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पति को कोरोना था, घर में अकेले बच्चों को बहन के यहां भेज कोविड अस्पताल में ड्यूटी निभाती रही नर्स

कोरोना की इस महामारी में स्वास्थ्य कर्मियों ने जो काम किया है, वो किसी मिसाल से कम नहीं है। कुछ डॉक्टर और नर्सिंग स्टॉफ तो उदाहरण बन गए हैं। ऐसी ही एक स्वास्थ्य कर्मी हैं यूपी की स्नेहा सिंह। सरकारी अस्पताल में नर्स स्नेहा के परिवार पर आपदा आई लेकिन वो कोविड में अपनी ड्यूटी से पीछे नहीं हटीं।
COVID19

12 घंटे की शिफ्ट में कोविड पॉजिटिव मरीजों की देखभाल करना स्टाफ नर्स स्नेह सिंह को परेशान नहीं करता है। “यह मेरा कर्तव्य है, लेकिन महामारी के एक साल के दौरान जब भी मैं घर वापस आई और मैं अपनी ओर बाहें फैलाकर आती मेरी छोटी बेटी को गले नहीं लगा पाई, यह काफी तकलीफ भरा रहा” ,32 वर्षीय नर्स स्नेह ने नम आंखों के साथ गांव कनेक्शन को बताया।

स्नेह बताती हैं कि महामारी के बाद से उन्होंने पिछले एक साल में छुट्टी नहीं ली है, जबकि एक हेल्थ वर्कर  के रूप में कोविड-19 रोगियों के साथ काम करना एक कठिन चुनौती रही है। इससे उसका निजी जीवन भी प्रभावित हुआ है।

स्नेह, लखनऊ से लगभग 80 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के बिसवां में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में सात साल से नर्स हैं, लेकिन जब पिछले साल कोविड-19 महामारी फैली, तो पूरे उत्तर प्रदेश में नर्सों को एल 1 और एल 2 अस्पतालों में एक बार में 14 दिन बिताने पड़े। एल 1 अस्पताल कम गंभीर रूप से प्रभावित रोगियों का इलाज करते हैं, जबकि एल2 अस्पताल में  गंभीर मामलों का इलाज होता है।

स्नेह पिछले साल भी एक एल 2 अस्पताल में ड्यूटी पर थीं और 2021 में एक बार फिर उनकी ड्यूटी लगी। उन्होंने बिसवां से लगभग 26 किलोमीटर दूर खैराबाद के एक एल 2 अस्पताल में अपनी दो सप्ताह की ड्यूटी पूरी की और बिसवां सीएचसी वापस आ गई हैं।

गांव कनेक्शन से बात करते हुए स्नेह सिंह ने कहा, “जब मैं एल 2 अस्पताल में थी, तो यह काफी मुश्किल था। मुझे बिसवां में अपने घर से खैराबाद के एल 2 कोविड अस्पताल तक जाने के लिए हर दिन बस से पच्चीस किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती थी।”

इतने लंबे सफर और अस्पताल में 12 घंटे की ड्यूटी ने मुझे थका दिया। उनके लिए सबसे बड़ा झटका था अपनी डेढ़ साल की बेटी और उसके 7 साल के बेटे को पति के साथ घर पर छोड़ना। उन्हें हमेशा चिंता रहती थी कि कहीं वायरस उनके जरिए उनके परिवार को संक्रमित न कर दे।

और वायरस ने उनके घरवालों पर प्रहार किया

उनका सबसे बड़ा डर सच में बदल गया। जब वह सीएचसी में ड्यूटी पर थी, तब लगभग 50 किलोमीटर दूर लखीमपुर खीरी जिले में रह रहे उनके पिता की पिछले महीने अप्रैल में कोविड-19 से मौत हो गई थी। स्नेह ने याद करते हुए कहा, “मैं तुरंत अपनी मां को सांत्वना देने और उनके साथ रहने के लिए घर पहुंची।”

अपने परिवार के साथ स्टॉफ नर्स स्नेह सिंह। फोटो: अरेंजमेंट

स्नेह अभी अपने पिता को खोने से गम से उबर ही रहीं थी कि उनके पति रवि सिंह भी इस महीने की शुरुआत में कोविड पॉजिटिव हो गए। एहतियात के तौर पर उन्होंने तुरंत अपने बच्चों को अपनी बहन के पास भेज दिया। फिलहाल उनके पति अब ठीक हो गए हैं।

अपने घर की दिक्कतों के बीच उन्होंने यह तय किया कि वह हर एक दिन ड्यूटी के लिए रिपोर्ट करेंगी और एल 2 अस्पताल में अपनी 14-दिन की ड्यूटी भी पूरी करेंगी।

एल 2 अस्पताल में अपनी ड्यूटी के दिनों को चुनौतीपूर्ण बताते हुए उन्होंने कहा, “हर शिफ्ट 12 घंटे की होती थी और चालीस कोविड रोगियों की देखभाल के लिए केवल दो नर्सें थीं। हमें और मैनपावर की जरूरत थी, बावजूद इसके हमने खुशी-खुशी अपना काम किया।”

हालांकि स्नेह इस बात से खुश हैं कि उन्होंने मैनपावर की कमी के बारे में उच्च अधिकारियों को सूचित किया और अब हर शिफ्ट में एक अतिरिक्त नर्स रहती है। उन्होंने कहा, “शिफ्ट में 2 की जगह 3 नर्स होने से बहुत मदद मिलती है।”

स्नेह सिंह हर दिन एल2 अस्पताल में 14 दिनों की ड्यूटी करती हैं।

स्नेह के की सैलरी को 26,000 रुपये प्रति माह तक पहुंचने में सात साल लग गए। वह घर के किराए के रूप में प्रति माह 5,500 रुपए देती हैं। जब वह खैराबाद में कोविड ड्यूटी पर थीं, तो उनका परिवहन का खर्च रोजाना का 100 रुपये था, जिसका भुगतान उन्होंने अपनी जेब से किया। इसके अलावा बिजली बिल, मेडिकल खर्च आदि भी था।

आखिर में स्नेह सिंह ने कहा, “एक नर्स का काम कड़ी मेहनत व करुणा की मांग करता है और हम अपने जीवन को इसमें लगाते हैं। पिछले साल जब मैं 14 दिन की कोविड ड्यूटी पर थी तो मुझे अस्पताल में चाय और बिस्किट मिलते थे। इस साल हमें कुछ नहीं मिला।”

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