क्या कश्मीर में हिंसा नियंत्रण से बाहर जा रहा है?

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क्या कश्मीर में हिंसा नियंत्रण से बाहर जा रहा है?फ़ाइल फोटो

श्रीनगर (आईएएनएस)। कश्मीर घाटी में बीते वसंत ऋतु की शुरुआत हिंसा के बीच हुई। आतंकियों ने आम नागरिकों पर हमले किए, सुरक्षा बलों ने पत्थरबाजों से बचने के लिए अपनी गाड़ी के आगे एक आम नागरिक को बांध डाला, एक संसदीय सीट पर हुए उप-चुनाव में मतदान फीसदी बेहद कम रहा और लोगों की भावनाएं भड़काने के लिए हर तरफ से सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया गया।

यह सारी घटनाएं यही संकेत कर रही हैं कि कश्मीरियों के लिए आने वाले दिन और भी खराब होने वाले हैं। घाटी से आ रही तमाम परेशान करने वाली खबरों से भी ज्यादा चिंताजनक यह है कि घाटी में परिस्थितियां सरकारी और गैर-राजकीय तत्वों के हाथ से फिसलती जा रही हैं।

श्रीनगर संसदीय सीट पर नौ अप्रैल को उप-चुनाव के लिए हुए मतदान में सिर्फ सात फीसदी मतदाता ही घरों से बाहर निकले और अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। चुनावी हिंसा में आठ नागरिकों की मौत हो गई।

सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करते युवा

अभूतपूर्व तरीके से मतदान में कमी और चुनावी हिंसा के कारण 12 अप्रैल को अनंतनाग उप-चुनाव को स्थगित करना पड़ा। निर्वाचन आयोग ने अनंतनाग उप-चुनाव को 25 मई तक के लिए टाल दिया है, लेकिन जमीनी हालात बता रहे हैं कि इसे अक्टूबर या उसके भी बाद तक स्थगित करना पड़ सकता है।

उधर हिंसक विरोध-प्रदर्शनों के बीच पुलवामा और शोपियां जिलों में राजनीतिक संबद्धता के चलते दो नागरिकों की हत्या कर दी गई।पुलवामा के राजपुरा कस्बे के रहने वाले बशीर अहमद दार की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ संबद्धता के चलते कुछ हथियारबंद लोगों ने 15 अप्रैल को हत्या कर दी। इसके एक दिन बाद ही शोपियां जिले के पिंजुरा गांव में एक युवा वकील की इसलिए हत्या कर दी गई, क्योंकि वह नेशनल कांफ्रेंस से संबद्ध था। इस युवा वकील ने नेशनल कांफ्रेंस की सरकार के दौरान सरकारी वकील के तौर पर सेवाएं दी थीं।

16 अप्रैल को सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें पुलवामा के कारोबारी को बंदूक के भय के चलते भारत की निंदा करते और अपने जीवन की भीख मांगते देखा गया। पुलवामा से ही जुड़े एक अन्य वीडियो में एक व्यक्ति खुद को मुख्यधारा के एक राजनीतिक दल का कार्यकर्ता होने के चलते कोस रहा था और भविष्य में कभी भी राजनीति की तरफ न देखने का संकल्प ले रहा था।

हाल में कश्मीर में स्थिति ठीक नहीं रही

स्थानीय युवकों के हाथों केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) जवानों के पीटे जाने और अपमानित किए जाने वाले वीडियो के प्रसारण के साथ सोशल मीडिया पर इस 'वीडियो जंग' की शुरुआत शुरू हुई।

सोशल मीडिया को भावनाएं भड़काने का हथियार बनने से रोकने के लिए अधिकारियों ने सोमवार को फिर से मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद करने का आदेश जारी कर दिया। फिक्स्ड लाइन के जरिए दी जाने वाली इंटरनेट की गति भी धीमी कर दी गई, ताकि वीडियो अपलोड न किए जा सकें।

पुलिसकर्मियों के परिवारों को निशाना बनाकर हो रहे हमलों को देखते हुए पुलिस विभाग ने 16 अप्रैल को एडवाइजरी जारी कर पुलिसकर्मियों से अपने घर जाते हुए अतिरिक्त सजगता बरतने के लिए कहा गया। बीते सोमवार को एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सश बलों द्वारा नागरिकों के खिलाफ बल प्रयोग किए जाने पर चिंता जाहिर की और राजनीतिक संबद्धता के चलते आम नागरिकों और पुलिसकर्मियों के परिवार वालों पर होने वाले हमलों की भी निंदा की।

फाइल फोटो

कश्मीर के दक्षिणी हिस्सों में नागरिक विरोध-प्रदर्शनों के चलते सुरक्षा बलों के अभियान में काफी गतिरोध पैदा हुआ है। सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने रविवार को राज्य का दौरा किया और राज्यपाल एन. एन. वोहरा एवं मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से मुलाकात की। लौटकर दिल्ली में उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से भी मुलाकात की।

माना जा रहा है कि जनरल रावत ने सुरक्षा बलों द्वारा एक नागरिक को वाहन के आगे बांधे जाने पर आपत्ति जताई। पुलिस ने घटना में संलिप्त सुरक्षा बल के जवानों के खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की है। राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस ने 'कश्मीर को अंधेरे में धकेलने' का आरोप लगाते हुए सत्तारूढ़ पीडीपी-भाजपा सरकार को भंग करने की भी मांग की।

लेकिन, राज्य और केंद्र की सरकारें तथा विपक्षी दल अगर इसी तरह आरोप-प्रत्यारोप ही लगाते रहे और कश्मीर घाटी को इस हिंसक माहौल से बाहर निकालने के लिए तेज कार्रवाई नहीं की तो 2017 कश्मीर के लिए 90 के दशक से भी अधिक हिंसक और अस्थिर वर्ष होने वाला है।

        

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