महाराष्ट्र : सोयाबीन के बाद कपास की फसल ने भी दिया धोखा, बोंड इल्ली का प्रकोप बढ़ने से मुश्किल में किसान

महाराष्ट्र के वर्धा जिले में कपास उत्पादक किसान अब फसल में बोंड इल्ली का रोग लगने से मुश्किल में हैं। कई किसानों की 80 फीसदी से ज्यादा कपास की फसल चौपट हो चुकी है।

Chetan BeleChetan Bele   19 Nov 2020 12:37 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
महाराष्ट्र : सोयाबीन के बाद कपास की फसल ने भी दिया धोखा, बोंड इल्ली का प्रकोप बढ़ने से मुश्किल में किसानमहाराष्ट्र के वर्धा जिले में अपनी कपास की फसल में लगे बोंड इल्ली को दिखाता एक किसान। फोटो : गाँव कनेक्शन

वर्धा (महाराष्ट्र)। अक्टूबर में बेमौसम बरसात से सोयाबीन की फसल बर्बाद होने के बाद कपास की खेती कर रहे किसानों के लिए मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं।

सफ़ेद सोना कहे जाने वाले कपास की फसल पर इस बार बोंड इल्ली का प्रकोप बढ़ने से किसानों की उम्मीदें एक बार फिर धराशायी हो गयी हैं। महाराष्ट्र के वर्धा जिले में कपास की फसलों पर यह रोग लगने की वजह से बड़ी मात्रा में उत्पादन पर असर पड़ने की उम्मीद है।

कई किसानों की 80 प्रतिशत से ज्यादा फसल बर्बाद हो गयी है। ऐसे में कई किसानों ने अपनी खड़ी फसलों पर रोटावेटर चला दिया है।

महाराष्ट्र के वर्धा जिले के सालोड हिरापूर गांव के रहने वाले युवा किसान तुषार गोरे इस बार पांच एकड़ पर कपास की खेती की थी, मगर बोंड इल्ली के प्रकोप के चलते उनकी फसल बर्बाद हो चुकी है।

बोंड इल्ली के प्रकोप की वजह से खेतों में ही सड़ गया कपास। फोटो : गाँव कनेक्शन

तुषार 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "पिछले साल इसी पांच एकड़ पर कपास की फसल लगाई थी जिसमें 88 कुंतल कपास की पैदावार हुई थी, एक एकड़ पर करीब 17 कुंतल का औसत रहा था, मगर इस बार पूरी फसल में सिर्फ 17 कुंतल ही कपास बची है।"

"रोग लगने से खर्चा भी अधिक हुआ। चुनाई में निकली गई कपास के बोंड तोड़कर देखे तो 20 में से एक कपास का ही बोंड सही था, बाकियों में बोंड इल्ली थी या फिर बोंड सड़ चुका था। फसल बचाने के लिए हमने छह बार औषधि का छिडकाव भी किया मगर बेअसर रहा, इसलिए मैंने अपनी खेत में रोटावेटर चला दिया, दो लाख रुपये का करीब नुकसान हुआ," तुषार बताते हैं।

केवल तुषार ही नहीं, बल्कि पास के मुरादगांव (बेलसारे) के किसान सुभाष मुराद, प्रताप भलावी, संगीता येंडे और चेतन येंडे जैसे कई किसानों ने कपास की फसल सड़ने पर अपने खेत में रोटावेटर चला दिया। तुषार जैसे गाँव के कई किसानों की 80 प्रतिशत से ज्यादा फसल भी बोंडइल्ली के प्रकोप से सड़ गयी। अब ये किसान अपनी बची खुची फसल बेचने के लिए बाजार में कपास की कम मिल रही कीमत से भी परेशान हैं।

तुषार बताते हैं, "अब 17 कुंतल कपास घर पर पड़ी है, बेचने के लिए बाजार तो है लेकिन निजी व्यापारी निर्धारित मूल्य से डेढ़ हजार रुपये तक कम भाव में कपास खरीद रहे हैं। राज्य सरकार के नाफेड और सीसीआई (भारतीय कपास निगम) की खरीदारी भी अभी तक शुरू नहीं हो सकी है।"

पहले दिवाली से पूर्व ही सीसीआई और नाफेड की खरीदारी शुरू हो जाती थी और किसानों के हाथ में दिवाली मनाने के लिए पैसा आ जाता था। मगर इस वर्ष सीसीआई ने कपास उत्पादक किसानों के ऑनलाइन पंजीकरण को अनिवार्य किया है। इसके तहत राज्य के 62,624 किसानों ने अब तक पंजीयन कराया है, इसके बावजूद पंजीयन की तिथि समाप्त होने से कई किसान पंजीयन नहीं करा सके हैं।

वर्धा जिले के हिंगणघाट बाजार में अब तक नहीं शुरू हो सकी है कपास की खरीदारी। फोटो : गाँव कनेक्शन

किसानों से जिले में कपास खरीदी के लिए सात अक्टूबर से ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण करने का शुरू किया गया था। पंजीकरण के लिए 31 अक्टूबर अंतिम तिथि थी, मगर इसके बावजूद अभी तक किसानों की फसल खरीदारी की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है। ऐसे में कई किसान अपनी उपज निजी व्यापारियों को बेचने के लिए मजबूर हुए हैं।

वर्धा जिले में सालोड तालुका के एक और कपास किसान गुड्डू बदोरिया 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "बोंड इल्ली की वजह से इस बार सिर्फ 20 कुंतल फसल बची है, दिवाली में खरीद शुरू नहीं तो हाथ में पैसा नहीं था, मुझे सात कुंतल कपास 4,200 रुपये कुंतल के हिसाब से बेचनी पड़ी, काफी नुकसान हुआ है इस बार।" इससे इतर सरकारी खरीद केंद्र में कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,825 रुपये तय किया गया है।

इस बारे में वर्धा कृषि उपज बाजार समिति के सचिव समीर पेंडके 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "इस बार सीसीआई की ओर से कपास खरीदी दिवाली के बाद करने का फैसला लिया गया है। अब तक किसानों के पंजीयन की प्रक्रिया जारी रही ताकि सभी किसानों को जोड़ा जा सके। अब 20 नवम्बर से खरीदारी शुरू होने की संभावना है। इससे कपास के किसानों को राहत मिल सकेगी।"

यह भी पढ़ें :

कोरोना संकट के दौरान कितना मददगार रहा सहकारिता क्षेत्र?

उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े आंवला उत्पादक जिले में क्यों घट रहा आंवले की खेती का रकबा?


     

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.