यूपी: कोरोना संकट में तीन महीने से घर बैठे कलाबाज ने कर ली आत्महत्या

Mohit ShuklaMohit Shukla   4 Jun 2020 5:11 AM GMT

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सिधौली (सीतापुर)। लॉकडाउन के पहले तक कलाबाजी दिखाकर, ढोलक बजाकर कुछ कमाई हो जाती, जिससे घर चल जाता था। लेकिन तीन महीने से कोई काम नहीं था, लॉकडाउन के खुलने के बाद जब ढोलक लेकर बाहर निकले तो लोगों ने कारोना का डर दिखाकर भगा दिया। आर्थिक तंगी से परेशान होकर फैयाज ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

फैयाज (50 वर्ष) उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में रायगंज गाँव में अपने परिवार के साथ रहते थे। अब उनकी पत्नी सहरुन के सामने मुश्किल है कि घर कैसे चलेगा। रोते हुए सहरुन बताती हैं, "कई दिन से कोई काम नहीं था। कल सुबह मैंने कहा कि ढोलक लेकर जाओ शायद कुछ पैसे मिल जाएंगे, नहीं तो बच्चे क्या खाएंगे। शाम को लौटे तो बच्चे दौड़कर गए और कहने लगे कि अब्बा क्या लाए, कुछ लाए हो, वो कुछ नहीं बोले और चुपचाप लेट गए। जब वो कुछ नहीं बोले तो ये बच्चे कहने लगे कि अब्बा पैसा ही दे दो जिससे बिस्किट ही ले लें। तब उन्होंने कहा बेटा पैसा नहीं है, अब तुम सो जाओ और मैं भी सो जाऊं।"वो आगे कहती हैं, "तब मैं इधर-उधर से लोगों के यहां से थोड़ा बहुत खाना मांग कर लायी और सबको खिलाया, खाना खाकर सब सो गए। बाद में उन्होंने बताया कि मैं ढोलक लेकर गया तो लोगों ने कोरोना के मारे भगा दिया और कहा कि हमें ढोलक नहीं बनवानी है। और कहने लगे कि अब मैं जिऊंगा नहीं, बच्चों को क्या खिलाऊंगा। उसके बाद सब सो गए। अब हम क्या करेंगे छोटे-छोटे बच्चे हैं।"

सहरुन और उनके बच्चों को कहां पता था कि फैयाज के साथ उनकी आखिरी रात होगी। सुबह उठे तो फांसी से लटकता फैयाज का शव मिला।

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एक आखिरी बार अपनी साइकिल में ढोलक लेकर फैयाज निकले थे

सहरुन के परिवार को इतना राशन नहीं मिलता कि घर चल पाए। सहरुन कहती हैं, "पहले 45 किलो राशन मिलता था, अब 25 किलो मिलता है। प्रधान के पास कहने गए तो प्रधान ने कहा कि ऑनलाइन सही कराओ। दो महीने ऑनलाइन कराए भी हो गया। अभी भी राशन नहीं मिल रहा है। फिर मैं ऑफिस भी गई तो बहन जी कहने लगी कोरोना की वजह से बंद है ब्लॉक पर जाओ, ब्लॉक पर गए तो वहां भी सब बंद था। हम सब जगह हो आए। दोनों मियां-बीबी साइकिल से घूमते भूखे-प्यासे घूमते रहे। लेकिन राशन कार्ड सही नहीं हुआ।"

गांवों में सर्कस दिखाना उसकी कमाई का जरिया था। लॉकडाउन के दौरान फैयाज की आमदनी ठप हो गई जिससे नौ लोगों के परिवार का गुजारा करने में मुश्किलें आने लगीं। वो आगे बताती हैं, "पहले कोरोना नहीं था तो कला-तमाशा करके सौ दौ सौ रुपए और कुछ गल्ला मिल जाता था, जिससे परिवार चल रहा था। अब जब से कोरोना लगा कहीं नहीं जा पाते थे। पुलिस यहां से वहां नहीं जाने देती।"

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