Lockdown 3.0 : 'आप सोचिए कितना बुरा हाल है, कुछ लोग तो खाना देखकर रो पड़ते हैं'

लॉकडाउन के पहले दिन से मोनिका जिस गुड़गांव नागरिक एकता मंच के साथ काम कर रही हैं, इस मंच के जरिये आज गुड़गांव में हर रोज 32,900 मजदूरों तक पका हुआ खाना पहुँचाया जा रहा है।

Kushal MishraKushal Mishra   5 May 2020 3:07 PM GMT

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Lockdown 3.0 : आप सोचिए कितना बुरा हाल है, कुछ लोग तो खाना देखकर रो पड़ते हैंगुड़गांव के अंदरूनी इलाकों में फँसे मजदूरों तक खाना पहुंचाने की कोशिश कर रहे गुड़गांव नागरिक एकता मंच के लोग।

"आप सोचिए कितना बुरा हाल है, कुछ लोग तो खाना देखकर रो पड़ते हैं, कई फ़ोन आते हैं तो हम उनसे कहते हैं कि हम लोग राशन लेकर आ रहे हैं, तो वो फ़ोन पर ही रो पड़े, कल्पना नहीं की थी कि कभी ऐसे भी दिन देखने को मिलेंगे," फ़ोन पर यह बात कहते-कहते मोनिका अचानक शांत हो जाती हैं।

पेशे से समाजसेवी मोनिका अग्रवाल घुमंतू लोगों के अधिकारों के लिए काम करती हैं, मगर इन दिनों वह गुड़गांव में लॉकडाउन के दौरान फंसे रह गए प्रवासी मजदूरों तक राशन पहुंचाने का काम कर रही हैं।

मोनिका 'गुड़गांव नागरिक एकता मंच' से जुड़ी हुईं हैं और इस मंच से जुड़े कई लोग अलग-अलग टीम बनाकर लॉकडाउन में फंसे मजदूरों की मदद कर रहे हैं। मोनिका इसी में से एक डिलीवरी टीम में शामिल हैं। उनके पास हर रोज मदद मांग रहे मजदूरों की एक लिस्ट पहुंचती है। इस लिस्ट के अनुसार वह रोज तीन-चार गाड़ियों से 100 किट राशन की लेकर निकलती हैं।

मोनिका बताती हैं, "इस लिस्ट के अनुसार ही हमें मजदूरों को राशन देना होता है, एक-दो किट एक्स्ट्रा भी रखते हैं, मगर जहाँ भी जाते हैं, लोगों की भीड़ उमड़ती है। तब उनको मना भी करना पड़ता है, उनसे कहते हैं ये आपके लिए नहीं है, किसी और के लिए है। बहुत दिल दुखता है तब, हम मजदूरों की ही मदद के लिए निकले हुए हैं मगर ... रोज हमारे साथ ऐसा होता है।"

गुड़गांव में झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले मजदूरों को राशन बांटती मंच की टीम।

मोनिका कहती हैं, "हम उनसे कहते हैं कि हम बाद में आयेंगे, उनका नंबर लेने की कोशिश करते हैं, तो उनको अपना नंबर नहीं पता होता है, वो अपना फ़ोन देते हैं कि आप इसमें से नंबर निकाल लो, हम फ़ोन छूना नहीं चाहते तो हम कहते हैं कि हमारा नंबर ले लो, तो वो कहते हैं कि हमें नंबर सेव करना नहीं आता, मतलब बहुत सी दिक्कतें हैं।"

लॉकडाउन के पहले दिन से मोनिका जिस गुड़गांव नागरिक एकता मंच के साथ काम कर रही हैं, इस मंच के जरिये आज गुड़गांव में हर रोज 32,900 मजदूरों तक पका हुआ खाना पहुँचाया जा रहा है। यही नहीं इस मंच के जरिये मजदूरों को अब तक 15,000 से ज्यादा राशन की किट बांटी जा चुकी हैं। यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

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सेकंड लॉकडाउन में मजदूरों की स्थिति के एक सवाल पर मोनिका कहती हैं, "लॉकडाउन के पहले हफ्ते में सन्नाटा था, मगर सेकंड लॉकडाउन में तो राशन के लिए भीड़ बढ़ती गई। हमारे सामने मुश्किल थी कि हम कैसे पहचाने कि किसको राशन की ज्यादा जरूरत है और किसको इतनी नहीं, कई बार असल में राशन पाने वाला रह जाता।"

वो कहती हैं, "कई बार गलती से एक ही मजदूर को दो-दो बार राशन मिल जाता, और बाद में मालूम चलता कि वो लोग उस राशन को बेचकर बच्चों के लिए दूध खरीदते या फिर सिलेंडर में गैस भरवाते, उनके सामने बहुत तरह की समस्याएं थीं। तीसरे लॉकडाउन में स्थिति तो और भी बदतर हो गयी है।"

लॉकडाउन से मुश्किल में फंसे ऐसे मजदूरों तक पहुंच पाना इतना आसान नहीं था, इनको ढूढ़ने और इन तक मदद पहुंचाने के लिए गुड़गांव नागरिक एकता मंच से जुड़े करीब 125 लोग अभी भी अलग-अलग स्तर पर सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभा रहे हैं। इनमें से एक राहुल रॉय भी हैं।

राहुल बताते हैं, "लॉकडाउन की शुरुवात में हमने सिर्फ 500 किट राशन की मजदूरों को बांटी, लेकिन जल्द ही हमें मालूम चल गया कि इतना काफी नहीं है। मजदूरों की जानकारी सीधे हम तक नहीं पहुंच पा रही थी तो हमने व्यापार संगठनों और कई एनजीओ से संपर्क किया। उनके साथ हम व्हाट्सएप ग्रुप में जुड़े तो उनके जरिये हम ज्यादा मजदूरों तक पहुंच सकें।"

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राहुल बताते हैं, "धीरे-धीरे हमारे पास मदद के कॉल्स आना शुरू हो गईं। उसमें भी बड़ी समस्या सामने आई, जैसे किसी यूपी के मजदूर की मदद के लिए कॉल आयी तो वो सिर्फ अपनी दिक्कत बताता लेकिन वहां राशन लेकर जाते तो हमें बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों के मजदूर भी फंसे मिलते। इससे निपटने के लिए सबसे पहले हमने इन्फॉर्मेशन और वेरिफिकेशन की अलग टीम बनाई।"

यह टीम हर शाम एक लिस्ट बनाती है जिसमें मदद मांगने वाले मजदूरों का ब्यौरा होता। इसके अलावा बड़ी मात्रा में राशन एकत्र करने और राशन की किट तैयार कराने के लिए भी जगह चाहिए थी। इसके लिए गुड़गांव में उद्योग विहार और सेक्टर-38 में वेयर हाउस बनाए गए, जहां पैकेजिंग टीम का काम होलसेलर से राशन मंगाना और उसकी किट तैयार करना था। यहां से डिलीवरी टीम सुबह 11 बजे और शाम को 4 बजे लिस्ट के अनुसार राशन लेकर निकलती।


एक वक्त ऐसा भी आया जब मजदूरों तक राशन पहुँचाने के लिए गुड़गांव नागरिक एकता मंच से जुड़े इन लोगों को बड़े बजट की जरूरत थी। इसके लिए उन्होंने क्राउड फंडिंग वेबसाइट के जरिये लोगों से मजदूरों की आर्थिक मदद करने की अपील की। यह तरीका काम कर गया और बड़ी संख्या में लोग मदद के लिए आगे आये।

इस सबके बीच मदद मांग रहे मजदूरों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही थी। कई मजदूर ऐसे सामने आए जिनके पास खाना बनाने की व्यवस्था नहीं थी या फिर उनके यहां गैस सिलेंडर का खत्म हो चुका था और इतने पैसे नहीं थे कि वो सिलेंडर भरा सकें। उन मजदूरों को पका हुआ खाना उपलब्ध कराने की जरूरत थी।

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राहुल बताते हैं, "लोगों से मदद मिली तो हमने मजदूरों को पका हुआ खाना उपलब्ध कराने के लिए चार अप्रैल को अपना पहला किचन गुड़गांव के श्री राम स्कूल में शुरू किया। पहले दिन पांच हज़ार लोगों के लिए खाना बना मगर आज इस किचन से 12 हज़ार लोगों के लिए रोज खाना बन रहा है।"

"इसके बावजूद रोज बड़ी संख्या में नए मजदूर सामने आ रहे थे, पहले से जुड़े मजदूर तो थे ही, उनके लिए भी पके हुए भोजन की मांग बढ़ रही थी। ऐसे में हमने मल्लाखेड़ा गाँव और गुरुनानक गर्ल्स स्कूल में दो और किचन खोले जहाँ हर एक से रोज 10 से 12 हज़ार लोगों के लिए खाना तैयार हो रहा है। हमारी करीब 25 लोगों की किचन टीम आज 32,900 लोगों के लिए रोज खाना बना रही है," राहुल रॉय बताते हैं।

ऐसे में गुड़गांव नागरिक एकता मंच से जुड़े ये लोग लॉकडाउन के तीसरे चरण में भी हर रोज बड़ी संख्या में मजदूरों तक मदद पहुंचा रहे हैं। इसके बावजूद ये मदद नाकाफी साबित हो रही है, ये अभी भी नए मजदूरों को ढूंढ रहे हैं और हर रोज ऐसे मजदूर सामने आ रहे हैं।

इस बारे में डिलीवरी टीम से जुड़ीं मोनिका बताती हैं, "कई मजदूर ऐसे हैं जो फ़ोन नहीं कर पा रहे हैं तो हम वालंटियर्स के जरिये उस इलाके में जाकर मजदूरों को खोजते हैं। जैसे मानेसर गुड़गांव का बड़ा इंडस्ट्रियल एरिया है, यहाँ भंगरौला में मैं घूम रही थी, वहां मारुति समेत कई बड़ी कंपनियां हैं जहाँ दो लाख से ज्यादा मजदूर काम करते हैं।"

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"यहाँ हमें बताया गया कि अगर आधे मजदूर अपने घर की ओर चले भी गए हैं तो एक लाख मजदूर तो हैं ही, गाँव में ही हम लोग मजदूरों को ढूँढ़ते रहे, तो मतलब स्थिति ऐसी है कि आप कितना कर पाओगे," मोनिका कहती हैं, "ऐसे ही कई बड़े-बड़े गाँव हैं जहाँ लाखों मजदूर अभी भी फँसे हैं। कुछ किराये के घरों में रह रहे हैं तो कई बिल्डिंग में टीन की छत बनाकर, कई बिल्कुल झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे हैं, कई प्रवासी हैं जिनकी गिनती ही नहीं है, उनको ढूँढना बहुत मुश्किल है, अब हमें भी डर लग रहा है कि मजदूरों के ये अगले दो हफ्ते कैसे बीतेंगे।"

लॉकडाउन के तीसरे चरण में भी मजदूरों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी फंसा हुआ है जो सरकारी मदद से कोसों दूर है। इन तक पहुँच पाना अभी भी बड़ी चुनौती है। फैक्ट्री और निर्माण क्षेत्रों से जुड़े ये मजदूर अभी भी राशन और खाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। लॉकडाउन में उनके सामने भुखमरी जैसी स्थिति है।

राहुल बताते हैं, "हम अभी भी मजदूरों को ढूंढ रहे हैं। ये अंदरूनी इलाकों में, अन्दर गलियों में मिलते हैं, ऐसी गलियां होती हैं जहाँ राशन पहुँचाना हमारे लिए मुश्किल है तो हम ठेलों से, ई-रिक्शा से, मोटरसाइकिल से बड़े-बड़े बर्तनों में इन तक खाना पहुँचाने की कोशिश करते हैं।"

"ऐसे इलाकों में जब पहुँचते हैं तो अगले दिन खाना मिल सके इसलिए वो हमसे मोबाइल नंबर मांगते हैं, राशन और खाने के लिए ये फ़ोन करते हैं," राहुल कहते हैं, "अब तो हमारे पर्सनल मोबाइल नंबर इन मजदूरों के लिए हेल्पलाइन नंबर बन चुके हैं, हम जानते हैं कि अगर उस इलाके में हम अगले दिन नहीं पहुंचे तो उनको खाना नहीं मिलेगा।"

एक कपड़े की फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर अजय कुमार मंडल अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ अभी भी गुड़गांव में फँसे हुए हैं। अजय बिहार के मधेपुरा जिले के कोलाचौसा गाँव के रहने वाले हैं और लॉकडाउन के 15 दिन पहले ही गुड़गांव आये थे। अब तक गुड़गांव नागरिक एकता मंच की ओर उन्हें तीन बार राशन मिल चुका है।

अजय फ़ोन पर बताते हैं, "हम लोग बहुत परेशानी झेल रहे हैं, अगर हमें उनसे राशन न मिलता तो कोरोना से पहले हम लोग भूख से मर जाते। बच्चों के लिए दवा-पानी भी करना मुश्किल हो गया।"

सरकार से किसी तरह की मांग के सवाल पर अजय कहते हैं, "अब हम बस यही चाहते हैं कि हम लोगों को गाँव जाने दिया जाये, वहीं काम करेंगे मगर दोबारा कभी यहाँ नहीं आयेंगे।"


     

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