पुण्यतिथि विशेष : आज भी रहस्य है कि कैसे हुई लाल बहादुर शास्त्री की मौत

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पुण्यतिथि विशेष : आज भी रहस्य है कि कैसे हुई लाल बहादुर शास्त्री की मौतशास्त्री जी की ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 को उसी रात उनकी मृत्यु हो गयी थी। 

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आज पुण्यतिथि है। शास्त्री जी की ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 को उसी रात उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनकी मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया गया। लेकिन सच में उनकी मौत का कारण क्या था इस रहस्य का खुलासा आज तक नहीं हो पाया है।

शास्त्री जी की मृत्यु को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जाते रहे हैं। बहुत से लोगों का, जिनमें उनके परिवार के लोग भी शामिल हैं, मत है कि शास्त्रीजी की मृत्यु हार्ट अटैक से नहीं बल्कि जहर देने से ही हुई। उनकी मौत पर पहली इन्क्वायरी राज नारायण ने करवायी थी, जो बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गयी ऐसा बताया गया। इण्डियन पार्लियामेण्ट्री लाइब्रेरी में आज उसका कोई रिकार्ड ही मौजूद नहीं है। यह भी आरोप लगाया गया कि शास्त्रीजी का पोस्ट मार्टम भी नहीं हुआ। 2009 में जब यह सवाल उठाया गया तो भारत सरकार की ओर से यह जबाव दिया गया कि शास्त्रीजी के प्राइवेट डॉक्टर आरएनचुघ और कुछ रूस के कुछ डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत की जाँच तो की थी परन्तु सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। बाद में प्रधानमन्त्री कार्यालय से जब इसकी जानकारी माँगी गयी तो उसने भी अपनी मजबूरी जतायी।

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2009 में जब साउथ एशिया पर सीआईए की नज़र (अंग्रेजी: CIA's Eye on South Asia) नामक पुस्तक के लेखक अनुज धर ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी पर प्रधानमन्त्री कार्यालय की ओर से यह कहा गया कि "शास्त्रीजी की मृत्यु के दस्तावेज़ सार्वजनिक करने से हमारे देश के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध खराब हो सकते हैं तथा इस रहस्य पर से पर्दा उठते ही देश में उथल-पुथल मचने के अलावा संसदीय विशेषधिकारों को ठेस भी पहुंच सकती है। ये तमाम कारण हैं जिससे इस सवाल का जबाव नहीं दिया जा सकता।"

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सबसे पहले सन 1978 में प्रकाशित एक हिन्दी पुस्तक ललिता के आँसू में शास्त्रीजी की मृत्यु की करुण कथा को स्वाभाविक ढँग से उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री के माध्यम से कहलवाया गया था। उस समय (सन् उन्निस सौ अठहत्तर में) ललिताजी जीवित थीं। यही नहीं, कुछ समय पहले प्रकाशित एक अन्य अंग्रेजी पुस्तक में लेखक पत्रकार कुलदीप नैयर ने भी, जो उस समय ताशकन्द में शास्त्रीजी के साथ गये थे, इस घटना चक्र पर विस्तार से प्रकाश डाला है। बीते वर्ष जुलाई 2012 में शास्त्रीजी के तीसरे पुत्र सुनील शास्त्री ने भी भारत सरकार से इस रहस्य पर से पर्दा हटाने की मांग की थी।

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