बीत गया महिला दिवस, मगर उन बंदिशों का क्या…?

Kushal MishraKushal Mishra   9 March 2018 5:30 PM GMT

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बीत गया महिला दिवस, मगर उन बंदिशों का क्या…?फोटो: विनय गुप्ता

बीते गुरुवार को एक बार फिर महिला दिवस बीत गया, महिलाओं के लिए देश भर में कई कार्यक्रम हुए, विभिन्न क्षेत्र में अनुपम योगदान देने वाली कुछ महिलाओं को सम्मानित भी किया गया, उपेक्षित महिलाओं को मुख्य धारा में लाने के साथ नए भारत के निर्माण के लिए संकल्प लिए गए, मगर महिलाओं के प्रति बंदिशें तोड़ने पर शायद ही कहीं चर्चा हुई।

देश का इतिहास गवाह है कि देश में जब-जब महिलाओं के साथ पुरुषों की बंदिशें टूटी हैं, तब-तब महिलाओं ने आत्मनिर्भर बनकर न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त बनीं, बल्कि परिवार की मुखिया बन अपने दायित्वों का निर्वहन किया है। मगर आज भी पुरुषवादी मानसिकता के तहत महिलाएं घूंघट और बुरके में घर से निकलने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं।

देश के ग्रामीण इलाकों की बात करें तो हालिया सामाजिक, आर्थिक व जातिगत आंकड़ों के अनुसार देश भर के ग्रामीण परिवारों में 11 फीसदी महिलाएं मुखिया हैं। यह स्थिति चिंताजनक है।

बाकी 364 दिन बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाएं क्यों?

मानवाधिकार और महिला हिंसा के मुद्दे पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ब्रेकथ्रू की उत्तर प्रदेश की हेड कृति मधू ‘गाँव कनेक्शन’ से बातचीत में कहती हैं, “केवल एक दिन महिलाओं को सम्मानित करके महिलाओं की स्थिति को सुधारा नहीं जा सकता है क्योंकि बाकी 364 दिन देश में बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आती हैं।“

कृति आगे बताती हैं, “महिलाओं की शिक्षा पर कोई बात नहीं करता है, ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाएं 5वीं बाद स्कूल नहीं जा पाती हैं, गाँव में प्राथमिक पाठशाला तक नहीं होती हैं, लड़कियों को स्कूल नहीं भेजते हैं क्योंकि रास्ते सुरक्षित नहीं हैं। इसके प्रति जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की जाती। महिला मुखिया तो दूर, आज भी महिलाएं घर से बाहर निकलने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। ऐसे में महिलाओं के प्रति न सिर्फ पुरुषवादी बंदिशें टूटनी चाहिए, बल्कि हर लड़की को शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए।“

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बहुत कम परिवाराें में महिला मुखिया

सामाजिक, आर्थिक व जातिगत आंकड़ों के अनुसार, उत्तर भारत में राजस्थान में 8.9 प्रतिशत और हरियाणा में सिर्फ 11.7 प्रतिशत महिला मुखिया परिवार हैं। वहीं देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा 10.40 फीसदी है। बिहार में यह स्थिति 9.7 फीसदी है, जहां महिलाओं को मुखिया माना जाता है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की बात करें तो सिर्फ 9 फीसदी महिलाओं के हाथों में परिवार की कमान है।

दूसरी ओर 100 फीसदी शिक्षा मुहैया कराने वाले राज्य केरल में 40.60 ग्रामीण परिवारों में महिलाएं मुखिया हैं। इसके बाद भारतीय केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में 26.25 फीसदी और गोवा में 24.66 फीसदी ग्रामीण परिवारों में महिलाएं मुखिया हैं। देश के पहाड़ी इलाकों की बात करें तो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में यह आंकड़ा क्रमश: 21.55 और 21.52 फीसदी है, जहां मुखिया महिलाएं हैं। इन राज्यों में ग्रामीण महिलाएं कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

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इन राज्यों में महिलाएं संपत्ति की मालिकन ज्यादा

यह सरकारी आंकड़े बताते हैं कि केरल, लक्षद्वीप, गोवा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में ग्रामीण महिलाएं न सिर्फ आत्मनिर्भर हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी मजबूत हैं। बीते दिनों स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के तहत भारत के 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक सर्वेक्षण कराया गया, जिसकी रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि एक तरफ जहां उत्तरी राज्यों में 9.8 फीसदी महिलाएं ही संपत्ति की मालकिन हैं, इसके इतर उत्तर पूर्व के त्रिपुरा और मेघालय में यह आंकड़ा 57 प्रतिशत से ज्यादा रहा, वहीं कर्नाटक और तेलंगाना में यह आंकड़ा क्रमश: 51 व 50 प्रतिशत से ज्यादा रहा।

इन आंकड़ों में सच छिपा है कि जिन राज्यों में महिला मुखिया परिवारों की संख्या कम है, उन्हीं राज्यों में महिलाओं पर बंदिशें सबसे ज्यादा हैं। महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक तौर पर महिलाओं का स्वतंत्र न होना, उन्हें ग्रामीण इलाकों में मुखिया न माने जाने का संभवत: प्रमुख कारण है।

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शिक्षा का माहौल बनाने की जरुरत

महिला मुद्दों पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था क्रिया (KRIYA) की नई दिल्ली की हेड शालिनी सिंह फोन पर बताती हैं, “सिर्फ चौका-बर्तन तक महिलाओं को सीमित मानने वाले ऐसी पुरुषवादी सोच को न सिर्फ बदलने की जरूरत है, बल्कि देश में लड़कियों के लिए शिक्षा का एक माहौल बनाने की जरूरत है, ग्रामीण इलाकों में जब महिलाएं शिक्षित होंगी, तभी वे न सिर्फ आत्मनिर्भर बनेगी, बल्कि आर्थिक रूप से भी सशक्त होंगी।“

शालिनी आगे कहती हैं, “दूसरी ओर समाज की धकियानूसी मानसिकताओं के खिलाफ ग्रामीण स्तर पर जागरुकता फैलाने की जरुरत है, ताकि महिलाएं घर की दहलीज से बाहर निकल सकें और समाज में अपना योगदान दे सकें।“

जमीनी स्तर पर काम नहीं होता…

राष्ट्रीय मानवाधिकार सुरक्षा संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवम बिश्नोई ‘गाँव कनेक्शन से फोन पर बातचीत में बताते हैं, “देश में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना होने के बावजूद भी महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया जाता है। ग्रामीणों में जागरुकता नहीं फैलाई जाती, महिलाओं के अधिकारों के बारे में नहीं बताया जाता, ऐसे में महिलाएं समानता के अधिकार से वंचित हैं।“

शिवम आगे कहते हैं, “देश में महिलाओं को शिक्षित करने के लिए बड़े स्तर पर काम करने की आवश्यकता है, तभी वे पुरुष के साथ समान अधिकार का हिस्सा बनेंगी।“

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