''हम मदरसा शिक्षक हैं, लेकिन हमारा हाल भिखारी से भी बदतर कर दिया है''
मदरसों में आधुनिक शिक्षा देना वाले शिक्षकों का बुरा हाल है। इन्हें तीन साल से मानदेय नहीं मिला है, जिसे लेकर यह लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।
Ranvijay Singh 11 Feb 2019 8:12 AM GMT

रणविजय सिंह/दिति बाजपेई
लखनऊ। ''हम शिक्षक हैं, समाज में हमारी एक इज्जत है, लेकिन इस सरकार ने हमें ऐसे मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है कि अब सम्मान बचाना भी मुश्किल हो रहा है। घर चलाने के लिए हम रिक्शा चलाते हैं, सब्जी बेचते हैं और मजदूरी भी करते हैं।'' आंखों में आंसू लिए और रुंधे गले से यह बात मोहम्मद कुतुबुद्दीन कहते हैं।
कुतुबुद्दीन की तरह ही उत्तर प्रदेश के करीब 25500 आधुनिक मदरसा शिक्षकों का हाल बेहाल है। पिछले तीन साल से इन शिक्षकों को केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाला मानदेय नहीं मिला रहा। आलम यह है कि जिन शिक्षकों पर मदरसों के बच्चों को आधुनिक शिक्षा देकर मुख्यधारा से जोड़ने की जिम्मेदारी थी, उनके खुद के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं।
अपने बकाया मानदेय की मांग को लेकर आधुनिक मदरसा शिक्षक लगातार धरना प्रदर्शन करते आ रहे हैं। लखनऊ के इको गार्डन में भी पिछले 8 जनवरी से इनका अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन चल रहा है। इस प्रदर्शन में वक्त-वक्त पर उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से आधुनिक मदरसा शिक्षक शामिल होते हैं और फिर लौट जाते हैं।
मो. कुतुबुद्दीन जो कि लखनऊ के बालागंज में मौजूद एक मदरसे में मैथ और साइंस के शिक्षक हैं, वो भी इस प्रदर्शन में वक्त निकाल पहुंचते हैं। कुतुबुद्दीन बताते हैं, ''हम लगातार प्रदर्शन करके भी हार चुके हैं। पिछले साल सितंबर और दिसंबर के महीने में दिल्ली में पदर्शन किया गया। अब यहां भी प्रदर्शन ही चल रहा है। इससे क्या फायदा होगा कुछ पता नहीं। हर बार कोई न कोई आश्वासन मिल जाता है, लेकिन समस्या जस की तस बनी रहती है।''
मो. कुतुबुद्दीन बताते हैं, ''केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने 1993 में मदरसों की शिक्षा व्यवस्था में सुधार करने और उन्हें आधुनिक बनाने के मद्देनजर 'स्कीम फॉर प्रोवाडिंग क्वॉलिटी एजुकेशन इन मदरसा' (एसपीक्यूएम) योजना शुरू की। इस योजना के तहत मदरसों में अंग्रजी, गणित, विज्ञान, कंप्यूटर और सामाजिक विज्ञान जैसे विषय पढ़ाए जाने की शुरुआत हुई। इन विषयों को पढ़ाने के लिए आधुनिक शिक्षकों को भर्ती किया गया, जिसमें पोस्ट ग्रैजुएट शिक्षकों को 12 हजार और ग्रैजुएट शिक्षकों को 6 हजार प्रतिमाह मानदेय देना तय हुआ।''
मो. कुतुबुद्दीन बताते हैं, ''पहले तो सब सही था, लेकिन मार्च 2016 के बाद से मानदेय मिलना बंद हो गया। तब से लेकर अब तक तीन साल होने को आ रहे हैं, लेकिन एक रुपया नहीं मिला है।'' कुतुबुद्दीन बताते हैं, ''अपने काम का पैसा न मिलने से यह हाल है कि समाज में मुंह छिपाकर रहना पड़ा रहा है। पहले मैं किराए पर कमरा लेकर रहता था, लेकिन अब तो पास मैं किराया देना का भी पैसा नहीं है। ऐसे में एक दोस्त ने मुझे अपने घर पर रख रखा है। मेरे साबुन तेल से लेकर खाने पीने का खर्च भी वही उठा रहा है, लेकिन ऐसा कब तक चलेगा।''
कुतुबुद्दीन कहते हैं, ''घर वाले कहते हैं, यह काम छोड़ दो। मैं सोचता हूं अगर यह छोड़ दिया तो करूंगा क्या। मेरी अब उम्र भी बीत गई है, कोई दूसरी नौकरी भी नहीं मिलेगी। वहीं, तीन साल का पैसा भी तो फंसा है, अगर छोड़ दिया तो वो भी नहीं मिलेगा।'' कुतुबुद्दीन बताते हैं, ''अपना खर्च चलाने के लिए प्राइवेट ट्युशन पढ़ा रहा हूं, लेकिन उससे भी इतना नहीं होता कि इज्जत की जिंदगी गुजर बसर कर सकूं।'' कुतुबुद्दीन जिस मदरसे में पढ़ाते हैं वहां दो और अधुनिक शिक्षक हैं, नाजिया जो कि हिंदी पढ़ाती हैं और गुलाम अब्दुल सत्तार जो कि सोशल साइंस पढ़ाते हैं। इनका हाल भी कुतबुद्दीन की तरह ही खस्ताहाल है।
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड समेत देश के 17 राज्यों में करीब 50 हजार से अधिक आधुनिक मदरसा शिक्षक हैं। इनमें से करीब आधे उत्तर प्रदेश में हैं, जिनकी संख्या 25500 है। यह शिक्षक राज्य के मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त 8584 मदरसों में करीब 10 लाख बच्चों को आधुनिक शिक्षा दे रहे हैं।
लखनऊ में चल रहे प्रदर्शन में शामिल अशरफ अली बताते हैं, ''मैं बहराइच के दारूल ऊलूम मदरसे में आधुनिक शिक्षक हूं, लेकिन मेरे हालात किसी भिखारी से भी बदतर हो गए हैं। हमारी मेहनत का पैसा हमें नहीं मिल रहा है। शिक्षक को राष्ट्र का निर्माता कहा जाता है, लेकिन क्या शिक्षकों की लाशों पर राष्ट्र का निर्माण होगा।''
अशरफ बताते हैं, ''इसी महीने मेरे बस्ती जिले के एक साथी जिनका नाम आरिफ था उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई। उन्हें इस बात की चिंता थी कि उनका बकाया मानदेय कब आएगा।'' अशरफ के मुताबिक, ''मानदेय न मिलने की वजह से कई लोगों ने सुसाइड कर लिया, कितनों की शादी टूट गई, कितनों ने उधार लिया है लेकिन चुका नहीं पा रहे हैं और सबसे बड़ी क्षति यह हुई कि एक शिक्षक की तरह वो लोग समाज में सर उठाकर चल नहीं पा रहे।''
अनंत प्रताप महराजगंज जिले के एक मदरसे में आधुनिक शक्षिक हैं। वो बताते हैं, ''आधुनिक मदरसा शिक्षकों में केवल मुसलमान शिक्षक ही नहीं हैं। इनमें करीब 40 फीसदी शिक्षक हिंदू हैं। मैं भी इनमें से एक हूं।'' अनंत कहते हैं, ''यह समझने की जरूरत है कि हम किन बच्चों को आधुनिक शिक्षा दे रहे थे। यह उस वर्ग से जुड़े बच्चे हैं जिन्हें लेकर हमेशा कहा जाता है कि पढ़ाई लिखाई में यह लोग पिछड़े हुए हैं। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है कि इस वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ें, जिससे यह देश में अपना योगदान दे सकें और एक समाज के तौर पर भी आगे बढ़ सकें। लेकिन सरकार तो इन बच्चों को आधुनिक शिक्षा देने वाले शिक्षकों को ही खत्म करने पर तुली है। ऐसे तो यह बच्चे कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे, कभी समाज के दूसरे वर्ग की बराबरी नहीं कर पाएंगे।''
अनंत बताते हैं, ''सरकार बस मदरसों की जांच पर जांच करा रही है। तीन-तीन बार इनकी जांच हुई। सभी मदरसे इन जांच में खरे भी उतरे, लेकिन मानदेय देने की कोई बात ही नहीं हुई। हम लोगों ने कई आरटीआई (राइट टू इंफॉर्मेशन) भी फाइल की, उसमें जवाब आया कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से केंद्र सरकार को यू-डाइस उपलब्ध नहीं कराया गया, इसलिए हमारा मानदेश नहीं जारी किया गया है। अब इसमें हमारी क्या गलती है?'' यू-डाइस (यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन) भारत के स्कूलों के बारे में एक डेटाबेस है। इसमें स्कूलों के बारे में जानकारी होती है। मदरसों के मामले में भी ऐसा ही यू-डाइस उत्तर प्रदेश को केंद्र सरकार को भेजना होता है।
अनंत कहते हैं, ''राज्य सरकार ने हमसे कहा कि पोर्टल बना रहे हैं, उसमें अपनी जानकारी दे दीजिए तो सारी व्यवस्था सुचारू रूप से चल पड़ेगी। यह जानकारी भी दे दी गई। पोर्टल (madarsaboard.upsdc.gov.in) पर सारी जानकारी मौजूद भी है। इसके बावजूद हमारी समस्या का कोई समाधान नहीं है।'' अनंत की बात पर मो. फैजल कहते हैं, ''कभी जांच तो कभी पोर्टल में रजिस्ट्रेशन, यह सारी व्यवस्था इस लिए है कि कोई व्यवस्था न बन सके। हमें क्या दिक्कत है यह कोई नहीं पूछ रहा, नए-नए नियम जरूर लागू कर दे रहे हैं।'' फैजल फैजाबाद जिले के एक मदरसे में साइंस के टीचर हैं।
इस मामले पर गांव कनेक्शन ने अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सैयद गय्यूर उल-हसन रिजवी से बात की तो उन्होंने कहा, ''मैं इस मामले को लेकर एचआरडी मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर से मिला था। इसके बाद शिक्षकों का एक साल का पैसा रिलीज कर दिया गया, लेकिन अभी तक वो खाते में पहुंचा नहीं है। मैं अभी 10 दिन पहले भी मिनिस्टर से मिला हूं। इसमें नई पॉलिसी का मामला फंस रहा है।''
सैयद गय्यूर उल-हसन रिजवी बताते हैं, ''नई पॉलिसी के तहत केंद्र सरकार की ओर से ऐसा प्रस्ताव है कि मानदेश में 60:40 का अनुपात रखा जाए। यानी 60 प्रतिशत केंद्र सरकार दे और 40 प्रतिशत राज्य सरकार दे। इस बात को लेकर ही मामला अटका हुआ है। हालांकि मैंने मिनिस्टर साहब से मुलाकत कर कहा है कि पॉलिसी को लेकर वो काम करते रहें, लेकिन फिलहाल पैसा खातों में भेजा दिया जाए। उन्होंने इसपर हामी भी भरी है और मुझसे पैड पर लिखकर मांगा है। मैंने भेज दिया है, शायद अभी पहुंचा नहीं होगा। मैं लगातार कोशिश कर रहा हूं।'' राज्य सरकार की ओर से यू-डाइस न भेजे जाने पर सैयद गय्यूर उल-हसन रिजवी कहते हैं, ''इस बारे में मुझे जानकारी नहीं है।''
प्रदर्शन में शामिल अशरफ अली कहते हैं, ''केंद्र और राज्य सरकार की पॉलिसी में हम सब पिस रहे हैं। सरकार को 60:40 के अनुपात के तहत मानदेय देना है तो वो भी दे। बस इस तरह से हमारा मानदेय न रोका जाए।'' अशरफ बताते हैं, राज्य में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तो मदरसा आधुनिक शिक्षकों को राज्य की ओर से भी मानदेय देने की शुरुआत हुई थी। इसके तहत पोस्ट ग्रैजुएट शिक्षकों को 3 हजार और ग्रैजुएट शिक्षकों को 2 हजार प्रतिमाह मानदेय देना तय हुआ था, जाकि मिल रहा है। बस केंद्र सरकार की ओर मानदेय बकाया है।
हाल ही में आए योगी आदित्यनाथ सरकार के तीसरे बजट में भी मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए 459 करोड़ का बजट रखा गया है। वहीं, 26 सितंबर 2018 को केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की मदरसा प्रोजेक्ट अप्रूवल कमेटी के साथ मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग में बकाया मानदेय के भुगतान के लिए 358 करोड़ रुपये पास किए गए थे। हालांकि अब तक यह पैसा शिक्षकों के खातों में नहीं पहुंचा है। इन जारी किए बजट को लेकर प्रदर्शन कर रहे आधुनिक शिक्षक फैजल कहते हैं, 'सरकार की मंशा अगर मदरसों को आधुनिक बनाने की है तो शिक्षकों का मानदेय रोकना ही नहीं चाहिए। बजट जारी करने भर से मदरसे आधुनिक नहीं होंगे। इस बजट से काम भी होना चाहिए।''
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