घायल किसान की जुबानी मंदसौर कांड की कहानी

पुलिस की गोली से घायल हुए 19 साल के युवक रोड सिंह ने बयां की मंदसौर गोलीकांड की दास्तां…

mohit asthanamohit asthana   8 Jun 2018 10:10 AM GMT

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घायल किसान की जुबानी मंदसौर कांड की कहानी

मंदसौर। 'मंगलवार का दिन था, इसी तरह गर्मी खूब पड़ रही थी, नाराज किसानों ने नीमच हाईवे पर जाम लगा रखा था, एक तरफ किसान थे, दूसरी तरफ हजारों की संख्या में पुलिस थी, अचानक गोली चली और कुछ किसानों को लगी, मैं उन्हें बचाने उन्हें उठाने के लिए दौड़ा, अचानक एक गोली मेरे भी लगी, मैं वहीं गिर गया।' कमर में पीछे से लगी गोली पेट की तरफ आगे निकल गई थी, उसे दिखाते हुए रोड सिंह (19 वर्ष) बताते हैं।

रोड सिंह 6 जून, 2017 से पहले एक छात्र था, जो पढ़ाई करने के साथ रोजाना दो से ढाई किलोमीटर की दौड़ लगाता था, ताकि सेना में उसकी भर्ती हो जाए, लेकिन अब उसके पेट में बड़ा ऑपरेशन हुआ है। राइफल की गोली से कमर में पीछे की तरफ दो इंच का गड्ढा हो गया है। पुलिस की लाठी अक्सर उसे लड़खड़ाने पर मजबूर करती है। रोड सिंह के मुताबिक, बस जिंदा बच गया, उम्मीद तो नहीं थी।

मध्य प्रदेश में पिछले वर्ष 1 जून से शुरू हुए किसानों के गाँव बंद के आंदोलन ने 6 जून को मंदसौर जिले के पिपलिया मंडी में हिंसक रूप ले लिया था, जिसमें 6 किसानों की पुलिस और सुरक्षाबलों की गोली से मौत हो गई थी। मरने वालों में कन्हैयालाल पाटीदार, अभिषेक, सत्यनारायण मांगीलाल धनगर, चैनाम गनपत, पूनमचंद पाटीदार उर्फ बब्लू शामिल थे। जबकि रोड सिंह समेत दर्जनों किसान घायल हुए थे, रोड सिंह को गोली लगी थी, ढाई महीने अस्पताल भर्ती रहने के बाद वो जिंदा घर लौट पाया।


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रोड सिंह से तीन साल बड़ा उनका भाई नरेंद्र सिंह बताता है, 'गोली लगने की खबर के बाद मैं मंदसौर पहुंचा तो इसकी हालत देखकर चक्कर आ गया, पूरा शरीर खून से लथपथ था... मंदसौर में डॉक्टरों ने ठीक से इलाज न कर इंदौर रेफर कर दिया, पूरे रास्ते खून बहता रहा, उसे रोकने के लिए मैंने अपने सारे कपड़े उतार कर उसके घावों पर बांध दिया। गोली एक जगह लगी थी, बाकी पुलिसवालों ने मारा बहुत था।'

रोड सिंह का गाँव हादसे वाली जगह से करीब 22 किलोमीटर दूर है। रोड सिंह के घर में खेती होती है, पढ़ाई के अलावा वो भी खेती में हाथ बटाता था तो किसान के आंदोलन में शामिल हुआ। रोड सिंह बताते हैं, "गोली लगने के बाद पुलिसवालों ने मुझे लाठियों से मारा, घसीटते हुए थाने ले गए। वो कह रहे थे, तू मरेगा.. लेकिन एक महिला सिपाही ने कहा- बच्चे की जान न लो। उसके बाद का मुझे कुछ याद नहीं, मेरे जैसे किसान वहां घायल पड़े थे।'

इस आंदोलन में सबसे पहले चिल्लौद पिपलिया के किसान कन्हैया पाटीदार की मौत हुई थी। कन्हैया के गाँव में उनकी मूर्ति लगाई गई है। किसान संगठनों ने शहीद का दर्जा दिया है, मूर्ति वाली जगह से कुछ दूरी पर ही कन्हैया लाल का घर है। मायूसी से भर घर में उनकी पत्नी और बूढ़ी मां मिलीं। अपनी भाषा में उन्होंने सवाल किया, ' पीठ में गोली मारने की क्या जरूरत थी, हाथ-पैर में गोली मारे होते, आधा या पूरा कोई हाथ पैर कट जाता, लेकिन जिंदा तो होता वो (कन्हैया)।'

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कन्हैया के बड़े भाई जगदीश पाटीदार भी आंदोलन में शामिल थे, लेकिन वो कन्हैया की जहां मौत हुई, उससे कुछ दूर थे। किसानों के आंदोलन में खूनखराबा आगजनी कैसे हुई पूछने पर जगदीश बताते हैं, "किसान की मांगे थीं फसलों का सही रेट और कर्जमाफी, इसे लेकर एक जून के बाद किसान कई बाद मंदसौर में कलेक्टर और दूसरे अधिकारियों के ज्ञापन देने जा चुके थे, कोई सुनवाई नहीं हो रही थी।"


उन्होंने आगे कहा, "तो किसानों ने तय किया का बाजार बंद कराएंगे। सारे किसान 5 जून को पिपलिया मंडी (गांधी चौराहा) पहुंचे और व्यापारियों से दुकानें बंद करने को कहा, काफी मान गए, लेकिन कुछ अड़ गए, उसमें एक व्यापारी नें कई किसानों को बहुत मारा, इसी जगह से बवाल हो गया। किसान भड़ गए।'

जगदीश के मुताबिक, वो घी का कारोबारी था और उसकी हरकत ने आंदोलन में घी का काम किया, जिस गाँव के किसान को व्यापारियों ने मारा था, वो वहां के किसानों ने दुकान वाले से मारपीट की, लेकिन पुलिस कुछ नहीं बोली, कुछ लोग कहते हैं कि पुलिस ने व्यापारियों से कहा कि मेरे हाथ बंधे तुम लोग निपट लो.. जिसके बाद हंगामा हो गया। किसान ज्यादा हुए तो पुलिस ने लाठीचार्ज किया और लोगों को भगा दिया।"

उन्होंने कहा, "लेकिन एक किसान, जिसे सरिया से मारा गया था, उसका वीडियो वायरल होने के बाद पूरे इलाके में आस-पास के 50-80 किसानों के किसान नें नीमच हाईवे जाम कर दिया। इसी दौरान कुछ लोग पता नहीं कहां से आए उन्होंने दुकानों में तोड़फोड की, और किसानों को भड़काया.. जिसके बाद और मामला बढ़ गया।"

लाइन लगी थी ट्रकों की

मंगलवार 6 जून को नीमच हाईवे पर कई किलोमीटर तक ट्रकों की लाइन लग गई थी.. दूसरे शहरों से पुलिस और सुरक्षाबल आए। रोड सिंह के मुताबिक, अटल चौराहे के पास (जहां से कुछ दूर राहुल गांधी की रैली हुई) और थाने के पास हंगामा जारी थी, किसान सड़क पर जमे थे, तभी गोली चली और तीन किसान मौके पर मर गए। उन्हें बचाने के चक्कर में कई घायल हुए। थाने के सामने भी दो किसानों की गोली लगी, एक किसान बबलू पाटीदार को सीने पर गोली मारी गई थी, जबकि सुनने में आया एक को पुलिसवालों ने पीट-पीट कर मार डाला।


       

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