24 लाख सालाना की नौकरी छोड़कर करने लगे खेती, किसानों को भी दिया रोज़गार 

Mohit AsthanaMohit Asthana   11 May 2017 3:09 PM GMT

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24 लाख सालाना की नौकरी छोड़कर करने लगे खेती,  किसानों को भी दिया रोज़गार सचिन काले साथ में पत्नी कल्याणी (फोटो साभार - बेस्ट बाय डॉट इन)

लखनऊ। पढ़ाई पूरी करने के बाद लोगों का पहला लक्ष्य यही होता है कि बड़ी कंपनी में नाैकरी की जाए, अच्छी सैलरी मिले, लेकिन एक व्यक्ति ऐसा भी है जो 24 लाख सालाना की नौकरी छोड़कर खेती करने लगा आैर अब वो खेती से 2 करोड़ सालाना कमा रहा है।

हम बात कर रहे हैं मेधपुर जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के सचिन काले की जिन्होंने गुडगाँव की कम्पनी में नौकरी छोड़कर खेती किसानी करने का फैसला किया। सचिन उन युवाओं के लिये भी मिसाल हैं जो खेती किसानी छोड़कर नौकरी की तलाश में शहर की तरफ रूख कर रहे है। सचिन ने कांट्रेक्ट पर खेती करने के बारे में जानकारी हासिल करने के बाद 2014 में 'इनोवेटिव एग्रीलाइफ सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड' नाम की कंपनी शुरू कर दी। ये कंपनी किसानों को खेती करने में मदद करती है। किसानों को खेती करने में कोई परेशानी न हो इसके लिये उन्होंने सलाहकारों को नौकरी पर रखा और उन्हें ट्रेनिंग देकर अपना बिजनेस बढ़ाना शुरू किया।

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एक वेबसाइट योरस्टोरी के मुताबिक हर माता-पिता की तरह सचिन के परिवार वाले चाहते थे कि उनका बेटा इजीनियर बने । परिवार वालों का सपना पूरा करने के लिये साल 2000 में नागपुर के इंजिनियरिंग कॉलेज से मकैनिकल इंजिनियरिंग में बीटेक किया। बाद में सचिन ने फाइनेंस में एमबीए भी किया। इतनी शिक्षा लेने के बाद सचिन को एक पावर प्लांट में नौकरी मिल गई।

अपनी मेहनत के दम पर धीर-धीरे सचिन सफलता के पायदान पर चढ़ने लगे। सचिन शुरू से ही पढ़ने में अव्वल रहे यही कारण था कि नौकरी करते-करते सचिन ने लॉ की पढ़ाई भी पूरी कर ली। 2007 में उन्होंने डेवलपमेंटल इकनॉमिक्स में पीएचडी में एडमिशन ले लिया। पीएचडी करते वक्त ही उन्हें ये अहसास हुआ कि जॉब से बेहतर है कि खुद का बिजनेस शुरू किया जाये।

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सचिन उन दिनों ये सोच ही रहे थे कि कौन सा बिजनेस शुरू किया जाये तभी उनको अपने दादा जी की याद आई। उनके दादा सरकारी नौकरी करते थे और रिटायर्मेंट के बाद उन्होंने खेती करनी शुरू कर दी थी। उस वक्त सचिन को अपने दादा जी के वो शब्द याद आये जब उन्होंने कहा था कि इन्सान किसी भी चीज के बिना रह सकता है लेकिन अन्न के बिना नहीं रह सकता।

हालांकि सचिन के पास 25 बीघे खेत था लेकिन सचिन इस बात से बिल्कुल अंजान थे कि ऐसी कौन सी फसल करी जाये जिससे अच्छा खासा मुनाफा हो। कुछ दिन खेती करने के बाद सचिन को महसूस हुआ कि सबसे बड़ी समस्या मजदूरों की है। उस समय बिलासपुर के मजदूर पैसा कमाने के लिये शहर की ओर पलायन कर रहे थे। सचिन ने सोच कि अगर उतना पैसा वो इन मजदूरों को यहीं पर देंगे तो ये मजदूर बाहर नहीं जायेंगे और इस तरह से उनका काम भी चल जायेगा और मजदूरों का भी।

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इतना ही नहीं सचिन ने मजदूरों के साथ-साथ अपने गाँव के किसानों का भी भला सोचना शुरू किया। उन्होंने किसानों की जमीन किराये पर ली और किसानों के बताए तरीके से खेती कराने लगे। काम नया था जाहिर सी बात है मुश्किलें तो आनी ही थी और इस परेशानी के चलते सचिन को अपना 15 साल का पीएफ तुड़वाना पड़ गया। हालाकि सचिन के दिमाग में ये बात भी थी कि अगर उनका ये बिजनेस फेल हो गया तो आप्शन में जॉब तो है ही । लेकिन सचिन की मेहनत रंग लाई और खेती में उन्हें सफलता हासिल हुई।

क्या है कॉन्ट्रैक्ट खेती?

कॉन्ट्रैक्ट खेती में किसान को एक भी पैसा नहीं खर्च करना पड़ता। खाद बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के जिम्मे होता है। कॉन्ट्रैक्टर ही उसे खेती के गुर बताता है। फसल का दाम पहले से निर्धारित होता है, उसी दाम पर किसान अपनी फसल कॉन्ट्रैक्टर को बेच देता है और यदि बाजार में फसल का दाम ज्यादा होता है तो किसान को प्रॉफिट में भी हिस्सा मिलता है। किसी भी हालत में किसान का नुकसान नहीं होता है।

सचिन ने इसके साथ ही अपने 25 बीघे वाले खेतों में धान और सब्जी की खेती करनी शुरू कर दी। उससे भी उन्हें फायदा होने लगा। सचिन को देखकर बाकी किसान भी आकर्षित हुए और अपनी खेती में उन्हें पार्टनर बनाने लगे।

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आज सचिन की कंपनी लगभग 137 किसानों की 200 से ज्यादा एकड़ जमीन पर खेती करती है और साल में लगभग 2 करोड़ का टर्नओवर करती है। सचिन अगर चाहते तो किसानों के खेत खुद खरीद सकते थे, लेकिन उनका मानना था कि इससे किसान मर जायेगा। सचिन ने अपनी पत्नी कल्याणी को भी अपने बिजनेस में शामिल कर लिया। मास कम्यूनिकेशन में मास्टर्स कल्याणी अब कंपनी के फिनेंन्शियल हिस्से को मैनेज करती हैं। सचिन का सपना अभी और बड़ा है। वो चाहते हैं कि एक दिन उनकी कंपनी बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट हो जाए।

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