मुंबई/सिंधुदुर्ग (महाराष्ट्र)। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और उससे लगे कोंकण के समुद्री तटों पर मछली का कारोबार कोरोना-काल में सरकार की सख्त पाबंदियों के चलते सुस्त पड़ गया है। महाराष्ट्र के इस क्षेत्र से अन्य गैर-समुद्र तटीय क्षेत्रों के मछली बाजारों तक मछलियां भेजी जाती हैं, लेकिन इन दिनों राज्य के अन्य जिलों में मछलियों की मांग गिरने से भी कारोबार बुरे दौर में है।
मुंबई में मछुआरा संघर्ष समिति के प्रतिनिधि प्रफुल्ल भोईर मछली कारोबार पर आए इस बुरे दौर के लिए कोरोना से अधिक सरकार की सख्त पाबंदियों को जिम्मेदार मानते हैं। 50 साल से अधिक उम्र के प्रफुल्ल गाँव कनेक्शन से बातचीत में अपना अनुभव साझा करते हैं।
प्रफुल्ल कहते हैं, “हम मुंबई की ही बात करें तो कोरोना पाबंदियों से पहले आमतौर पर हर रोज सुबह 8 बजे तक मछली व्यवसाय से जुड़े बड़े कारोबारी बड़ी संख्या में समुद्र किनारे बंदरगाहों पर पहुंच जाते थे और थोक भाव में वहां पर मछुआरों से कई किस्म की मछलियां खरीदते थे। फिर कारोबारी मछलियों को लेकर अगले दो तीन घंटों में मुंबई से थाणे, कल्याण, डोंबिवली, पनवेल और पालघर जिलों के बाजारों तक पहुंचते थे और उसके बाद बड़ी मात्रा में मछलियां छोटे-छोटे बाजारों के जरिए गांवों के ग्राहकों तक पहुंचती थीं। अब क्या हो रहा है कि सरकार सुबह 11 बजे के बाद बाजार बंद करा देती है, जिससे मछली कारोबार पूरी तरह प्रभावित हो गया है।”
प्रफुल्ल आगे बताते हैं कि ताजी मछलियां उसी दिन बिकनी चाहिए, ऐसा नहीं कि आज मछली पकड़ी तो उसे कल या दो-तीन दिनों बाद तक बेचते रहें। जब हर दिन सुबह 11 बजे से ही सख्त पाबंदी लागू हो जाएगी तो कारोबारी मछलियों को खरीदने में दिलचस्पी क्यों दिखाएगा। इससे फिलहाल मछलियां बिकनी लगभग बंद हो गई हैं।
मांग में आई काफी हद तक गिरावट
कोरोना महामारी में मुंबई से बाहर राज्य के ग्रामीण अंचलों में मछलियों की खरीदी-बिक्री पर क्या असर पड़ा है? इस बारे में गाँव कनेक्शन ने पुणे के एक मछली व्यापारी महेश परदेशी (46) से बातचीत की। महेश बताते हैं कि आम आदमी पहले की तरह भीड़ लगाने से बच रहा है और उसकी आमदनी भी पहले से अधिक घट गई है। इसलिए वह महंगी मछलियां खरीद कर क्यों खाएगा। इसलिए बाजार में मछलियों की मांग भी काफी घटी है।
महेश अपना तजुर्बा साझा करते हुए बताते हैं, “मुंबई से हम लोग किसी तरह मछलियां पुणे के आसपास के बाजारों तक लाएं और फुटकर बेचें भी तो उसकी लागत तो निकलनी चाहिए न। लेकिन, कोई ग्राहक सौ रुपये किलो की मछली 25-50 रुपये में मांगे तो इतनी माथापच्ची करने से कोई फायदा नहीं दिख रहा है। इसलिए हमने थोड़े दिनों के लिए मछलियां खरीदनी और बेचनी बंद कर दी हैं। इस वजह से भी मुंबई के बंदरगाहों पर बहुत कम मात्रा में मछलियां बिकती नजर आ रही हैं।”
पुणे के अलावा पश्चिम महाराष्ट्र के जिलों में भी यही स्थिति है। सतारा, सांगली और कोल्हापुर जिलों के मछली कारोबारी बताते हैं कि समुद्री क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों तक मछलियों को ढोने के लिए परिवहन पर अब पहले से अधिक किराया मांगा जा रहा है। यदि माल ढुलाई ज्यादा देने पर भी स्थानीय मछली बाजारों में मछलियों के ग्राहक अपेक्षा से बहुत कम नजर आएं तो डर यह होता है कि एक दिन में सारी मछलियां बिकेगी कैसे? इससे नुकसान तो होगा ही, साथ ही एक सवाल यह भी है कि इतनी सारी मछलियों का करेंगे क्या?
इस बारे में सांगली के एक मछली कारोबारी (42) गणेश कोली बताते हैं, “शहर से लेकर गांवों तक ढाबों और रेस्टोरेंटों से मंदी के चलते मछलियों की पहले जैसी मांग नहीं आ रही है। जब तक ढाबों और रेस्टोरेंटों से मछलियों की मांग नहीं बढ़ेगी तब तक मछली बाजारों में भी धंधा मंदा ही रहेगा।”
दोपहर 2 बजे तक की मोहलत मिले
मुंबई के बाद रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिलों के समुद्री तटों से बड़ी मात्रा में मछलियां राज्य के अन्य मछली बाजारों तक पहुंचती हैं, लेकिन इन जिलों के समुद्री तटों में भी बिकने वाली मछलियां काफी कम नजर आ रही हैं। इसका एक अन्य कारण यह बताया जा रहा है कि कई मछली कारोबारी भी कोरोना की दूसरी लहर की भयावहता से डरे हुए हैं और स्वास्थ्य कारणों से खुद को व्यवसायिक गतिविधियों से कुछ दिनों के लिए दूर रखना चाहते हैं। रत्नागिरी जिले में 32 साल के युवा मछली कारोबारी श्रीवर्धन कोली इस बात से सहमति जताते हैं। वह कहते हैं, “मछलियों की कमी, कोरोना महामारी के कारण सरकार की रोक-टोक और यात्रा खर्च महंगा होने से मार्केट बैठा हुआ है। यदि खतरा मोल लेकर भी हम लोगों को मुनाफा न मिले तो हम लोग कारोबार क्यों करेंगे!”
इसी बारे में रत्नागिरी जिले की एक महिला मछुआरा रेशमा कोली (35) गाँव कनेक्शन से बातचीत में सरकार से मांग करती हैं कि मछुआरों को ध्यान में रखते हुए पाबंदियों में कुछ ढील दी जाए। रेशमा के मुताबिक मछलियां बेचने के काम में बहुत सारी महिलाएं भी जुड़ी हुई हैं। यह महिलाएं प्रतिदिन सुबह 9-10 बजे के बीच मछलियां बेचती हैं। रेशमा कहती हैं, “हम मछलियां बेचना शुरू ही करते हैं कि दो-एक घंटे बाद पुलिस आ जाती है और मछलियों को बेचने का काम रोक देती है। पुलिस हमसे कहती है कि सुबह 11 बजे तक ही मछलियां बेचो। हमारा उनसे और सरकार से कहना है कि मछुआरों की मजबूरी समझो और दोपहर 2 बजे तक हमें मछलियों को बेचने की छूट दो।”
वहीं, सिंधुदुर्ग जिले के मालवण में मछुआरा समुदाय के नेता गोपीनाथ तांडेल (44) के मुताबिक प्रशासनिक स्तर पर मछुआरों को कोरोना पाबंदी में ढील देने के लिए एक प्रतिनिधि-मंडल पिछले दिनों कलेक्टर से मिल चुका है। इस दौरान मछुआरों के प्रतिनिधि-मंडल द्वारा कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन में उन्होंने सरकार से मछलियों की खरीद-बिक्री की समय-सीमा बढ़ाने की मांग की है। गोपीनाथ गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “हमने कलेक्टर से अनुरोध किया है कि वह हमारी परेशानी को समझे, क्योंकि हम व्यावहारिक मांग रख रहे हैं। साथ ही हमने कलेक्टर को यह आश्वासन भी दिया है कि मछुआरे काम के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करेंगे। हमने उनसे कहा है कि हम सामाजिक दूरी बनाए रखेंगे और मास्क का उपयोग करेंगे।”
इससे पहले वर्ष 2019-20 के दौरान राज्य में अतिवृष्टि और चक्रवात के कारण मछुआरों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। इस संबंध में मछुआरा संघर्ष समिति की प्रतिनिधि किरण कोली का दावा है कि तब राज्य के मछुआरों को न्यूनतम एक हजार करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा था। इसके बदले में राज्य सरकार ने मछुआरों को महज 65 करोड़ रुपए की ही मुआवजा राशि वितरित की थी।
किरण कोली गाँव कनेक्शन से बातचीत में बताती हैं कि कई महिला मछुआरों ने अपना कर्ज चुकाने के लिए सोने के गहने तक गिरवी रख दिए हैं। किरण मानती है कि ऐसी मुसीबत से राज्य सरकार ही उन्हें उबार सकती है। अंत में वह कहती हैं, “इस विकट परिस्थिति में राज्य सरकार को चाहिए कि हर मछुआरा परिवार के लिए न्यूनतम 25 हजार रुपये का मुआवजा तो दे ही।”