2015 के बाद जून में सबसे कम हुई बारिश, 33 फीसद की आई कमी

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2015 के बाद जून में सबसे कम हुई बारिश, 33 फीसद की आई कमी

लखनऊ। इस साल जून महीने में मानसूनी बारिश में जो कमी दर्ज की गई है, वह 2015 के बाद से सर्वाधिक है। जून महीने में जितनी बारिश हुई है, वह दीर्घावधि के औसत (एलपीए) के हिसाब से 33 फीसदी कम है।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अपर महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने कहा, मानसून जून में कम रहा। देश के कई इलाके सूखे जैसे हालात से जूझ रहे हैं। केंद्रीय जल आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 27 जून तक देश के 91 प्रमुख जलाशयों में से 62 ऐसे हैं जहां पानी 80 फीसदी या सामान्य स्तर से नीचे आ चुका है।

गौरतलब है कि एलपीए का 90 फीसदी से कुछ भी कम कमी की श्रेणी में आता है। जब बारिश 90-96 प्रतिशत होती है तो उसे सामान्य से कम और जब बारिश एलपीए के 96-104 प्रतिशत होती है तो उसे सामान्य माना जाता है। जब बारिश एलपीए के 104-110 प्रतिशत पर होती है तो उसे सामान्य से अधिक और जब वह 110 फीसदी से ऊपर चली जाती है तो उसे अत्यधिक माना जाता है।

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साल 2018 में जून में हुई बारिश एलपीए का 95 फीसदी थी। इससे एक साल पहले यानी 2017 में हालात बेहतर थे और तब एलपीए की 104 प्रतिशत बारिश हुई थी। जून 2016 में एलपीए की 89 प्रतिशत और जून 2015 में 116 प्रतिशत यानी अत्यधिक बारिश हुई थी। जून 2014 में मानसून एलपीए का महज 58 प्रतिशत ही था।

इस साल मानसून ने आठ जून को केरल के तट पर दस्तक दी जबकि इसके वहां पहुंचने की सामान्य तारीख एक जून होती है। इसके अलावा मानसून के आगे बढ़ने पर अरब सागर से उठे वायु चक्रवात ने असर डाला। उम्मीद है कि बंगाल की खाड़ी में बन रहे कम दबाव के क्षेत्र के कारण मानसून की आगे बढ़ने की गति अच्छी हो सकती है।

वहीं गाँव कनेक्शन के सर्वे के अनुसार 35.3 प्रतिशत घरों की महिलाओं को अपनी जरूरत के लिए पानी लाने के लिए घर से आधा किमी दूर तक जाना पड़ता है। महज 60.9 फीसदी लोगों को ही जरूरत का पानी घर में उपलब्ध होता है। वर्ष 2018 में आई नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत इतिहास में जल संकट से सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। जबकि हर साल दो लाख लोग साफ पीने का पानी न मिलने से अपनी जान गंवा देते हैं।

केन्द्र सरकार के नेशनल रूरल ड्रिंकिंग वाटर प्रोग्राम के तहत हर ग्रामीण को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराया जाना है। इस योजना में साल 2014-15 में जहां 15,000 करोड़ रुपये जारी होते थे, वहीं आज 700 करोड़ रुपये ही जारी हो रहे हैं। नीति आयोग की वर्ष 2018 में आई रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2020 तक दिल्ली और बंगलुरू जैसे भारत के 21 बड़े शहरों से भूजल गायब हो जाएगा। इससे करीब 10 करोड़ लोग प्रभावित होंगे। अगर पेयजल की मांग ऐसी ही रही तो वर्ष 2030 तक स्थिति और विकराल हो जाएगी। वर्ष 2050 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में छह प्रतिशत तक की कमी आएगी।

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ओडिशा में इस साल जून के महीने में 31.5 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई है। एक अधिकारी ने बताया कि राज्य में जून के दौरान 216.5 मिमी के दीर्घकालिक औसत (एलटीए) के मुकाबले महज 148.3 मिमी बारिश हुई है। वही यूपी के राजधानी लखनऊ में रविवार सुबह बारिश हुई जिससे लोगों को राहत मिली लेकिन दोपहर तक तेज धूप खिलने से उमस बढ़ गई। बात करें राजस्थान की तो पिछले 24 घंटों के दौरान पूर्वी हि‍स्सों के एक-दो स्थानों पर मध्यम दर्जे की बारिश और एक-दो स्थानों पर भारी बारिश दर्ज की गई।

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (30 जून) को 'मन की बात' कार्यक्रम में देश के जल संकट को लेकर चिंता जाहिर की थी और इस दिशा में काम करने के लिए तीन सुझाव भी दिए थे। उन्‍होंने कहा था कि पानी की कमी से देश के कई हिस्‍से हर साल प्रभावित होते हैं। साल भर में बारिश से जो पानी मिलता है उसका सिर्फ 8 प्रतिशत हमारे देश में बचाया जाता है। अब समय आ गया है इस समस्‍या का समाधान निकाला जाए। मुझे विश्‍वास हम दूसरी और समस्‍याओं की तरह ही जनभागीदारी से जन शक्‍ति से 130 करोड़ देशवासियों के सामर्थ्‍य, सहयोग और संकल्‍प से इस संकट का भी समाधान कर लेंगे। (इनपुट भाषा)


   

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