Lockdown 2 : सरकार तक नहीं पहुँच पा रही इन प्रवासी मजदूरों की आवाज

नई दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, गुजरात, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में फँसे लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए लॉकडाउन के दूसरे चरण ने इनकी समस्याएं कई गुना बढ़ा दी हैं।

Kushal MishraKushal Mishra   20 April 2020 11:32 AM GMT

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Lockdown 2 : सरकार तक नहीं पहुँच पा रही इन प्रवासी मजदूरों की आवाजदूसरे चरण के लॉकडाउन में सरकार से मदद की आस लगा रहे हैं प्रवासी मजदूर। फोटो साभार : ट्विटर

लॉकडाउन के 19 दिन बढ़ने के बाद दूसरे राज्यों में फँसे प्रवासी मजदूर अब पूरी तरह टूट चुके हैं। सरकारी मदद अभी भी इनसे कोसों दूर है। इनके हाथों में पैसा नहीं है, खाने के लिए राशन नहीं बचा है। हाल में मुंबई और सूरत में हुईं घटनाएँ उदाहरण हैं कि वहां फंसे प्रवासी मजदूर अब किसी भी तरह अपने घर जाने के लिए बेताब हैं।

"घर में राशन नहीं है, ऊपर से बीमारी और आफत बन गई है, डॉक्टर ऑपरेशन के लिए बोल रहे हैं, दवाई-पानी में ही अब तक 600 रुपया खर्च हो गया है, बच्चों के खाने-पीने का इंतजाम करें या दवाई कराएँ," हरियाणा के फरीदाबाद में फँसी प्रवासी मजदूर नूतन देवी कहती हैं।

गुजरात के सूरत में फँसे प्रवासी मजदूर सुरेश कुमार भी कम परेशान नहीं हैं। वे कहते हैं, "मकान मालिक किराया मांग रहा है, दुकानदार राशन का पैसा मांग रहा है, पैसा होगा तो देंगे न, मेरा रोना नहीं, सबका रोना है, कोई कितनी मदद करेगा, हम लोग भूखों मरेंगे, हमें पता है।"

लॉकडाउन के दूसरे चरण में दूसरे राज्यों में फँसे इन प्रवासी मजदूरों पर आई एक स्वैछिक समूह स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (SWAN) की रिपोर्ट इन मजदूरों की और भी भयावह तस्वीर पेश करती है। इसमें देश के अलग-अलग हिस्सों में फँसे 11,159 मजदूरों से संपर्क किया गया। रिपोर्ट के मुताबिक 96 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों को सरकार से राशन नहीं मिल सका है, जबकि 70 प्रतिशत ऐसे मजदूर हैं जो सिर्फ डिब्बाबंद भोजन पर ही आश्रित थे यानी उन्हें पका हुआ भोजन भी नहीं मिल सका।

नई दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, गुजरात, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार जैसे राज्यों में फँसे ऐसे लाखों मजदूरों के लिए लॉकडाउन के दूसरे चरण ने इनकी समस्याएं कई गुना बढ़ा दी हैं। 'गाँव कनेक्शन' ने लॉकडाउन के दूसरे चरण में इन प्रवासी मजदूरों से बात करने की कोशिश की। हालात यह हैं कि ये मजदूर राशन और नकदी की कमी से बुरी तरह जूझ रहे हैं।

दूसरे लॉकडाउन का एक-एक दिन इन मजदूरों के लिए पड़ रहा भारी। फोटो साभार : ट्विटर

हरियाणा के फरीदाबाद में एक कपड़े के कारखाने में मजदूरी करने वाली नूतन देवी अपने पति बैजूदास और तीन बच्चों के साथ लॉकडाउन में फँस चुकी हैं। नूतन के फेफड़ों का ऑपरेशन होना है मगर वे अपने पति और बच्चों के साथ बिहार के मुज्जफ्फरपुर में अपने गाँव वापस जाना चाहती हैं।

नूतन बताती हैं, "जो पैसा था वो दवाई और राशन में खर्च हो गया, अब हमारे पास इतना भी पैसा नहीं कि दोबारा राशन ले सकें, ऊपर से मकान मालिक किराया मांग रहा है, मगर अभी पैसा कहाँ से दें, जो पैसा था सब खत्म हो गया।"

नूतन की तरह कपड़े के कारखाने में काम करने वाली अनीता देवी भी हरियाणा में अपने पति फूलन सहनी और पांच बच्चों के साथ गुरुग्राम में फँसी हैं। उनके पति निर्माण श्रमिक हैं मगर होली के बाद से उनको भी कोई काम नहीं मिला है। अनीता के पास 3000 रुपए थे, मगर वो पहले ही लॉकडाउन में खत्म हो गए।

अनीता बताती हैं, "अब पैसा नहीं बचा है, किसी तरह दुकान से चूरा लेकर आये, वही दो दिन तक हमारे बच्चों ने खाया, थोड़ा पैसा उधार मिला तो चावल लेकर आये, मगर वो भी अब चार किलो बचा है और कितने दिन चलेगा, कुछ समझ नहीं आता।"

दूसरे लॉकडाउन का एक-एक दिन इन मजदूरों के लिए भारी पड़ रहा है। इसके बावजूद राशन और रुपयों की कमी से जूझ रहे इन प्रवासी मजदूरों के पास सरकारी मदद अब तक नहीं पहुँच सकी है।

केंद्र सरकार की ओर से लॉकडाउन में मजदूरों को हरसंभव मदद पहुँचाने का दावा किया गया है। श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन के बाद देश में करीब 22,567 सरकारी राहत कैम्प बनाए गए हैं, जहां करीब 10.03 लाख प्रवासी मजदूरों को मदद दी जा रही है।

इसके अलावा करीब 15 लाख मजदूरों को उनके नियोक्ता भोजन और ठहरने के लिए जगह दे रहे हैं। जबकि 84 लाख से अधिक मजदूरों को एनजीओ के द्वारा खाने और रहने का ठिकाना मिल रहा है। सरकार ने मजदूरों की शिकायतों और जरूरतों को सुनने और उन्हें हल करने के लिए भी पूरे देश में 20 कंट्रोल रूम बनाए हैं, मगर मजदूरों के लिए ये मदद नाकाफी साबित हो रही है।

SWAN ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि दो हफ्ते के लॉकडाउन के बाद सिर्फ एक प्रतिशत प्रवासी मजदूरों को ही सरकारी राशन मिला है, जबकि तीसरे सप्ताह में सिर्फ चार प्रतिशत मजदूरों तक ही सरकारी राशन पहुंच सका।

हिमाचल प्रदेश के शिमला में अपने छह साथी श्रमिकों के साथ फँसे आरिफ बताते हैं, "सरकार से हमें अब तक एक रुपए की भी मदद नहीं मिली है, राशन भी हम लोगों को नहीं मिला। आस-पास के लोगों से गुजारिश की तो वही हमें खिला रहे हैं, मगर कब तक, दूसरे लॉकडाउन ने हमारी परेशानियाँ बढ़ा दी हैं, हमारे पास सिर्फ 400 रुपए बचे हैं, अगर कोई बीमार पड़ गया तो हमारे पास दवाई खरीदने का भी पैसा नहीं है।"

शिमला से 2,500 किलोमीटर दूर कर्नाटक राज्य के बंगलुरू में भी फँसे मजदूरों को भी किसी तरह की सरकारी मदद नहीं मिल सकी है। बंगलुरु के केंचानाहल्ली में अपने परिवार के साथ फँसे प्रवासी मजदूर एसके करीम बताते हैं, "हमारे पड़ोस में एक बार सरकारी राशन मिलने को हुआ मगर भीड़ की वजह से सब बंद कर दिया गया, हम लोगों को भी कुछ नहीं मिला।"

करीम बताते हैं, "जो दुकान से उधार लेते थे वो भी अब पैसा मांगता है, अब लॉकडाउन बढ़ने से कोई कितने दिन उधार खिलायेगा, हाथ में पैसा नहीं है, आस-पास के लोग भी मदद नहीं कर रहे, दो दिन का ही राशन बचा है अगर जल्द ही कोई मदद नहीं मिली तो हम लोग भूखों मरेंगे।"

इतना ही नहीं, SWAN की रिपोर्ट में सामने आया कि केंद्र सरकार के निर्देश के बावजूद 89 प्रतिशत मजदूरों को उनके नियोक्ताओं द्वारा लॉकडाउन के दौरान कोई भुगतान नहीं किया गया।

मुंबई के धारावी में एक कपड़े के कारखाने में काम करने वाले 20 प्रवासी मजदूर बुरी तरह फँसे हुए हैं। इनमें से एक मजदूर मेराज अंसारी बताते हैं, "हम मजदूरों को लॉकडाउन में कोई पैसा नहीं मिला, न ही कोई सरकारी मदद मिली, हमारे पास चूल्हा-चकला भी नहीं है जो बना-खा सकें, बाहर ही खाना खाकर गुजारा करते थे, हम तो पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हैं, अगर दूसरों ने खाना दे दिया तो खा लिया, वर्ना हमारे पास भूखे पेट सोने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है।"

झारखण्ड के गिरिडीह जिले के रहने वाले मेराज बताते हैं, "कुछ दिन पास की एक गली में कुछ लोगों ने खाना बांटा था, मगर अब कभी-कभी ही बांटा जाता है, हम लोग बहुत परेशान हैं, न हमारे पास पैसा है, न ही हमारे पास खाना है, हमें मदद चाहिए।"

अब हिम्मत नहीं बची, राशन में एक-दो दिन का चावल-दाल बचा है, दवाई-पानी का छोड़ दीजिये, हम बीवी-बच्चे वाले मजदूरों के लिए सुबह बाथरूम जाने का भी पैसा नहीं है, कोई मदद नहीं कर रहा, हमारे पास बिल्कुल पैसा नहीं बचा है।

मुंबई के शिवड़ी में फँसे प्रवासी मजदूर शब्बीर

रोज कमाकर अपना पेट भरने वाले ऐसे कई मजदूरों को अभी नहीं पहुंची सरकारी मदद। फोटो साभार : ट्विटर

हालाँकि राज्य सरकारों ने दूसरे राज्यों में फँसे मजदूरों को मदद पहुँचाने के लिए अलग-अलग स्तर पर प्रयास किये हैं, मगर ये प्रयास भी इन मजदूरों के लिए नाकाफी साबित हो रहे हैं। इनमें से एक झारखण्ड सरकार की ओर से बाहर फँसे मजदूरों के लिए सहायता ऐप लांच किया है जिसमें रजिस्टर करने पर सरकार 2,000 रुपए की आर्थिक मदद मुहैय्या करा रही है।

इस बारे में मुंबई के एंटोप हिल में फँसे एक और मजदूर रियाजुल अंसारी बताते हैं, "हमने ऐप डाउनलोड किया मगर हमारा रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, झारखण्ड का अकाउंट नंबर मांग रहे हैं, मोबाइल नंबर भी डाल रहे हैं तो वो भी गलत बता रहा है, सबमिट ही नहीं हो रहा है, कुछ लोग बड़ी मुश्किल से पूरा कर पाए हैं, मगर अभी पैसा नहीं आया है।"

रियाजुल कहते हैं, "हम लोग बस यही चाहते हैं कि हम लोगों को हमारे घर पहुंचा दिया जाए, हम और इस पिंजरे में नहीं रह सकते, सरकार हमारी मदद करे।"

झारखण्ड से लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली बताते हैं, "सरकार ने लॉकडाउन में सहायता ऐप जरूर लांच किया है मगर कई मजदूर ऐसे हैं जिनके पास एंड्राइड मोबाइल नहीं है, वो कैसे पूरा करेंगे। उन्हें कोई सहायता नहीं मिल रही है। कई जगह मजदूर कह रहे हैं कि वे ऐप में रजिस्टर नहीं कर पा रहे हैं, ऐसे में यह सरकारी सहायता काफी नहीं होगी।"

वहीं बिहार सरकार की ओर से भी दूसरे राज्यों में फँसे मजदूरों को एक-एक हज़ार रुपए की सहायता राशि भेजने की घोषणा की गयी। मगर बड़ी संख्या में मजदूरों को यह धनराशि नहीं मिल सकी है।

नई दिल्ली के नरेला इलाके में बिहार के कई मजदूर फँसे हुए हैं। यहाँ एक कमरे में छह मजदूरों के साथ रह रहे अजय दास बताते हैं, "यहाँ हमारे साथ करीब 50 मजदूर और फँसे हुए हैं। स्थिति यह है कि हम लोगों को पानी भी खरीद कर पीना पड़ रहा है, कई मजदूर अपने परिवारों के साथ फँसे हैं, उनके लिए पानी की व्यवस्था करना भी मुश्किल हो रहा है।"

अजय बताते हैं, "बिहार सरकार से हज़ार रुपए मदद मिलने की बात हुई तो यहाँ जिनके पास बड़ा फ़ोन (स्मार्टफ़ोन) था, उन्होंने कोशिश की तो बड़ी मुश्किल से इतने लोगों में छह लोगों को हज़ार-हज़ार रुपए मिले। कई लोग नहीं कर पाए क्योंकि उनके पास फ़ोन नहीं था या बिहार में बैंक खाता नहीं था, कई लोग अभी भी सिर्फ पीने के पानी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, उनके पास बिल्कुल पैसा नहीं है।"

ऐसी परिस्थितियों में इन प्रवासी मजदूरों के सामने घर वापसी का कोई विकल्प नहीं है। भूख और पैसों की कमी से बुरी तरह जूझ रहे ये प्रवासी मजदूर सरकार से घर वापसी के लिए मदद की गुहार लगा रहे हैं। मुंबई और सूरत में हुई घटनाओं के बाद प्रवासी मजदूरों को लेकर सियासी घमासान और तेज हो गया है।

कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गाँधी ने ट्विटर पर लिखा, "आख़िर हर बार हर विपत्ति गरीबों और मजदूरों पर ही क्यों टूटती है? उनकी स्थिति को ध्यान में रखकर फैसले क्यों नहीं लिए जाते? उन्हें भगवान भरोसे क्यों छोड़ दिया जाता है?"

उन्होंने लिखा, "लॉकडाउन के दौरान रेलवे टिकटों की बुकिंग क्यों जारी थी? स्पेशल ट्रेनों का इंतजाम क्यों नहीं किया गया? उनके पैसे खत्म हो रहे हैं, स्टॉक का राशन खत्म हो रहा है, वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं-घर गाँव जाना चाहते हैं। इसकी व्यवस्था होनी चाहिए थी।"

प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मदद की अपील करते हुए कहा, "अभी भी सही प्लानिंग के साथ इनकी मदद की व्यवस्था की जा सकती है। मजदूर इस देश की रीढ़ की हड्डी हैं। भगवान के लिए इनकी मदद कीजिए।"

वहीं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्विटर पर लिखा, "मुंबई में हजारों लोगों के सड़कों पर आकर घर लौटने की माँग को देखते हुए उप्र की सरकार तुरंत नोडल अधिकारी नियुक्त करे व केंद्र के साथ मिलकर महाराष्ट्र व अन्य राज्यों में फँसे प्रदेश के लोगों को निकाले। जब अमीरों को जहाज से विदेशों से ला सकते हैं, तो गरीबों को ट्रेनों से क्यों नहीं।"

दूसरी और इन प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए 18 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी है। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की ओर से दाखिल की गयी है। इस याचिका में कहा गया है कि देश भर में फँसे प्रवासी मजदूरों को कोविड-19 की जांच के बाद उनके घर जाने की अनुमति दी जाये।



     

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