आय दोगुनी करने की चाबी किसानों के पास ही है, इस विधि से खेती की तो बढ़ सकती है आय

Mithilesh DharMithilesh Dhar   22 Feb 2018 3:30 PM GMT

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आय दोगुनी करने की चाबी किसानों के पास ही है,  इस विधि से खेती की तो बढ़ सकती है आयकिसानों के लिए लाभकारी है ये विधि।

खेती से मुनाफा कमाना धीरे-धीरे मुश्किल होता जा रहा है। सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की बात कर रही है। लेकिन सरकार ये मंशा बिना किसानों के प्रयास से नहीं हो सकती है। ऐसे में जब खेती-किसानी से किसानों के हाथ सिवाय निराशा के कुछ नहीं लग रहा तो खेती की ये विधि अन्नदाता के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।

यहां हम बात कर रहे हैं एकीकृत खेती की। एकीकृत का सीधा सा मतलब है कि खेती के साथ कृषि से जुड़ी सह गतिविधियों को भी जोड़ देना। किसान अगर ऐसा कर पाते हैं तो खेती को आर्थिक रूप से सफल तो बनाया ही जा सकता है, किसानों की आय बढ़ने की संभावना भी प्रबल हो जाती है।

एकीकृत के जरिए ऐसा किया जा सकता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के कई शोध संस्थान और राज्यों के कृषि विश्वविद्यालय भी इस दिशा में काम कर रहे हैं। वे एकीकृत कृषि पर काम कर रहै हैं और अपने-अपने क्षेत्र की जरूरत के हिसाब से एकीकृत उद्योग को ढालने के तरीके तलाश रहे हैं। पिछले दिनों बिहार, पटना पटना स्थित आईसीएआर शोध परिसर ने कुछ विश्वसनीय और व्यावहारिक परीक्षण किया। ये परीक्षण छोटे और सीमांत किसानों के लिए किया गया। कर गहन कृषि तंत्र विकसित कर लिया है, जो राज्य और आसपास के क्षेत्रों के छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए उपयुक्त साबित होगा।

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बिहार में 75 फीसदी से भी ज्यादा किसानों के पास आधा हेक्टेयर से भी कम जमीन है। सबसे खराब बात है कि छोटी जमीन के ये टुकड़े भी एक जगह नहीं होकर दूर दूर होते हैं और एक उद्यम आधारित कृषि के लिए ये जरा भी उपयुक्त नहीं हैं। बिहार में 75 फीसदी से भी ज्यादा किसानों के पास आधा हेक्टेयर से भी कम जमीन है। सबसे खराब बात है कि छोटी जमीन के ये टुकड़े भी एक जगह नहीं होकर दूर-दूर होते हैं और एक उद्यम आधारित कृषि के लिए ये जरा भी उपयुक्त नहीं हैं।

आईसीएआर, पटना सेंटर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ संजीव कुमार कहते हैं "जिस उद्यम मिश्रण को हासिल किया है वह एक हेक्टेयर से कम भूमि वाले किसानों के लिए बिल्कुल उपयुक्त और काफी आकर्षक है। सेंटर द्वारा खोजे गए तरीके के तहत एक हेक्टेयर से कम भूमि वाले किसान मुर्गीपालन और बकरी पालन करने के साथ ही फसल (अनाज, सब्जियां, फल और चारा) उगा सकते हैं। इस संयोजन में मशरूम उत्पादन को भी शामिल किया जा सकता है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा जमीन की जरूरत नहीं पड़ती है। ये सभी गतिविधियां आसानी से एक साथ जाती हैं और किसानों की पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के साथ ही बिक्री के लिए भी पर्याप्त फसल के उत्पादन में मदद कर सकती हैं।"

शोध केंद्र के अनुमान के अनुसार उद्यमों के इस संयोजन से एक हेक्टेयर भूमि का मालिक भी सालाना 1.42 लाख रुपये की आमदनी कर सकता है जबकि उसे लागत पर महज 24,250 रुपये ही खर्च करने होंगे। दो हेक्टेयर जमीन वाले किसानों के लिए विशेषज्ञ दलहन, सब्जियों और फलों की खेती के साथ मछलियां और बतख पालने का सुझाव देते हैं। इस तरह की एकीकृत खेती से सालाना करीब 2 लाख रुपये की आय होने का अनुमान है।

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इन दोनों ही मामलों में आधे खेत में फसल चावल व गेहूं जैसे अनाज और सब्जियां मसलन पत्ता गोभी, मटर और फूलगोभी उगाने का सुझाव दिया जाता है। खेत या तालाब की मेढ़ का इस्तेमाल केले, नींबू और अमरूद जैसे फलों के पेड़ लगाने के लिए किया जा सकता है। बेल पर लगने वाली सब्जियां मसलन खीरे, ककड़ी भी मेढ़ या खेत के चारों ओर लगाई गई बाड़ पर भी उगाई जा सकती हैं। बकरी या गाय जैसे पशुओं को रखने के लिए अलग से छप्पर डालकर ठिकाना बनाया जा सकता है।

खेती की करीब 20 फीसदी जमीन पर खोदे गए तालाब का उपयोग बतख पालने या फिर ऐसी मछलियों की प्रजाति का पालन किया जा सकता है, जो एक साथ रह सकती हों यानी वे अपना भोजन जल की अलग अलग परत से ग्रहण करती हों। उदाहरण के लिए कैटला जल की सतह से भोजन लेती है, रोहू थोड़ा नीचे रहकर भोजन लेना पसंद करती है जबकि मृगाल तल पर भोजन लेती है। बतखों की बीट मछली तालाब के लिए अच्छे खाद का काम करती है। एकीकृत खेती के सभी उद्यमों के लिए केंचुओं की खेती की सलाह दी जाती है। दरअसल ये केंचुएं जैविक कचरे को खाद बनाने में मदद करते हैं। पौधों के लिए जरूरी माइक्रोन्यूट्रिएंट्स में समृद्घ होने के अलावा वानस्पतिक खाद में इन जीवित केंचुओं की मौजूदगी मिट्टी का भौतिक ढांचा बेहतर बनाने के साथ ही इसकी उर्वरता में भी बढ़ोतरी करती है।

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हालांकि एकीकृत खेती के ये मॉडल खासतौर पर बिहार को को ध्यान में रखकर विकसित किए गए हैं लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि इनका इस्तेमाल सभी राज्य के किसानों द्वारा किया जा सकता है बशर्ते वे अपने यहां की कृषि-पारिस्थितिकीय स्थितियों के हिसाब से इसमें कुछ बदलाव कर लें।

एक साथ किए जा सकने वाले कृषि कार्यों की कोई कमी नहीं है। इनमें पशुपालन, बागवानी, हर्बल खेती, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, रेशम उत्पादन, मत्स्य पालन और कृषि-वानिकी जैसे काम शामिल हैं। किसान मिश्रित खेती से अपरिचित नहीं हैं। करीब 80 फीसदी किसान नियमित तौर पर खेती के साथ मवेशी भी रखते हैं जिनमें गाय एवं भैंसों की बहुतायत होती है। मवेशी पालने से किसानों का कृषि से संबंधित जोखिम तो कम होता ही है, उसके अलावा उनकी आय और पोषण स्तर में भी बढ़ोतरी होती है। कई किसान बकरियां, भेड़ें या मुर्गियां भी रखते हैं। लेकिन अधिकांश खेतों में जिस तरह की मिश्रित खेती की जाती है वह एकीकृत खेती की श्रेणी में आने के लायक नहीं है। दरअसल मिश्रित खेती में विभिन्न सहयोगी गतिविधियों को इस तरह से समाहित किया जाता है कि वे संबंधित क्षेत्रों के लिए लाभदायक साबित हो सकें।

एकीकृत खेती प्रणाली से किसान की आय दोगुनी होने के साथ ही कृषि अपशिष्टों का पुनर्चक्रण करने से पर्यावरण को भी फायदा होता है।
एएस पंवार, निदेशक, आईआईएफएसआर

मेरठ के मोदीपुरम स्थित भारतीय खेती प्रणाली अनुसंधान संस्थान (आईआईएफएसआर) के वैज्ञानिकों का कहना है कि एक खेती प्रणाली में जरूरत भर के 70 फीसदी पोषक तत्व अपशिष्ट और अन्य तरीकों से ही हासिल किए जा सकते हैं। मवेशियों के मल-मूत्र से बनी देसी खाद के जरिये उर्वरकों से मिलने वाले नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का एक-चौथाई हिस्सा हासिल किया जा सकता है। एक और फायदा यह है कि रासायनिक उर्वरकों के बजाय देसी खाद का इस्तेमाल करने से मिट्टी की उत्पादकता और उसके भौतिक स्वास्थ्य को दुरुस्त किया जा सकता है। खेती के दौरान उपजने वाले अवशिष्टों को केंचुए की मदद से कंपोस्ट खाद में भी तब्दील किया जा सकता है। कंपोस्ट खाद मिट्टïी की उत्पादकता को बढ़ाकर खेती के लिए भी लाभदायक साबित होती है।

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आईआईएफएसआर के निदेशक एएस पंवार कहते हैं "एकीकृत खेती प्रणाली से किसान की आय दोगुनी होने के साथ ही कृषि अपशिष्टों का पुनर्चक्रण करने से पर्यावरण को भी फायदा होता है। एकीकृत खेती प्रणाली में अगर एक अवयव नाकाम भी होता है तो दूसरे अवयवों के कारगर होने से उस परिवार की जरूरतें पूरी हो सकती हैं। हालांकि इसके लिए इन प्रणालियों को उस स्थान-विशेष के मुताबिक तैयार किया जाना बेहद जरूरी होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में उपजे आर्थिक संकट से निपटने में एकीकृत खेती की भूमिका काफी अहम हो सकती है। यही वजह है कि इस साल के गणतंत्र दिवस परेड में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की तरफ से पेश की गई झांकी में भी एकीकृत खेती को ही विषय बनाया गया था।

पंवार आगे कहते हैं "खेती प्रणालियों को इस तरह डिजाइन करना चाहिए कि वे खेतों में ऊर्जा सक्षमता में अच्छी-खासी बढ़ोतरी करें और विभिन्न अवयवों के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित किया जा सके।"

  

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