किसान क्रांति यात्रा: पंजाब से यूपी तक एक सी हैं किसानों की समस्याएं, बोले- सरकार ही कर ले खेती
'किसान क्रांति यात्रा' हरिद्वार से दिल्ली की ओर बढ़ रही है। इस पदयात्रा में देश के अलग-अलग राज्यों से किसान आए हैं। गांव कनेक्शन की टीम लगातार इस रैली को रिपोर्ट कर रही है। इसी कड़ी में हमने देश के अलग-अलग हिस्सों से आए किसानों से बात की। आप भी पढ़ें खेतों से निकलकर किसान सड़क पर क्यों आ गया। आखिर क्या हैं उनकी समस्याएं?
Ranvijay Singh 1 Oct 2018 6:19 AM GMT
गाजियाबाद। किसान क्रांति यात्रा में मुजफ्फरनगर के दूधली गांव के रहने वाले नरेंद्र सैनी भी आए हैं। काफी देर पैदल चलने के बाद ट्रैक्टर ट्रॉली पर बैठ आराम कर रहे थे। उनसे बात करने पर पहले तो नाराजगी जाहिर करते हुए बोले, ''आप लोग हमारे तप को दिखा नहीं रहे हैं.'' फिर बड़े आदर भाव से उसी ट्राली पर बैठने को कहते हैं। जब उनसे पूछा गया कि आपको व्यक्तिगत तौर पर क्या परेशानी है। इस सवाल पर नरेंद्र कहते हैं, ''खेती में जितनी लागत लगती है उस हिसाब से हमारी फसलों का दाम बहुत कम है। आप गन्ने को ही देख लीजिए। एक बीघे में गन्ना तैयार करने में 10 हजार रुपए लगते हैं। इसमें सिंचाई, खाद, बीज, गन्ने की बंधाई सब शामिल है। इसके ऊपरहमारी मेहनत भी है। इतनी मेहतन के बाद खेत में लगभग 60 कुंटल गन्ना तैयार होता है। अब चीनी मिल वाले 1 बीघा में 40 कुंटल ही गन्ना लेते हैं, वो भी 316 रुपए कुंटल के हिसाब से। ऐसे में हमें 12640 रुपए मिले। 1 बीघे में साल भर की मेहनत से बचे सिर्फ 2640 रुपए। ऊपर से 20 कुंटल फसल का क्या होगा ये भी नहीं पता। ये है किसान का हाल।''
इसके बाद नरेंद्र सैनी सवाल करते हैं, ''एक दुकानदार के पास दो ग्राहक जाते हैं, एक नकद में सामान लेता है और दूसरा उधार में। किस ग्राहक की ज्यादा पूछ होगी?'' इस सवाल का खुद ही जवाब देते हुए कहते हैं, ''जो नकद में सामान लेगा उसकी ज्यादा पूछ है। लेकिन सरकार ऐसा नहीं करती। किसान आपसे कर्ज लेकर समय पर लौटा रहा है। इस पर भी आप उसे परेशान करते हैं। लेकिन बड़ी कंपनियों को, बड़े लोगों को आप बुला बुलाकर कर्ज दे रहे हैं। पहला कर्ज चुकाया नहीं फिर भी कर्ज दे रहे हैं। ये है किसान की असल समस्या।''
वहीं, यात्रा में इलाहाबाद के बिसौना गांव से आए संतोष कुमार बताते हैं, ''हमारी समस्या कोई नहीं समझ पा रहा। किसानी से इतना भी नहीं निकल रहा कि अच्छे से घर चल सके। आज डीजल के दाम भी बढ़ा दिए हैं। मेरे 10 बीघा खेत है। इसपर भी हमेशा परेशान रहता हूं। अपनी बात दिल्ली तक पहुंचाने के लिए इस यात्रा में शामिल हुआ हूं।''
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लाठी लिए पैदल ही दिल्ली की ओर चल रहे मुरादाबाद के तकलोलपुर के किसान कल्लू पहलवान बताते हैं, ''आज महंगाई कितनी बढ़ गई है। हम किसानों को बहुत परेशानी है। मैंने गन्ना लगाया था। मार्च में ही फसल चीनी मिल को दे दी गई। अब सितंबर चल रहा है और एक रुपया नहीं मिला। आप ही बताएं हमारा घर कैसे चलेगा? हम भी चाहते हैं हमारे बच्चे अच्छा पढ़ सकें, लेकिन हमारे पास पैसे ही नहीं। हमें सरकार से कोई दुश्मनी नहीं है, हमारी सुनी जाए बस यही हम चाहते हैं।'' मुजफ्फरनगर के गांव कन्नैडी के किसान हुकुम सिंह का भी दर्द ऐसा ही है। उन्होंने अपनी सात बीघा जमीन में गन्ना लगाया था। 7 महीने होने को आए लेकिन उस फसल का भुगतान नहीं हुआ। ऐसा ही हाल यूपी के ज्यादातर किसानों का है, चाहे वो पूर्वांचल से आया हो या पश्चिमांचल से।
यात्रा में कानपुर से बहुत लोग आए हैं। इन्हें में से एक हैं सीधामऊ गांव के रहने वाले नती राम। नती राम की अपनी अलग समस्या है। उनको मिली जमीन पर कुछ भूमाफियाओं ने कब्जा कर लिया है। वो अधिकारियों के चक्कर लगा-लगाकर परेशान हो चुके हैं। कहते हैं, ''हम गरीब किसान हैं, इसलिए सुनवाई नहीं होती। दबंग जो चाहे वो ही हो रहा है। मुझे बस मेरी जमीन दिला दी जाए।''
पंजाब के किसानों की समस्याएं भी अलग नहीं
किसान क्रांति यात्रा में पंजाब के अलग-अलग जिलों से बहुत से किसान शामिल हुए हैं। भारतीय किसान यूनियन के मुताबिक सिर्फ फिरोजपुर से 10 हजार किसान आए हैं। हमारी मुलाकात फिरोजपुर जिले के ममदोट गांव के कुछ किसानों से हुई। उन्हीं में से एक अमरीक सिंह बताते हैं, ''फसलों की लागत और उसकी कीमत में जमीन आसमान का फर्क है। लेबर चार्ज, ट्रैक्टर का डीजल, सिंचाई, खाद, कीटनाशक ये सब मिलाकर फसलों की लागत बहुत ज्यादा हो जाती है, लेकिन उसका भाव बहुत कम मिलता है। हमारी फसल बहुत अच्छी हो रही है, लेकिन दाम ही नहीं मिल रहा।''
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ममदोट गांव के ही हरप्रीत सिंह का कहना है, ''हम जिड़ी (धान) और गेंहू उगाते हैं। सरकार इन दो फसलों का रेट सही करे। आज खाने वाले ज्यादा हो गए हैं। हम उसी हिसाब से देश को अनाज भी दे रहे हैं। इसके बावजूद किसान की कोई पूछ नहीं है। मान लेते हैं देश का किसान बहुत खुश है। आप (सरकार) एक खुशी उसे और दे दीजिए, हमें 20-22 हजार रुपए महीना दीजिए। इसके बाद सरकार आकर खुद खेती करे। जो फसल चाहे उगा ले। आखिर बैंक में काम करने वाले, सरकारी कर्मचारियों को आप सैलरी तो देते ही हैं, हमें भी दे दीजिए।''
पंजाब से आए मेजर सिंह भी किसानों को लेकर सरकारों के रवैये से काफी नाराज दिखते हैं। मेजर सिंह कहते हैं, ''हमारी क्या ये गलती है कि हम लोगों को अनाज उगा कर दे रहे हैं। सबका स्तर बढ़ता गया, लेकिन किसान और नीचे जा रहा है। ये सिर्फ इसलिए है कि किसानों की बात तो होती है, लेकिन उनके लिए काम नहीं किया जाता। आज हमें फसलों का दाम सही नहीं मिल रहा और खर्च तो बढ़ते ही जा रहे हैं। फसल में लागत के हिसाब से हमारे दाम तय होने चाहिए।''
महंगाई के हिसाब से तय हो किसान की आमदनी, बोले हरियाणा के किसान
किसान क्रांति यात्रा में हरियाणा के भी किसान शामिल हुए हैं। करनाल जिले के ब्रानी खालसा गांव के रहने वाले धर्म सिंह भी फसलों की ज्यादा लागत और कम दाम की बात करते हैं। धर्म सिंह बताते हैं, ''धान का रेट 1770 तय हुआ था। जब हम अपनी फसल लेकर पहुंचे तो हमसे कहा गया कि आज खरीदा नहीं जाएगा। ऐसे में उन्हें 1300 रुपए के रेट पर अपनी फसल को बाजार में बेचना पड़ा। वो बिचौलियों की बात करते हुए कहते हैं, हर जगह बिचौलिए हैं। खुद अधिकारी इनसे मिले हुए हैं। ऐसे में किसान तक फायदा पहुंच ही नहीं पा रहा। सरकार ने डीजल के दाम बढ़ा दिए। ट्रैक्टर में 1 घंटे में 5 लीटर डीजल जल जाता है। ऐसे में आप खुद तय कर लें कि किसान को कितना फायदा हो रहा होगा। किसानी अब घाटे का सौदा हो चला है।''
करनाल जिले के बरसालो गांव से यात्रा में आए गोपाल सिंह बताते हैं, ''हमने गन्ने की अच्छी फसल तैयार की, लेकिन हमसे कहा गया कि गन्ना कम उगाओ। गन्ने का भुगतान भी नहीं हो रहा है। करीब 7 महीने होने को आए हैं। सरकार इस ओर ध्यान क्यों नहीं देती। हमारे बच्चे कैसे पढ़ेंगे। महंगाई के हिसाब से ही किसानों की आमदनी का ख्याल करना चाहिए।''
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सरकारी योजनाओं से भी नाराज हैं किसान
यात्रा में कई किसान ऐसे भी हैं जो सरकारी योजनाओं के उन तक न पहुंचने से नाराज हैं। इन्हीं में से कानपुर देहात से आईं रामदुलारी भी हैं। वो कहती हैं, मुझे आवास नहीं मिला। प्रधान इसके लिए पैसे मांग रहा है, हम पैसे कहां से लाएं। इसके अलावा सरकारी गल्ले की दुकान को लेकर भी कई लोग नाराजगी जता रहे हैं। लोग कोटेदार की मनमानी को लेकर भी बात करते हैं।
आर-पार की लड़ाई के मूड में
पदयात्रा में शामिल ज्यादातर किसान एक ही बात करते हैं कि इस बार वो आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे। किसान इसकी तैयारी के साथ चल भी रहे हैं। किसान अपनी जरूरतों के सामान के साथ ही राशन भी लेकर चल रहा है। किसानों का कहना है कि इस बार लड़ाई लंबी भी हुई तो हम पीछे नहीं हटने वाले। वहीं, कई किसान ऐसी भी आशंका जता रहे हैं कि सरकार बातचीत करके इस यात्रा को टाल सकती है।
फिलहाल किसान क्रांति यात्रा जारी है और दिल्ली के करीब पहुंच गई है। यात्रा में में शामिल देश के अलग-अलग किसानों से बातचीत से इतना तो पता चला कि चाहे किसान पंजाब का हो या उत्तर प्रदेश का इनकी समस्याएं एक जैसी हैं। सभी ने फसलों के कम दाम की बात की है। सभी गन्ने के भुगतान को लेकर चिंतित है। मतलब किसान की समस्याएं व्यापक तौर पर एक सी ही हैं।
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