‘पापा की डांट और माँ के हाथ के खाने में बसता है मेरा गाँव’

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   20 Jan 2018 3:14 PM GMT

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‘पापा की डांट और माँ के हाथ के खाने में बसता है मेरा गाँव’मेरा गाँव कनेक्शन सीरीज़ का छठा भाग ।

हम भले ही अपने गाँव बहुत कम जा पाते हों, लेकिन अक्सर में हमें अपने गाँवों की याद आ ही जाती है। अॉफिस में लंच टाइम होने पर गाँव की रसोई की याद , तो पानी पीते समय उस घड़े की याद ज़रूर आती होगी, जिसमें लंबी गर्दन वाला गिलास पड़ा रहता था। हम अपने गाँवों से कोसो दूर चले आए हैं, लेकिन गाँव आज भी हमारे भीतर खुशी से बसे हुए हैं। ' मेरा गाँव कनेक्शन ' सीरीज़ के भाग -6 में आज बात उत्तर प्रदेश के ‘ रक्षवापार ’ गाँव की।

गाँव बायोडाटा -

गाँव- रक्षवापार

ज़िला - गोरखपुर

राज्य - उत्तर प्रदेश

नज़दीकी शहर - गोरखपुर सिटी

गूगल अर्थ पर रक्षवापार गाँव -

रक्षवापार गाँव -

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के पिपराइच ब्लॉक के अंतर्गत रक्षवापार गाँव आता है। इस गाँव में अधिकतर लोग गेहूं-धान जैसी फसलों की खेती करते हैं। जनगणना 2011 के अनुसार इस गाँव की अबादी 1,352 है। गोरखपुर शहर पास होने के कारण जिले के दूसरे गाँवों की अपेक्षा यहां अच्छा विकास हुआ है। गाँव में 69.66 प्रतिशत साक्षरता दर है।

गाँव की यादें -

‘ रक्षवापार ’ गाँव से जुड़ी यादें हमें बता रहे हैं ' चंद्रकांत मिश्रा ', जो इस गाँव के रहने वाले हैं।

याद है घर के दरवाजे पर रखे पुआल के पीछे छिपकर चोर-पुलिस का खेल खेलना

गोरखपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन के पास ही मेरा गाँव रक्षवापार है। मेरे गाँव से मेरी आत्मा जुड़ी हुई है, आज लखनऊ में काम के दौरान अक्सर मुझे गाँव की याद आ जाती है। गाँव में घर के पास एक बगीचा है, जिसमें हम सीज़न के हिसाब से खेल खेला करते थे। कभी कबड्डी तो कभी कुश्ती के दो-दो हाथ करते। जब ठंड आती तो गाँव के किसान वहां पर धान का कटा हुआ पुआल रख देते थे। इन पुआल के पीछे छिपकर हम सभी चोर-पुलिस और आइस-पाइस जैसे खेल खेलते थे।

गोरखपुर रेलवे स्टेशन।

वो बगीचा मेरे घर के पास था, इसलिए खेलते वक्त जब कभी भी माँ खाने के लिए आवाज़ देती तो मैं घर चला जाता था। मां के हाथ का बना खाना वो खाना किसी भी होटल से लाख गुना अच्छा होता और खाने में लज़ीज़ भी। हमारा संयुक्त परिवार था, इसलिए दिनभर घर में मौज मस्ती का माहौल रहता था। खाने में बचपन से ही बहुत शौकीन था, इसलिए गर्मियों में अपने आम के बाग में खूब आम खाता और सर्दियों के आते ही मटर का निमोना (पिसे हुए मटर से बना खास व्यंजन) खूब खाता था।

गोरखपुर के रक्षवापार गाँव में बना घर।

गाँव को मुख्य सड़क से जोड़ने वाला रास्ता था, जिस पर गाँव के सभी युवा दौड़ने और बुज़ुर्ग टहलने जाते थे। इस रास्ते के अलग-बगल दूर तक फैले खेत दिखाई देते थे। इन खेतों में बारिश के आने पर धान की बालियां लहलहाती थी, तो सर्दियों में गेहूं खड़ी धूप पड़ने पर सुरहरे-चमकीले लगते थे।

गाँव में वो बांस की बसवारी आज भी याद आती है, जिसे लोग भूतों का अड्डा कहते थे। वो जगह बहुत ही सूनसान थी, इसलिए रात में वहां जाने पर डर लगता था। आज भी जब गाँव जाता हूं, तो उस जगह को देख कर पैर अपने आप पीछे हो जाते हैं। मुझे याद आता है वो पल जब पिता जी हमें पढ़ाई करने के लिए डांटते थे। बगीचे में खेलते हुए जब अचानक गाँव की सड़क से पिता जी की साइकिल की आवाज़ आती थी, तो हम सब खेल छोड़कर पढ़ाई करने बैठ जाते थे।

गाँव में घर के सामने खेल के मैदान में होता है खूब हंसी-मज़ाक।

गाँव मे किसी के घर पर शादी हो या कोई समारोह वो हमारे घर के सामने बने बगीचे में ही करवाया जाता था। घर के पास बगीचा होने से वहां पर होने वाले नाच गाने में हम सब शामिल हो जाते थे। गाँव के पास ही मलंग बाबा की कब्र है, जहां पर होली में रंग चढ़ाया जाता है और दीपावली में दीपक जलाएं जाते हैं।

आज ऑफिस के काम में इतना व्यस्त हो गया हूं कि गाँव कभी-कभार ही जा पाता हूं। लेकिन जब भी गाँव जाता हूं उस बगीचे में खूब दौड़ता हूं और खेलता भी हूं। मैं अपने गाँव को कभी भी भूल नहीं सकता हूं।

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चंद्रकांत मिश्रा की तरह अगर आपके मन में भी अपने गाँव से जुड़ी यादें हैं, तो उन्हें हमारे साथ साझा करें- [email protected] पर। आख़िर यही तो है हम सबका गाँव कनेक्शन

  

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