'सूखे में बारिश की बूंद'- अब कॉमिक बुक में पढ़ें गोदावरी डांगे की प्रेरक कहानी

‘सूखे में बारिश की बूंद: गोदावरी डांगे’- रीतिका रेवती सुब्रमण्यम और मैत्री डोरे की यह कॉमिक बुक आसान भाषा और चित्रों के जरिए, गोदावरी डांगे की एक अविश्वसनीय संघर्ष और सफलता की कहानी को फिर से सुना रही है।

Pankaja SrinivasanPankaja Srinivasan   11 Feb 2022 7:28 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
सूखे में बारिश की बूंद- अब कॉमिक बुक में पढ़ें गोदावरी डांगे की प्रेरक कहानी

गोदावरी दांगे की प्रेरक कहानी अब कॉमिस्क में। सभी तस्वीरें  Raindrop in the drought: Godavari Dange

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में हजारों परिवारों को भूख और गरीबी से बाहर निकालने में उनके असाधारण काम और योगदान के बावजूद, गोदावरी डांगे की कहानी काफी हद तक अनकही और अनसुनी है। उस्मानाबाद जिले के तुलजापुर तालुका के घंडोरा गांव में रहने वाली किसान गोदावरी बार-बार सूखे की वजह से अंतहीन भूख और निराशा का सामना करते हुए अपना जीवन गुजार रहीं थी। वह इससे बाहर निकलना चाहती थीं। उन्होंने एक फैसला किया। वह अपने गांव की अन्य महिलाओं और एक स्वयं सहायता समूह के साथ मिलकर खेती करने के तरीके में बदलाव लेकर आई और अपनी किस्मत को बदल दिया। आज वो नकदी फसलों के बजाय खाद्य फसलों की खेती करती है और हजारों महिला किसानों के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं।

गोदावरी ने केवल एक एकड़ में खाद्य फसल उगाने से शुरुआत की थी। उनके प्रयोग सफल रहे और उन्हें उसका भरपूर लाभ मिला। उनके इस मॉडल से प्रभावित होकर अब सूखाग्रस्त मराठवाड़ा इलाके में 60,000 महिलाएं इस तरह की खेती कर रही हैं और अपने परिवार को भूख व गरीबी के दलदल से बाहर निकालने का प्रयासों में लगी हैं। गोदावरी की यही प्रेरक कहानी अब एक कॉमिक बुक 'सूखे में बारिश की बूंद: गोदावरी डांगे' के रूप में लोगों के सामने लाई गई है।

इसकी शुरुआत कुछ साल पहले हुई, जब गोएथे इंस्टीट्यूट (इंडोनेशिया) के मूवमेंट्स एंड मोमेंट्स प्रोजेक्ट ने 2020 में ग्लोबल साउथ से किसी भी जमीनी स्तर के नारीवादी आंदोलन या महिलाओं के इर्द-गिर्द बनाई गई कॉमिक बुक के लिए योगदान देने का आह्वान किया। मैत्री डोरे और रीतिका रेवती सुब्रमण्यम ने इसके लिए आवेदन किया। उन्हें दुनिया भर के 200 आवेदकों के बीच से चुना गया और इस परियोजना पर काम करने के लिए अनुदान दिया गया था। तब डोरे और सुब्रमण्यम ने मिलकर गोदावरी के संघर्ष और सफलता को कॉमिक बुक का रूप दिया और नाम रखा 'सूखे में बारिश की बूंद: गोदावरी डांगे'।

सुब्रमण्यम, एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। उन्होंने कॉमिक में शब्दों के जरिए गोदावरी की कहानी को गढ़ने का काम किया है। वह कैम्ब्रिज, यूनाइटेड किंगडम में जेंटर स्टडीज पर पीएचडी कर रही हैं। वहीं डोर, एक आर्किटेक्ट है और इस कॉमिक बुक की चित्रकार भी। वह लिंग, जाति और धर्म पर ध्यान देते हुए भारत में उत्पीड़ित समुदायों के संघर्षों को चित्रों के जरिए उजागर करती हैं। डोर फिलहाल स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय से सांस्कृतिक विरासत संरक्षण में पीएचडी कर रही हैं।

डोर और सुब्रमण्यम ने गोदावरी को अपने कॉमिक की नायिका के रूप में क्यों चुना? इस पर वे कहती हैं, "क्योंकि वे हजारों परिवारों के जीवन में एक असाधारण बदलाव लेकर आईं, इनकी बदौलत अब उनके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन है।"

ये भी पढ़ें- बिहार का पहला जैविक गांव, जहां बदल रही है महिलाओं की जिंदगी

मराठवाड़ा क्षेत्र की हजारों महिलाओं की प्रेरणस्त्रोत गोदावरी दांगे की कहानी बहुत प्रेरक है।

सरल लेकिन आकर्षक कहानी

सूखी जमीन, एक मरियल सी मुर्गी, मवेशियों के नाम पर हड्डियों का ढांचा, एक सूखा हुआ कुआं, चिंता भरी आंखों से उसमें झांकती महिलाएं- कॉमिक के पेज पर बने ये चित्र पढ़ने से पहले अपनी कहानी कह जाते हैं। इसकी भाषा इतनी सरल है कि कोई भी इसे आसानी से समझ सकता है। .

गोदावरी का जन्म मराठवाड़ा के घंडोरा गांव में एक गरीब परिवार में हुआ था। गुरव समुदाय से ताल्लुक रखने वाली गोदावरी देश में अपने जैसे लाखों लोगों जैसा ही जीवन जी रही थी। उसके पिता गांव के एक स्कूल में शिक्षक थे। वह स्कूल से प्यार करती थीं, लेकिन मजबूरी में उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी। बड़ा स्कूल गांव से बाहर काफी दूर था और वहां तक जाना उनके लिए मुश्किल। फिर, उनकी मुलाकात कुलकर्णी ताई से होती है जो उनके जीवन में एक बदलाव लेकर आती हैं।

लेकिन इससे पहले, गोदावरी के जीवन में काफी कुछ घटता है। उसकी राह में काफी दुख और तकलीफें आती हैं। भयानक त्रासदियों से उसका सामना होता है और वह टूट कर बिखर जाती है। लेकिन, वह खुद को ऊपर उठाती है और कुछ ऐसा हासिल करती है जो लोगों के लिए एक प्रेरणा बन जाता है।

बार-बार सूखे और अंतहीन भूख और निराशा का सामना करते हुए गोदावरी, अपने गांव की अन्य महिलाओं और एक स्वयं सहायता समूह के साथ इसके बारे में कुछ करने का फैसला करती है। यह महिला किसान खेत में बड़ी फसलों की बजाय, खाद्य फसलें उगाना शुरू करती हैं ताकि अपने परिवार को कुछ खिला सके। कुछ साल पहले कुलकर्णी ताई ने उन्हें जो सिखाया था, उसके आधार पर गोदावरी ने अपने साथी किसानों के साथ जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों में बाजरा, दालें और पत्तेदार हरी सब्जियां उगाना शुरू कर दिया और चौंकाने वाले परिणाम सामने आए। सिर्फ एक एकड़ में खाद्य फसलों को उगाने के उनका प्रयोग काफी सफल रहा। यह उनके लिए एक फायदे का सौदा साबित हुआ और जल्द ही, उनका ये एक एकड़ मॉडल मराठवाड़ा में चर्चा का विषय बन गया।

गोदावरी के साथ छह और महिलाएं थीं, जिन्होंने भूख को दूर करने और बार-बार सूखे का सामना करने से हो रहे नुकसान से बचने के लिए इन प्रयोगों को अपनाना शुरू किया था। आज ये सारी महिलाएं बाकी महिला किसानों के लिए प्रेरणा बन गईं हैं।

आज उनके इस एकड़ के मॉडल को 60 हजार महिलाओं ने अपना लिया है। वह इसके आधार पर खेती कर रहीं हैं और यह सुनिश्चित कर रही हैं कि उनका परिवार भूखा न सोए।

ये भी पढ़ें- बिहार में सुजनी कला को आगे बढ़ाकर आत्मनिर्भर बन रहीं हैं ग्रामीण महिलाएं

गोदावरी दांगे की खेती के मॉडल को 60 हजार महिलाओं ने अपनाया है।

महिलाओं का वास्तविक जीवन

कॉमिक का हर पेज पाठकों को गोदावरी के जीवन की एक झलक देता है। साथ ही, ग्रामीण मराठवाड़ा और देश में हजारों महिलाओं की वास्तविक जीवन कैसा है, उस स्थिति को उजागर करता है। चित्र और शब्द उनके संघर्ष और जीवन के अंधेरे को छिपाने का कोई प्रयास नहीं करते हैं। कुल मिलाकर गोदावरी और उसके साथियों ने मिलकर एक ऐसी रचना की है जो सबका दिल जीत लेती है।

सुब्रमण्यम ने गांव कनेक्शन को बताया, " कहानी को इस तरह से पेश किया गया है कि गोदावरी की व्यक्तिगत त्रासदी और मराठवाड़ा की भीषणता, दोनों को पकड़ा जा सके।"

सुब्रमण्यम समझाते हुए कहती हैं, "हमारा इरादा शब्दों, वाक्यों और चित्रों को इस तरह से संतुलित करना था कि न तो वे हावी हो और न ही एक दूसरे को दोहराए। जहां तक संभव हुआ, चित्र के जरिए कहानी को बताने की कोशिश की गई... जहां विषय थोड़ा जटिल था जैसे कि एक एकड़ के मॉडल का विकास, वहां शब्दों के जरिए उसे समझाया और कहानी को आगे बढ़ाया गया। यहां भी, हमने छोटे वाक्यों का इस्तेमाल करके, पाठ को सरल रखने की कोशिश की है।"

जो कुछ अनकहा रह गया, उसे चित्रों में खूबसूरती से व्यक्त किया गया है। सुब्रमण्यम और डोरे ने निरंतरता के साथ काम किया है। जहां एक छोड़ देता है, दूसरा वहीं से शुरू करता है ।

डोरे ने गांव कनेक्शन को बताया, "पूरी किताब में उनके जीवन के हर अलग-अलग हिस्सों को ध्यान में रखकर कहानी की संकल्पना करनी थी … इसका मतलब था कि आपको किसी भी हिस्से की डिटेल में नहीं जाना है, लेकिन जरूरी था कि हर हिस्सा अपनी पूरी कहानी कहता नजर आए।"

वह आगे कहती हैं, "गोदावरी से मिली सभी सामग्री का उपयोग करना, वास्तव में महत्वपूर्ण था और यह चित्रों पर भी लागू होता है। हम कहानी को उसके दृष्टिकोण से बता रहे थे और इसे उससे जुड़े होने की जरूरत थी, " डोरे समझाते हुए कहती हैं, "गोदावरी ने अपने बालों को कैसे बांधा, वह किस तरह के घर में रहती थी, आदि जैसे हर अंतिम विवरण को सुब्रमण्यम ने गोदावरी द्वारा उनके साथ साझा की गई कुछ पुरानी तस्वीरों से से निकाला था।"

कॉमिक बनाने के हर चरण में, उन्होंने गोदावरी की प्रतिक्रिया जानने के लिए उनके साथ पाठ और चित्र साझा किए।

सुब्रमण्यम ने कहा, "यह बेहद संतोषजनक है कि कॉमिक के जरिए उनके जीवन की कहानी अब दूसरों तक भी पहुंच रही है। इसने स्थानीय जिला कलेक्टर का ध्यान आकर्षित किया है और इसे उस्मानाबाद जिले के सरकारी स्कूलों में प्रसारित किया जाएगा। गोदावरी ने अन्य महिला किसानों (उनकी मां सहित) के साथ भी किताब साझा की है, जिनमें से कई निरक्षर हैं, "सुब्रमण्यम और डोरे उम्मीद कर रहीं हैं कि कॉमिक प्रारूप भाषाई बाधाओं को पार करता रहेगा और गोदावरी की कहानी सभी तक पहुंचेगी।"

कॉमिक 'सूखे में बारिश की बूंद: गोदावरी डांगे' यहां पढ़ें।

खबर अंग्रेजी में यहां पढ़ें-

Maharastra #marathwada #womenstory #story 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.