देश की कमजोर इमारतों में मौत के मुंह में झूल रहीं जिंदगियां

Kushal MishraKushal Mishra   30 Dec 2017 6:51 PM GMT

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देश की कमजोर इमारतों में मौत के मुंह में झूल रहीं जिंदगियांफोटो साभार: इंटरनेट

वह तारीख थी 31 अगस्त, 2017, दक्षिण मुंबई के भायखाला इलाके में एक पांच मंजिला इमारत के ढह जाने से 22 लोगों की मौत हो गई थी। दूसरी तारीख 1 फरवरी 2017, जब कानपुर के जाजमऊ में निर्माणाधीन छह मंजिला इमारत गिरने से 6 मजदूरों की मौत हो गई थी और 50 से ज्यादा मजदूरों दबे रह गए थे। देश के 2 राज्यों के सिर्फ ये दो उदाहरण बताते हैं कि अपने देश में इमारतों की कमजोर नींव में कैसे जिंदगियां यूं ही बिखर जाती हैं।

यह आंकड़े आपको जरूर हैरान कर देंगे

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने देश की इमारतों के हालातों की जो रिपोर्ट बयां की, वह वास्तव में हैरान करने वाली है। बात अगर साल 2015 की करें तो पूरे देश में इस साल 1830 इमारतें ढह गईं। इन इमारतों के ढहने में 1885 लोगों ने अपनी जान गंवा दी, जबकि 295 लोग घायल हुए। इससे पहले वर्ष 2014 में ढहने वाली इमारतों की संख्या 1833 रही और इन हादसों में 1821 लोगों ने जान गंवाई और 580 लोग घायल हुए। देश में ये आंकड़ें बयां करते हैं कि अपने देश में इमारतों की नींव कितनी कमजोर हैं। 2013 में तो यह आंकड़ा कहीं ज्यादा था। पूरे देश में 3074 इमारतें ढह गई थीं, जिसमें 2832 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें घायलों की तादाद 855 थी।

ढहने वाली इमारतों की संख्या

साल /ढहने वाली इमारतों की संख्या /हादसों में गई जानें /घायलों की तादाद

2013 3074 2832 855

2014 1833 1821 580

2015 1830 1885 295

जो इमारतें खुद ही ढह गईं

एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में देश में राज्यों के अनुसार खुद ही ढह जानी इमारतों की तस्वीर भी बयां की। अगर साल 2015 की बात करें तो देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा सबसे ज्यादा रहा, कुल 353 इमारतें इस राज्य में खुद ही ढह गईं। इसके बाद 218 इमारतें मध्य प्रदेश में और 164 इमारतें गुजरात में अपने आप ही ढह गईं।

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क्या कहते हैं अधिकारी

उत्तर प्रदेश की राजधानी के लखनऊ विकास प्राधिकरण के संयुक्त सचिव धीरेंद्र मोहन कटियार ‘गाँव कनेक्शन’ को बताते हैं, “ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए जरूरी है कि इमारतों को बनने के बाद, चाहे वें सरकारी हों या निजी क्षेत्र की, सुरक्षा मानकों को देखने के साथ-साथ इमारत बनने के तीन सालों तक समय-समय पर विभाग की ओर से निरीक्षण किया जाए। अगर समय-समय पर निरीक्षण होगा और तय मानक पूरे न होने पर सख्त से सख्त कार्रवाई होगी तो निश्चित रूप से इन स्थितियों पर काबू पाया जा सकेगा।"

सवाल यह है कि क्या हमारे घर सुरक्षित हैं?

इन इमारतों के ढहने में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि हमारे घर कितने सुरक्षित हैं। अगर हम रिहाइशी इमारतों की बात करें तो साल 2015 में 984 रिहाइशी इमारतें हादसों का शिकार हुईं। सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 206 रिहाइशी इमारतें हादसों का शिकार हुईं। इसी तरह मध्य प्रदेश में 108 और गुजरात में भी 108 रिहाइशी इमारतें हादसों का शिकार हुईं। मगर सिर्फ एक साल में देश में 984 रिहाइशी इमारतों में ये हादसे मजबूत नींव पर बड़ा सवाल जरूर खड़ा करती हैं।

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जब नेपाल में भूकंप से आई थी नौकरशाहों की इमारत के पिलर में दरार

हाल में नेपाल में आए भूकंप के झटकों का सीधा असर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी देखने को मिला था, जब शहर के गोमतीनगर इलाके में स्थित सिविल सर्विस इंस्टीट्यूट के पिलर में दरार आ गई थी। खास वजह यह थी कि इस इमारत में उच्च पद में आसीन नौकरशाहों के 110 घर और फ्लैट बने हैं। यह हाल तब था जब इस इमारत का निर्माण 2005 में हुआ था।

क्या हमारे कार्यालय सुरक्षित हैं?

अगर हम कार्यालयों की बात करें यानि व्यावसायिक इमारतों की तो इसी साल 41 व्यावसायिक इमारतें हादसों का शिकार हुईं हैं। मध्य प्रदेश में यह आंकड़ा ज्यादा रहा, इस राज्य में 17 व्यावसायिक इमारतें हादसे का शिकार हुईं, जबकि इसके बाद उत्तर प्रदेश राज्य का नंबर रहा, जहां 15 ऐसी इमारतें हादसे का शिकार हुईं। वहीं गुजरात में यह आंकड़ा 4 रहा।

दांव पर लगी है जान

व्यावसायिक और रिहायशी इमारतों के अलावा, साल 2015 में 667 ऐसी और अन्य इमारतें हैं, जो हादसों का शिकार बनीं। उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा ज्यादा रहा। अगर हम तीन मुख्य राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश में 125 इमारतें, महाराष्ट्र में 104 और मध्य प्रदेश में 87 इमारतें हादसों का शिकार बनीं।

बात अब इमारतों की नहीं, बांध और पुलों की भी

इमारतों से अलग अगर हम बात देश में बांध और पुलों की बात करें तो यह आंकड़े भी हैरान करने वाले रहे। सिर्फ साल 2015 में ही 22 पुल यानि ओवरब्रिज हादसे का शिकार हुए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा हादसों का शिकार हुए पुल मध्य प्रदेश में रहे, जिनकी संख्या 6 तक पहुंची। इतना ही नहीं, बांध की बात करें तो इसी साल 2 बांध उत्तर प्रदेश में और 2 ही बांध बिहार में हादसों का शिकार हुए।

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100 साल से ज्यादा पुराने निर्माण को रखरखाव की जरुरत

देश में ऐसी कई इमारतें, पुल, बांध और सुरंग हैं, जिनको रखरखाव की जरुरत है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने आकलन के आधार पर जानकारी दी कि देश में 23 राष्ट्रीय राजमार्ग पुल और सुरंग 100 साल से भी ज्यादा पुराने हो चुके हैं। इन पुल और सुरंगो में 17 को बड़े स्तर पर रखरखाव की जरुरत है।

तब उत्तर प्रदेश में 2600 इमारतें की गई थीं चिन्हित

गुजरात में 2001 जब भयंकर भूकंप आया तो भूकंप के झटके न झेल पाने वाली इमारतों का चिन्हित किया गया। इसके तहत उत्तर प्रदेश की इमारतों का भी सर्वेक्षण किया गया, जिसमें सामने आया कि उत्तर प्रदेश में 2600 इमारतें भूकंप के झटके झेल पाने में सक्षम नहीं हैं। इन इमारतों में सबसे ज्यादा इमारतें उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में रहीं, जिनकी संख्या 637 रही। जबकि दूसरे नंबर में गाजियाबाद शहर रहा, जहां 415 इमारतें भूकंप न झेल पाने में सक्षम नहीं रहीं।

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कमजोर नींव के क्या रहे मुख्य बड़े कारण

एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में देश में कमजोर नींव पर निर्माण के ढहने और हादसों के शिकार होने के तीन बड़े मुख्य कारण भी गिनाए। इनमें सबसे बड़ा कारण रहा, निर्माण में शर्तों और कानून का पालन नहीं करना। जबकि दूसरा खराब गुणवत्ता की निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करना रहा और तीसरा पुरानी इमारतों के रखरखाव का ध्यान न रखे जाने के कारण गिनाएं।

निजी बिल्डरों की मनमानी पर अंकुश जरूरी

एलडीए के संयुक्त सचिव धीरेंद्र मोहन कटियार आगे बताते हैं, “कई ऐसे बिल्डर सामने आते हैं, जो प्राधिकरण से लाइसेंस लेकर या नक्शा पास कराकर निर्माण करने लगते हैं और सुरक्षा मानकों के साथ अनदेखी करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि विभाग ऐसे बिल्डरों के निर्माण पर पूरी तरह से नजर रखे कि इमारत बनने के बाद कम से कम 90 प्रतिशत सुरक्षा मानकों को पूरा किया गया है कि नहीं। और अगर ऐसा नहीं है तो बिल्डर पर कार्रवाई होनी चाहिए। सिर्फ विभाग ही नहीं, यह जिम्मेदारी बिल्डिंग वेलफेयर एसोसिएशन की भी बनती हैं।“

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