क्या एक बार फिर से साइकिल का जमाना लौट रहा है?

साठ के दशक तक साइकिल निम्न-मध्यम वर्ग की पसंदीदा सवारी थी। ज्यादातर घरों में यह गृहस्थी का जरूरी हिस्सा हुआ करती थी। छोटी-छोटी दूरियां इसी से तय होती थी।

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क्या एक बार फिर से साइकिल का जमाना लौट रहा है?

वैसे बदलाव दुनिया भर में आया लेकिन तब भी अनेक देशों में यह शहर जीवन का हिस्सा बनी रही। चीन के बाद भारत दूसरा बड़ा उत्पादक है लेकिन इसका बड़ा हिस्सा निर्यात भी किया जाता है। फोटो: गाँव कनेक्शन

शिवकुमार विवेक

क्या साइकिल का जमाना लौट रहा है? हालात यह बताते हैं। लॉकडाउन ने दुनिया भर के लोग को आधुनिक समाज के प्रारंभिक और पारंपरिक वाहन के तरफ लौटने के लिए विवश कर दिया था। कोविड़ महामारी के दौरान प्रवासी मजदूर द्वारा साइकिल से लंबी दूरियां तय करने की घटना ने देश का ध्यान इसकी तरफ खींचा। बिहार की ज्योति कुमार द्वारा 1300 किलोमीटर तक साइकिल चलाने की घटना अखबार की सुर्खियां बन गई थी। दुनिया के हर कोने में साइकिल के इस बढ़ते रुझान और जरूरत से उत्साहित होकर अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका 'फ़ोर्ब्स' में सुप्रसिद्ध नवाचार विशेषज्ञ एनरिक डैन्स ने भविष्यवाणी कर दी -'साइकिल शहर के यातायात का भविष्य है।'

साठ के दशक तक साइकिल निम्न-मध्यम वर्ग की पसंदीदा सवारी थी। ज्यादातर घरों में यह गृहस्थी का जरूरी हिस्सा हुआ करती थी। छोटी-छोटी दूरियां इसी से तय होती थी। दो सदी से पहले मैकमिलन ने पहल साइकिल भी 40 मील दूर ग्लास्गो में रहने वाली अपनी बहन से मिलने के लिए आने-जाने के मकसद से बनाई थी। कुछ समय पहले तक हमारे यहां भी बचपन की तो इसके बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। हर शहर की सड़कों पर कैरियर में बस्ता दबाए साइकिल पर दौड़ते-भागते स्कूली बच्चे हाल तक खूब नजर आते थे।

जब हम विश्वविद्यालय में पढ़ते थे, तब हमारे पास 10 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर साइकिल से जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता था। देश के सबसे बड़े अखबार के दफ्तर में सिर्फ अखबार मालिक का स्कूटर खड़ा दिखाई देता था। बाकी पत्रकार साइकिल से आते-जाते थे। रिपोर्टर भी इंदौर जैस शहर को साइकिल से नाप लिया करते थे। साइकिल चलाने में उस समय कोई शर्म महसूस नहीं होती थी। बाद में स्कूटर और मोटरसाइकिल रखने वाल का स्टेटस ऊंचा होता गया। आमदनी में इजाफा और सस्ती ऋण सुविधाओं ने मोटरीकृत वाहन को घर-घर म खड़ा कर दया। आज ज्यादातर घरों से साइकिल गायब हो चुकी है, स्कूलों की पार्किंग में साइकिलों से ज्यादा मोटरीकृत दोपहिया वाहन दिखते हैं और सड़क पर साइकिल सवार का दिखना जिज्ञासा का विषय बन गया।

फोटो: दिवेंद्र सिंह

60 के दशक तक साइकिल मध्यम वर्गीय परिवारों में स्टेटस सिंबल थी। विवाह में साइकिल, रेडियो व पंखा दहेज में दिए जाते थे। पूर बारात रास्ते भर रेडियो का आनंद लेती हुई लौटती थी। हमारे एक निकट रिश्तेदार पास के गाँव में अध्यापन के लिए साइकिल से आते-जाते थे और रविवार के दिन आधा दिन लगाकर उसकी साफ-सफाई करते थे। चमकती हुई साइकिल उनके उम्र बढ़ा देती थी। उनके समक्ष जब मोटरबाइक लेने का प्रस्ताव रखा गया तो उनके दलील थी कि साइकिल चलाना सेहत के लिए फायदेमंद है। इस दौर में साइकिल का नगरपालिका में पंजीयन कराना पड़ता था और रेडियो का लाइसेंस लेना पड़ता था। बदलाव 70 के दशक क उत्तरार्ध से तेज हुआ।

बाद में तो हमने सेहत की चिंता ही छोड़ दी। जब हम खुद के प्रति बेपरवाह हो गए तो भला पर्यावरण की फिक्र कौन करता। कुछ लोग के घर में यह सुबह की सैर के लिए ही बच गई। नतीजा यह हआ की साइकिल के कारखाने बंद होत गए और दुकानें सिमटती गईं। हाल में बंद हई किसी जमाने की नामी- गिरामी एटलस इंडस्ट्री इस प्रक्रिया की ताजा कड़ी है। यह कपनी 2014 तक एक करोड़ साइकिल प्रति वर्ष बना रही थी। आज भी अकेले लुधियाना शहर में साइकिल बनाने की 1400 यूनिट है जिनमें 4 लाख लोग को रोजगार मिलता है।

वैसे बदलाव दुनिया भर में आया लेकिन तब भी अनेक देशों में यह शहर जीवन का हिस्सा बनी रही। चीन के बाद भारत दूसरा बड़ा उत्पादक है लेकिन इसका बड़ा हिस्सा निर्यात भी किया जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में केवल 9% लोग साइकिल का इस्तेमाल करते हैं जब कि चीन मेे 37%। कई देशों में मुख्य मार्गों पर अलग से सुरक्षित लेन बनायी गई है। कारों से ठसे मनीला व रोम ने इस पर ध्यान दिया है तो पेरिस के मेयर न हाल में ऐसी लेन बनाने का कार्य हाथ में लिया है। लंदन में कुछ मार्ग पर कारों को प्रतिबंधित करने का भी प्रस्ताव है। भारत में जहां फुटपाथ भी बेजा कब्जों से नहीं बचते, वहां अलग लेन बनाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में राजमार्ग क संमातर विदेशी मॉडल पर साइकिल के खूबसूरत पाथ बनाए गए और घूमने वालों के लिए कुछ पाइंट्स पर साइकिलें रखी गईं लेकिन लोग न इनका इस्तेमाल नहीं किया और करोड़ रुपए पानी में बह गए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने और कुछ मंत्रियों ने कुछ समय पहल साइकिल से मंत्रालय जाने का ऐलान किया था। एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी सत्य प्रकाश ने साइकिल चलाने का आदोलन खड़ा करने करने की विफल चेष्टा भी की।

देश के दूसर हिस्सों में भी इस तरह क छुटपुट कोशिश की गई लेकिन लोग की अन्यमनस्क मानसिकता के साथ हतोत्साहित करने वाले सामाजिक और सरकारी वातावरण ने साइकिल के पक्ष में कोई कारगर पहल नहीं होने दी। पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों की भरमार ने शहर की सड़कों के ढांचे को चरमरा दिया और वातावरण में जहरीले सीसे और कार्बन डाई ऑक्साइड का प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया। लॉकडाउन में जब इन वाहनों पर लगाम लगी तो वातावरण के साफ होन की तस्वीरें जगह-जगह से दखने को मिली । जीवन विज्ञानी मानते हैं कि ऐसा पर्यावरण में व्यक्ति की जीवनाशा 40% बढ़ जाती ह। लेकिन इससे प्रेरित होकर लोग साइकिल को अपना लेंगे, यह सोचना बचकानापन होगा। सार्वजनिक परिवहन में भीड़भाड़ की समस्या और आमदनी में गिरावट ही साइकिल की वापसी का बड़ा कारण होगी। साइकिल ऐसा साधन है जिसमें व्यक्ति अपनी निजता को ज्यादा सहेज सकता है। इसम रोजमर्रा का कोई खर्च नही है। रिपोर्ट बताती हैं कि क़ोरोनाकाल मे अमेरिका में साइकिल की बिक्री में 1970 के तेल संकट के बाद पहली बार इतनी बड़ी संख्या में बढ़ोतरी दखाई दी। इटली ने साइकिल ख़रीदने पर 60 प्रतिशत तक बाइसाइ बोनस देने की घोषणा की है। लुधियाना के साइकिल कारखाने के प्रमुख उद्योगपतियों ने सरकार को सलाह दी है कि कामकाज ठप होने से बरोजगार हुए श्रमिकों को एक-एक साइकिल बांटनी चाहिए। स्कूली छात्राओं की तरह।

फोटो: पिक्साबे

साइकिल का चलन बढ़ाना सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के बिना संभव नही है। आईआईटी जैसे संस्थान के परिसरों की तरह अन्य संस्थाओं में डीजल-पेट्रोल की गाड़ियों पर पाबंदी लगाकर साइकिल का इस्तेमाल करने की अनिवर्यता लागू करनी होगी। कम से कम स्कूल -कॉलज जैसे शैक्षणिक परिसरों में इसे लागू किया जा सकता है। इसके अलावा सड़क पर साइकिल के सुरक्षित सचालन को सुनिश्चित करना होगा। साथ ही साइकिल के लिए लेन और पार्किंग की व्यवस्था भी करनी होगी। कामकाजी लोग को 20-20 कलोमीटर तक साईकिल यात्रा करते हुए देखकर हाल में कोलकाता के उपनगरीय सड़कों और गलियों में साइकिल चलाने की अनुमति दी गई है। साइकिल उद्योग मानता है कि सरकार को आत्म निर्भर अभियान के तहत साइकिल के पुर्जेों को भारत में ही विनिर्माण को प्रोत्साहित करना चाहिए। अभी अकेले लुधियाना की साइकिल इंडस्ट्री 17 हजार रुपए करोड़ के पुर्जे प्रति वर्ष् चीन से खरीदती है। अमेरिका में चीनी साइकिलों के कारण बंद हुए स्थानीय साइकिल उद्योग पुनर्जीवित होने लगे हैं।

12 जून को सरकार के शहरी विकास मंत्रालय पे परिवहन को लेकर तीन स्तर की नीति बनाने की बात कही है। इस संबंध में सरकारी रिपोर्ट कहती है कि शहरों में ज्यादातर कामकाजी यात्राएं 5 किमी के दायरे में होती हैं और 30 से 40 प्रतिशत लोग साइकिल पर यात्रा करते हैं, इसे देखते हुए राज्यों से साइकिल समर्पित लेन बनाने की सलाह दी गई। देखना यह कि हम, समाज और सरकारें इस बदले हुए माहौल का बुनियादी बदलाव के लिए कितना इस्तेमाल करते हैं। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कोविड पश्चात शहरों को री-डिजाइन करने की सलाह दी है, लेकिन भारत में नियोजन की विकट समस्या है। क्या सरकार नगरीय नियोजन की सोच बदल सकेगी और इसमें मनमानी करने वाले निहित स्वार्थी पर अंकुश लगाने की इच्छा शक्ति दिखा सकेगी? जैसन गे बड़े आश्वस्त हैं, "इस समय सबसे गर्म मुद्दा क्या है- साइकिल। मैं सड़क पर नई लहर देख रहा हूं। 2020 में संभवता आप भी साइकिल पर सवार दिखेंगे।"

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, कई समाचार पत्रों में लंबे समय तक कार्यरत रहे हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

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