मक्के के लिए MSP की लड़ाई लड़ रहे किसान सत्याग्रह के समर्थन में हजारों किसान आज उपवास पर
घाटा उठाकर मक्का बेच रहे मध्य प्रदेश के किसानों को देशभर के किसान संगठन और किसानों का समर्थन मिल रहा है। सोशल मीडिया पर लड़ाई लड़ रहे किसान अब अपने हक के लिए गांधीगिरी भी कर रहे हैं..
Arvind Shukla 10 Jun 2020 9:12 PM GMT
अपनी मांगों को लेकर देश के किसान जहां डिजिटल का सहारा लेकर सोशल मीडिया पर लड़ाई लड़ रहे हैं वहीं महात्मा गांधी के आजमाए रास्तों पर चलकर भी सरकार को अपनी ताकत का अहसास करवा रहे हैं। सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से आधी कीमत पर मक्का बेचने को मजबूर मध्य प्रदेश के किसानों के समर्थन में देश के कई राज्यों के किसान बृहस्पतिवार (11 जून) को उपवास कर रहे हैं।
देश में मक्के का समर्थन मूल्य 1850 रुपए है लेकिन मध्य प्रदेश में किसान 900 से 1000 रुपए में मक्का बेचने को मजबूर हैं। लॉकडाउन में सब्जी और फल उगाने वाले किसानों को नुकसाऩ हुआ ही अनाज उगाने वाले किसानों को काफी घाटा उठाना पड़ रहा है। मध्य प्रदेश मक्के को औने-पौने दामों पर बेचने पर मजूबर सिवनी और छिंदवाड़ा के किसानों ने सरकार के खिलाफ अपने आप में अनोखा आंदोलन शुरु कर रखा है। ये किसान न तो कहीं धरना दे रहे हैं और ना ही कोई रैली कर रहे हैं, किसानों ने वही तरीका अपनाया है जो आज के दौर में सबसे प्रचलित हथियार है, यानि सोशल मीडिया।
समाज के हर वर्ग से @KisanSatyagrah अपील करता है कल 11 जून गुरुवार को एक फिन के लिए मक्का MSP की मांग में उपवास रखिये। @Devinder_Sharma @ramanmann1974 pic.twitter.com/0WHC7lOcNM
— किसान सत्याग्रह (@KisanSatyagrah) June 10, 2020
किसान सत्याग्रह शुरु करने वाली टीम के अहम सदस्य सतीश राय गांव कनेक्शन को बताते हैं, "सरकार ने मक्के एमएसपी 1850 रुपए घोषित की है, जबकि मध्य प्रदेश की मंडियों में मक्का 900 रुपए से लेकर 1000 रुपए कुंतल तक बिक रही है, किसानों को प्रति कुंतल 900 से 1000 रुपए तक घाटा हो रहा है। इसीलिए मजबूरी में हम लोगों को ये आंदोलन (किसान सत्याग्रह) शुरु करना पड़ा। पिछले 15 दिनों में हमारे फेसबुक पेज पर 80 हजार लोग जुड़ गए हैं और पूरे देश से हमें समर्थन मिल रहा है।"
धान और गेहूं के बाद मक्का वो फसल है जिसकी दुनिया में सबसे ज्यादा खेती होती है। भारत में भी मक्का तीसरे नंबर की फसल है, देश के 10 राज्यों में इसकी बड़े पैमाने पर खेती होती है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर असम तक मक्के की खेती होती है। मध्य प्रदेश की बात करें सिवनी और छिंदवाड़ा इसके प्रमुख उत्पादक केंद्र है। छिंदवाड़ा में साल 2018 से मक्का महोत्सव का भी आयोजन शुरु किया गया, जिसका मुख्य उदेश्य देश में 'पीली क्रांति' मक्के की खेती को बढ़ावा देना था। लेकिन मध्य प्रदेश के उसी इलाके से किसानों ने मक्के की एमएसपी यानि सरकारी मूल्य के लिए आंदोलन शुरु कर रखा है।
कोविड-19 महामारी के खौफ और लॉकडाउन की बंदिशों के बीच ये आंदोलन एमपी के सिवनी से शुरु हुआ, जिसे देखते ही देखते पूरे देश के कई राज्यों से किसान और किसान संगठनों का समर्थन हासिल हुआ।
सिवनी के युवा किसान शिवम सिंह बघेल बताते हैं, "किसान सत्याग्रह को सोशल मीडिया पर भारी समर्थन मिल रहा है। अलग-अलग राज्यों के किसान अपने वीडियो बनाकर हमें भेज रहे हैं। हमारे फेसबुक पेज से जुड़ रहे हैं और हमारे समर्थन में पढ़े लिखे किसान ट्वीट कर रहे हैं। 11 जून को किसान सत्याग्रह ने उपवास को एक दिन के उपवास का निर्णय लिया, जिसके समर्थन में देश के कई दूसरे राज्यों के किसान भी उपवास करेंगे।"
केंद्र सरकार ने 2 जून को धान समेत 17 फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान। मक्का के लिए वर्ष 2020-21 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 1850 रुपए तक किया गया है। सरकार फसलों की कीमत और लागत तय करने वाले कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की रिपोर्ट के हवाले से 50 फीसदी मुनाफा देने की बात कह रही है उसके मुताबिक एक कुंतल मक्का पैदा करने में 1213 रुपए की लागत आती है। लेकिन मंडियों और बाजार में किसानों में मुनाफा तो दूर लागत से काफी नीचे अपनी फसल बेचनी पड़ रहा है।
एक साल पहले तक मक्के की कीमत 2000 रुपए प्रति कुंतल तक थी लेकिन, उसके बाद कीमतें गिरने शुरु हुईं और अब कीमत 900 से 1000 रुपए कुंतल तक आ गई हैं।
सतीश राय कहते हैं, "सरकार के ही आंकड़ों पर चलें तो किसानों को लागत पर ही 213 से 313 रुपए प्रति कुंतल (1213 रुपए लागत ) का घाटा हो रहा है,और एमएसपी पर जाएं तो 800-900 रुपए। एक मोटे अनुमान के अनुसार अकेले शिवनी जिले में 4 लाख 35 हजार एकड़ में मक्का बुवाई हुई थी। जिसमें जिले के किसानों को एसएसपी न मिलने पर करीब 600 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।"
किसानों के मुताबिक एक एकड़ मक्के की खेती में बुवाई से लेकर कटाई तक करीब 14-16 हजार रुपए की लागत आती है,जिसमें किसान की मेहनत और जमीन का किराया शामिल नहीं होता है।
क्यों गिरे मक्के के दाम?
दुनिया भर में जो मक्का पैदा होता है, उसका 15 फीसदी इंसान के भोजन के रुप में इस्तेमाल होता है बाकि पशु के आहार के रुप में जाता है। पॉल्ट्री फीड में सोयाबीन और मक्का सबसे अहम है। इसके अलावा मक्के का बड़ा उपयोग स्टार्च बनाने में होता है।
किसान संगठनों का कहना है सरकार की गलत नीतियों के चलते देश के किसानों का नुकसान हो रहा है। सतीश राय कहते हैं, "एक तरह हमारे प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि देश के किसानों को, गांवों को आत्मनिर्भर होना चाहिए किसानों को उद्दमी बनना चाहिए, दूसरी तरह सरकार विदेशों से भारी मात्रा में मक्का मंगवा भी रही है, इसी वजह से किसानों को दाम नहीं मिल रहे हैं।'
अपनी बात के समर्थन में सतीश राय आगे कहते हैं, "दिसंबर और मध्य जनवरी तक मक्के के दाम 2100-2200 तक थे, लेकिन उसी बीच सरकार ने 3 देशों से रूस, यूक्रेन, बर्मा से आयात मक्के का आयात शुरू कर दिया। विदेशी मक्का भारत के पोर्ट तक 1800 में पहुंच रहाथा, जिससे मंडियों में दाम गिर गए। इसी बीच कोरोना की महामारी आ गई तो बाकी और दिक्कत बढ़ गई, सरकार ने आयात पोल्ट्री लॉबी को ध्यान में रखते हुए किया क्योंकि उन्हें सस्ता फीड चाहिए था।"
आंदोलन का असर
किसान सत्याग्रह से जुड़े किसानों के मुताबिक सोशल मीडिया पर जारी उनके आंदोलन का असर भी दिखने लगा है। एक जून को मध्य प्रदेश जबलपुर मंडी बोर्ड ने आदेश देते हुए स्वीकार किया कि मक्का किसानों को बहुत घाटा हो रहा है। राय बताते हैं, मंडी बोर्ड ने कृषि उपज मंडी अधिनियम 1972 की धारा 36(3) का हवाला देते हुए कहा कि मक्का समर्थन मूल्य से कम में नहीं बिकना चाहिए, व्यापारियों से बात कर बोली के द्वारा ये दर दिलवाना सुनिश्चित किया जाए। लेकिन ये भी हो नहीं पाया। क्योंकि व्यापारी अपनी जेब से कहां नहीं करेगा, जब तक सरकार इसमें दखल नहीं देगी।"
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