महाराष्ट्र और राजस्थान में सामान्य से कम बारिश, सूखे की आशंका से किसान परेशान

मानसून की विदाई के कुछ हफ्तों बाद ही महाराष्ट्र और राजस्थान के कई हिस्सों में पानी का संकट खड़ा होने लग गया है। मध्य भारत में इस साल मॉनसून के सीजन के दौरान पिछले कई सालों के बाद सामान्य से कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। महाराष्ट्र में मॉनसून के सीजन के दौरान बारिश सामान्य के मुकाबले 9 प्रतिशत कम दर्ज की गई। इससे गर्मी के सीजन में जलसंकट गहराने की आशंका बन गई है।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   26 Oct 2018 7:27 AM GMT

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महाराष्ट्र और राजस्थान में सामान्य से कम बारिश, सूखे की आशंका से किसान परेशान

लखनऊ। मानसून की विदाई के कुछ हफ्तों बाद ही महाराष्ट्र और राजस्थान के कई हिस्सों में पानी का संकट खड़ा होने लग गया है। मध्य भारत में इस साल मॉनसून के सीजन के दौरान पिछले कई सालों के बाद सामान्य से कम बारिश रिकॉर्ड की गई है। महाराष्ट्र में मॉनसून के सीजन के दौरान बारिश सामान्य के मुकाबले 9 प्रतिशत कम दर्ज की गई। इससे गर्मी के सीजन में जलसंकट गहराने की आशंका बन गई है। कई क्षेत्रों में सूखे जैसे हालात हैं, और किसान परेशान हैं।

जलगांव के रहने वाले किसान जीवन पाटिल ने बताया, " इस बार बहुत सामान्य से बहुत कम बारिश हुई है। पिछले साल अक्टूबर तक 733 एमएम तक बारिश हुई थी, लेकिन इस वर्ष अब तक सिर्फ 433 एमएम बारिश ही हुई है। हमारे यहां अभी से अप्रेल-मई जैसे हालात हो गए हैं। पीने के पानी के साथ-साथ सिंचाई के जल की समस्या पैदा हो गई है। हम लोग तो अभी से यह सोच के परेशान हैं कि मई-जून में क्या स्थिति होगी। हमारे खेत में कपास की फसल पानी अभाव में सूख गई है। यही स्थिति पास के चार-पाच जिलों की है। "

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने मंगलवार को माना कि राज्य के करीब 180 तालुके सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं। फड़णवीस ने कहा कि केंद्र द्वारा तय किए गए मानदंडों के आधार पर इन तालुकों की पहचान की गई है। स्थिति इसलिए खराब हुई है क्योंकि राज्य में इस साल कम बारिश हुई है। फड़णवीस ने साप्ताहिक कैबिनेट बैठक के बाद यहां पत्रकारों से कहा, महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति बन गई है।

राज्य में वार्षिक औसत की केवल 77 प्रतिशत बारिश हुई है। मैंने केंद्र के मानदंडों के अनुसार 180 तालुकों को सूखे जैसी स्थिति का सामना करने वाला घोषित किया है और स्थिति के मद्देनजर तत्काल कदम उठाए जा रहे हैं।

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252 तालुकों के 14000 गांवों में भूजल का स्तर गिरा

राज्य में 36 जिलों में से 350 से ज्यादा तालुके हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने राहत उपाय शुरू कर दिए हैं जिसमें भूमि राजस्व, शक्षिण फीस में रियायत, कृषि पंपों के लिए बिजली की आपूर्ति जारी रखना और पीने के पानी के लिए टैंकरों को तैनात करना शामिल है। फड़णवीस ने कहा कि केंद्र सरकार की टीम जल्द राज्य का दौरा करेगी और स्थिति से निपटने के लिए वित्तीय सहायता घोषित करेगी।

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जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट पर विपक्ष की आलोचना के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में बीते तीन साल में कम बारिश हुई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 252 तालुकों के 14000 गांवों में भूजल का स्तर कम से कम एक मीटर तक गिरा है।

नांदेड़ जनपद के रहने वाले युवा किसान फारुख (30वर्ष) ने बताया, " इस बार बहुत कम बारिश हुई है। कम बारिश का असर हमारे कपास के फसल पर पड़ रहा है। सूखा होने के कारण कपास के फसल की बूंदी(फूल)गिर गए हैं, जिससे कपास का उत्पादन बहुत कम होगा। इसके बाद हम लोग कोई फसल नहीं बोएंगे, क्योंकि पानी की बहुत किल्ल्त होने वाली है। पीने का पानी तो टैंकर से सप्लाई हो जाएगा, लेकिन फसल तो बर्बाद हो ही जाएगी। सबसे ज्यादा मवेशियों के चारे के लिए होने वाली है। बारिश कम होने से चारा भी कम पैदा होने वाला है।"


न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार जल संसाधन विभाग की और से जारी आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र के अधिकतर हिस्सों में इस मानसूनी सीजन के दौरान औसत बारिश हुई है और क्षेत्र में जल भंडार केवल 28.81 फीसदी है। मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए जीवन रेखा के रूप में प्रसिद्ध जयकवाड़ी बांध में मंगलवार को जल भंडारण 45.88 फीसदी के आसपास था जबकि इसी दिन पिछले साल यह 87.63 फीसदी था।

वहीं महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने मंगलवार को कहा कि फड़णवीस सरकार को राज्य में तुरंत सूखा घोषित करना चाहिए और स्थिति से निपटने के लिए वित्तीय सहायता मुहैया करानी चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, राज्य में स्थिति गंभीर है। किसानों को खरीफ फसल का नुकसान हुआ है जबकि रबी की बुआई बुरी तरह से प्रभावित हुई है।

मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित नौ बांध में से दो सूख चुके हैं और दूसरे बांध में औसतन 28.81 प्रतिशत जल का भंडारण है। पश्चिमि विदर्भ के अमरावती संभाग में औसत जल भंडारण 57.37 फीसदी है जबकि पूर्वी विदर्भ के नागपुर संभाग में यह आंकड़ा 50 फीसदी से अधिक है।

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राजस्थान में भी सामान्य से कम बारिश

इस बार राजस्थान में भी सामान्य से कम बारिश हुई है। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग को मौसम विभाग से मिली सूचना के मुताबिक राजस्थान में पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष सौ मिलीमीटर बारिश कम हुई है। पिछले साल अगस्त महीने में 407 मिलीमीटर बारिश हो गई थी। इस वर्ष सितंबर के मध्य तक सिर्फ 312 मिलीमीटर बारिश ही दर्ज की गई।

प्रदेश के आठ जिलों बाड़मेर, जालोर, पाली, सिरोही, असजेर, दौसा, बूंदी और टोंक जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है। पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर और जालोर जिलों में 60 फीसदी बारिश कम हुई है। इन जिलों में तो खरीफ की 80 प्रतिशत फसल नष्ट हो गई है।

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राजस्थान के राजसमन जनपद के रहने वाले किसान श्याम सुंदर ने बताया, " इस वक्त हमारे खेत में मक्के और बाजरे की फसल तैयार है। लेकिन इस बार बारिश बहुत कम हुई है। दिसंबर में हम लोग गेहूं बोने की तैयारी करते हैं, लेकिन इस बार कम बारिश को देखते हुए हम लोग गेहूं की बुआई नहीं करेंगे। अभी से हालात सूखे जैसे देखने को मिल रहे हैं। पीने के पानी का संकट पैदा हो गया है। "

प्रदेश में मानसून सीजन में औसतन 530 एमएम बारिश सामान्य रूप से होती है। इस बार मानसून सीजन में राज्य में 532.77 एमएम बारिश दर्ज की गई है। इस लिहाज से देखा जाए तो प्रदेश में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है।

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इसके बावजूद जयपुर समेत प्रदेश के कई हिस्सों में अभी से पानी की किल्लत देखने को मिल रही है। इस बार पांच जिलों में सामान्य से ज्यादा और 20 जिलों में सामान्य बारिश दर्ज की गई है। वहीं 6 जिले ऐसे हैं, जिनमें सामान्य से कम और 2 जिलों में अपर्याप्त बारिश हुई है।

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