Live: भूमि अधिग्रहण संशोधन कानून के विरोध में विपक्ष का झारखंड बंद

Arvind shukklaArvind shukkla   5 July 2018 6:36 AM GMT

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भूमि अधिग्रहण संसोधन बिल का चौतरफा विरोध हो रहा है। झारखण्ड पांचवी अनुसूची के अंदर आता है इसलिए विरोध के स्वर कुछ ज्यादा तीखे हैं। बीजेपी को छोड़ अन्य सभी राजनीतिक दल के साथ साथ सामाजिक संगठन और जल जंगल जमीन की लड़ाई लड़ने वाले लोग सड़कों पर हैं। सभी इसे उद्योग और कॉर्पोरेट घरानो के हित का बिल बता रहे हैं। आइए समझते हैं कि आखिर क्यों भूमि अधिग्रहण संसोधन बिल पर इतना कोहराम मचा है।

दरअसल भूमि अधिग्रहण को लेकर 1894 का कानून ही चलता था, जिसे पहली बार बड़े पैमाने पर 2013 में बदला गया। लेकिन इस कानून को आज़माने के बजाए साल भर के भीतर ही बदल दिया गया।

2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में था कि 80 प्रतिशत आबादी के सहमति के बाद ही जमीन अधिग्रहित की जाएगी लेकिन भूमि अधिग्रहण संसोधन बिल में इस प्रावधान को ख़त्म कर दिया है।

2013 के कानून में था कि ग्राम सभा की सहमति के बाद ही जमीन उद्योग और कारखानो को दी जाएगी। इसे भी इस नए बिल में ख़त्म कर दिया है।

2013 के कानून में था कि यदि जिस मकसद से जमीन ली जा रही है वो पांच वर्ष के अंदर पूरा नहीं होता है तो जिसकी जमीन है उसे लौटा दी जाएगी। लेकिन इस नए बिल में इसे भी ख़त्म कर दिया गया है।

2014 के अध्यादेश के अनुसार भूमि चाहे कैसी भी हो सरकार को लगे कि यह भूमि सरकार के लिए उपयोगी है तो उसे अधिग्रहित कर लिया जाएगा।

जमीन अधिग्रहण में सोशल इंपैक्ट असेसमेंट और इन्वायरमेंटल इंपैक्ट असेसमेंट का अनुपालन बेहद ज़रूरी है तथा पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में ग्रामसभाओं की भूमिका भी अहम है और जब इन बातों को भूमि अधिग्रहण कानून से हटाया जाएगा तो असंतोष बढ़ना ज़ाहिर है।

पिछले साल 12 अगस्त को झारखंड विधानसभा में विपक्ष के भारी विरोध के बीच भूमि अर्जन पुनर्वासन एवं पुनस्थार्पना में उचित प्रतिकार पारदर्शिता का अधिकार, झारखंड संशोधन विधेयक पारित हुआ था।

इसमें सामाजिक प्रभाव के अध्ययन के प्रावधान को ख़त्म किया गया था. साथ ही स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल, पंचायत भवन, आंगनबाड़ी केंद्र, रेल परियोजना, पाइपलाइन, जल मार्ग समेत अन्य कआ आधारभूत संरचना कार्य के लिए किए जाने वाले भूमि अधिग्रहण में सामाजिक प्रभाव के सर्वे की बात नहीं की गई है।

विपक्षी दलों तथा जनसंगठनों को सरकार के इस रवैये पर विरोध है। दरअसल ब्रिटिश जमाने में बने इस कानून में यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान साल 2013 में इसमें संशोधन कर जमीन अधिग्रहण के लिए जनता से रायशुमारी कराने का प्रस्ताव रखा गया।

इस बीच राज्य के भूमि सुधार राजस्व मंत्री अमर बाउरी ने मीडिया से कहा है कि सरकार ने संशोधन विधेयक में स्पष्ट किया है कि आधारभूत संरचना तथा परियोजनाओं पर तेज़ी से काम के लिए ज़मीन अधिग्रहण की बात है। इसका मक़सद जनहित में होगा न कि किसी व्यक्ति या कंपनी विशेष को लाभ पहुंचाया जाएगा।

     

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