गर्भवती महिलाओं और बच्चों की जान से खिलवाड़, बिहार के सरकारी अस्पतालों में प्रसव 50 फीसदी घटे, राजस्थान में 4 लाख बच्चों को नहीं लगे टीके
कोरोना से जंग जीतने में जुटे भारत में स्वास्थ्य के स्तर पर ऐसी कई गलतियां हो रही हैं, जिनका खामियाजा आने वाले समय में उठाना पड़ सकता है। लॉकडाउन से एक महीने के ज्यादा समय में लाखों गर्भवती महिलाओं को न तो टीके लगे और न ही प्रसव पूर्व जांचे हुई। ऐसा ही हाल बच्चों का भी है, जो इनके जीवन के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
Neetu Singh 26 April 2020 1:52 PM GMT

ढाई महीने की गर्भवती परवीन को मेडिकल कंडीशन (मिस्करेज) की वजह से गर्भपात कराना जरुरी हो गया था। वो 9 किलोमीटर साइकिल पर बैठकर अबार्शन कराने अपने नजदीकी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंची तो डॉक्टरों ने कोरोना ड्यूटी व्यवस्ता के चलते मना कर दिया, मजबूरी में उन्हें 4500 रुपए देकर नर्सिंग होम में अपना पेट साफ करवाना पड़ा।
यूपी में लखनऊ जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र इटौंजा में दोपहर करीब एक बजे चिलचिलाती गर्मी में मिली परवीन अपने गांव की आशा बहु के साथ वहां पहुंची थीं।
"दो तीन दिन से थोड़ी-थोड़ी ब्लीडिंग हो रही थी, आशा को लेकर आज सफाई (अबार्शन) कराने आयी हूँ। यहाँ मना कर दिया कि ये सब काम अभी यहाँ नहीं हो रहा है।" परवीन (28 वर्ष) बताती हैं। परवीन के साथ हुई इस अनहोनी के लिए आशा बहु ने जो वजह बताई वो कई सवाल खड़े करती है।
"परवीन का यह तीसरा बच्चा था, एएनएम ने जब गाँव में मार्च में इनकी जांच की थी तभी पता था इनमें खून की कमी है। इसके बाद लॉकडाउन हो गया, दोबारा न तो कोई जांच हुई और न दवा दिला पाए। इस वजह से इनका बच्चा पेट में खराब हो गया।"
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बाहर शिवानी अपनी सास के साथ बैठी सुस्ता रही थी.
परवीन की तरह प्रसव पूर्व जांच और टीकाकरण के लिए 2 किलोमीटर पैदल चलकर आयी तीन महीने की गर्भवती शिवानी सिंह को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से यह कहकर वापस कर दिया गया कि अभी लॉकडाउन में ये सब जांचें और टीकाकरण बंद है। शिवानी की न तो अब तक एक भी जांच हुई थी और न ही टिटनेस का सबसे जरुरी टीका लगा था।
लॉकडाउन के चलते परवीन और शिवानी जैसी लाखों महिलाओं के गर्भावस्था के दौरान लगने वाले न तो टीके लग पा रहे हैं और न ही प्रसव पूर्व जांच हो पा रही है। लॉकडाउन के दौरान सरकारी अस्पतालों में होने वाले संस्थागत प्रसव में भी कमी आई है, यही नहीं इस दौरान जो बच्चे प्राइवेट अस्पतालों में जन्म ले रहे हैं उनका टीकाकरण भी नहीं हो पा रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के आदेशानुसार गर्भवती महिलाओं की जांचें और टीकाकरण प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर हो रहा है लेकिन जब गाँव कनेक्शन ने यूपी, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में इसकी पड़ताल फोन से की तो पता चला कि लॉक डाउन में ये सेवाएं शिथिल पड़ी हुई हैं।
लॉक डाउन में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर सन्नाटा पसरा है.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में एडवोकेसी करने वाली संस्था 'जन स्वास्थ्य अभियान' ने राजस्थान में एक सर्वे के बाद सरकार को भेजे एक पत्र में लिखा है कि मार्च से अब तक अकेले राजस्थान में करीब 2.5 लाख से ज्यादा गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांचे नहीं हुई हैं, जबकि 4,00000 बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं। पत्र में ग्राम स्तर पर जल्द ही टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांचों की पुन: प्रारंभ करने की मांग की गयी है।
वहीं कुपोषण और बच्चों की मौत के मामले में पहले से ही बद्तर हालातों का सामना कर रहे बिहार में राज्य स्वास्थ्य समिति ने सरकार को पत्र लिखकर गुजारिश की है कि राज्य में कोविड-19 के दौरान मातृत्व स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं सुव्यवस्थित एवं सुद्ढ़ की जाएं।
यूपी के जिस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (इंटौजा, लखनऊ) में शिवानी सिंह और परवीन जांच के लिए आईं थी वहां के अधीक्षक डॉ योगेश ने बताया, "टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांचें अभी स्थगित हैं। अस्पताल में 10 प्रतिशत ही मरीज आ रहे हैं जो ज्यादा बीमार हैं। पहले जहाँ रोजाना 700-800 लोग आते थे अभी 40-50 ही आ रहे हैं। डिलीवरी लगातार हो रही है। एक अप्रैल से 17 अप्रैल तक 105 डिलवरी अस्पताल में हुई है।"
गर्भवती महिलाओं और बच्चों को लेकर माता-पिता के साथ-साथ स्वास्थ्य कार्यकर्ता इसलिए भी डरे हैं क्योंकि भारत में इसके आंकड़े खुद चिंता बढ़ाते हैं। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की वेबसाइट के अनुसार हर साल लगभग 44000 महिलाएं गर्भावस्था संबंधी कारणों के कारण मर जाती हैं। जन्म के 28 दिन के अन्दर 6.6 लाख बच्चे मर जाते हैं।
इन मौतों को रोकने के लिए 31 जुलाई 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान' की शुरुआत की। इस अभियान के तहत हर महीने की नौ तारीख को हर राज्य में गर्भवती महिलाओं की प्रसव सम्बंधी उन सभी बातों का ध्यान रखा जाता है जिससे मातृ मृत्यु दर को रोका जा सके। लेकिन अभी यह अभियान बंद चल रहा है, जिसकी वजह से महिलाओं की जांचें, टीकाकरण और बच्चों का टीकाकरण नहीं हो पा रहा है।
भारत में बच्चों और महिलाओं के टीकाकरण के लिए चलाया जा रहा यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) दुनिया में सबसे बड़ा सावर्जनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम माना जाता है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सालाना तीन करोड़ गर्भवती महिलाओं और 2.67 करोड़ नवजात शिशुओं को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने का लक्ष्य है। प्रतिवर्ष 90 लाख से अधिक टीकाकरण सत्र आयोजित किए जाते हैं। भारत सरकार देशभर में 12 जरूरी वैक्सीन निशुल्क प्रदान कर रही है, जिसमें डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस, पोलियो, खसरा जैसे टीके शामिल हैं।
"लॉकडाउन में प्रसव पूर्व जो भी जांचे होनी थीं वो सब बंद हैं। जो इस समय घर पर डिलीवरी हो रही या प्राइवेट अस्पताल में हो रही है उन बच्चों में बीसीजी (जन्म के समय लगने वाला टीबी का टीका) का टीका नहीं लग पा रहा है जो कि जन्म के तुरंत बाद लगना होता है। इसका प्रभाव अभी तत्काल नहीं दिखेगा लेकिन आने वाले समय में इन बच्चों और मांओं के लिए मुश्किलें आ सकती हैं," बिहार और झारखंड में जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य पर काम कर रही एक गैर सरकारी संस्था पिरामल फाउंडेशन में काम करने वाले नीलमणि कहते हैं।
ये हैं ओनने फातिमा जो आशा बहु कुसुम को बता रही हैं कि उनकी केवल एक बार जांच और टीका लगा है, अभी छह महीने की गर्भवती हैं.
"बिहार में अभी प्रसव पूर्व जांच और संस्थागत प्रसव में लगभग 50 फीसदी की कमी आयी है। पचास फीसदी महिलाएं वैसे भी एनीमिक (खून की कमी) हैं, ऐसे में अगर जांचें नहीं हो रही हैं तो स्थिति और गम्भीर हो जायेगी। गाँव में हर महीने जो ग्राम स्वास्थ्य पोषण दिवस (बीएचएनडी) होता था वो भी पूरी तरह से बंद है। सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति वैसे भी खराब है। सरकार ने अनुसार ये जांचें चल रही हैं पर हकीकत में ये बंद हैं," नीलमणि चिंता जताते हैं।
बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति के द्वारा 17 अप्रैल को जारी एक पत्र में प्रसव पूर्व जांच सुविधा में 50 फीसदी की कमी और संस्थागत प्रसव में 48 फीसदी गिरावट आयी है। इस पत्र में ये कहा गया है कि शिथिल पड़ी स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारू रूप से चालू किया जाएगा।
गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व देखभाल इसलिए जरूरी है क्योंकि केवल 30.3 फीसदी भारतीय महिलाएं ही 100 दिन या इससे कुछ दिन ज्यादा आयरन और फोलिक एसिड गोलियों का सेवन करती हैं। जिसकी वजह से 50.3 फीसदी गर्भवती महिलाओं और 58.4 फीसदी बच्चों में खून की कमी है। ये कमी मातृ मृत्यु दर और जन्म के समय शिशु मृत्यु दर एक मुख्य वजह है।
तैबुन निशा की बेटी को लॉक डाउन की वजह से डेढ़ महीने वाला टीका नहीं लगा.
बिहार में प्रसव पूर्व जांच और संस्थागत प्रसव में आयी कमी पर पूर्णिया जिले के जिलाधिकारी राहुल कुमार कहते हैं, "शुरुआत के कुछ दिनों तक कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए इन जांचों को रोक दिया गया था लेकिन अभी फिर से सब शुरू कर दिया है। महिलाएं भय की वजह से अस्पताल अभी भी कम आ रही हैं। अभी हमने हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक प्राइवेट एम्बुलेंस लगवा दी है जिससे महिलाओं को लॉक डाउन में अस्पताल तक आने में कोई दिक्कत न आये।"
जिलाधिकारी के मुताबिक़ पूर्णिया जिले में 25 मार्च से सात अप्रैल तक 2511 डिलीवरी हुई हैं, जो कि पहले की तुलना में कम है।
दो महीने तक गर्भवती महिलाओं की जांच या टीका न लगने से क्या मुश्किलें आ सकती हैं? इस पर डॉ उषा एम कुमार (स्त्री रोग विशेषज्ञ) ने कहती हैं, "जांचें न होना माँ और बच्चा दोनों के लिए बहुत खतरनाक हैं। टीका एक दो महीने न लगने से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन शुरुआती तीन महीने की जांचें और अल्ट्रासाउंड बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। नौ महीने के दौरान जितनी भी जांचें और अल्ट्रासाउंड होते हैं, हर महीने के हिसाब से वो जरूरी हैं।"
डॉ उषा दिल्ली के मैक्स अस्पताल की वरिष्ठ सलाहकार हैं। मैक्स अस्पताल में गर्भवती महिलाओं को टेली कंसल्टेंट्स, वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये रेगुलर मानीटर किया जा रहा है।
'जन स्वास्थ्य अभियान' द्वारा राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में लॉकडाउन के दौरान 30 आदिवासी गाँव का एक सर्वे किया गया जिसमें 150 गर्भवती महिलाओं की जो प्रसव पूर्व जांच होनी चाहिए वो नहीं हुई है। लगभग 250 बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं।
इस अभियान की सदस्य छाया पचौली जो कि राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में काम करती हैं वो कहती हैं, "राजस्थान में लॉक डाउन शुरू होने से पहले ही ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सम्बन्धी जितनी भी गतिविधियाँ थीं उन्हें बंद कर दिया गया था। सरकार के अनुसार सभी स्वास्थ्य केन्दों पर ये सभी सुविधाएं चल रही हैं, अगर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं इतनी ही जागरूक होती तो सरकार को हर महीने आशा और एएनएम की मदद से ग्रामीण स्तर पर मेटेरनल चाइल्ड हेल्थ एंड न्यूट्रीशन डे मनाने की जरूरत ही नहीं पड़ती।"
राजस्थान में ग्रामीण स्तर पर हर गाँव में महीने में एक दिन आंगनबाड़ी केन्द्रों पर मैटरनल चाइल्ड हेल्थ एंड न्यूट्रिशन डे (एमसीएचएन) मनाया जाता है जिससे महिलाओं की प्रसव पूर्व जांचें और टीकाकरण निरंतर हो सके। कोविड-19 के चलते अभी ये गतिविधी बंद है।
राजस्थान के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव रोहित कुमार सिंह का कहना है, "हमारे यहाँ गर्भवती महिलाओं से सम्बन्धित कोई भी सेवा बंद नहीं की गयी है, सब पहले की तरह चल रही है।"
रोहित कुमार सिंह की इस बात को पुख्ता करने के लिए जब गाँव कनेक्शन ने प्रतापगढ़ जिले में एक सुदूर गाँव की एएनएम से बात की तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर अभी टीकाकरण और जांचें बंद हैं। कोविड-19 में ये गर्भवती महिलाएं हाई रिस्क में आती हैं इसलिए इनके लिए कोई रिस्क नहीं लिया जा रहा। हमारे क्षेत्र में 15 महिलाएं गर्भवती हैं जिनकी ये जांचें होनी हैं।"
"हमारे यहाँ से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की दूरी 25 किलोमीटर और जिला अस्पताल भी लगभग इतनी ही दूर पड़ता है। अभी गाड़ियाँ चल नहीं रहीं, एम्बुलेंस जांच के लिए गर्भवती महिलाओं को नहीं ले जायेगी," एएनएम ने बताया।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राजस्थान के मिशन निदेशक नरेश कुमार ठकराल ने बताया, "जितने भी लेबर रूम हैं, जितने भी जिला अस्पताल हैं, स्पेशल मदर एंड चाइल्ड हॉस्पिटल हैं इनकी सेवाओं पर कोई असर नहीं पड़ा है। प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर सभी जांचें और टीकाकरण हो रहा है, केवल ओपीडी को कम किया गया है।"
अभी हाल ही में राजस्थान के भरतपुर जिले के एक सरकारी अस्पताल पर एक मुस्लिम महिला के पति ने यह आरोप लगाया कि उनकी पत्नी को अस्पताल में इसलिए भर्ती नहीं किया गया कि कहीं उनका सम्बन्ध जमातियों से तो नहीं है। इस दौरान एंबुलेंस में ही उस महिला ने बच्चे को जन्म दिया, थोड़ी देर बाद बच्चे की मौत हो गयी।
"इस समय स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थिति पहले से भी बद्दतर हो गयी है। कोविड-19 के मरीजों के अलावा किसी दूसरे मरीज पर स्वास्थ्य विभाग का ध्यान नहीं जा रहा है। हमारी सरकार से मांग है सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए ग्राम स्तर पर इस सेवा को जल्द से जल्द शुरू किया जाए नहीं तो आने वाले समय में स्थिति बहुत गम्भीर हो जायेगी," छाया पचौली ने कहा।
जिस कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरी दुनिया प्राभावित है उस वायरस के संक्रमण से 26 अप्रैल तक दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी है। वहीं संक्रमितों मरीजों की संख्या 27 लाख पहुंच गई है। भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार अबतक देश में मरने वालों की संख्या 826 हो चुकी है। इस वायरस के संक्रमण से 26,000 से ज्यादा लोग इसकी चपेट में हैं।
भोपाल के ईंटखेड़ी गाँव में रहने वाली आशा सहयोगी सविता शर्मा बताती हैं, "गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी तक के लिए एम्बुलेंस नहीं आ रही है। हमारे क्षेत्र में पिछले तीन दिनों में दो डिलीवरी घर पर ही हुई क्योंकि एम्बुलेंस उन्हें अस्पताल के लिए लेने नहीं आयी। प्रसव पूर्व जांचें न होने से हमें इनके बारे में कुछ भी पता नहीं चल रहा है। किस महिला में खून की कमी है? कौन हाई रिस्क में है? गर्भवस्था के दौरान होने वाली किसी भी तरह की समस्या नहीं पता चल पा रही है।"
मध्यप्रदेश में सरकार ने यह आदेश तो निकाल दिया था कि स्वास्थ्य सम्बन्धी सभी सुविधाएं पहले जैसी चलेंगी लेकिन जो इन सुविधाओं को क्रियान्वित करते उन सभी जिम्मेदार ऑफिसर की ड्यूटी कोविड-19 में लगा दी गयी। स्वास्थ्य विभाग की प्रमुख सचिव पल्लवी जैन गोविल के अलावा स्वास्थ्य विभाग के 50 से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। स्वास्थ्य विभाग के लगभग 200 लोगों को क्वारंटाइन किया गया है। एक नर्स, एक डॉ, एक पुलिस कर्मचारी की इस संक्रमण से मौत हो गयी है।
मध्यप्रदेश में जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह-संयोजक अमूल्य निधि बताते हैं, "कोरोना वायरस की चपेट में राज्य की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। ऐसे हालातों में गर्भवती महिलाओं की नियमित जांचें और टीकाकरण कैसे होगा अभी ये कह पाना बहुत मुश्किल है?" आशाओं के ऊपर पहले से ही बहुत ज्यादा काम का लोड है। स्वास्थ्य विभाग से जुड़े कई जिम्मेदार अधिकारी इस संक्रमण की चपेट में है। नार्मल डेथ भी बढ़ गयी हैं। स्थिति कैसे सुधरेगी इसका हल अभी तक नहीं निकल पाया है।"
सरिता देवी चार महीने की गर्भवती हैं, अभी न तो प्रसव पूर्व जांच हुई न टिटनेस का टीका लगा.
देश में लॉकडाउन का एक महीना पूरा हो गया है। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए कुछ जरूरी सेवाएं ही चालू हैं। इस दौरान ज्यादातर प्राइवेट अस्पताल भी बंद हैं जिसकी वजह से सरकारी अस्पतालों पर लोड और ज्यादा बढ़ गया है। कई राज्यों से बात करके यह निकल कर आया कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए जल्द से जल्द टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांचों को सुचारू रूप से शुरू किया जाए जिससे गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को खतरे से बचाया जा सके।
"छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन की वजह से टीकाकरण और प्रसव पूर्व जांचें काफी डिस्टर्ब हुई हैं। टीकाकरण तो दस दिन पहले शुरू हो गया है पर जांचें अभी भी नहीं हो रही हैं। इस समय पूरा सिस्टम कोविड-19 में लगा हुआ है, महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच को गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा है। यातायात के संसाधन न चलने से जिला अस्पताल और सामुदायिक केन्द्रों पर इन महिलाओं के पहुंचने की संख्या बहुत कम हो गयी है," जन स्वास्थ्य अभियान की राष्ट्रीय सह-संयोजक सुलक्षणा नंदी ने छत्तीसगढ़ की स्थिति के बारे में बताया।
झारखंड के जमशेदपुर के सिविल सर्जन डॉ महेश्वर प्रसाद ने बताया, "हमारे जिले में जांचें चल रही हैं, पर कोरोना वायरस के संक्रमण से लोग कम पहुंच रहे हैं।"
गर्भवती महिलाओं के साथ ग्रामीण स्तर पर काम करने वाली सहिया साथी भाषा शर्मा ने बताया, "एक हफ्ते पहले ही टीकाकरण शुरू हुआ है, अभी गाँव स्तर पर जो सेंटर बने हैं वहां 27 अप्रैल से जांचें शुरू हो जायेंगी।"
यूपी की अटेसुवा गाँव की आशा कुसुम सिंह अपने गाँव की उन आठ दस गर्भवती महिलाओं के घर ले गईं जिनकी जांचें और टीकाकरण लॉक डाउन की वजह से नहीं हुआ था। चौथे महीने की गर्भवती सरिता देवी (20 वर्ष) घर के आँगन में बैठी बता रही थी, "शुरुआत में मायके चली गयी थी तभी कोई जांच और टीका नहीं लग पाया, जब वापस आयी तो लॉकडाउन लग गया।"
"जांच न होने से हमें इनका ब्लड प्रेसर, शुगर, हीमोग्लोविन कुछ भी पता नहीं चल पा रहा है। जांचें न होने से हमें इनके हाई रिस्क होने या बच्चा अभी पेट में किस स्थिति में है कुछ भी पता नहीं चल पा रहा है, " कुसुम सिंह ने जांच न होने से गर्भवती महिलाओं की स्थिति पर चिंता जताई।
उत्तर प्रदेश मातृ मृत्यु दर के मामले में देश में दूसरे नम्बर पर है। यहाँ एक लाख महिलाओं में से 258 की मौत हो जाती है। शिशु मृत्यु दर के मामले में उत्तरप्रदेश पूरे देश में पहले स्थान पर है। पूरे देश में जन्म के समय 1000 में से 32 शिशुओं की मौत हो जाती है, उत्तर प्रदेश में यह मौत दुगुनी यानी 64 है।
उमस भरी गर्मी में जांच कराने आयी शिवानी उस दिन करीब डेढ़ घंटे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के बाहर अपनी सास के साथ बैठी रही। शिवानी की सास ने कहा, "अभी ये कुछ खा पी नहीं रही है, अगर डॉ एक बार देख लेते, कुछ दवा दे देते तो कमसेकम से कुछ खाने-पीने लगती। पहला बच्चा है, कोई जांच नहीं हुई है, थोड़ी चिंता में भी ये है।"
चार महीने की इस बच्ची को ढाई महीने वाला टीका नहीं लगा है.
गर्भवती महिलाओं की 9 महीने ये जांचें होना है जरूरी
डॉ उषा के मुताबिक़ किसी भी गर्भवती महिला के लिए प्रसव पूर्व तीन महीने बहुत उपयोगी होते हैं। सारे ब्लड टेस्ट की जांचे जैसे-एचआईवी, ब्लड शुगर, थाईराइड इस समय हो जाना चाहिए। इस समय हुए अल्ट्रासाउंड से यह पता चलता है कि बच्चा ट्यूब में है या नहीं।
पांचवे महीने में दूसरा अल्ट्रासाउंड होता है जिसमें बच्चे के शरीर के अंगों और उसके मानसिक विकास के बारे में पता चलता है। पहला टिटनेस का टीका तीन महीने तक और दूसरा पांचवे महीने में लग जाना चाहिए। 26 हफ्ते में एक ब्लड शुगर जांच हो जानी चाहिए जिससे बच्चे और माँ में डायबिटीज की संभावना के बारे में पता चल सके।
साढ़े आठ महीने में एक और अल्ट्रासाउंड होता है जिससे यह पता चलता है कि बच्चा किस अवस्था में है, पैदा होने में कोई मुश्किल तो नहीं है। रूटीन जांच हर तिमाही होती हैं।
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