कामिनी रॉय: महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाने वाली भारत की पहली ग्रेजुएट महिला

Daya SagarDaya Sagar   12 Oct 2019 9:33 AM GMT

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कामिनी रॉय: महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलाने वाली भारत की पहली ग्रेजुएट महिला

भारत की पहली ग्रेजुएट महिला कामिनी रॉय का आज जन्मदिन है। सर्च इंजन गूगल, डूडल बनाकर उनका जन्मदिन मना रहा है। कामिनी रॉय का जन्म 12 अक्टूबर 1864 को तत्कालीन ब्रिटिश बंगाल प्रेसीडेन्सी के बेकरगंज जिले के बसंदा गांव में हुआ था, जो वर्तमान में बाग्लादेश के बासीरहाट जिले में पड़ता है।

कामिनी रॉय ना सिर्फ भारत की पहली ग्रेजुएट महिला थी बल्कि उन्होंने भारत में महिलाओं की दशा सुधारने की दिशा में बहुत काम किया। भारत में महिलाओं को मताधिकार दिलाने के आंदोलन में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई थी। इसके अलावा वह एक उच्चकोटि की साहित्यकार और कवियित्री थीं, जिन्होंने सैकड़ों कालजयी रचनाओं को रचा।

कामिनी रॉय का जन्म एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। कामिनी को शुरुआत में गणित सबसे अच्छा लगता था लेकिन बाद में उन्होंने संस्कृत को अपना प्रमुख विषय बनाया और 1886 में कलकत्ता विश्वविधालय के बेथ्युन कॉलेज से अपना स्नातक डिग्री पूर्ण किया। वह ऐसा करने वाली भारत की पहली महिला थी।

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ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद कामिनी ने इसी कॉलेज में अध्यापन का कार्य शुरु किया। इसके साथ ही वह महिलाओं की दशा सुधारने वाली आंदोलनों से जुड़ीं। कामिनी रॉय भारत की पहली पीढ़ी की महिला समाज सुधारकों में से एक थीं जिन्होंने भारत में नारीवाद का झंडा भारत में बुलंद किया।

वह कहा करती थीं, 'पुरुषों को डर होता है कि महिलाएं समान अधिकार और ज्ञान पाकर पुरुषों की बराबरी कर लेंगी, इसलिए वे महिलाओं को ये अधिकार नहीं देना चाहते।' इसलिए कामिनी ने अपना पूरा जीवन इन अधिकारों को पाने की लड़ाई लड़ने में बीता दिया।

उनका सबसे अधिक योगदान भारतीय महिलाओं को मताधिकार दिलाने में जाता है। यह 1920 का दशक था जब भारत में मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार हो रहे थे और अलग-अलग राज्यों (प्रॉविंसेज) में भारतीय जनता को उत्तरदायी सरकार चुनने का मताधिकार मिलना था। हालांकि यह मताधिकार काफी सीमित था जिसमें शिक्षित और धनी वर्ग ही वोट देने का अधिकार था।

गरीब, अशिक्षित, निम्न वर्ग और महिलाओं का एक बड़ा वर्ग इन मताधिकारों से वंचित था। कामिनी रॉय ने कुमुदिनी मित्रा और मृणालीनी सेन जैसी महिलाओं के साथ 'बंगीय नारी समाज' की स्थापना की और महिलाओं के मताधिकार के लिए बंगाल प्रॉविंस में एक आन्दोलन खड़ा किया। इस आंदोलन ने बंगाली महिलाओं को मताधिकार प्रदान करने में एक अहम भूमिका निभाई और 1926 में उन्हें यह महत्वपूर्ण अधिकार मिला।

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कामिनी रॉय ने महिला शिक्षा और महिला श्रम के क्षेत्र में भी अहम भूमिका निभाई। उस समय लड़कियों की शादी करने की न्यूनतम उम्र सीमा महज 14 साल थी और शादी की वजह से लड़कियां उच्च शिक्षा की तरफ आगे नहीं बढ़ पाती थीं। कामिनी रॉय ने लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए घर-घर जाकर आंदोलन चलाया और लोगों से अपील की कि वे अपनी लड़कियों की शादी करने से पहले उन्हें कम से कम एक बार विश्वविधालय की प्रवेश परीक्षा जरुर दिलवाएं।

कलकत्ता विश्वविधालय ने कामिनी रॉय के शिक्षा और समाज में उनके योगदान के लिए उन्हें जगतरत्नी गोल्ड मेडल अवॉर्ड से नवाजा था। वह 1930 में बांग्ला साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं, वहीं 1932-33 में उन्हें बंगीय साहित्य परिषद का उपाध्यक्ष बनाया गया। इसी पद पर रहते हुए 27 सितंबर 1933 को उनकी मृत्यु हो गई। भारतीय इतिहास में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।

   

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