नोटबंदी का असर : छोटे किसानों की ज़मीनें बिकने से बच गईं

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   10 Nov 2017 4:02 PM GMT

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नोटबंदी का असर : छोटे किसानों की ज़मीनें बिकने से बच गईंएक किसान।

लखनऊ। नोटबंदी के एक साल पूरे होने पर इससे नफा और नुकसान की बहस जारी है, लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि कई छोटे किसानों की ज़मीनें बिकने से बच गईं।

लोगों को दिक्कत तो हुई, लेकिन ज़मीन के खरीदार न मिलने से छोटे किसानों की ज़मीनें बच गईं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के काकोरी कस्बे के पास चिलौली गाँव निवासी त्रिभुवन (64 वर्ष) के परिवार में आठ लोग हैं, उन्हें बेटी की शादी करने के लिए कुछ जमीन बेचनी थी, पर कोई खरीददार ही नहीं मिला और उनकी ज़मीन बच गई।

त्रिभुवन बताते हैं, "नोटबंदी से ऐसे तो हमें कोई नुकसान नहीं हुआ पर जैसे शादी-ब्याह में एक-दो बिस्सा जमीन बेचना चाहें तो कोई खरीदार ही नहीं मिल रहा। मजबूरी में ही सही नोटबंदी से हमारी जमीन बच गई।" त्रिभुवन के पास सवा बीघा जमीन और दो भैंसे हैं।

नोटबंदी से रियल एस्टेट सेक्टर पर इसका असर जरूर दिखा। रियल एस्टेट कंसलटेंसी फर्म 'नाइट एंड फ्रैंक' की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 में घरों की बिक्री 23 प्रतिशत गिरी, नए प्रोजेक्ट की लांचिंग में 46 प्रतिशत की कमी आई। वर्ष 2017 के शुरूआत के तीन महीनों में तो बिक्री पिछले साल के मुकाबले 44 प्रतिशत कम रही।

देश में रियल एस्टेट डवलपर्स के एसोसिएशन 'क्रेडाई' के अध्यक्ष नंदु बेलानी ने भी एक अखबार को दिए इंटरव्यू में माना था कि रियल एस्टेट सेक्टर पर नोटबंदी से 30 प्रतिशत तक व्यवसाय में कमी आई। हालांकि नोटबंदी से पहले ही यह क्षेत्र मंदी की चपेट में था, नोटबंदी से स्थिति थोड़ी विकट हुई है।

किसानों की ज़मीनों की खरीद-फरोख्त में कमी पर कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा कहते हैं, " अगर खरीदफरोख्त में कमी आई है तो यह अच्छी बात है। पर कितने लोग है जो अपनी जमीनें बेचना चाह रहे हैं। आखिर किसान की जीविका की बात है," पर आगे बताते हैं, "ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर जितना असर मैंने इस बार देखा है, उतना पिछले तीस वर्षों में कभी नहीं देखा। दो साल सूखा पड़ने (2014-15 व 2015-16) के बाद नोटबंदी की मार जो किसानों पर पड़ी, वह सूखे से भी अधिक खतरनाक रही।"

भारत में करीब 85 फीसदी खेती करने वाले छोटे किसान हैं। कुल 13.78 करोड़ कृषि भूमि धारकों में से लगभग 11.71 करोड़ छोटे-मंझोले किसान हैं। जहां आजादी के समय कृषि का जीडीपी में योगदान 52 फीसदी था। यह अब घटकर करीब 14.5 फीसदी रह गया है।

वहीं, नोटबंदी को लेकर राजस्थान के सीकर जिले के खंडेला तहसील के मघईपुरा गाँव के किसान सूरजभान ने फोन पर बताया, "किसानों पर बहुत असर नहीं पड़ा। घर का अनाज, घर का ही दूध-दही। जैसे पहले था वैसे अब भी। बस थोड़ा बहुत असर आया वो जब हम फसल को बाजार में बेचने गए, तो दाम सही-सही नहीं मिले।"

नोटबंदी के बाद से जो जमीनें महंगी मिलती थीं, वो सस्ती हो गईं, जिसे हम बहुत अच्छा मानते हैं। यह कालेधन पर सख्ती से प्रहार हुआ है।
सूरजभान किसान मघईपुरा गाँव खंडेला तहसील सीकर जिला राजस्थान

दिल्ली में रहने वाले रियल एस्टेट एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा ने एक अखबार को बताया हैं, "नोटबंदी ने एक ओर जहां इस क्षेत्र में ग्रोथ कम की, वहीं कई सबक भी दिए। ग्रोथ में कमी इसलिए आई क्योंकि उस दौरान बिल्डर और ग्राहक दोनों स्क्रूटनी के डर से लेन-देन करने से बच रहे थे। अब माहौल सही है और ग्रोथ में तेजी आएगी।"

उत्तर प्रदेश में कुल 2.30 करोड़ किसान हैं, इनमें से 92.5 प्रतिशत (2.15 करोड़) (लघु एवं सीमांत) किसान हैं। जिनके पास एक से डेढ़ बीघा खेती योग्य जमीन है।

उधर, झारखंड के खूंटी जिले के जरियागढ़ गाँव में रहने वाले किसान आकाश कुमार (30 वर्ष) नोटबंदी से नुकसान ही मानते हैं। उन्होंने फोन पर बताया, "पिछले साल धान काटने का समय था, नोटबंदी से धान का भाव सही नहीं मिला," आगे बताते हैं, " नोटबंदी से कालेधन पर रोक लगी है जिसका प्रयोग जमीन खरीद में अधिक होता है, और इसीका असर है कि जो थोड़ी बहुत जमीन खरीदी और बेची जाती है उसमें कमी आई है।"

पिछले दिनों किसान आंदोलन को लेकर चर्चा में रहे मध्य प्रदेश के मंदसौर के जिले के सुआसरा तहसील के टोकड़ा गाँव के किसान गोवर्धन लाल धनोलिया (62 वर्ष) बताते हैं, "नोटबंदी से किसानों पर अच्छा बुरा दोनों तरह से असर पड़ा। जहां फसलों के अच्छे दाम नहीं मिल पाए, वहीं बैंकों के जरिए लेन-देन जरूरी होने से जमीनों की खरीद फरोख्त में भारी कमी आई। जिस वजह से जमीनों के दाम कम हो गए, तो व्यापारी दूर भागने लगे।

मजदूरों को नहीं मिला काम

लखनऊ। 12वीं तक पढ़ाई के बाद खेती शुरू करने वाले लखनऊ के काकोरी कस्बे के मुबारकपुर गाँव निवासी प्रदीप कुमार (22 वर्ष) बताते हैं, "नोटबंदी से इलाके में काफी फर्क पड़ा है, जहां खेती की ज़मीन का दाम एक करोड़ रुपए बीघा था अब 70 लाख रुपए से भी कम हो गया है, फिर भी खरीदार नहीं मिल रहे।"

आगे बताते हैं, "मजदूर अड्डे से वापस आ जाते हैं, काम मिलता ही नहीं, जबकि मजदूरी भी घटाकर 200 रुपए कर दी गई है।

'किसान ज़मीन बेचकर धंधा तो कर सकता है'

लखनऊ। भारतीय किसान यूनियन के एक बड़े नेता राकेश टिकैत ने कहा, "नोटबंदी से किसान को कोई फायदा नहीं, मान लो कि अगर जमीन के अच्छे दाम मिले रहें तो किसान भी एक दो बीघा जमीन बेचकर पैसे को किसी दूसरे धंधे में लगाकर कुछ दूसरा काम करेगा, पर नोटबंदी से जमीन के दाम गिर गए हैं तो यह तो किसान के लिए नुकसानदायक है।"

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उन्होंने आगे कहा, "पैसा बाजार में रहेगा तो बाजार अच्छा चलेगा, किसान भी खुश, व्यापारी भी खुश धंधा भी चोखा चलेगा। अगर पैसा ही खत्म कर दोगे तो धंधा बुरी तरह से प्रभावित होगा।"

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