देशहित में गेस्ट हाउस कांड को भुलाया : मायावती
Manish Mishra 12 Jan 2019 9:12 AM GMT
लखनऊ। दो जून, 1995 को हुआ गेस्ट हाउस कांड जिसके बाद समाजवादी पाटी और बहुजन समाज पार्टी एक दूसरे की दुश्मन बन गईं, मायावती ने तो सपा के कार्यकर्ताओं पर जान से मारने का आरोप भी लगाया।
दरअसल, बाबरी विध्वंस का मामला अपने चरम पर था, और साल 1993 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा को रोकने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा।
साल 1993 के विधानसभा चुनावों सपा और बसपा ने 256 और 164 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा. सपा ने 109 सीटें जीतीं, जबकि 67 सीटें बसपा ने जीतीं। मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने और मायावती ने मुलायम सिंह यादव की सरकार को समर्थन किया था, लेकिन वह सरकार में शामिल नहीं हुई थीं। लेकिन दोनों पार्टियों में आ रही तल्खी ने एक साल बाद एक बड़ा रूप ले लिया, भाजपा और बसपा में खिचड़ी पकने की खबरें आईं और मायावती ने अपना फैसला सपा को सुना दिया।
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मायावती ने राज्यपाल को समर्थन वापसी का पत्र दिया और अपने विधायकों को एकजुट रखने के लिए लखनऊ के वीवीआईपी गेस्ट हाउस बैठक बुलाया। मुलायम सिंह यादव चाहते थे कि उन्हें सदन में बहुमत साबित करने का मौका मिले, लेकिन राज्यपाल ने नहीं दिया।
उधर, बसपा की बैठक के दौरान समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता गेस्ट हाउस पहुंच गए, और मारपीट शुरू हो गई। मायावती को एक कमरे में बंद करके बचाया गया। बसपा की ओर से लिखाई गई एफआईआर में कहा गया कि मायावती को जान से मारने की साजिश थी। इसी बीच बीजेपी के लोग भी पहुंच गए और मायावती को बचाने में अहम भूमिका निभाई। इस गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा और बसपा के बीच आई खाई दोनों पार्टियों को जानी दुश्मन बना दिया।
समाजवादी पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव जी एवं बहुजन समाज पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष बहन कु॰ मायावती जी की… https://t.co/x4h72V3hDT
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) January 12, 2019
इस कांड के बाद मायावती ने सार्वजनिक मंचों से गेस्ट हाउस कांड को कभी न भूलने वाला बताया।
बदले सियाशी हालात और नजाकत को देखते हुए एक बार फिर भाजपा को रोकने के लिए सपा और बसपा ने हाथ मिलाया है। बदलाव इतन है कि तब गठबंधन के नेता कांशीराम और मुलायम थे, अब मायावती और आखिलेश यादव।
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