झारखंड : कोरोना पॉजिटिव पिता का बेटा बोला – 'गाँव वालों ने घर की तरफ से गुजरना ही छोड़ दिया'

अगर लोग जागरूक नहीं रहे तो सुनील के परिवार की तरह इसका खामियाजा गाँव वालों को भी भुगतना पड़ सकता है।

Kushal MishraKushal Mishra   21 May 2020 5:51 AM GMT

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प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के साथ-साथ कोरोना संक्रमण अब गांवों तक पहुँच रहा है। गाँव हॉटस्पॉट बन रहे हैं, ऐसे ही एक गाँव झारखंड के हजारीबाग जिले में विष्णुगढ़ ब्लॉक का करगालो गाँव भी रहा, जहाँ कोरोना से संक्रमित हो चुके पिता से मिलने गए बेटे के वापस लौटने पर अचानक से गाँव में सन्नाटा पसर गया। सभी अपने घरों में कैद हो गए जबकि बेटे की जांच निगेटिव आयी थी।

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड समेत उन राज्यों में तेजी से मामले बढ़ रहे हैं जहाँ पर प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में अपने घर की ओर लौट रहे हैं। भारत में कई जगहों से ख़बरें आई हैं कि लोगों ने कोराना पीड़ित मरीजों का, उनका इलाज करने वाले डॉक्टर और दूसरे लोगों से दुर्व्यवहार किया। ऐसा ही सामाजिक तिरस्कार सुनील और उनके परिवार को भी झेलना पड़ रहा है।

करगालो गांव के रहने वाले सुनील (20 वर्ष) के पिता उगन साव पश्चिम बंगाल के आसनसोल में ट्रांसपोर्ट की एक कंपनी में डिलीवरी पहुँचाने का काम करते हैं। लॉकडाउन में काम बंद होने से उगन वहीं फंस गए थे। तब उन्होंने किसी भी तरह गाँव लौटने का फैसला किया।

झारखण्ड के करगालो गाँव में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं सुनील साव।

उगन के बेटे सुनील बताते हैं, "लम्बे समय तक लॉकडाउन के कारण मेरे पिताजी 29 मार्च की सुबह आसनसोल से निकले और किसी तरह झारखण्ड-बंगाल बॉर्डर पहुंचे। वहां से उन्हें ट्रक मिला जिसमें पहले से ही करीब 50 मजदूर चढ़े थे। उस ट्रक से वो बगोदर तक पहुंचे।"

अपने पिताजी को बगोदर से लेने के लिए गाँव से मोटरसाइकिल से निकले सुनील बताते हैं, "मैं अपने पिता को लेकर विष्णुगढ़ के सदर अस्पताल पहुंचा जहाँ उनको जांच के लिए रोक लिया गया और मैं अपने गाँव वापस आ गया। अगले दिन पूरे गाँव में चर्चा थी कि मैं अपने पिता से मिलने गया था।"

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सुनील के पिता प्रशासन की ओर से हजारीबाग जिले के अस्पताल ले जाए गए जहाँ जांच में तीन दिन बाद वह कोरोना पॉजिटिव पाए गए। उसी दिन यह खबर गाँव में आग की तरह फैल गयी। गाँव वालों को डर था कि अपने पिता से मिलकर आया सुनील भी कोरोना संक्रमण का शिकार है।

सुनील बताते हैं, "गाँव में जैसे दहशत का माहौल था। लोगों ने हमारे घर की तरफ से निकलना तक छोड़ दिया। उसी दिन चार-पांच अफसर गाँव आये, उन्होंने पूछा किनसे-किनसे मिले तब से, उनको सही-सही पूरी जानकारी दी, हम लोगों ने अफसरों को पूरा सहयोग किया, सैनीटाइजर की गाड़ी भी आई थी, पूरा गाँव सैनीटाइज किया गया।"

"वे मुझको और मेरी माँ को जांच के लिए एम्बुलेंस से अस्पताल ले गए। जबकि हमारी रिक्वेस्ट पर घर में पले जानवरों की रखवाली के लिए मेरे छोटे भाई को घर में ही रहने दिया," सुनील ने बताया।

सुनील और उसकी माँ को हजारीबाग के अस्पताल ले जाया गया जहाँ छह अप्रैल को जांच में सुनील और उसकी माँ कोरोना निगेटिव पाई गईं और उन्हें जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया।

सुनील बताते हैं, "उसी दिन जनरल वार्ड में एक और मरीज भर्ती किया गया, दो दिन बाद हम लोगों को मालूम चला कि दशरथ महतो नाम का वह व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव था, उस वार्ड में 14 और लोग भी थे। लोगों ने शिकायत की तो उसे अलग शिफ्ट किया गया। तब एक बार फिर से हम लोगों का जांच किया गया, तीन दिन बाद हम लोगों का जांच में फिर रिपोर्ट निगेटिव आया, तब हम लोग 14 अप्रैल को अपने गाँव लौट सके।"

सुनील के मुताबिक, इधर उनके पिता दूसरे अस्पताल में भर्ती थे। अस्पताल में रहते हुए वो फ़ोन पर किसी तरह एक-दूसरे का हालचाल ले पा रहे थे। पिताजी की हालत सुधर रही थी और जांच में निगेटिव आने के बाद उन्हें घर में होम क्वारंटाइन के लिए 22 अप्रैल को एम्बुलेंस से गाँव भेज दिया गया।

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जांच में निगेटिव पाए जाने के बाद गाँव लौटे उगन साव घर पर ही कैद हो कर रह गए।

सुनील बताते हैं, "जांच में निगेटिव पाए जाने के बावजूद गाँव वालों का हम लोगों के प्रति व्यवहार बहुत ख़राब हो गया। कोई हम लोगों से बात भी नहीं कर रहा था, घर पर राशन नहीं था, खाने के नाम पर सिर्फ थोड़े चावल बचे थे। घर में आटा-दाल, तेल-साबुन कुछ नहीं था।"

"हम लोग गाँव की राशन की दुकान में सामान लेने जाते तो हम लोगों को मालूम था कि नहीं दिया जाता, गाँव वालों का ऐसा व्यवहार हो गया था तो हम लोगों को लगा कि जाकर खुद की बेइज्जती कराने से क्या फायदा, तो हम लोगों ने गाँव के मुखिया को फ़ोन किया और कम से कम राशन देने की मांग की। मुखिया ने किसी तरह हम लोगों को 15 दिन का राशन दिया," सुनील बताते हैं।

सुनील के घर पर शौचालय तक नहीं है और उनके परिवार को शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है। गाँव वालों ने अपनी सुरक्षा के लिए इसकी भी शिकायत मुखिया से की।

सुनील बताते हैं, "हम लोग अपने घर से खुद ही बाहर नहीं निकलते थे, गाँव वालों की शिकायत के बाद मुखिया ने दो दिन में घर के बाहर शौचालय भी बनवा दिया। मगर क्वारंटाइन पूरा करने के बाद भी अभी भी गाँव वाले हम लोगों से बात नहीं करते, खासकर पिताजी से तो अभी भी गाँव में कोई व्यक्ति बात नहीं करता है। जैसे हम लोग उनके दुश्मन बन गए हों।"

लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के लौटने का सिलसिला अभी भी जारी है और वो अपने गाँव की ओर लौट रहे हैं। कई गांवों में लौट रहे इन प्रवासियों के लिए स्कूल को क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया है। ऐसा ही एक सेंटर करगालो गाँव में बनाया गया है।

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झारखण्ड के विष्णुगढ़ प्रखंड के करगालो गाँव में सुनील का घर।

इस सेंटर के बारे में सुनील बताते हैं, "गाँव के एक स्कूल में क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया है जहाँ अभी 60 से 70 लोग क्वारंटाइन हैं। उस स्कूल में शौचालय तक नहीं है, साफ़-सफाई नहीं है, इसी वजह से गाँव में अभी भी डर का माहौल है। उस स्कूल के आस-पास भी कोई नहीं जाता है। यहाँ तक कि अगल-बगल गाँव से क्या, गाँव के एक मौहल्ले से दूसरे मौहल्ले भी कोई नहीं जा रहा है।"

सुनील की एक गलती से गाँव के लोग सदमे में थे। गाँव का कोई भी व्यक्ति सुनील के परिवार से अभी भी बातचीत नहीं कर रहा है। कोरोना निगेटिव पाए जाने के बावजूद पिछले करीब दो महीने सुनील और उसके परिवार के लिए बहुत दुखदायी रहे। उनके प्रति गाँव वालों का व्यवहार पूरी तरह बदल चुका है। इधर प्रवासी मजदूरों के लौटने से गांवों में कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा लगातार बढ़ रहा है।

छोटे-छोटे जिलों से सैकड़ों की संख्या में हर दिन नए मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में अगर लोग जागरूक नहीं रहे तो सुनील के परिवार की तरह इसका खामियाजा गाँव वालों को भी भुगतना पड़ सकता है।

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