टेक, रीटेक: कैसे मीडिया ने दर्द की टीआरपी भुनाने के लिए ज्योति और उसके पिता की कहानी को बनाया एक और 'पीपली लाइव'

ज्योति कुमारी ने पिता को लेकर 1,200 किमी की यात्रा की, लेकिन क्या यह यह पूरी यात्रा साइकिल से की गई ? इस पूरी खबर में मीडिया की भूमिका संदिग्ध है। ज्योति और उनके पिता के बयान भी समय के साथ-साथ बदलते गये।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   26 May 2020 10:30 AM GMT

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Jyoti kumari, bihar, darbhanga, real story of jyoti kumariज्योति कुमारी के संघर्ष और साहस को मीडिया की टीआरपी ने बनाया पीपली लाइव।

बिहार के दरभंगा जिले की रहने वालीं ज्योति कुमारी इस समय देश ही नहीं, दुनियाभर की मीडिया में छाई हुई हैं। खबरों में बताया जा रहा है कि लॉकडाउन के दौरान 15 वर्षीय ज्योति अपने घायल पिता को साइकिल पर बैठाकर गुरुग्राम से दरभंगा लेकर आती हैं। गुरुग्राम से दरभंगा की दूरी लगभग 1,200 किलोमीटर है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि ज्योति ने जो साहस दिखाया वह असाधारण है। इसमें कोई दो राय नहीं कि लॉकडाउन ने हमें कई दर्दनाक तस्वीरें दिखाई हैं, लेकिन ज्योति को लेकर मीडिया ने सस्ती टीआरपी के चक्कर में जो खेल बुना, उसमें कई पोल हैं। इस खबर को प्रकाश में लाने वाली मीडिया की ही खबरों में इतने विरोधाभास हैं कि इस पूरे घटनाक्रम पर आसानी से विश्वास नहीं किया जा सकता।

ऐसे में अब सवाल यह है कि क्या सच में ज्योति कुमारी ने अपने पिता को साइकिल के कैरियर पर बैठाकर 1,200 किलोमीटर की यात्रा की ? क्या यह इतना आसान है जितना बताया जा रहा है?

पहले आप सिलसिलेवार ढंग से मीडिया में चली खबरों के विरोधाभास को समझिये

बीबीसी हिंदी की खबर के अनुसार ज्योति ने उन्हें बताया कि वे अपने पिता को लेकर गुरुग्राम से सात मई को रात में चली थीं और दरभंगा 15 मई शाम को पहुंची। यानी कुल 1,200 किमी की यात्रा आठ दिन में पूरी हुई।

दैनिक भास्कर अखबार के स्थानीय रिपोर्टर ने ज्योति कुमारी पर दो खबरें की हैं। अखबार ने ज्योति के हवाले से छापा है कि वे लोग गुरुग्राम से 10 मई को निकले और घर पहुंचे शनिवार 16 मई को। इनके अनुसार सफर सात दिनों का रहा।


दैनिक भास्कर डिजिटल की खबर कहती है कि ज्योति अपने पिता के साथ गुरुग्राम से आठ मई को रात में चलीं और दरभंगा पहुंची 15 मई की सुबह। यानी की कुल सात दिन लगे।

इस बारे में गांव कनेक्शन ने ज्योति के पिता मोहन पासवान से बात की तो उन्होंने कहा, "हमें सही दिन तो याद नहीं है। हमें क्या पता था कि यह सब बताना पड़ेगा, लेकिन हम सात या आठ मई को वहां से निकले थे। दरभंगा पहुंचे 15 मई की रात नौ बजे, यह याद है।"

विरोधाभास बस यहीं नहीं खत्म होता। यह खबर इतनी वायरल हुई कि न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे दुनिया के बड़े मीडिया संस्थानों ने इसे प्रमुखता से छापा। अमेरिका की राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी और उनकी सलाहकार इंवाका ट्रंप ने भी ज्योति की तारीफ की। भारतीय साइकिल महासंघ ने तो ज्योति को ट्रायल तक के लिए बुला लिया है।

गूगल के अनुसार गुरुग्राम से दरभंगा की दूरी 1,150 किमी के आस पास है। घर तक की दूरी 1,200 किमी मानी जा सकती है। इस हिसाब से अगर एक सप्ताह को आधार मानें तो ज्योति ने साइकिल से प्रतिदिन 171 किलोमीटर की दूरी तय की। न्यूयॉर्ट टाइम्स अपनी खबर में लिखता है कि ज्योति ने साइकिल से रोज 100 मिल (160 किमी से ज्यादा) का सफर तय किया।

जबकि ऑउअलुक इंग्लिश ने लिखा है कि ज्योति ने उन्हें बताया कि वह रोज 20 से 30 किलोमीटर साइकिल चलाती थी। अब अगर इसे आधार मानेंगे तो 1,200 किलोमीटर की दूरी पूरी करने में एक हफ्ते नहीं, 40 से 60 दिन लग जायेंगे।


गुरुग्राम से दरभंगा की दूरी साइकिल से तय की, इसमें कितनी सच्चाई है

जब आप गूगल में सर्च करेंगे तो जो खबरें आपको मिलेंगी उसके अनुसार ज्योति ने लगभग 1,200 किमी की यात्रा साइकिल से पूरी की। 20 मई को बीबीसी हिंदी को मोहन पासवान ने बताया कि बीच में उन्हें ट्रक से मदद मिली।

एनडीटीवी इंग्लिश ने अपनी खबर की शुरुआत में लिखा है कि ज्योति ने अपने पिता को साइकिल पर बैठाकर 1,200 किलोमीटर का सफर तय किया, लेकिन खबर के कहीं बीच में एक जगह यह भी लिखा है कि उन्हें ट्रक से भी मदद मिली।


गांव कनेक्शन के पास 16 मई का एक वीडियो है जिसमें ज्योति के पिता मोहन पासवान कह रहे हैं कि उन्हें एक-दो बार ट्रक से मदद मिली।

इस पूरे वीडियो में उन्होंने यह नहीं कहा कि वे साइकिल से आये हैं। हां, पैदल चलने की बात उन्होंने जरूर की है।

पूरा वीडियो आप भी देखिये

इस बारे में जब हमने उनसे पूछा तो वे कहते हैं, "हमें तो रास्ते में बस खाना मिला था वह भी उत्तर प्रदेश में। बिहार में कुछ नहीं मिला था।"

क्या घर तक पहुंचने में आपको दूसरे साधन मिले थे, इस सवाल के जवाब में पहले तो वे कहते हैं कि नहीं, हम साइकिल से ही आये थे, लेकिन जब हमने उनसे वीडियो का जिक्र किया, तब वे कहते हैं, "हां, एक जगह ट्रक मिली थी।"

इसके कुछ देर बाद हमने ज्योति के नंबर पर फोन किया और उनसे पूछा कि क्या आपको रास्ते में किसी तरह की मदद मिली थी, इस पर वे कहती हैं, "हमें पूरे रास्ते में खाने के अलावा कुछ नहीं मिला था।"

क्या आपने ट्रक में भी सफर किया, "नहीं, हमें कोई ट्रक नहीं मिला था।" यह कहते हुए ज्योति ने फोन काट दिया।

इस बातचीत को आप यहां सुन सकते हैं-

पहले ज्योति के पिता जो कहा, वह सुनिए

अब ज्योति ने जो कहा, उसे सुनिए

ऐसे में अब सवाल यह भी है कि आखिर खबरों से ट्रक से मिली मदद वाली बात गायब कैसे हो गई?

इस बारे में ज्योति के गांव सिंहवाड़ा, सिरहुल्ली के ही रहने वाले राहुल (काल्पनिक नाम) ने गांव कनेक्शन को नाम न छापने की शर्त पर बताया, "शुरू में हमने ही ज्योति का वीडियो बनाकर यहां के लोकल मीडिया को भेजा था। हमें लगा कि लड़की इतनी दूरी अपने घायल पिता को लेकर आई है तो यह खबर छपनी चाहिए। तब मोहन ने खुद कहा था कि वे लोग पैदल और पैदल ट्रक आये हैं। उन्होंने थोड़ी बहुत दूरी साइकिल से तय की थी, लेकिन अगले दिन जैसे ही कुछ मीडिया वाले आये, उन्होंने अपने हिसाब से बुलवाना शुरू कर दिया। बस यहीं से खबर बड़ी हो गई। अब तो मोहन और ज्योति भी वही बताते हैं।"

पिता को पीछे बैठाकर साइकिल चलाने वाला वीडियो कैसे आया

वीडियो स्टोरी में दिखाया जा रहा है कि ज्योति अपने पिता मोहन पासवान को साइकिल पर बैठाकर लिये जा रही हैं। इस वीडियो की सच्चाई क्या है, यह किसी वीडियो स्टोरी में नहीं बताया गया, लेकिन जब अब आप अलग-अलग वीडियो देखेंगे तो वीडियो के बैकग्राउंड में वह स्कूल भी दिखेगा जहां ज्योति और उनके पिता को क्वारंटीन किया गया था। यह स्कूल है सिरहुल्ली मध्य विद्यालय।

राहुल से हुई बातचीत का छोटा सा हिस्सा आप भी सुन सकते हैं। हमने उनकी आवाजा को थोड़ा बदला है ताकि उनकी पहचान सामने न आ सके-


इसे ऐसे भी समझिये, जैसे की ज्योति के पिता मोहन ने गांव कनेक्शन को बताया कि वे लोग 15 मई की रात में दरभंगा पहुंचे थे, जबकि साइकिल चलाने वाला वीडियो दिन में शूट किया हुआ है।

इस बारे में राहुल बताते हैं, "वह वीडियो तो यहीं का शूट किया हुआ है। ये लोग इतनी दूर से चले आये लेकिन रास्त में किसी मीडियाकर्मी की नजर नहीं पड़ी। जब मीडिया वाले आये तब उन्होंने वही सीन फिर से करवाया। जितने मीडिया वाले आये, उतने लोगों ने साइकिल चलवाई, पिता की पीछे बैठाकर पूरा वीडियो रिकॉर्ड किया।"

अलग-अलग वीडियो से निकाले गये इन तस्वीरों को देखिये, लोकेशन एक है, लेकिन ज्योति के कपड़े अलग-अलग हैं। यह भी को सकता है कि वीडियो सांकेतिक रूप से बनवाये गये हों, लेकिन इसका जिक्र कहीं नही किया गया।


"जब इवांका ट्रंप ने तारीफ की तो अगले दिन सुबह ही मीडिया वाले आ गये। इन्होंने ज्योति से बुलवाया कि कहा मैं भी इवांका से मिलना चाहती हूं। उसे तो इवांका भी नहीं कहने आता था। कम से 50 बार उसे सिखाया गया। शुरू में हमें लगा कि यह छोटी खबर है, चलनी चाहिए, लेकिन अब यह इतना बड़ा मुद्दा बन गया है कि हमें भी डर लग रहा है। हम लोगों को सच्चाई बता भी रहे हैं तो कोई मानने को तैयार नहीं है।"

कोई सामान्य व्यक्ति एक दिन में कितने किमी साइकिल चला सकता है

कोई व्यक्ति एक दिन में कितनी देर और कितनी दूरी तक साइकिल चला सकता है, यह हमने भारतीय साइकिलिंग टीम (इंडयिन स्पेंट, मतलब थोड़ी दूरी वाली रेस) के मुख्य कोच राजेंद्र कुमार शर्मा से बात की।

वे बताते हैं, "रेसिंग वाली साइकिल से एक आदमी औसतन 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से साइकिल सला सकता है। एक दिन में कोई अधिकतम 10 घंटे से तक ही साइकिल नहीं चला सकता। वह भी अकेले।"

अब अगर ज्योति ने 1,200 किलोमीटर की यात्रा साइकिल चलाकर पूरी की है कि उन्होंने औसतन एक दिन में 171 किलोमीटर साइकिल चलाया, मतलब 17 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से 10 घंटे रोज वह भी एक 80-90 किलो के आदमी को पीछे बैठाकर।

क्वारंटीन सेंटर की तस्वीर।

इस बारे में राजेंद्र कुमार कहते हैं, "यह संभव नहीं लगता। मैंने वह वीडियो देखा है लड़की का उसकी साइकिल की स्थिति ऐसी नहीं लगी कि वह दूरी तय कर सके वह भी किसी को बैठाकर।"

"अगर कोई 10 किमी साइकिल चलाता है तो उससे कम से कम 4,000 कैलोरी बर्न होता है। हमें एक रोटी से 100 कैलोरी मिलती है। एक केले से हमें 150 कैलोरी तक मिलती है। साइकिल इस पर भी निर्भर करती है कि रास्ता कैसा है। हमारा एक खिलाड़ी 30 किलोमीटर प्रति घंटे के हिसाब से साइकिल चला लेता है, लेकिन वे लोग एक्सपर्ट होते हैं, उन्हें रास्तों का पता होता है।" राजेंद्र कुमार आगे कहते हैं।

  

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