प्रेमचंद की कहानी का महाजन 21वीं सदी में भी जिंदा है, पढ़िए 20 साल से बंधुआ मजदूर रहे गुल्लू मुर्मू की कहानी

प्रेमचंद की एक कहानी थी 'सवा सेर गेंहूं' जिसमें एक ऐसे गरीब किसान शंकर का दर्द है, जो सवा सेर गेंहूं का कर्ज महाजन के यहाँ जीवनभर नहीं चुका सका। शंकर के मरने के बाद उनके बेटे को महाजन के यहाँ बंधुआ मजदूरी करनी पड़ी। ये कहानी 100 साल पहले के भारत की एक दर्दभरी तस्वीर को बयान करती है, लेकिन महाजन जैसे किरदार तो आज भी समाज में मौजूद हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   26 Oct 2020 2:30 AM GMT

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प्रेमचंद की कहानी का महाजन 21वीं सदी में भी जिंदा है, पढ़िए 20 साल से बंधुआ मजदूर रहे गुल्लू मुर्मू की कहानीपश्चिम बंगाल के गुल्लू मुर्मू यूपी में 20 साल तक रहे बंधुआ मजदूर, वर्षों बाद परिवार से मिलकर हो गये भावुक.

गुल्लू मुर्मू अटकते हुए लड़खड़ाती आवाज़ में थोड़ी बंगला और थोड़ी हिन्दी भाषा में मिलाजुलाकर बता रहे थे,"दिनभर खेतों में काम करता था, कंडे पाथता था, ठाकुर की मालिश करता था, बर्तन मांजता था, दो बार भागने की कोशिश की तो पकड़ा गया, बहुत मार पड़ी फिर कभी भागने की कोशिश ही नहीं की।"

गुल्लू मुर्मू (60, 70 वर्ष, इन्हें उम्र अपनी ठीक से याद नहीं) पश्चिम बंगाल के दक्षिण दिनाजपुर जिले के बालूरघाट थाने के गोपालबाटी गाँव के रहने वाले हैं। इन्हें ठीक से याद नहीं है कि ये अपने बच्चों के भरण-पोषण के लिए रोजी-रोटी की तलाश में कब कमाने के लिए निकले थे? कैद में अपनी जवानी गंवा चुके गुल्लू बहुत डरे-सहमे थे। कभी ये 30-35 साल बताते तो कभी 20-25 साल। कई बार पूछने पर ये दिमाग पर थोड़ा जोर डालते हुए ये कहते हैं कि जब इनके बड़े बेटे की उम्र लगभग आठ दस साल रही होगी, अभी इनके बेटे की उम्र 28-30 साल है। इस हिसाब से ये लगभग 20 साल पहले घर से काम की तलाश में निकले थे।

लेबर कोर्ट के वकील विष्णु शुक्ल को अपनी पीड़ा बताते गुल्लू मुर्मू.

हलांकि 21वीं सदी के इस गुल्लू ने महाजन से कर्ज तो नहीं लिया था लेकिन फिर भी उसे लगभग 20 साल गुलामी करनी पड़ी। इतने वर्षों से गुल्लू मुर्मू का कोई अता-पता नहीं था इसलिए घरवालों ने और गांववालों ने इन्हें मरा हुआ समझ लिया था। गुल्लू जब घर से नागपुर कमाने आये थे तब इनके बड़े बेटे की उम्र आठ दस साल, दूसरे बेटे की उम्र छह सात साल और बेटी की उम्र पांच छह साल थी। अभी इनके बड़े बेटे और बेटी की शादी हो गयी है और उनके बच्चे भी हैं। बीस साल बाद जब गुल्लू अपने परिवार से मिले तो सब भावुक हो गये।

गुल्लू के अनुसार वह नागपुर, महाराष्ट्र में एक सरिया फैक्ट्री में काम करने आये थे उसी फैक्ट्री में यूपी के फतेहपुर जिले के अंगदपुर गाँव के भूपेन्द्र सिंह (50 वर्ष) गार्ड का काम करता था। गुल्लू ने भूपेन्द्र सिंह से कहा कि हमें कोई किराए पर कमरा बता दीजिए जहाँ हम रह सकें। भूपेन्द्र अपने ही कमरे पर ले गये और गुल्लू से कहा कि हम दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते हैं एक साथ ही रह लें। गुल्लू ने अपनी सहमति दे दी। गुल्लू पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिए ये अपने पैसे भूपेन्द्र के पास ही जमा करने लगे। इन्हें महीने के यहाँ 7,000 रुपए मिलते थे।

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गुल्लू ने बताया, "डेढ़ दो साल बाद जब हमने ठाकुर साहब (भूपेन्द्र सिंह) से कहा कि हम अब अपने गाँव जाना चाहते हैं आप हमारे पैसे दे दो। ठाकुर ने कहा हमने गाँव में कुछ जमीन खरीदी थी पैसे उसी में खर्च हो गये। तुम हमारे साथ गाँव चलो हम वहां पैसे दे देंगे और ट्रेन पर बैठाकर तुम्हें वापस भेज देंगे।"

पैसे मिलने की आस में गुल्लू भूपेन्द्र सिंह के साथ उनके गाँव अंगदपुर आ गये। गुल्लू के अनुसार दो चार दिन तो ठाकुर ने कहा कि पैसों का इंतजाम कर रहे हैं थोड़ा रुक जाओ पर जब ज्यादा दिन होने लगे तो गुल्लू ने अपने फिर पैसे मांगे और अपने गाँव वापस जाने की बात कही।

"जब हमने ठाकुर से दोबारा पैसे मांगे तो वो बोले, 'ज्यादा जुबान मत चलाओ, तुम्हें कोई पैसा-वैसा नहीं मिलेगा, अब तुम यहीं रहोगे और मेरे घर का सारा काम करोगे।' जब हमने एक दिन फिर पैसे मांगे तो उसने मेरी इतनी पिटाई की कि मेरा हाथ टूट (फैक्चर) गया। फिर रस्सी में बांधकर कुएं में लटका दिया। बस, तबसे मैं दिनभर खेतों में काम करता, बर्तन मांजता, गोबर डालता उसकी मालिश करता। वो जो काम बताता सब करता पर खर्च के लिए मुझे एक रूपये भी नहीं मिलते। दिन में दो बार खाना खाने को मिलता था, " गुल्लू मुर्मू ने अपनी आपबीती बताई।

गुल्लू मुर्मू अपने बेटे सनातन और अपने भांजे के साथ खड़े हैं, उनसे दूर रामपाल खड़े हैं जिनकी वजह से गुल्लू बंधुआ मजदूरी से मुक्त हुए हैं.

इतने वर्षों तक बंधक बनने की गुल्लू की कई वजहें बताते हैं कि उन्हें ठाकुर की मार का डर था, दो बार भागने की कोशिश की तो पकड़े जाने पर मार पड़ी, पढ़े-लिखे नहीं थे, यहाँ की भाषा भी नहीं समझ आती थ, किसी से कोई बातचीत नहीं होती थी, ठाकुर के परिवार की हमेशा हमपर नजर रहती थी और पैसे भी नहीं थे।

इस दौरान भूपेन्द्र सिंह ने नागपुर की नौकरी छोड़ दी थी। भूपेन्द्र ने मार्च 2020 में लॉकडाउन के समय कानपुर नगर के घाटमपुर क्षेत्र के डॉ शिवनारायण आर मुरलीपुर इंटर कॉलेज में गुल्लू को बगीचे की देखरेख के लिए 6,000 रूपये महीने की नौकरी पर रख दिया। कोरोनाकाल की वजह से कॉलेज बंद था इसलिए गुल्लू के अलावा वहां कोई नहीं रहता था। जून 2020 में जब यहाँ पिछले आठ साल से गार्ड की नौकरी कर रहे राम जीवन पाल (50 वर्ष) काम पर वापस आये तो उनकी गुल्लू से मुलाक़ात हुई।

रामपाल ही वो व्यक्ति हैं जिन्होंने गुल्लू को उनके राज्य वापस पहुंचाया। रामपाल गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "गुल्लू हमेशा चुपचाप बस अपना काम करता रहता था। न कभी हंसता न किसी से बोलता, चुपचाप खाना खाता और सो जाता। एक रात मैं गुल्लू के कमरे में गया तो देखा कि उसने खाना नहीं खाया है और वो बैठकर रो रहा है। हमने उसके साथ बैठकर खाना खाया। बहुत पूछने के बाद उसने मुझे डरते-डरते अपनी पूरी कहानी बताई और ये भी कहा किसी को बताना नहीं।"

गुल्लू के परिवार द्वारा दिनाजपुर के जिलाधिकारी को 25 अगस्त को दिया गया पत्र.

"मैं उस पूरी रात नहीं सोया और सोचता रहा कि कैसे इस बेचारे के सीधेपन और बिना पढ़े-लिखे होने की वजह से इसने पूरा जीवन दूसरे की गुलामी में काट दिया। मैंने उसी दिन मन में ठान लिया था चाहें कुछ हो जाए इसे वापस इसके गाँव जरुर भेजूंगा। ठाकुर हर महीने की दूसरी तारीख को गुल्लू की तनख्वाह लेने आता था, पहले ठाकुर इसी स्कूल में गनमैन का काम करता था सब उसे बहुत अच्छा मानते थे, " रामपाल ने बताया।

रामपाल ने बताया कि जब अगले महीने दो तारीख को ठाकुर गुल्लू की तनख्वाह लेने आया तो मैंने गाँव की पूरी भीड़ इकट्ठा कर ली। किसी ने सलाह दी मार-पिटाई न करो पुलिस को खबर कर दो इसलिए मैंने बिरहार चौकी में फोन किया और मामले की पूरी जानकारी दी, वहां से दो लोग आये और ठाकुर को पकड़कर ले गये।

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जब गाँव कनेक्शन ने बिरहार चौकी इंचार्ज विनोद कुमार को फोन किया तो उन्होंने बताया, "बंधक बनाने की हमारे पास कोई सूचना नहीं आयी। मुझे ये पता चला था कि ठाकुर गुल्लू को अपने घर ले जाना चाहता था लेकिन गुल्लू अपने गाँव वापस जाना चाहता था। स्कूल के कोई टीचर आये थे वो बोलकर गये कि हम गुल्लू को वापस गाँव भेज देंगे। बंधक बनाने वाली कोई बात संज्ञान में नहीं आयी थी।"

रामपाल ने बताया, "मुझे ऐसा पता चला कि किसी मंत्री की मदद से ठाकुर दूसरे दिन ही छूट गया था इसके बाद वो कहां गया मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं पर फिर कभी वो स्कूल नहीं आया। हमने थाने में एफआईआर तो नहीं दर्ज करवाई थी फोन से ही सूचना दी थी। ठाकुर को जेल भिजवाने पर हमने जोर नहीं दिया, हमारा ध्यान इस बात पर केन्द्रित था कि कैसे भी करके गुल्लू जल्द से जल्द अपने घर पहुंच जाए। हमने कुछ लड़कों की मदद से इंटरनेट के जरिये बालूरघाट थाने का नम्बर खोजा और पुलिस को पूरे मामले की जानकारी दी।"

गुल्लू के परिवार द्वारा 16 सितंबर को लेबर कमिश्नर को दिया गया पत्र.

गुल्लू के परिवार से संपर्क कराने में रामपाल को काफी समय लग गया। कुछ समय बाद गुल्लू की अपने गाँव की मुखिया से बात हुई फिर परिवार से। गुल्लू के परिवार के लोगों ने एक गैर सरकारी संगठन की मदद से वंहा के जिलाधिकारी और लेबर कमिश्नर को इस घटना की लिखित रूप से 25 अगस्त 2020 को शिकायत दर्ज की।

"गुल्लू की जिस दिन उसके परिवार से बात हुई उस दिन वो बहुत रोया और पूरी रात नहीं सोया। गुल्लू यहाँ से अकेले जा नहीं सकता था और वहां से इनके परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि गुल्लू को लेने आ पाते। जिन अधिकारियों को लिखित सूचना दी थी वहां से भी कुछ नहीं हुआ। हमारे पास भी इतना पैसा नहीं था कि हम गुल्लू को उसको गाँव छोड़कर वापस आयें," रामपाल ने बताया।

जिस गैर सरकारी संगठन उज्जैन सोसाइटी ने गुल्लू के परिवार की मदद की। उस संस्था के सेक्रेटरी सूरज दास ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "हमने अगस्त महीने में जिला अधिकारी, लेबर कमिश्नर, डीआईजी सभी को चिट्ठी दी थी पर डेढ़ दो महीने तक वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। हमने कानपुर के महेश भाई से संपर्क किया जिन्होंने हमारी पूरी मदद की। हमारी संस्था ने फंड इरेज करके गुल्लू के बड़े बेटे और भांजे का ट्रेन टिकट करवाकर अक्टूबर महीने में कानपुर भेजा। अभी वो वापस आ गये हैं और अपने परिवार से मिलकर बहुत खुश हैं।"

वर्षों बाद अपनी पत्नी से मिले गुल्लू मुर्मू.

वर्षों बाद 15 अक्टूबर को जब कानपुर में गुल्लू के बड़े बेटे सनातन अपने पिता से मिले तो गले मिलकर बहुत देर तक रोते रहे। सनातन ने बताया, "पापा छोटे थे तभी कमाने आये थे फिर कभी घर वापस नहीं गये। माँ ने हम सबको बताया तुम्हारे पापा नहीं रहे। हम संथाली आदिवासी हैं हमारे पास जमीन नहीं हैं, हम लोग मेहनत मजदूरी करके घर का खर्चा चलाते हैं।"

कुछ दिन पहले जब गुल्लू कानपुर रेलवे स्टेशन पर अपने गाँव वापस जाने के लिए ट्रेन में बैठ रहे थे तो भावुक हो गये और बोले, "सोचा नहीं था इस जीवन में कभी परिवार से मिल पाएंगे पर आप सबकी मदद से मिल गये।" 20 सालों तक बंधुआ जीवन जीने के बाद घर वापस जाते वक्त गुल्लू के पास कमाई के नाम पर हाथों में एक फटे झोले में बस कुछ कपड़े थे।

गुल्लू को वर्षों बंधुआ मजदूर बनाकर रखने वाला भूपेन्द्र कहाँ है इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है? गाँव कनेक्शन ने भूपेन्द्र के फोन नम्बर पर भी संपर्क करने की कोशिश की पर फोन स्विच ऑफ़ था।

कानपुर में ईंट-भट्टों पर काम करने वालों बच्चों के लिए 'अपना घर' की देखरेख करने वाले महेश कुमार गुल्लू को लेबर कमिश्नर दफ्तर ले गये जहाँ लेबर कोर्ट के वकील विष्णु शुक्ला से सम्पर्क कराया। महेश कुमार बताते हैं, "लेबर कोर्ट में मुकदमा दर्ज करवाने के प्रयास में हैं जिससे गुल्लू को कुछ आर्थिक मदद मिल जाए। अगर गुल्लू भूपेन्द्र सिंह के घर से पकड़ा जाता तो सरकार तुरंत 20,000 रुपए देती और परिवार को कुछ जमीन देती, गुल्लू ठाकुर के घर से नहीं पकड़ा गया है तभी केस में ज्यादा पैरवी करनी पड़ेगी। गुल्लू के लिए इतने वर्षों बाद अपने घर पहुंचना ही बड़ी बात है वो केस कैसे लड़ पाएगा? फिर भी मैंने बोला है कि वो अपने यहाँ से केस दर्ज करवाए।"

गुल्लू अपने पूरे परिवार के साथ, जिसमें उनकी पत्नी, दो बेटे और एक बहु, बेटी और उनके बच्चे.

जब गाँव कनेक्शन ने पश्चिम बंगाल के दिनाजपुर जिले के जिलाधिकारी निखिल निर्मल से बात की और पूछा कि अभी गुल्लू के मामले में क्या कार्रवाई हुई इसके जवाब में उन्होंने फोन पर कहा, "अभी वो (गुल्लू) अपने गाँव वापस आ गये हैं, उस व्यक्ति (ठाकुर) के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है ये मुझे चेक करना पड़ेगा।"

वहीं गुल्लू के गाँव गोपालबाटी की ग्राम प्रधान नुपुर बर्मन मंडल बताती हैं, "गाँव में सबने गुल्लू को मरा हुआ मान लिया था इतने दिनों बाद जब गाँव आये तो पूरे गाँव में खुशी का माहौल है। बहुत गरीब लोग हैं इनके लिए घर वापस आना ही बड़ी बात है। ये लोग केस नहीं कर पाएंगे क्योंकि इनके यहाँ न तो कोई पैरवी करने वाला है और न ही इनके पास इतने पैसे हैं।"

  

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