झारखंड : घर लौटे प्रवासी मजदूर बोले, मुंबई-दिल्ली में कोरोना का खतरा, गांव में रोजगार नहीं, अब कहां जाएं?

दोनों ही राजधानियों में हर दिन कोरोना के नए मरीज बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। ऐसे में अब तक अपने गृह राज्य में काम न मिलने से परेशान ये प्रवासी मजदूर रोजगार के लिए वापस जाने के लिए भी पशोपेश में हैं।

Kushal MishraKushal Mishra   7 July 2020 3:33 PM GMT

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झारखंड : घर लौटे प्रवासी मजदूर बोले, मुंबई-दिल्ली में कोरोना का खतरा, गांव में रोजगार नहीं, अब कहां जाएं?झारखंड के गिरिडीह जिले के बगोदर ब्लॉक के बेतो पश्चिम गाँव में ज्यादातर मजदूर मुंबई से लौटे हैं और तीन महीनों बाद भी काम न मिलने से पशोपेश हैं। फोटो : गाँव कनेक्शन

"दो महीने मुंबई में फँसे रहे, किसी तरह झारखण्ड लौटे तो डेढ़ महीने से गाँव में खाली बैठे हैं, कोई काम है ही नहीं, अभी तो मुंबई में महामारी भी ज्यादा फ़ैल रहा है, यहाँ काम है नहीं, मुंबई जा नहीं सकते, अब आप बताइए हम लोग करें तो करें क्या," झारखंड के गिरिडीह जिले के बगोदर ब्लॉक के बेतो पश्चिम गाँव में लॉकडाउन के दौरान मुंबई से लौटे प्रवासी मजदूर मो. इलियास बताते हैं।

लॉकडाउन में मुंबई और दिल्ली से झारखण्ड लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए तीन महीनों बाद भी मुश्किलें किसी पहाड़ जैसी सामने खड़ी हैं। दोनों ही राजधानियों में हर दिन कोरोना के नए मरीज बड़ी संख्या में सामने आ रहे हैं। ऐसे में अब तक अपने गृह राज्य में काम न मिलने से परेशान ये प्रवासी मजदूर रोजगार के लिए वापस जाने के लिए भी पशोपेश में हैं।

अपने गाँव में इलियास अकेले नहीं है, गाँव में उनके जैसे करीब 200 मजदूर लॉकडाउन के दौरान वापस लौटे हैं और ज्यादातर सिलाई के काम से जुड़े हैं। तीन महीने का समय बीत जाने के बाद भी उनके पास कोई काम नहीं है। रोजगार न मिलने से रोज कमाकर अपना पेट भरने वाले इन मजदूरों की समस्याएं अब और बढ़ती जा रही हैं।

"अगर यहाँ कुछ नहीं मिला तो वापस हम लोगों को जाना ही पड़ेगा, हम लोगों के हाथों में जो हुनर है वो पैसा मुंबई में ही मिलेगा, यहाँ झारखंड में गारमेंट का काम ही नहीं है ज्यादा, जब आये थे तो सरकार का योग्यता वाला फॉर्म भी भरे थे, मगर उसका भी अब तक कोई जवाब नहीं आया है," मो. इलियास कहते हैं।

झारखंड के गिरिडीह जिले के बगोदर ब्लॉक के बेतो पश्चिम गाँव में बड़ी संख्या में मुंबई से लौटे प्रवासी मजदूर काम न मिलने से मुश्किल में हैं। फोटो : गाँव कनेक्शन

इलियास बताते हैं, "पहले रोज का कमाना था, रोज का खाना था, जीने के लिए हाथ में पैसा चाहिए, सिर्फ राशन में चावल देने से काम नहीं चलने वाला, हमें काम चाहिए, माँ का इलाज है, दवाएं हैं, तमाम खर्चे हैं घर के, मैं और मेरा भाई दोनों मुंबई में काम करते थे तो घर का खर्चा चलता था, अब दोनों का काम बंद है, क्या करेंगे हम लोग, मनरेगा का काम भी नहीं हमारी ग्राम पंचायत में जो कुछ कमा सकें।"

मुंबई से झारखण्ड में अपने गाँव को लौटे सोहन साव भी इलियास की तरह अब तक काम न मिलने से बुरी तरह परेशान हैं। सोहन गिरिडीह जिले के बगोदर के जर्मुने पश्चिमगढ़ गाँव के रहने वाले हैं।

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सोहन कहते हैं, "गाँव में कोई काम नहीं है, न मनरेगा न और कुछ, तो कब तक रुकेंगे गाँव में, जब जान पर आ गयी थी तो मुंबई से झारखण्ड घर को चले आये, अब अगर यहाँ जल्द ही रोजगार नहीं मिला तो जान जोखिम में डालकर फिर मुंबई जाना पड़ेगा, क्वारंटाइन में 14 दिन बिताना पड़ेगा, और यह भी नहीं कि काम तुरंत मिल ही जाए।"

कोरोना लॉकडाउन के दौरान झारखण्ड में अब तक 6.89 लाख प्रवासी झारखण्ड लौट चुके हैं। इनमें भी तीन लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर ट्रेनों (238 श्रमिक स्पेशल ट्रेन) के जरिये झारखण्ड लौटे हैं। बड़ी संख्या में मजदूर मुंबई और दिल्ली से हैं, इसके अलावा कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात के अलावा विदेशों से भी फँसे हुए मजदूरों को वापस लाने का काम झारखण्ड सरकार ने किया है।

हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को रोजगार से जोड़ने के लिए झारखण्ड सरकार ने तीन नयी योजनाएं शुरू की हैं। राज्य के ग्रामीण विकास विभाग के तहत ये योजनाएं बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलाम्बर पीताम्बर जल-समृद्धि योजना और वीर शहीद पोटो हो खेल विकास योजना हैं। मगर जमीनी स्तर पर इन योजनाओं से अभी प्रवासी मजदूरों को लाभ नहीं मिल पा रहा है।

प्रवासी मजदूरों की झारखण्ड वापसी को लेकर शुरू से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली बताते हैं, "सरकार की ये योजनाएं शुरू हुई हैं, मगर इसका लाभ फिलहाल मजदूरों को न के बराबर मिल रहा है। जहाँ काम शुरू भी हुआ है तो मजदूरों को लगातार काम नहीं मिल पा रहा है। दूसरी बात यह है कि जैसे कोई सिलाई के काम में हुनर रखता है तो मिट्टी काटने का काम कैसे कर लेगा, तीसरी बात यह है कि मनरेगा से जुड़े इन कामों में झारखण्ड में मजदूरी सिर्फ 194 रुपए है जो सबसे कम है, इसलिए भी मजदूर इनमें रुचि नहीं दिखाते हैं।"

"दिल्ली और मुंबई से लौटे मजदूरों के हाथों में अपने कामों को लेकर गजब की दक्षता है इसीलिए झारखंड के इन मजदूरों की मांग विदेशों में भी है, ऐसे में तीन महीने से खाली बैठे ये मजदूर अब काम न मिलने से मुश्किल में हैं, उनके लिए घर परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है, धीमी गति से चल रहे रोजगार के प्रयासों को सरकार को और तेज करने की जरूरत है क्योंकि एक लम्बा समय बीत चुका है और इन मजदूरों के हाथों में पैसे नहीं है," सिकंदर अली कहते हैं।

दूसरी ओर देश में कोरोना संक्रमण के मामले महाराष्ट्र और दिल्ली में तेजी से सामने आ रहे हैं। महाराष्ट्र में कोरोना संक्रमित मरीजों का आंकड़ा दो लाख को पार कर चुका है, यह संख्या सात जुलाई तक 2,11,987 पहुँच चुकी है। दिल्ली में भी कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या एक लाख से ज्यादा से पार हो चुकी है। दिल्ली देश की पहली मेट्रो सिटी है जहाँ पर अब तक कोरोना के मामले एक लाख पार हो चुके हैं।

झारखण्ड के गिरिडीह जिले के बगोदर के जर्मुने पश्चिमगढ़ गाँव को आये प्रवासी मजदूर भी तीन महीनों बाद भी रोजगार की तलाश में हैं। फोटो : गाँव कनेक्शन

दो महीने पहले दिल्ली से झारखण्ड के गिरिडीह जिले के डुमरी प्रखंड में अपने गाँव डुमारचुटियो पहुंचे मजदूर मो. जलाल बताते हैं, "मेरे घर में ही तीन लोग दिल्ली में गारमेंट कंपनी में मजदूरी करते हैं, मगर लॉकडाउन में वापस लौट आये। हमारी पंचायत में ही करीब 700 से 800 प्रवासी मजदूर लौटे हैं, अब यहाँ काम नहीं है और दिल्ली जा नहीं सकते हैं, कोरोना की वजह से एक तो वहां भी काम शुरू नहीं हुआ है, कहीं शुरू भी हुआ है तो बहुत कम मजदूर काम कर रहे हैं। इसलिए घर चलाना भी मुश्किल है।"

"वास्तव में अभी वहां (दिल्ली में) काम है भी नहीं, है भी तो बहुत थोड़ा ही चल रहा है, लेकिन हम जैसे मजदूरों को काम चाहिए ही, तीन महीने से खाली हाथ बैठे हैं, इस आस में कि हमें यहाँ ढंग का रोजगार मिल सकेगा, मगर कब तक?," मो. जलाल कहते हैं।

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तीन महीने से ज्यादा समय से रोजगार न होने और परिवार की आर्थिक स्थिति से परेशान इन प्रवासी मजदूरों की समस्याएं अब दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं। मजबूरी में कुछ मजदूर वापस काम की तलाश में मुंबई और दिल्ली के लिए वापस निकल रहे हैं।

झारखण्ड के बोकारो जिले के मुंगो रंगामति पंचायत के कोठी गाँव के दिलीप कुमार महतो मुंबई से किराये की मोटरसाइकिल से अपने साथियों के साथ 24 मई को वापस अपने गाँव पहुंचे थे। मगर एक महीने बाद फिर से मुंबई के लिए निकलने के लिए मजबूर हुए हैं।

एक महीने पहले अपने साथियों के साथ मोटरसाइकिल से मुंबई से लौटे थे प्रवासी मजदूर दिलीप महतो। फोटो : गाँव कनेक्शन

दो जुलाई को निकले दिलीप फ़ोन पर बताते हैं, "घर पहुंचा तो माँ का देहांत हो गया, मेरी चार बेटियां भी हैं गाँव में, कमाने वाला भी मैं हूँ तो इतने दिनों तक कैसे खाली बैठ सकता हूँ, घर की स्थिति सही नहीं थी, तो मैं गाँव के एक और साथी के साथ मुंबई आ गया हूँ, क्या करूँ कोरोना का डर तो है मगर कब तक, अभी 14 दिन क्वारंटाइन में हूँ, इसके बाद कंपनी जाऊंगा, काम यहीं मिलेगा, इसी उम्मीद से चला आया हूँ।"

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