एक एकड़ में होता है 40 हजार का गेहूं, आग लगने पर सरकार दे रही सिर्फ 12 हजार

मुआवजे के नाम पर खिलवाड़ कर रही सरकार, इतने में तो लागत भी न निकले,ऊंट के मुंह में जीरा है मुआवजा, एक एकड़ पर दे रहे मात्र 12 हजार रुपए

Ranvijay SinghRanvijay Singh   9 April 2019 5:53 AM GMT

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एक एकड़ में होता है 40 हजार का गेहूं, आग लगने पर सरकार दे रही सिर्फ 12 हजार

होशंगाबाद/ लखनऊ। मध्‍य प्रदेश के होशंगाबाद और इटारसी तहसील में 6 अप्रैल की शाम खेतों में आग लग गई। देखते ही देखते यह आग 17 गांव तक फैल गई। प्रशासन द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक, इस आग से 384 किसानों की 801.305 एकड़ जमीन पर लगी फसल जल गई है, वहीं 3 किसानों की जलकर मौत हो गई। सरकार ने मुआवजे की घोषणा कर दी है, लेकिन किसानों के नुकसान के सामने यह मुआवजा 'ऊंट के मुंह में जीरा' के समान है।

इस आग में होशंगाबाद के बड़ोदिया खुर्द गांव के रहने वाले सूरज प्रताप सिंह की फसल भी जल गई है। वो बताते हैं, ''मेरे परिवार की डेढ सौ एकड़ फसल का नुकसान हुआ है। हमने सुना है कि 12 हजार रुपए एकड़ आएंगे, लेकिन यह तो बहुत कम है। एक एकड़ में 18 से 20 कुंतल गेहूं होता है। अगर एमएसपी के हिसाब से ही देखें तो केंद्र सरकार के 1840 रुपए और राज्‍य सरकार के 160 रुपए मिलाकर यह 2 हजार रुपए होते हैं। ऐसे में एक एकड़ में 40 हजार का गेहूं निकलता, लेकिन मुआवजा सिर्फ 12 हजार मिलेगा। यह तो न के बराबर है।''

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बड़ोदिया खुर्द गांव के ही रहने वाले मुरारी सिंह राठौर के 12 एकड़ पर लगी फसल आग से खाक हो गई। वो कहते हैं, ''तहसीलदार का कहना है कि 1 लाख 20 हजार से ज्‍यादा किसी को नहीं मिलेगा। चाहे कितनी भी फसल जली हो। अभी पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान आए थे तो उन्‍होंने बताया कि शासन का नियम है कि 1 लाख हेक्‍टेयर के हिसाब से मुआवजा मिलना चाहिए, लेकिन राज्‍य सरकार तो सिर्फ 30 हजार रुपए हैक्‍टेयर देने की बात कह रही है। अब मेरा तो 12 एकड़ ही है। वहीं मेरे पास के ही रहने वाले सरताज सिंह चौधरी की 42 एकड़ फसल जल गई है। उन्‍हें भी सिर्फ 1 लाख 20 हजार रुपए दे रहे हैं। अब सोचिए कि इतने कम में कैसे चल पाएगा।''

मुरारी सिंह कहते हैं, ''आग से हुए नुकसान पर फसल बीमा योजना का लाभ भी नहीं मिलता। अगर सरकार उसके लिए भी नोटिफिकेशन जारी कर देता तो हमारा भला हो जाता।''

आग से हुए नुकसान पर होशंगाबाद के एसडीएम आरएस बघेल कहते हैं, ''पीड़ित किसानों को आरबीसी 6-4 के प्रावधानों के अनुसार क्षतिपूर्ति राशि स्‍वीकृत की गई है। 2 हैक्‍टेयर से अधिक जमीन वाले लघु-सीमांत किसानों को 27 हजार रुपए प्रति हैक्‍टेयर और 2 हैक्‍टेयर तक के किसानों को 30 हजार रुपए प्रति हैक्‍टेयर के हिसाब से मुआवजा दिया जाएगा।'' बता दें, एक हैक्‍टेयर में ढाई एकड़ जमीन होती है।

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आगजनी से हुए नुकसान को फसल बीमा योजना का लाभ न मिलने पर एसडीएम कहते हैं, ''ऐसा कोई नोटिफिकेशन हमारे ओर से जारी नहीं किया जा सकता। सरकार इसे जारी कर सकती है। फिलहाल राज्‍य सरकार की ओर से 94 लाख 24 हजार 284 रुपए की आर्थ‍िक सहायता स्‍वीकृत की गई है। यह राशि होशंगाबाद के 13 गांव के 306 किसानों और इटारसी के 4 गांव के 78 किसानों के बीच बांटी जाएगी।''

कैसे लगती है आग?
- बिजली के तारों से
- राह चलते लोगों के सिगरेट-बीड़ी सुलगाने से
- खेत को साफ करने के लिए लगाई गई आग से

आगजनी के बाद प्रशासन की ओर से किए गए सर्वे को कई लोग गलत भी ठहरा रहे हैं। इन्‍हीं में से एक हैं राष्‍ट्रीय किसान मजदूर महासंघ से जुड़े भगवान सिंह मीणा। वो कहते हैं, ''प्रशासन इतनी जल्‍दी नुकसान का आंकलन कैसे कर सकता है। यह साफ तौर से नुकसान को कम बता रहे हैं। नुकसान ज्‍यादा हुआ है और इसे कम दिखाकर बस खानापूर्ति की जा रही है।'' भगवान सिंह मीणा कहते हैं, ''वो तो यह मामला बड़ा हो गया वर्ना आग लगने की घटनाओं में ज्‍यादातर मुआवजा मिलता ही नहीं, क्‍योंकि यह घटनाएं छुट पुट होती हैं, ऐसे में इसे दबा दिया जाता है।''

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भगवान सिंह मीणा की बात को बल इससे भी मिलता है कि मध्‍य प्रदेश के ही हरदा जिले के हरदा खुर्द गांव में होली के दिन फूलचंद धौल्‍या के खेत में आग लग गई थी। उनकी भी फसल जल कर राख हो गई, लेकिन उन्‍हें अभी तक कोई मुआवजा नहीं मिला है। फूलचंद धौल्‍या (45 साल) बताते हैं, ''होली के दिन मेरे 10 एकड़ खेत में आग लग गई थी। मैंने गेहूं लगाया था, सब खत्‍म हो गया। तहसीलदार मौके पर आए थे, लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला है।''


फूलचद धौल्‍या की तहर ही डोलरिया के रहने वाले हरपाल सिंह की फसल भी जली है। वो बताते हैं, ''होशंगाबाद की घटना के बाद हमारे क्षेत्र में भी आग लगी थी, लेकिन इसके लिए किसी तरह का मुआवाजा नहीं दिया गया है। ऐसा हर साल होता है कि कहीं न कहीं आग लगती है, पर उसके लिए मुआवजा जारी नहीं होता। क्‍योंकि यह अलग-अलग स्‍थानों पर अलग-अलग किसानों के साथ होता है। ऐसे में इसको ज्‍यादा अहमियत नहीं दी जाती। होशंगाबाद वाला मामला बड़ा हो गया। उसमें किसान जल कर मर गए इसलिए राहत पैकेज दे दिया गया। नहीं तो हर साल ऐसी घटनाएं होती हैं और मुआवजे के नाम पर कुछ नहीं मिलता।''

आम किसान यूनियन के राम इनानिया कहते हैं, ''किसानों को मिलने वाला मुआवजा ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही होता है। इससे नुकसान की भरपाई तो नहीं हो सकती। हमने कई बार प्रयास किया कि मुआवजा सही मिले, लेकिन जिले से यह बात आगे बढ़ ही नहीं पाई।''

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कृषि मामलों के जानकार और प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा कहते हैं, ''कृषि के हालात ही ऐसे हैं कि किसानों को कुछ नहीं मिलता। अभी सोच है कि कृषि पर हम दान कर रहे हैं। यह सोच गलत है। कृषि को इकॉनोमिक एक्‍ट‍िविटी नहीं माना जाता, अगर मानते तो इसे सब कुछ मिलता, जैसे इंडस्‍ट्री को मिलता है। सरकारों को इस सोच से बाहर निकलना होगा कि वो किसानों पर मेहरबानी कर रही हैं।''

देविंदर शर्मा कहते हैं, ''मेरे ध्‍यान में नहीं कि कभी ऐसे मामलों के लिए किसी ने आवाज उठाई हो। क्‍योंकि एक्‍क दुक्‍का मामले होते हैं तो किसी को पता नहीं चलता। वो तो सोशल मीडिया का जमाना आ गया है तो अब ऐसे घटनाएं सामने आ रही हैं। वरना यह होती थीं और पता भी नहीं चलता था।''


 

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