूकार) से तीन हजार रुपये का कर्ज लेने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं था। हमने एक स्थानीय स्वयं सहायता समूह से भी पांच सौ रुपये का कर्ज लिया था। " NSO सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार 20.5 प्रतिशत कर्ज पेशेवर साहूकारों से लिया गया था।

देवी अपने संरक्षित देसी बीजों की मदद से कर्ज चुकाने की योजना बना रही है। वह कहती हैं, "ये बीज हमारे अस्तित्व को बचाए रखने के लिए जरुरी हैं। अगर हम उनका संरक्षण नहीं करेंगे और वे खत्म हो गए, तो हम क्या खाएंगे? हम कैसे बचे रहेंगे?"

अंग्रेजी में खबर पढ़ें

अनुवाद: संघप्रिया मौर्या

Also Read: मध्य प्रदेश: किसान राम लोटन का देसी म्यूजियम क्यों है खास?

#indigenous seeds #madhya pradesh #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.