कृषि कुंभ: किसानों को मिला कीड़े वाला खाना, नेता-अधिकारी खा रहे पकवान
किसानों को खाने में पूड़ी सब्जी दी जा रही है तो वहीं अधिकारी और नेताओं के लिए गुलाब जामुन, पनीर की सब्जी जैसे लजीज पकवान परोसे जा रहे हैं।
Ranvijay Singh 27 Oct 2018 11:52 AM GMT
लखनऊ। किसानों के लिए आयोजित कृषि कुंभ 2018 में किसान ही सबसे पिछले पायदान पर नजर आ रहे हैं। ये बात उनके खाने की प्लेट और पीने के पानी से साफ झलक रही है। जहां किसानों को खाने में पूड़ी सब्जी दी जा रही है तो वहीं अधिकारी और नेताओं के लिए गुलाब जामुन, पनीर की सब्जी जैसे लजीज पकवान परोसे जा रहे हैं। इतना ही नहीं किसान केे खाने मेें कीड़ा भी रेंगते पाया गया।
लखनऊ के तेलीबाग में स्थित भारतीय गन्ना शोध संस्था (आईआईएसआर) में 26 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक कृषि कुंभ का आयोजन किया गया है। इस आयोजन में प्रदेश भर से किसानों को लाया जा रहा है ताकि वो खेती से जुड़ी नई तकनीक के बारे में जान सकें। दूर दराज के जनपदों से लाए गए इन किसानों के लिए कृषि कुंभ में एक वक्त के खाने की व्यवस्था की गई है। इसके लिए ब्लॉक के हिसाब से इन किसानों को टोकन दिया जा रहा है, जिससे वो काउंटर से खाना ले सकें।
किसानों को मिलने वाले खाने की बात करें तो उन्हें मिलने वाले डिब्बे में एक सूखी सब्जी, चार पूड़ी, छोला, चावल और मिठाई में सोनपापड़ी दी जा रही है। वहीं, अधिकारियों और नेताओं की प्लेट में एक सूखी सब्जी, एक पनीर की सब्जी, 4 रोटी, चावल, सलाद और मिठाई में गुलाब जामुन दिया जा रहा है। कृषि कुंभ के पहले दिन ये प्लेट और भी लजीज भोज से सजी थी। पहले दिन नेताओं/अधिकारियों की प्लेट में पालक पनीर, पनीर की सब्जी, सूखी सब्जी, रायता, दाल, तंदूरी रोटी और मिठाई में गुलाब जामुन शामिल था।
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इतना ही नहीं बोतल बंद पानी में भी ये पक्षपात देखने को मिलता है। किसानों को किसी लोकल कंपनी का पानी दिया जा रहा है तो वहीं नेताओं/अधिकारियों को बिसलेरी की बोतल दी जा रही है। इसके अलावा नेताओं और अधिकारियों के लिए चाय और स्नैक्स का भी प्रबंध किया गया है। शाम को उन्हें रिफ्रेशमेंट में ढोकला, समोसे, चिप्स और चाय दिया जा रहा है।
कृषि कुंभ में खाने के स्टॉल के पास मौजूद चंदौली जिले के रेमा गांव से आए अजय यादव कहते हैं, ''कृषि कुंभ में आने के लिए मैं कल (26 अक्टूबर) शाम को चला हूं। आज (27 अक्टूबर) सुबह मेले में पहुंचा। अभी भूख लग रही है लेकिन यहां साढ़े बारह बजे के बाद ही खाना मिलेगा। अब इनसे कौन समझाए कि कल से चले हैं, भूख भी लगती है।'' बता दें, कृषि कुंभ में किसानों को साढ़े बारह बजे से 3 बजे तक खाना दिया जाता है। इसमें उन्हें लाइन लगकर खाना लेना होता है।
कासगंज जिले के परसादी नगला गांव से आए गंगा सिंह भी खाने की लंबी लाइन में करीब आधे घंटे से लगे थे। जैसे ही उन्हें खाना मिला वो वहीं जमीन पर बैठकर खाने लगे। जब उनसे पूछा गया कि खाना कैसा है? इसपर गंगा सिंह कहते हैं, ''भूख लगी है तो सब अच्छा है।'' वहीं, मेले में आए एक और किसान के खाने में कीड़ा रेंगता मिला। इसपर उसने अपने खाने को वहीं छोड़ दिया और कुछ बुदबुदाते हुए पंडाल से बाहर चला गया।
कृषि कुंभ में कुशीनगर के गाजीपुर गांव से आईं परसलिया कहती हैं, ''हमन के रतिये के चलल बानी के। अबे भाषण सुनल गइल ह। अब खा के चल जाएके बा। बिहने घरे पहुंचल जाई।'' (हम लोग रात का चले हैं। यहां भाषण सुना गया। अब खाना खाकर चले जाएंगे। कल घर पहुंचेंगे।) इस सवाल पर कि क्या सीखा यहां?, परसलिया खामोश हो जाती हैं।
कृषि कुंभ में अलग-अलग कंपनियों के स्टॉल लगे हैं, जहां किसाना उन कंपनियों के उत्पादों के बारे में जानकारी ले सकते हैं। एक जनपद से आए किसान दिन भर इन स्टॉल पर घूम कर जानकारी लेते हैं और फिर अपनी बस में बैठकर गांव को लौट जाते हैं।
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