क्या आपने अपने जनधन खाते में रुपए जमा किए, जानिए क्या है बाकी का हाल
Shrinkhala Pandey 31 Jan 2018 6:33 PM GMT
मोदी सरकार ने 15 अगस्त, 2014 को तिरंगा फहराने के बाद गरीबों के लिए जनधन योजना की घोषणा की थी। इसके बाद 7 लाख बैंक अधिकारियों को पत्र लिखकर एक दिन में 77,000 कैंप लगवाए गए और डेढ़ करोड़ लोगों के खाते भी खुलवा दिए गए।
वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 14 जून 2017 तक देश में 28.9 करोड़ प्रधानमंत्री जनधन खाते थे। इसमें से 23.27 करोड़ बैंक खाते सरकारी बैंकों में, 4.7 करोड़ खाते रीजनल रूरल बैंकों में और 92.7 लाख खाते प्राइवेट बैंकों में थे। इन खातों में संयुक्त रूप से 64,564 करोड़ रुपये जमा थे। सरकारी बैंकों में 50,800 करोड़ रुपये, रीजनल रूरल बैंकों में 11,683.42 करोड़ रुपये और प्राइवेट बैंकों में 2,080.62 करोड़ रुपये जमा हुए।
गोण्डा जिले के रहने ताजपुर निवासी अवधेश द्विवेदी का जनधन खाता है। वो बताते हैं, जब फ्री में खुल रहा था तो हमने भी खुलवा लिया था उसके बाद से एक दो बार 300, 400 रुपए जमा किए थे। इधर काफी समय से खाते का इस्तेमाल नहीं किया।
जनधन योजना के बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि अब गरीब आदमी ब्याज के विषचक्र से दूर होगा, आत्महत्या से बचेगा और सुखी रहेगा। प्रधानमंत्री ने जनधन योजना को गरीबी हटाने की दिशा में बड़ी कामयाबी भी बताया। लेकिन कुछ ही दिन पहले आई आर्थिक सर्वेक्षण 2018 के अनुसार 30 करोड़ जनधन खातों में 18 फीसदी खातों में जीरो बैलेंस है यानि लगभग साढ़े पांच करोड़ खाते जीरो बैलेंस वाले हैं।
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सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक छह राज्यों के गांवों और शहरों में जाकर पड़ताल की गई तो 20 शाखा प्रबंधकों ने बताया कि उन पर जीरो बैलेंस खाते की संख्या कम दिखाने का दबाव होता है। आमतौर पर जीरो बैलेंस खाते का मतलब माना जाता है कि उस खाते को कोई इस्तेमाल नहीं कर रहा है, ऐसे में उसे बदलने का दबाव बन जाता है।
नोटबंदी के समय जमा हुए पैसे
वित्त मंत्रालय के मुताबिक हाल तक 75% जनधन खातों में एक भी पैसा नहीं था। लेकिन 7 दिसंबर तक यह संख्या घटकर 23.11% रह गई। दूसरे शब्दों में कहें तो अब इन खातों में ज्यादा लोगों ने पैसा डालना शुरू कर दिया है। जनधन खाता धारकों को सभी बैंकिंग सेवाएं नहीं मिलती हैं लेकिन उन्हें बचत खाते की सुविधा मिलती है।
गाजियाबाद के पंजाब नेशनल बैंक में कार्यरत पिंकी शुक्ला बताती हैं, “जब खाते खुले थे तो बहुत ज्यादा लोगों ने खुलवाए लेकिन उनमे से कम ही खाते इस्तेमाल होते रहे ज्यादातर ने न पैसे जमा किए और न दोबारा हाल खबर ली।”
वहीं लखनऊ के पंजाब नेशनल बैंक की ब्रांच मैनेजर स्तुति अवस्थी बताती हैं, “इन खातों को लेकर सबसे बड़ी समस्या ये आई कि ये जीरो बैंलेस थे। इन्हें जारी रखना बैंकों के लिए परेशानी थी। जनधन स्कीम के तहत एक अकाउंट को जारी रखने पर 140 रुपए से ज्यादा का खर्च आता है। ऐसे में अगर 6 करोड़ अकाउंट में जीरो बैलेंस रहेगा, तो करोड़ों में पैसा चला जाएगी।”
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गोण्डा जिले के रहने वाले सोनू कुमार (30वर्ष) बताते हैं, “मैनें अपना जनधन खाता बंद कर दिया, क्योंकि मेरे पास दूसरे बैंक में भी खाता है और इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा था।”
भले सरकार ने जनधन योजना को अपनी उपलब्धि में गिनाया हो लेकिन कितने लोगों को जनधन योजना में कर्ज मिला, कितने लोगों को दुर्घटना बीमा और जीवन बीमा का लाभ मिला इसके आंकड़े कभी सामने नहीं आए। जबकि इन्हीं फायदों के चक्कर में करोड़ों लोगों ने अपने खाते खुलवाए थे।
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