मसूद अजहर: आतंकी ट्रेनिंग से भगाया गया लड़का जो बाद में आतंक की फैक्‍ट्री चलाने लगा

कुख्यात आतंकी मसूद अजहर ( Masood Azhar ) को अंतराष्ट्रीय आतंकी घोषित कर दिया गया है। सुरक्षा परिषद में चीन ने अजहर को लेकर लगाए गए वीटो को हटा लिया है। आतंकवाद के खिलाफ ये भारत की बड़ी जीत है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   1 May 2019 1:14 PM GMT

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मसूद अजहर: आतंकी ट्रेनिंग से भगाया गया लड़का जो बाद में आतंक की फैक्‍ट्री चलाने लगा

एक पाकिस्‍तानी नौजवान जो आतंक की ट्रेनिंग लेने कैंप में जाता है, लेकिन अपनी शारीरिक बनावट और थुलथुल शरीर की वजह से ट्रेनिंग से भगा दिया जाता है। बाद में यही नौजवान उसी आतंकी संगठन के शीर्ष सदस्‍यों में शामिल होता है और फिर आतंक की दुनिया में बढ़ता जाता है।

यह कहानी आतंक के आका कहे जाने वाले मसूद अजहर की है। मसूद अजहर आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्‍मद का सरगना है। वरिष्‍ठ पत्रकार और लेखक नीलेश मिसरा ने कंधार हाईजैक पर आधारित अपनी किताब '173 HOURS IN CAPTIVITY' में लिखा है, अजहर एक स्‍कूल हेडमास्‍टर अल्‍लाह बख्‍श और पुकिया बिवी के घर 10 जुलाई 1968 को पैदा हुआ। हालांकि, दिसंबर 1994 में जब भारतीय एजेंसियां उससे पूछताछ कर रही थीं तो उसने बताया था कि उसे खुद के जन्‍म दिन की जानकारी नहीं है।

कंधार हाईजैक पर आधारित किताब '173 HOURS IN CAPTIVITY'

अजहर अपने पांच भाइयों और छह बहनों के साथ पाकिस्‍तान के बहावलपुर में एक पॉल्‍ट्री फार्म में रहता था। 1979 में जब वह क्‍लास आठ में था तो उसने स्‍कूल छोड़ दिया। इसके बाद उसके अंकल ने उसका दाखिला इस्‍लामिक पढ़ाई कराने वाले कॉलेज जामिया उलूम इस्‍लामिया में कराया। यहां 10 साल पढ़ते हुए 1989 में उसने मास्‍टर के डिग्री के बराबर का एक कोर्स किया। कॉलेज प्रशासन उसकी बुद्धिमत्‍ता से इतना प्रभावित हुआ कि उसे कॉलेज में ही टीचर की नौकरी दे दी। अजहर ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए बिना तनख्वाह लिए इस्‍लाम की खातिर पढ़ाने की बात कही।

कराची के बनौरी कस्‍बे में मौजूद जामिया उलूम इस्‍लामिया कॉलेज अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया के इस्‍लामिक देशों के कट्टरपंथियों का गढ़ था। यहां सिखाया जाता कि कैसे उन्‍हें काफिरों के खिलाफ जंग छेड़नी है। इस कॉलेज में पढ़ाते हुए अप्रैल 1989 में अजहर हरकत-उल-मुजाहिदीन के टॉप लीडर्स के संपर्क में आया। इसमें हरकत-उल-मुजाहिदीन का चीफ मौलाना फजल-उर-रहमान खलीली भी शामिल था। मौलाना खलीली ने मसूद अजहर को अफगानिस्‍तान में रूस से लड़ने के लिए हथियारों की ट्रेनिंग लेने की बात कही। अफगानिस्‍तान के यावर ख़ोस्त में मौजूद ट्रेनिंग कैंप में अजहर 20 दूसरे नौजवान लड़कों के साथ एक टोयोटा वैन में पहुंचा।

अफगानिस्‍तान में मौजूद यावर खोस्‍त कैंप उन चार महत्‍वपूर्व कैंपों में से एक था, जिसे लेकर माना जाता था कि ओसामा बिन लादेन ने इसे प्‍लान किया और बनवाया था। हजारों इस्‍लामिक कट्टरपंथी जो दुनियाभर में गोरिल्ला युद्ध में जुटे थे इसी कैंप से तैयार किए गए थे। अजहर को यहां कड़ी ट्रेनिंग दी जाने लगी। उसे कलाश्निकोव राइफ़ल और मीडियम मशीन गन चलाने की ट्रेनिंग दी जानी थी, लेकिन जल्‍द ही यह साफ हो गया कि उसकी शारीरिक बनावट के हिसाब से वो डेस्‍क के पीछे ज्‍यादा बेहतर है बजाए हाथ में मशीन गन लिए।


अजहर ने पूछताछ में बताया था कि, ''वो ट्रेनिंग में बेहतर नहीं कर पा रहा था। इसके बाद हरकत-उल-मुजाहिदीन के चीफ फजल-उर-रहमान ने उसे ट्रेनिंग से हटा दिया और कराची लौट जाने का आदेश दिया।'' नीलेश मिसरा अपनी किताब में आगे लिखते हैं, एक इंसान जो लड़ाके के तौर पर हार गया था वो लौटकर अपने कॉलेज के छात्रों के बीच आ गया। उसके छात्रों में अ‍फ्रीका, इंडोनेशिया, मलेशिया, जांबिया, सोमालिया और अरब देश के लड़के थे। और यहीं से उसे एक शक्‍तिशाली इंसान बनने की राह मिलती है।

लेकिन इससे पहले वो एक पत्रकार बनता है। उसे सदा-ए-मुजाहिद नाम की 24 पेज की मासिक पत्र‍िका का जिम्‍मा मिलता है। यह पत्र‍िका धार्मिक समारोहों में फ्री में बांटी जाती। अजहर इसके बाद हरकत-उल-मुजाहिदीन में तेजी से बढ़ता गया। 1993 आते-आते संगठन में उसकी हैसियत इतनी हो गई थी कि उसे कश्‍मीर में ऑपरेशन चलाने की जिम्‍मेदारी दी जा सके। उसे जिम्‍मेदारी दी गई थी कि कश्‍मीर के तीन धूर विरोधी आतंकी संगठन को एक साथ लाया जाए और हरकत-उल अंसार बनाया जाए। हरकत-उल अंसार जम्‍मू कश्‍मीर में इंडियन आर्मी के लिए सबसे बड़ा सिर दर्द था।

अजहर 29 जनवरी 1994 को बांग्‍लादेश के रास्‍ते भारत के लिए रवाना हुआ। उसने इसके लिए पुर्तगाल के जाली पासपोर्ट का सहारा लिया। वो मसूद अजहर से लिस्‍बन का रहने वाला वली एडम ईशा बन गया। 11 दिन बाद 9 फरवरी को वो श्रीनगर पहुंचा। अलगे दिन यहां तीन आतंकी संगठन (हरकत-उल-मुजाहिदीन, हरकत-उल-जिहादे-इस्‍लामी, जमाते-उल-मुजाहिदीन) के सरगना से उसकी मुलाकात हुई। यह तीनों संगठन कश्‍मीर में अलग-अलग ऑपरेट कर रहे थे, लेकिन पाकिस्‍तान में इनका एक ही संगठन था। अजहर इन संगठन के बीच अच्‍छी हैसियत रखता था। एक तरह से उसका करियर तेजी से बढ़ रहा था।

इस मीटिंग के बाद 11 फरवरी 1994 को 10 बजे के करीब अजहर अपने साथियों के साथ गाड़ी से लौट रहा था। उसके साथ सज्‍जाद अफगानी और एक और साथ एम्बेसडर कार में मौजूद थे। इस बीच रास्‍ते में उनका सामना बीएसएफ से हुआ, तभी कार में बैठे तीसरे शख्‍स ने गोली चला दी, बीएसएफ के जवान ने भी गोली चलाई और यहीं अजहर और अफगानी गिरफ्तार कर लिए गए।

गिरफ्तारी की बाद अजहर को जम्‍मू की जेल में रखा गया। उसे छुड़ाने के लिए आईसी-814 को 24 दिसंबर 1999 को हाईजैक किया गया, जिसके बाद उसे छोड़ा गया और फिर उसने जैश-ए-मोहम्‍मद की स्‍थापना की। आज के वक्‍त में जैश को आतंकी की फैक्‍ट्री के तौर पर देखा जाता है। मसूद फिलहाल पाकिस्‍तान में मौजूद है।



  

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