बिहार: पिछले साल चमकी बुखार और इस बार कोरोना से हो जाएगा लीची किसानों को करोड़ों का नुकसान

बिहार में देश का सबसे ज्यादा लीची उत्पादन होता है, पिछले साल चमकी बुखार की अफवाहों की वजह से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था, इस बार लॉकडाउन से किसान बर्बाद हो जाएंगे।

Divendra SinghDivendra Singh   27 April 2020 10:37 AM GMT

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लखनऊ। पिछले कुछ साल से लीची की वजह से चमकी बुखार होने की अफवाहों से किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था, लेकिन वैज्ञानिकों ने जब इन अफवाहों को गलत बताया, इस बार लीची किसानों को अच्छी कमाई की उम्मीद थी, लेकिन कोरोना के बाद लॉकडाउन ने इनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। क्योंकि इस बार लीची खरीदने के लिए व्यापारी ही नहीं पहुंच पा रहे हैं।

देश में सबसे अधिक लीची उत्पादन बिहार में ही होता है। यहां पर मार्च-अप्रैल से ही व्यापारी आना शुरू हो जाते हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों तक यहां की लीची को लोगों तक पहुंचाते हैं। लेकिन लॉकडाउन की वजह से अभी तक लीची व्यापारी नहीं पहुंच पाए हैं।

"अगर ऐसे ही लगातार लॉकडाउन बढ़ता रहा तो हम किसानों का बहुत नुकसान होने वाला है, पिछले साल बेवजह ही लोगों ने लीची को चमकी बुखार से जोड़ कर अफवाह फैला दी, जिससे काफी नुकसान हुआ। इस बार कोरोना की वजह से नुकसान हो जाएगा, "बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बिसनपुर बखरी गाँव के लीची किसान सुधीर कुमार पांडेय बताते हैं। सुधीर कुमार पांडेय की डेढ़ हेक्टेयर लीची की बाग है।


इस समय पूरे देश में एक लाख हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है, जिससे 7.5 लाख टन लीची का उत्पादन होता है। इसमें बिहार में 33-35 हज़ार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। भारत में पैदा होने वाली लीची का 40 फीसदी उत्पादन बिहार में ही होता है।

इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे प्रदेशों में भी लीची की खेती होती है। अकेले मुजफ्फरपुर में 11 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। राज्य में पिछले साल 1,000 करोड़ रुपये का लीची का व्यवसाय हुआ था। इनमें मुजफ्फरपुर की भागीदारी 400 करोड़ रुपये की थी। इस बार 500 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार की जा रही थी।

लीची ग्रोवर्स ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह बताते हैं, "इस बार लीची के अच्छे उत्पादन की उम्मीद है, ओला-बारिश की वजह से जो 10 प्रतिशत का नुकसान भी हुआ है, उसके बाद भी अच्छा उत्पादन हो जाएगा। लेकिन इसके बावजूद भी बिक्री की कोई भी संभावना नहीं है। क्योंकि जो लीची किसान है वो तो खुद तो व्यापार करता नहीं है, लीची व्यापारी ही खरीदने बेचने काम करते हैं। यहां पर लोकल में जो भी व्यापारी हैं वो तो बाहर के बड़े व्यापरियों के बस एजेंट हैं, बड़े व्यापारियों की मदद से ही वो लीची खरीदते हैं, लेकिन गद्दीदार (बड़े व्यापारी) ने तो हाथ ही खींच लिया है। क्योंकि वो महानगरों में फंसा हुआ है।"


वो आगे कहते हैं, "सरकार हमसे कह रही है कि परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराएगी, लेकिन परिवहन की सुविधा मिलना ही इसका हल नहीं है। क्योंकि अगर वो हमें दिल्ली, मुंबई या लखनऊ तक पहुंचा भी देंगे तो क्या वहां बेचना संभव है। जब लोग घरों से ही नहीं निकलेंगे तो बाजार तक कैसे पहुंचेंगे। अभी तो लोगों जरूरी सामान खरीदेंगे की हमसे लीची खरीदेंगे।"

हर साल उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों के मधुमक्खी पालक अपनी मधुमक्खियों को लेकर बिहार के लीची के बागों में पहुंच जाते थे, लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से नहीं पहुंच पाए। बिहार के मुज्जफरपुर में स्थित लीची अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ विशाल नाथ कहते हैं, "यही सही समय होता है, जब मधुमक्खियां लीची के परागण में मदद करती हैं, बिहार के मधुमक्खी पालकों के साथ ही उत्तर प्रदेश से भी लोग आते हैं, जो इस बार नहीं आ पाएं, अगर मधुमक्खियां नहीं होंगी तो उत्पादन पर तो असर पड़ेगा ही।"

पिछले साल मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार से हो रही मौतों के बाद यह भी यह भी कहा जाने लगा कि कहीं बच्चों की मौत अधिक लीची खाने से तो नहीं हो रही? क्योंकि जहां चमकी बुखार बच्चों की मौतें हुईं वो मुजफ्फरपुर जिला भारत में लीची उत्पादन के लिए काफी चर्चित है। लेकिन विशेषज्ञों ने बताया कि लीची से चमकी का कोई कनेक्शन नहीं है।


बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मीनापुर प्रखंड की मालती सिंह की एक हजार पेड़ों की दो बागें हैं। पिछले साल सवा दो लाख और 95 हजार रुपए में दोनों बागें बिकी थीं, लेकिन इस बार उन्होंने उम्मीद ही छोड़ दी है।

मालती सिंह बताती हैं, "होली के पहले कुछ लोग की बाग बिक गई थी, उसके बाद हल्ला होने लगा कि कोई बीमारी आयी है, जिससे लोग मर रहे हैं। इसके बाद से व्यापारी नहीं आए। पिछले साल भी आखिर में चमकी बुखार वजह से काफी नुकसान हुआ था। अगर इस बार भी व्यापारी नहीं आते हैं तो हम क्या करेंगे, हम लोगों की तो आत्महत्या करने की नौबत आ जाएगी।"

"जब व्यापारी नहीं आए तो जूस वालों से बात की वही लोग पल्प के लिए खरीदकर लें जाएं, लेकिन उन्होंने कहा कि हमारे पास पिछले साल का ही जूस का स्टॉक रखा है, तो नया खरीदकर क्या करेंगे, "मालती सिंह ने आगे बताया।

कृषि और उद्यान विभाग इस समय पूरे प्रयास में है कि किसानों का नुकसान न हो। उद्यान विभाग के निदेशक नाथ किशोर बताते हैं, "हमारा प्रयास है कि किसानों का नुकसान न हो, इसके लिए परिवहन की व्यवस्था कराई जाएगी। इसके लिए अभी लीची किसानों और अधिकारियों के साथ बैठक भी की है। अभी तक दक्षिण भारत के शहरों तक यहां से फल नहीं जा पाते थे, जबकि वहां पर काफी अच्छे दाम में बिकते हैं। इस बार कोशिश है कि वहां भी पहुंचाया जाए।"

      

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