प्रधानमंत्री को एक आईएएस की चिट्ठी
Manish Mishra 27 March 2018 6:43 PM GMT
देश के मौजूदा हालात और जमीनी हकीकत को पिछले 35 वर्षों से समझ रहे एक वरिष्ठ आईएएस से जब रहा न गया तो सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिख दी। जब आठ नवंबर, 2016 को देश में नोटबंदी की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा की तो उनके फैसले से प्रभावित होकर यूपी कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी चंद्र प्रकाश ने देश को विकास के रास्ते पर लाने के लिए अपने प्रशासनिक अनुभवों के आधार पर एक ख़त लिख दिया। आईएएस चंद्रप्रकाश मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में समाज कल्याण आयुक्त हैं।
प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी का मजमून कुछ ऐसा है-
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
प्राकृतिक व मानव संसाधनों और बेहतर जलवायु से परिपूर्ण भारत में विश्व की ताकत बनने की प्रबल क्षमता है। इतना सब होने के बावजूद भी जनसंख्या के दवाब, जाति आधारित अलगाववाद और शिक्षा में नैतिक मूल्यों की कमी, देश की तरक्की में बाधा हैं। हम इस सब से उबर सकते हैं, इससे निपटने के लिए अपने प्रशासनिक और जमीनी अनुभवों के आधार पर मेरे कुछ सुझाव हैं, ये कड़े कदम उठाते हुए हम बेशक देश को तरक्की के रास्ते पर ले जा सकते हैं:-
1. सभी वर्गों व समुदायों के परिवार को केवल 2 बच्चों तक सीमित रखना :- भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या एक चिंता का विषय है। वर्ष 2030 तक हमारी जनसंख्या 1.5 अरब हो जाएगी व अगले 7 वर्षों में हम चीन को भी पछाड़ देंगे। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा दबाव प्रतिवर्ष बढ़ रहा है, जिसके कारण हमारी जो भी योजनाएं हैं उसका लाभ सभी व्यक्तियों को नहीं मिल पा रहा है। अच्छी योजनाएं होते हुए भी उसका प्रभाव विकास कार्यों में देखने को नहीं मिलता है। इसलिए ये आवश्यक हो गया है कि एक ऐसा कानून बनाया जाए जिसके अंतर्गत कोई भी परिवार दो बच्चों तक ही सीमित रहे।
2. जातिविहीन समाज की स्थापना :- इस देश में जाति व्यवस्था देश के सर्वांगीण विकास में सबसे अधिक बाधक है। जातिगत आधार पर प्राचीनकाल से भेदभाव होता रहा है, जिस कारण कुछ जातियों के व्यक्तियों को विकास का समान अवसर नहीं मिल पाता है व हीन भावना पैदा की वजह से वह विकास की मुख्य धारा में शामिल नहीं हो पाते हैं। इसलिए आवश्यक हो गया है कि एक ऐसा कानून बनाया जाए जिससे कि किसी भी व्यक्ति को अपने नाम के आगे जातिसूचक सरनेम लगाने की मनाही हो। इसके परिणामस्वरूप कुछ वर्षों के बाद भावी पीढ़ी को यह नहीं पता होगा कि वह किस वर्ग व जाति का है। इस स्थिति में समाज में केवल दो ही वर्ग होंगे, अमीर और गरीब। सरकार द्वारा सभी गरीब व्यक्तियों को आवश्यक सुविधाएं बिना किसी भेदभाव दी जा सकेंगी।
3. संस्कारयुक्त शिक्षा प्रणाली :- संस्कारयुक्त शिक्षा के लिए बजट का 50 प्रतिशत शिक्षा पर व्यय किए जाने का प्रावधान हो। भारत में भ्रष्टाचार भाई-भतीजावाद व धार्मिक संकीर्णता की सदियों से भीषण समस्या रही है। समस्या का मुख्य कारण ये है कि हमारी शिक्षा प्रणाली संस्कारविहीन हो गई है, जिसके कारण शिक्षित लोग भी पाखण्डी मानसिकता से ग्रस्त हैं। शिक्षा प्रणाली मात्र अच्छी नौकरी पाना व पैसा कमाने का जरिया बनकर रह गई है, जबकि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य एक अच्छा मनुष्य, एक अच्छा नागरिक बनना है। इसलिए जूनियर हाईस्कूल के बाद बच्चों को नैतिक शिक्षा जैसे मानवतावाद, राष्ट्रवाद, सहिष्णुता, कानून का पालन करना और अन्याय के खिलाफ लड़ना आदि की शिक्षा दी जाए। आज की शिक्षा प्रणाली में पब्लिक स्कूलों की शिक्षा प्रणाली व ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा प्रणाली में बहुत बड़ा अंतर आ गया है। ग्रामीण क्षेत्र का पढ़ा छात्र पब्लिक स्कूल से पढ़े हुए छात्र से कभी भी प्रतिस्पर्धा में बराबर नहीं आ पा रहा हे। यदि शिक्षा प्रणाली में एकरूपता लाई जाए तो ये देशवासियों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी और संस्कारयुक्त शिक्षा पाने के पश्चात ये बच्चे भारत राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दे सकें।
भवदीय
चन्द्र प्रकाश, आईएएस
(वरिष्ठ आईएएस चन्द्र प्रकाश ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह पत्र 03 मार्च, 2017 को भेजा था, लेकिन वह जवाब के इंतजार में हैं। उत्तर प्रदेश हरदोई जिले में जन्मे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी चंद्र प्रकाश इससे पहले प्रमुख सचिव लघु सिंचाई व कृषि उत्पादन आयुक्त भी रह चुके हैं।)
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