मिशन विस्तार पर ‘विश्वास’ के संकट में घिरी आप

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मिशन विस्तार पर ‘विश्वास’ के संकट में घिरी आपकुमार विश्वास।

नई दिल्ली (भाषा)। आम आदमी पार्टी (आप) के शीर्ष नेतृत्व में आपसी विश्वास को लेकर मचा घमासान अब पार्टी की संगठनात्मक रणनीति पर भी दिखने लगा है। आप संयोजक अरविन्द केजरीवाल और पार्टी को तोड़ने के कथित आरोपों से घिरे वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास के बीच आपसी अविश्वास को लेकर सतह पर आ चुका घमासान, आप को राष्ट्रीय दल का दर्जा दिलाने की रणनीति पर भी असर डालने लगा है।

विश्वास के दोहरे संकट से जूझ रही आप गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे अहम राज्यों के विधानसभा चुनाव लड़ने या नहीं लड़ने की दुविधा में फांसी है। पार्टी नेतृत्व में कलह, इन राज्यों के चुनावी अखाड़े में आप के कूदने को लेकर असमंजस का कारण बन गया है। आलम यह है कि एक तरफ पार्टी में कुमार विश्वास के भविष्य को लेकर खुद विश्वास और पार्टी नेतृत्व कोई फैसला नहीं कर पा रहा है, वही दूसरी तरफ, हाल ही में पंजाब, गोवा और दिल्ली नगर निगम चुनाव में आप की हार ने गुजरात सहित अन्य राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने को लेकर पार्टी नेतृत्व का आत्मविश्वास डिगा दिया है।

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इसका तात्कालिक असर इस साल के अंत में संभावित गुजरात विधानसभा चुनाव लड़ने के फैसले पर पड़ा है। गुजरात के प्रभारी गोपाल राय राज्य में आप की मौजूदा संगठनात्मक स्थिति की रिपोर्ट केजरीवाल को सौंप कर चुनावी समर में कूदने का फैसला पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) में करने का सुझाव दे चुके हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पिछले सप्ताह गोपाल राय ने केजरीवाल को कई घंटे चली मैराथन बैठक में बता दिया है कि आप को टूट की कगार तक ले जाने की वजह बने विश्वास संकट ने गुजरात इकाई के मनोबल पर नकारात्मक असर छोड़ा है।

नतीजतन गुजरात सहित अन्य राज्यों में चुनाव लड़ने के फैसले को लेकर असमंजस में घिरा पार्टी नेतृत्व पीएसी की बैठक की अब तक तारीख तय नहीं कर पाया है। उम्मीद की जा रही थी कि शनिवार को पीएसी की बैठक की तारीख तय हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। शनिवार को आयोजित आप के किसान सम्मलेन में शामिल हुए केजरीवाल, कुमार विश्वास, गोपाल राय, भगवंत मान, दीपक वाजपेयी, आशुतोष और संजय सिंह सहित किसी नेता ने पीएसी की बैठक की तारीख के बारे में कोई खुलासा नहीं किया।

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असमंजस के सवाल पर आप के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि इस विषय पर पार्टी में दो तरह के मत उभरे है। पहला मत, मिशन विस्तार से जुड़े नेताओं का है, जो गुजरात में चुनाव लड़ने के पक्षधर हैं। हालाँकि दबी जुबान में इस गुट का भी मानना है कि पिछली हार के साये से उबरने से पहले ही आप में मचे आपसी घमासान ने कार्यकर्ताओं के मन में पार्टी आलाकमान की नेतृत्व क्षमता पर मामूली संदेह जरुर पैदा कर दिया है। लेकिन इनकी दलील है कि कलह की वजह बने नेताओं से अगर छुटकारा मिल जाये तो समय रहते कार्यकर्ताओं के मनोबल का संकट दूर कर लिया जायेगा। इनका मानना है कि चुनाव नहीं लड़ने का फैसला न सिर्फ पार्टी आलाकमान की नेतृत्व क्षमता पर संदेह को पुख्ता करेगा बल्कि इन राज्यों में दो साल से संगठन खड़ा करने की चल रही कवायद को भी इससे धक्का लगेगा।

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