संकट में महाराष्ट्र के कपास किसान, पिंक बॉलवर्म ने बर्बाद की फसल

Mithilesh DharMithilesh Dhar   2 Jan 2018 1:45 PM GMT

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संकट में महाराष्ट्र के कपास किसान, पिंक बॉलवर्म ने बर्बाद की फसलमहाराष्ट्र सहित कई प्रदेशों के कपास किसान परेशान।

किसान को कभी सरकार की नीतियां मारती हैं तो कभी प्रकृति। सब कुछ ठीक रहता है तो कीट फसलों को बर्बाद कर देते हैं। महाराष्ट्र सहित कई अन्य कपास किसानों के साथ भी यही हो रहा है। महाराष्ट्र कपास उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य है। लेकिन इस बार वहां के कपास किसानों पर संकट मंडरा रहा है।

कपास परामर्श बोर्ड के अनुसर महाराष्ट्र के प्रमुख उत्पादन क्षेत्रों में खड़ी फसलों पर गुलाबी कीट (पिंक बॉलवर्म) के हमले की वजह से राज्य में इस साल कपास किसानों को अपनी उपज में करीब 13 प्रतिशत का नुकसान उठाना पड़ सकता है। यवतमाल और जलगांव जिलों में फसल के भारी नुकसान के साथ महाराष्ट्र में औसत कपास उत्पादन में 13 प्रतिशत की गिरावट की आशंका है। महाराष्ट्र का करीब एक-तिहाई कपास क्षेत्र गुलाबी कीटों के हमले से ग्रस्त है।

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महाराष्ट्र यवतमाल के गांव इंद्रठांण के कपास किसान नेमराज राजुरकर दो एकड़ में कपास की खेती करते हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया "इस साल तो पिछले साल की अपेक्षा आधा उत्पादन भी नहीं होगा। पूरी फसल गुलाबी कीट के चपेट में है। हम विभाग के संपर्क में हैं। वे प्रयास कर रहे हैं। लेकिन आधे से ज्यादा फसल बर्बाद हो चुकी है।"

कपास किसानों ने फसल को हुए नुकसान पर अपनी चिंता जताई है और नुकसान की भरपाई के लिए बीज कंपनियों को अदालत में घसीटा है। महाराष्ट्र नांदड़ के माहुर निवासी कपास किसान फारुख पठान कहते हैं "मैने 5 हेक्टेयर में कपास की खेती की है। पूरी फसल खराब हो गई है। कीट ने पौधों को ही खत्म कर दिया है। मेरे आसपास के कई किसानों की पूरा का पूरा कपास बर्बाद हो रहा है। हमने कीटनाशकों का प्रयोग किया है। लेकिन उसका कोई लाभ नहीं हुआ। मेरे साथ कई किसानों ने मिलकर कीटनाशक कंपनियों पर केस भी किया है।"

इसी कीट की वजह से खराब हो रही कपास की फसल

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कपास परामर्श बोर्ड के मुताबिक, महाराष्ट्र में 2017-18 के सीजन का कपास उत्पादन 344.21 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रहेगा, जो पिछले साल के 395.92 किलोग्राम से कम है। बोर्ड का अनुमान है कि महाराष्ट्र में कपास का रकबा 42 लाख हेक्टेयर है, जो पिछले साल के 38 लाख हेक्टेयर से 10.5 प्रतिशत अधिक है।

पिछले साल कपास की कीमतों में तेज इजाफे से प्रोत्साहित होकर अन्य स्थानों की तरह महाराष्ट्र में भी इस सीजन में किसानों ने सोयाबीन छोड़कर कपास का रुख कर लिया था। इसके परिणाम स्वरूप इस सीजन में कपास के रकबे में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई। देश भर की 523.83 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की औसत उपज के साथ कपास परामर्श बोर्ड का अनुमान है कि इस सीजन का कुल कपास उत्पादन 3.770 करोड़ गांठ (प्रति गांठ 170 किलोग्राम) रहेगा, जो कि पिछले साल के 3.450 करोड़ गांठ से अधिक है। गुलाबी कीट ने महाराष्ट्र के अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना और कर्नाटक में कपास के खेतों पर हमला किया है।

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नागपुर से सटे मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के कपास किसान श्वेता भट्ड और राजीव कपाड़े बताते हैं "इस साल गुलाबी कीट का प्रकोप बहुत ज्यादा है। कीटनाशकों को कोई असर नहीं हुआ। हमने सरकार से मदद की मांग की है। लेकिन इस साल पैदावार आधे से भी कम होने की आशंका है।"

क्या है गुलाबी कीट (पिंक बॉलवर्म)

ये कीट फलिया के अंदर छुपकर तथा प्रकाश से दूर रहकर नुकसान करते हैं। अगर कलिया फूल एवं टिन्डो को काटकर देखें तो छोटी अवस्था की लटे प्रायः फलिय भागों के ऊपरी हिस्सों (एपिकल पार्ट) में मिलते हैं। ठंड बढ़ने के बाद कपास के खेतों में इन कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है। बीटी कॉटन में इसका प्रकोप ज्यादा होता है। कीट की माता प्रजाति कपास के फूलों पर अंडे दे देती है। ये कीट कपास को खाना शुरू कर देते हैं। और धीरे-धीरे पूरे पौधे को अपने कब्जे में ले लेते हैं।

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कैसे करें बचाव

जब इस कीट का प्रकोप इतना ज्यादा है तो इससे बचाव पर बात भी जरूरी है। हालांकि अभी जिन पौधों पर गुलाबी कीट का प्रकोप है उसे बचाया तो नहीं जा सकता लेकिन अगली बार के लिए किसान कपास को सुरक्षित रख सकते हैं। इस बारे में आईसीएआर (केंद्रीय कपास अनुसंधान केंद्र, नागपुर) के प्रधान वैज्ञानिक डॉ शिवाजी म्हाल्बा पाल्वे ने गाँव कनेक्शन को बताया "कपास किसानों को शुरू में ही इससे बचने के लिए तैयार रहना होगा।

एक बार अगर फसल 3 महीने से ज्यादा की हो गई तो उसे इस कीट से बचाया नहीं जा सकता। किसानों को ये ध्यान में रखना होगा कि फसल निकालने के बाद उसके अवशेषों को खेत में कभी नहीं छोड़ना चाहिए। गुलाबी कीट के अंडे पेड़ों में रह जाते हैं, उससे फिर कीट होंगे और फसलों को नुकसान पहुंचाएंगे।

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वे आगे कहते हैं " फसल के पहले दो महीने में रासायिनक कीटनाशकों का प्रयोग न करें। इससे फसलों पर विपरीत असर पड़ता है। और पूरा खेत कीटनाशकों पर निर्भर हो जाता है। खेत को खरपतावर से दूर रखें। रसचूसक कीटों के परभक्षियों की संख्या को बढ़ावा देने के लिए ग्वार, लोबिया, ज्वार, सोयाबीन या उदड़ की अंत: फसल को लगना चाहिए। नीम से निर्मित कीटनाशकों का प्रयोग करें। कीटनाशकों के प्रबंधन का ध्यान दें। प्रति एक हेक्टेयर में 4 से 5 फीरोमोन ट्रैप का प्रयोग करें, प्रतिदिन मॉनीटरिंग करें। यदी कीटों की संख्या ज्यादा हो तो फसल पर ट्रायकोग्राम बेक्टरी या ब्रेकान हीबेटर छोड़ें।"

          

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