आप भरोसा नहीं करेंगे, 10-10 रुपए हर हफ्ते बचाकर गांव की महिलाओं ने बदल डाली झारखंड की तस्वीर

बचत करने की इस पहल में झारखंड की 26 लाख महिलाएं शामिल हो चुकी हैं। जहां उन्हें बचत करना सिखाया जाता है, जहां उन्हें जीवन जीने की नई प्रेरणा मिलती है…जहां उन्हें रोजगार के अवसर दस्तक दे रहे होते हैं। जहाँ उन्हें सरकार की योजनाओं की जानकारी होती है। जहां उन्हें वक्त जरुरत पर लोन मिल जाता है।

Neetu SinghNeetu Singh   20 Aug 2019 8:14 AM GMT

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आप भरोसा नहीं करेंगे, 10-10 रुपए हर हफ्ते बचाकर गांव की महिलाओं ने बदल डाली झारखंड की तस्वीर

रांची/पलामू। आस-पड़ोस की कुछ महिलाओं का साथ और महज सप्ताह में 10-10 रुपए की बचत से इन महिलाओं की जिंदगी कैसे बदल रही है अगर आपको ये समझना है तो झारखंड की ग्रामीण महिला लक्ष्मी से मिलिए।

लक्ष्मी देवी, रांची जिले के सिल्ली प्रखंड की रहने वाली हैं। कुछ साल पहले शादी कर ससुराल पहुंची लक्ष्मी के सामने मुश्किलें पहाड़ की तरह खड़ीं थीं। लक्ष्मी पति का हाथ बंटाना चाहती थी लेकिन गांव के आसपास कोई अवसर नहीं मिल रहा था, एक दिन उन्हें सखी मंडल के बारे में जानकारी हुई।

सखी मंडल यानी महिलाओं का वो स्वयं सहायता समूह, जहां उन्हें बचत करना सिखाया जाता है, जहां उन्हें जीवन जीने की नई प्रेरणा मिलती है…जहां उन्हें रोजगार के अवसर दस्तक दे रहे होते हैं। जहाँ उन्हें सरकार की योजनाओं की जानकारी होती है। जहां उन्हें वक्त जरुरत पर लोन मिल जाता है, वही लोन जिसके लिए कल तक इन्हें महाजनों के दरवाजे खटखटाने होते थे।

देशभर में चले रहे दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत झारखंड में ग्रामीण विकास विभाग, झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी द्वारा अबतक राज्य में 2 लाख 13 हजार स्वयं सहायता समूह (सखी मंडल) बन चुके हैं। जिसमें लक्ष्मी देवी की तरह झारखंड की 26 लाख ग्रामीण महिलाएं जुड़ चुकी हैं।

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हर हफ्ते 10-10 रुपए की मामूली बचत करती हैं ये महिलाएं

दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार भारत के 622 जिलों के 5246 ब्लॉकों के करीब 55 लाख स्वयं सहायता समूह के माध्यम से 6.12 करोड़ ग्रामीण महिलाओं के जीवन में सुधार लाया जा चुका है। झारखंड में स्वयं सहायता समूहों की संख्या 2 लाख से ज्यादा है।

वैसे तो सखी मंडल से जुड़ी झारखंड में हजारों बदलाव की कहानियां हैं जो देश की सैकड़ों महिलाओं के लिए उदाहरण हैं। लेकिन इनमें से कुछ ऐसी बदलाव की कहानियाँ है जो देश के दूसरे राज्यों में लागू की जा रही हैं। जैसे यहाँ के पशु सखी और रानी मिस्त्री के मॉडल को अब बिहार समेत कई राज्यों में लागू किया जा रहा है। सखी मंडलों की सफलता की गाथा, अब झारखंड की लाखों ग्रामीण महिलाओं की मुस्कुराहटों में साफ-साफ नजर आती है।

लक्ष्मी देवी (25 साल) सखी मंडल के फायदे बताते नहीं थकतीं, "बहुत गरीब परिवार से हैं। बैंक में कभी हमारा भी खाता होगा और उसमें पैसा जमा होंगे इस बात का कभी ख्याल ही नहीं आया। लेकिन सखी मंडल में जुड़ने के बाद हफ्ते के 10 रुपए ही सही लेकिन इसी बहाने बचत शुरू हो गयी।" वो आगर कहती हैं, "जब भी जरूरत होती है सखी मंडल से आसानी से लोन मिल जाता है। सखी मंडल की बैठक में आने जाने से बहुत तरह की जानकारी भी हो गयी है।"

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ये हैं सखी मंडल से जुड़ीं लक्ष्मी देवी

सखी मंडल की सदस्य बनने के कुछ दिनों बाद ही लक्ष्मी अपने समूह शिवशक्ति महिला समूह की अध्यक्ष बन गई थीं…अब वो दूसरी महिलाओं में उम्मीदें जगा रही हैं। खुद उनका रहन सहन बदल गया है। उनके समूह की कई दूसरी महिलाएं तो मजदूरी किया करती थी, अब उद्ममी बन गई हैं। ऐसा ही झारखंड के हजारों गांवों में हो रहा है। कोई महिला अच्छी खेती कर रही है, किसी ने दुकान खोली है तो कोई शहर में रोजगार की ट्रेनिंग लेकर गांव को नई दिशा दे रहा है।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत झारखंड में ग्रामीण विकास ‍विभाग और झारखंड स्टेट लाइवलीवुड प्रमोशन सोसायटी के साझा प्रयास से लाखों जरुरतमंद महिलाओं की जिंदगी बदल रही है। योजना के अंतर्गत अब तक हर गरीब ग्रामीण परिवार से कम से कम एक महिला को सखी मंडल से जोड़ा जा रहा है। लक्ष्मी उन्हीं में से एक है।

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सखी मंडल से जुड़कर खुद की बचत करके खुश हैं ये महिलाएं

पलामू जिले के छत्तरपुर प्रखंड की राधा देवी (35 वर्ष) एक आम गृहणी की तरह जीवन यापन कर रहीं थीं। वर्ष 2015 में रागिनी आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ गईं। सखी मंडल से जुड़ने के बाद वर्ष 2018 इन्होंने समूह से 50,000 का लोन लिया। लोन लेकर मुर्गा बेचने की दुकान खोली। राधा आत्मविश्वास के साथ बताती हैं, "इस दुकान से महीने का पांच हजार आराम से बच जाता है। हमने अब तो समूह से लोन लेकर टेंट हाउस भी खोल लिया है। धीरे-धीरे कर्ज चुका रहे हैं। मेरे छह बच्चों का खर्चा इसी कारोबार से चलता है।" राधा की तरह झारखंड में सखी मंडल से लोन लेकर खुद का बिजनेस करने वाली महिलाओं की संख्या हजारों होगी।

झारखंड में सखी मंडल की महिलाओं के सफलता के चर्चे दिल्ली तक सुर्खियां बनते हैं। इनके प्रयास दूसरों को राह दिखाते हैं। आखिर हों भी क्यों न 10-10 रुपए की बचत करने वाले समूहों में कइयों के पास आज करोड़ों रुपए की बचत है। इनमे से कई संकुल संगठनों के पास जमा एक करोड़ से ज्यादा रूपये से इन्हें महीने के 60-70 हजार रूपये ब्याज के मिलते हैं. इनकी इस उपलब्धि से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे संगठित होकर मेहनत मजदूरी करने वाली ये महिलाएं आज यहाँ की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन गयी हैं।

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सखी मंडल से जुड़ने के बाद इन्हें मिली अपने काम की पहचान

सखी मंडल से जुड़ने के बाद महिलाओं का ये आत्मविश्वास और हौसला ही इनकी ताकत बना है। हाथ में हुनर आया तो घर की चहारदीवारी से निकली। अब तो इन साधारण महिलाओं की पहचान ही बदल गई है। इनमें कोई रानी मिस्त्री कहलाती हैं तो किसी को सोलर दीदी का नाम मिला है, कैफे वाली दीदी, एटीएम दीदी, बैंक सखी, पशु सखी, आजीविका कृषक मित्र, पत्रकार दीदी कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो झारखंड के ग्रामीण इलाकों में बहुत सम्मान से लिए जाते हैं।

सखी मंडल से जुड़ने के बाद आज अंशु देवी (28 वर्ष) नौ साल बाद अपनी स्नातक की पढ़ाई में दाखिला ले चुकी हैं। अंशु खुश होकर कहती हैं, "इंटर के बाद हमारी शादी हो गयी थी। घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि आगे की पढ़ाई कर पाती। लेकिन जब समूह की बैठक में दीदियों के सामने अपनी पढ़ने की इच्छा जाहिर की तो सभी ने हमारा सहयोग किया। फिर से पढ़ाई शुरू करके हममे उम्मीद की एक किरण जग गयी है।"

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अंशु देवी सखी मंडल से जुड़कर कर रहीं हैं पढ़ाई

अंशु देवी पलामू जिले के लेसलीगंज प्रखंड के पथराई गाँव की रहने वाली है। ये वर्ष 2017 में काली आजीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी। अमूह से लोन लेकर इन्होंने सूखी लकड़ी और जानवरों का सूखा भूसा बेचने का काम शुरू किया। अंशु कहती हैं, "मेरे इस काम से पैसा तो आ ही रहा है लेकिन हम सबसे ज्यादा इस बात से खुश हैं कि आज हम अपनी पढ़ाई इस उम्र में कर पा रहे हैं जहाँ हमने उम्मीद ही छोड़ दी थी। ये मेरे लिये सबसे खुशी की बात है।"

जब ये ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हुई तो धीरे-धीरे ये जागरूक भी होने लगी। अब ये समूह में केवल बचत करने के लिए बैठक नहीं करती बल्कि अपनी समस्याओं के आलावा सामाजिक मुद्दों पर भी चर्चा करने लगीं। चाहें किसी को पढ़ाई करना हो या फिर बच्चों का स्कूल में दाखिला कराना हो। बाल विवाह रोकना हो या फिर किसी गाँव में सड़क बनानी हो…या फिर किसी पात्र को सरकारी योजना का लाभ दिलवाना ये महिलाएं हर मुद्दा सुलझाने के लिए तैयार रहती हैं।

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ये महिलाएं सामूहिक रूप से मिलकर करती हैं काम

इन जुझारू महिलाओं की बदौलत अब झारखंड के गाँवों की गरीबी हो रही खत्म

झारखंड की इन लाखों महिलाओं के जुझारूपन की बदौलत अब झारखंड के गाँव से गरीबी खत्म हो रही है। झारखंड के गांवों में डिजिटलाइजेशन हो रहा है। गांव में तकनीकी तरक्की ला रही है। बैंकिग करिस्पोडेंट बैंकिंग सुविधाएं लोगों के दरवाजों पर पहुंचा रही हैं। पोषण वाटिकाएं, कुपोषण से लड़ने में कारगर हथियार साबित हो रही हैं। जंगल हो या पहाड़, गांव हो या कस्बा… जहां लाइट नहीं थी वहां सोलर दीदी सौर ऊर्जा से रोशनी भर रही हैं।

लातेहार जिला मुख्यालय से लगभग 150 किलोमीटर दूर महुआटाढ प्रखंड के सिरसी गाँव में ज्यादातर बिरजिया परिवार रहते हैं। एक ऐसी जनजाति जो मूलभूत सुविधाओं से आज भी कोसों दूर रहती है। ऐसे सुदूर क्षेत्रों की महिलाओं को सखी मंडल से जोड़कर उनतक सरकारी योजनाओं का लाभ ग्रामीण विकास विभाग द्वारा पहुंचाया जा रहा है।

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लातेहार जिले के बिरजिया समुदाय की महिलाएं

इस गाँव की तरसिला बिरजिया (45 वर्ष) रिमझिम आजीविका स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष हैं। वो बताती हैं, "हमारे पास जमीन तो है लेकिन वो खेती करने लायक नहीं है। हम लोग मजदूरी करके ही अपना पेट पालते हैं। हमारा गाँव इतनी दूर बसा है जहाँ कोई आता जाता नहीं। लेकिन समूह से जुड़ने के बाद एक अच्छी बात ये हुई है कि अब लोग हमारे यहाँ आने लगे हैं और बैठक में कई तरह की जानकारियां भी देने लगे हैं।" वो आगे कहती हैं, "हमारी बस्ती में सभी लोगों को सरकार की तरफ से हर महीने 35 किलो चावल मिल्नेल्गे हैं। अब ये चिंता नहीं रहती कि अगर मजदूरी नहीं मिली तो बच्चे खाएंगे क्या।"

सखी मंडल की महिलाएं हर हफ्ते करती हैं बैठक

सखी मंडल की महिलाएं बन रहीं सामुदायिक पत्रकार

रांची जिले की रहने वाली रूबी खातून आज अपने क्षेत्र में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। अब ये पत्रकार दीदी के नाम से जानी जाती हैं। रूबी बताती हैं, "यहाँ हर महिला की कोई न कोई संघर्ष की कहानी जरुर है। पर उन्हें पता ही नहीं कि उन्होंने कोई संघर्ष किया है वो इसी अपनी जीवन का हिस्सा मान लेती हैं। जब सामुदायिक पत्रकार बनकर हमने इनकी कहानियाँ लिखीं तो ये बहुत खुश हुई। दूसरी महिलाओं में भी इन कहानियों को पढ़कर हिम्मत आती है।"

पत्रकारिता का हुनर सीख रूबी खातून बन गयी हैं सामुदायिक पत्रकार (कुर्सी पर बैठी रूबी)

वो कहती हैं, "अब तो समूह की दीदियाँ फोन करके हमें अपने आसपास की कहानियाँ बताने लगी हैं। गाँव की दूसरी महिलाएं इन कहानियों को पढ़कर खुश होती हैं और वो सोचती हैं अगर ये अपना जीवन बदल सकती हैं तो हम क्यों नहीं।"

गांव की इन महिलाओं को जेएसएलपीएस समय-समय पर जो ट्रेनिंग देता है, वो इसका भरपूर फायदा उठा रही हैं। महिलाओं का ये संगठन अब बदलाव की एक नई इबादत लिख रहा है। सुदूर गांवों में रहने वाली महिलाओं की कहानियां अब शहर की खबरों की भीड़ में खोती नहीं है। क्योंकि अब सखी मंडल से जुड़ी महिलाएं खुद नागरिक पत्रकार बनकर देश के बड़े अख़बारों में ख़बरें लिख रही हैं। उनके बनाए वीडियो सोशल मीडिया में चर्चा बटोरते हैं।


    

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