जेल में विष्णु के 20 साल: "जिंदगी भर बस इस बात का दर्द रहेगा कि हमने जो किया नहीं उसकी सजा मिली, हमारा सब कुछ बर्बाद हो गया"

बलात्कार और हरिजन उत्पीड़न (एससी-एसटी एक्ट) मामले में 20 साल जेल में बिताने के बाद निर्दोष साबित हुए बुंदेलखंड के ललितपुर जिले के विष्णु तिवारी अपने घर पहुंच चुके हैं। लेकिन अब उनका ना घर बचा है और ना ही परिवार। माता-पिता के साथ उनके दो भाइयों की भी मौत हो चुकी हैं। इनमें से वो किसी का शव तक नहीं देख पाए।

Arvind Singh ParmarArvind Singh Parmar   18 March 2021 12:26 PM GMT

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जेल में विष्णु के 20 साल: जिंदगी भर बस इस बात का दर्द रहेगा कि हमने जो किया नहीं उसकी सजा मिली, हमारा सब कुछ बर्बाद हो गया20 साल बाद अदालत से निर्दोष साबित हुए विष्णु तिवारी अपने घर पहुंचने के बाद, सभी फोटो- अरविंद सिंह परमार

ललितपुर (उत्तर प्रदेश)। बीस साल जेल में बिताने के बाद 4 मार्च, 2021 को जब विष्णु बुंदेलखंड के ललितपुर जिले के अपने गांव सिलावन पहुंचे, तो घर और आसपास के लोग खुशी के मारे फूले नहीं समा रहे थे, लेकिन विष्णु की आंखें भीड़ में अपने माता-पिता को तलाश रही थी। वे अपने उन दो भाइयों को भी खोज रहे थे, जो दुनिया छोड़ चुके थे। उनके पास घर के नाम पर खपरैल के अवशेष, माता-पिता और भाईयों के यादों के अलावा उनका एक छोटा सा परिवार बचा है।

खपरैल के अंदर 4-5 फीट ऊँचे दीवारों के अवशेष बचे हैं, बाकी मैदान हैं। एक दूसरे कच्चे घर में ऊपर से पॉलीथीन पड़ी है, जहां गाय बांधी जाती है। अब यही घर विष्णु के रहने का ठिकाना है। उनका गांव ललितपुर की महरौनी तहसील से 27 किलोमीटर दूर है।

अपने उजड़े घर को दिखाते हुऐ विष्णु कहते हैं, "यहीं परिवार के साथ हंसते-खेलते, खाते-पीते हमारा बचपन बीता था। झूठे केस में परिवार तहस-नहस हो गया, जमीन बिक गई, माता-पिता और दो भाई नहीं रहे। मेरा परिवार पचास साल पीछे की गरीबी के दलदल में चला गया। इस संकट से कैसे उभरे, समझ नहीं आता।"

संबंधित खबर- रेप मामले में 'निर्दोष' ने 20 साल जेल में काटे, मुकदमा लड़ते और सदमे में माता-पिता और 2 भाई चले गए, 5 एकड़ जमीन बिक गई

20 साल से आगरा की जेल में बंद विष्णु तिवारी को एक बार भी परोल नहीं मिली। वो 4 मार्च 2021 को निर्दोष साबित होने के बाद अपने घर पहुंचे। फोटो- अरविंद सिंह परमार

उत्तर प्रदेश में ललितपुर जिले के विष्णु तिवारी को वर्ष 2000 में अनुसूचित जाति की महिला की शिकायत पर रेप के आरोप और हरिजन एक्ट (एससी-एसटी एक्ट) के तहत गिरफ्तार किया गया था। साल 2003 में सत्र न्यायालय ने रेप के आरोप में 10 वर्ष और एससी-एसटी के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

इस केस में नया मोड़ 22 फरवरी, 2021 को आया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेल से दाखिल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए विष्णु तिवारी को न सिर्फ निर्दोष माना। बल्कि नियमों का पालन न करने पर राज्य सरकार पर तल्ख टिप्पणी भी की। कोर्ट का फैसला आने के बाद भी कागजी कार्रवाई में कुछ दिन बीते और अन्ततः 3 मार्च को विष्णु को आगरा जेल से आजादी मिली। संबंधित पूरी खबर यहां पढ़ें-

जेल में बिताये दिनों का दर्द बताते-बताते विष्णु भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं, "जेल की काल-कोठरी में हमने 7300 दिनों के 1,75,200 से अधिक घंटे ऐसे जुर्म की सजा काटने में बिताया, जो हमने कभी किया ही नहीं था। मेरे जीवन के अनमोल 20 साल जेल में ही कट गए।"

मानवाधिकार आयोग ने उनके मामले को संज्ञान में लेते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक से 6 सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है। कई सामाजिक संगठन भी उनके साथ हुई लापरवाही को लेकर आवाज उठा रहे हैं। कई लोग विष्णु की आर्थिक सहायता के लिए भी लोग आए हैं।

विष्णु तिवारी अपने परिवार के साथ। जेल में रहने के दौरान उनके माता-पिता दो भाइयों की मौत हो गई। फोटो- अरविंद परमार

दो दशक पहले विष्णु के पिता रामेश्वर तिवारी सीमांत कृषक की श्रेणी में आते थे। वह बनारस के पढ़े लिखे थे और आसपास के गांवों में पंडिताई (पूजापाठ) करते थे। घर, बैल, गाय, भैंस, बकरी सब था। सामान्य परिवार की तरह सब कुछ ठीक चल रहा था। लेकिन एक घटना से सब कुछ बदल गया।

वर्ष 2000 की घटना याद करते हुए विष्णु कहते हैं, "जानवर खेत में घुस गए थे, उसी को लेकर विवाद हुआ था। मुझे क्या पता था कि यह विवाद मेरी जिंदगी बर्बाद कर देगा। एक महिला ने हरिजन एक्ट (एससी-एसटी एक्ट) और बलात्कार की 'झूठी' शिकायत पर मुकदमा लिखवा दिया। पुलिस ने जेल में डाल दिया। छह महीने बाद हाईकोर्ट से जमानत का आदेश तो मिया लेकिब जमानत नहीं मिली। उसके बाद पूरा समय जेल में ही बीता।"

2013 में विष्णु के पिता रामेश्वर तिवारी, 2014 में भाई दिनेश और 2015 मां रामसखी का निधन हो गया। समाज और कानून व्यवस्था से लड़ते परिवार में आपदाओं का सिलसिला जारी रहा और 2017 में एक और भाई राम किशोर तिवारी की भी मौत हो गई। घर के चार लोगों की मौत हो गई, लेकिन विष्णु को एक बार भी पैरोल नहीं मिला।

विष्णु कहते हैं, "जेल प्रशासन कभी नहीं चाहता कि कोई कैदी बाहर जाए। यह तो घर वालों का काम हैं कि जो सदस्य जेल में कैद हैं, उन्हें दाह-संस्कार में बुलाने के लिए गुहार लगाए। लेकिन सिस्टम में जल्दी सुनवाई ही नहीं होती। जेल में रोते रहो, रोते रहो, कोई नहीं सुनता।"

विष्णु तिवारी

विष्णु बताते हैं कि जब तक उनके पिता जिंदा थे, तब तक वे कभी-कभी मिलने भी जाते थे, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद कोई नहीं पहुंचा। ढाई साल बाद छोटे भाई महादेव जब मिलने पहुंचे तो पता चला कि पिता समेत घर में इतने लोग अब नहीं रहें।

विष्णु कहते हैं उन्हें जीवनभर इस बात का अफसोस रहेगा कि वो अपने माता-पिता का मरने के बाद मुंह तक नहीं देख पाए।

जेल के नियम और कानून व्यवस्था को कोसते हुऐ विष्णु कहते हैं, "जेल में खाते रहो, पड़े रहो मर जाओ, किसी को कोई गम नहीं। यह सिस्टम बहुत ही बेकार है, इसमें कोई सुधार नहीं हैं। जेल में बंद कैदी रिहाई के लिए तड़प रहे हैं कोई सुनने वाला नहीं हैं। कैदियों को मानसिक टेंशन बहुत है। सभी कहते हैं कब ऐसा दिन आयेगा जब सरकार सुनेगी। स्थाई नीति बनेगी कब तक सजा काटना, क्या सजा है सजा का कितना हिसाब हैं ऐसी व्यवस्था कब होगी?"

ललितपुर में महरौनी बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद चौबे कहते हैं, "केन्द्र व राज्य सरकारों को कानून के तहत विशेष शक्तियां प्राप्त हैं। शक्तियों का प्रयोग करते हुऐ 10 से 14 वर्ष की सजा भुगतने के बाद उनकी रिहाई पर विचार करती है। साथ ही संविधान के अनुच्छेद 161 द्वारा राज्य के राज्यपाल को ऐसे मामलों में क्षमादान की शक्ति प्रदान की गई है। आजीवन कारावास के मामले में उनके पास रिहाई का अधिकार है, ऐसे मामलों में सरकार को ध्यान देकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए।"

विष्णु के मुताबिक वह जेल में अक्सर सोचते थे कि कभी वो बेगुनाह साबिह हो भी पाएंगे या नहीं। "कई बार लगता था शायद ऐसा समय आए, जब हम निर्दोष साबित हो। फिर ये भी ख्याल आता था कि ऐसा ना हो कि हम जेल में ही मर जाये हमारी आवाज दब जाये। हमारे ऊपर लगा झूठा कलंक कैसे दूर होगा। अब हम निर्दोष साबित हो गए हैं, तो हम पर लगा एक कलंक हट गया है।"

विष्णु के मुताबिक जेल में तमाम लोग उनकी आंखों के सामने मरे हैं जिनके केस चल रहे हैं। वह कहते हैं, "जेल की सजा काटने में दिल बहुत मजबूत करना पड़ता है, हर आदमी सजा नहीं काट सकता।"

विष्णु के जेल से रिहा होने के बाद घर पर मिलने-जुलने वालों का ताता लगा हैं। पूरे गाँव में खुशी का माहौल है, विष्णु समेत पूरे परिवार को खुशी है कि उन पर लगा कलंक दूर हुआ। इसी समाज ने इस केस के बाद इस परिवार से मुंह फेर लिया था। यहां तक उनके कि छोटे भाई की शादी तक नहीं हुई थी।

मानवाधिकार आयोग का नोटिस।

विष्णु के मानवाधिकार हनन के मामले में मानवाधिकार आयोग ने मामले का संज्ञान लेते हु उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को मामले में विस्तृत रिपोर्ट के लिए नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। मानवाधिकार आयोग ने प्रशासन से इस संबंध में 6 सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।

   

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