चुनाव 2019 : बिहार में दलितों के वोट पर निर्भर है बहुत कुछ

Hridayesh JoshiHridayesh Joshi   14 March 2019 9:38 AM GMT

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चुनाव 2019 : बिहार में दलितों के वोट पर निर्भर है बहुत कुछ

हाजीपुर/छपरा/सिवान। हाजीपुर के सुल्तानपुर टोला में हमारी मुलाकात 30 साल के अरविन्दपासवान से होती है। अरविन्द के पास कोई नियमित रोज़गार नहीं है। वह मज़दूरी करके रोज़ी कमाते हैं लेकिन अपने इलाके में हुये काम से संतुष्ट हैं और कहते हैं कि "पासवान जी" ने बहुत कुछ दिया है। "शौचालय और बिजली है यहां। साफ पानी की व्यवस्था भी की जा रही है।"अरविन्द कहते हैं जो दलितों में दुसाध समुदाय से हैं। दुसाध केंद्रीय मंत्री रामविलासपासवान का भरोसेमंद वोट बैंक है जिसकी भूमिका कुछ सीटों पर निर्णायक असर डाल सकती है।

विकास, राष्ट्रीय सुरक्षा, महंगाई और रोज़गार जैसे मुद्दों के अलावा जाति एक ऐसा मुद्दा है जो भारत में हर चुनाव में अहम रहता है। बिहार कोई अपवाद नहीं बल्कि यहां जातिगत समीकरण जटिल है और उसे समझना कहीं अधिक कठिन भी।

इस बार लोकसभा चुनावों में नीतीश कुमार (जेडीयू) और रामविलासपासवान (एलजेपी) दोनों नरेंद्र मोदी (बीजेपी) के साथ खड़े हैं। इस तिकड़ी की टक्कर यूपीए के महागठबंधन से है जिसमें लालू प्रसाद यादव की आरजेडी के साथ कांग्रेस, जीतनराममांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी शामिल है। एनडीए के पास नीतीश कुमार की कामकाजी चेहरे के साथ नरेंद्र मोदी की "मज़बूत नेता" की छवि है। रामविलासपासवान इस गठबंधन में कितना दलित वोट खींच पायेंगे एनडीए की कामयाबी इस पर काफी हद तक निर्भर होगी।

सुल्तानपुर को रामविलासपासवान ने भारत की नवरत्न कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) के हवाले कर दिया जो यहां बच्चों के स्कूल से लेकर दूसरी सुविधायें मुहैया कराती है। सुल्तानपुर जैसे इलाके में रह रहे लोगों का पासवान से निजी जुड़ाव है लेकिन जातिगत समीकरण में बंटे बिहार का यह पूरा सच नहीं है। बिहार में जहां मुस्लिम और यादव मज़बूती से आरजेडी के साथ खड़े दिखते हैं वहीं ऊंची जाति के लोगों के अलावा गैर यादव पिछड़ों और अति पिछड़ों पर एनडीए की पकड़ है। बीजेपी अगड़ों को तो नीतीशकुर्मी और कोयरी समुदाय के साथ अतिपिछड़ों को एनडीए के पक्ष में लायेंगे ऐसा माना जा रहा है।

ऐसे में दलित काफी अहम हो जाते हैं जिनकी संख्या राज्य में करीब 16-17 प्रतिशत है। दुसाध जाति इसका एक तिहाई है यानि राज्य की कुल आबादी का 5-6%, इतनी ही संख्या चमारों की है और बाकी का हिस्सा अन्य दलितों का है। जहां दुसाध वोट पक्के तौर पर पासवान का कहा जा रहा है वहीं बाकी दलित वोट के लिये खींचतान चल रही है।जीतनराममांझी के यूपीए के साथ चले जाने से महादलित समुदाय में कांग्रेस-आरजेडीमहागठबंधन की पैठ बन गई है।

लेकिन राजनीति सिर्फ काग़ज़ पर किया जाने वाला गणित नहीं है। नीतीश कुमार की कर्मठ नेता की छवि और बीजेपी द्वारा "मज़बूत नेता" के रूप में मोदी का प्रचार राज्य में कई हिस्सों में रंग लाता दिख रहा है।

"सब जात का लोग बीजेपी को वोट देगा… मोदी जी बढ़िया नेता है।" छपरा में 55 साल के श्रीकृष्ण शर्मा कहते हैं। इस बीजेपी समर्थक को भरोसा है कि मोदी की बीजेपी ने सभी जातियों में सेंध लगा दी है और पासवान को पसंद न करने वाले अनुसूचित वोटरों का एक हिस्सा भी बीजेपी गठबंधन को वोट ज़रूर देगा।

"इन परतों को आप जितना खोदियेगा यह उतना ही जटिल होता जायेगा।"सिवान के एक स्थानीय व्यापारी प्रेमचंद हमें समझाते हैं। "वोटिंग के दिन कौन कैसे मतदान करेगा यह भी बहुत अहम है। चुनाव शुरू होने में महीना भर बाकी है।"

महत्वपूर्ण यह भी होगा कि पार्टियां उम्मीदवारों का चयन कैसे करती हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में राज्य की 6 आरक्षित सीटों(गोपालगंज, गया,सासाराम, समस्तीपुर, हाजीपुर, जमुई)में बीजेपी और एलजेपी ने जीतीं। दोनों के खाते में 3-3 सीटें गईं। तब नीतीश कुमार ने मोदी की "अल्पसंख्यक विरोधी" छवि की वजह से एनडीए से रिश्ता तोड़ दिया था और राज्य में एक त्रिकोणीय मुकाबला हुआ थालेकिन इस बार दो गठबंधनों में सीधी टक्कर है।

हालांकि देश भर में दलित पर हुई हिंसा और रोहित वेमुला या ऊना में गाय को लेकर दलितों की पिटाई जैसी घटनाओं पर यहां दलित समुदाय बहुत प्रतिक्रिया नहीं कर रहा। लेकिन सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के लिये आरक्षण की घोषणा का असर किसी स्तर पर ज़रूर हो सकता है। आरजेडी ने खुलकर केंद्र सरकार के इस कदम के खिलाफ बयान दिया था।

"पूरे देश में दलितों में बीजेपी विरोधी रुझान है। दलित वोट काफी अहम है और बीजेपी को इस बार उनका वोट नहीं मिलेगा।" पूर्व जेडीयूनेता अली अनवर कहते हैं।

पटना के बाहर गांवों में हमने आरजेडी के कुछ समर्थकों से बात की जो कहते हैं कि लालू प्रसाद यादव ने दबंग जातियों से राहत दिलाई है और वह इसे नहीं भूलेंगे। "आप कैसे सोचते हैं कि कमज़ोर लोग आज के माहौल में बीजेपी को वोट देगा। वह वोट हमें ही मिलना है।" एक आरजेडी समर्थक ने कहा।

लेकिन बिहार के गांवों में घूमते हुये यह नहीं लगता कि दलित किसी एक पार्टी को ही वोट देंगे या किसी एक पार्टी को बिल्कुल वोट नहीं देंगे। उत्तर प्रदेश में बीएसपी की तरह यहां दलितों को अपनी ओर खींचने वाली बड़ी राजनीतिक फोर्स नहीं है। ऐसे में नीतीश कुमार की साफ और उदार छवि और राम विलास पासवान का साथ होना क्या वास्तव में एनडीए के लिये रंग लायेगा इस पर सबकी नज़र रहेगी।

  

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