बस्तर में मीडियाकर्मी की मौत से उठे सवाल और वॉरज़ोन में कवरेज के मूल मंत्र

बस्तर में नक्सलियों के पुलिस और अर्धसैनिक बलों पर हमले और सुरक्षाकर्मियों की जान जाने की ख़बरें लगातार आती रही हैं। इन इलाकों में मीडियाकर्मी भी कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं। लेकिन बाहर से गई टीम का अंदरूनी इलाके में पहुंचना और पुलिस के करीब रहकर कवरेज करना कई अहम सवाल खड़े करता है

Hridayesh JoshiHridayesh Joshi   30 Oct 2018 9:19 AM GMT

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बस्तर में मीडियाकर्मी की मौत से उठे सवाल और वॉरज़ोन में कवरेज के  मूल मंत्र

छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सली हमले की चपेट में आकर मंगलवार को सुरक्षा बलों के जवानों के अलावा एक मीडियाकर्मी की भी जान चली गई है। यह मीडिया टीम दूरदर्शन न्यूज की थी और चुनाव प्रचार की कवरेज के लिये दिल्ली से दंतेवाड़ा गई थी। दंतेवाड़ा के पास नक्सलियों के प्रभाव वाले अरनपुर इलाके में पुलिस और माओवादियों के बीच यह मुठभेड़ हुई जिसमें डीडी के कैमरामैन अच्युतानंद साहू की जान चली गई।

बस्तर में नक्सलियों के पुलिस और अर्धसैनिक बलों पर हमले और सुरक्षाकर्मियों की जान जाने की ख़बरें लगातार आती रही हैं। इन इलाकों में मीडियाकर्मी भी कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं। लेकिन बाहर से गई टीम का अंदरूनी इलाके में पहुंचना और पुलिस के करीब रहकर कवरेज करना कई अहम सवाल खड़े करता है।

यह सवाल मीडिया की वॉरज़ोन में रिपोर्टिंग और कवरेज को लेकर हैं। क्या इन पत्रकारों ने ऐसे वॉरज़ोन में रिपोर्टिंग के मूल नियमों की अनदेखी की। बताया जा रहा है कि दूरदर्शन न्यूज की टीम दंतेवाड़ा में सरकार के विकास कार्यों को कैमरे में कैद कर रही थी जो खुद में एक सवाल है। कोई भी मीडियाकर्मी एक गुरिल्ला वॉर ज़ोन में पुलिस या सुरक्षा बलों के साथ नहीं चल सकता।

अभी यह साफ नहीं है कि इस मीडिया टीम को सुरक्षा बल भीतर ले गये या यह अनजाने में इस मुठभेड़ में फंस गये। अरनपुर बस्तर का अंदरूनी इलाका है और वहां पुलिस और मीडिया टीम का अलग अलग एक जगह में पहुंचना कठिन इत्तेफाक है।

दंतेवाड़ा में नक्सली पुलिस मुठभेड़ में फंसे मीडियाकर्मी-कैमरामैन की मौत

साभार इंटरनेट

इन पत्रकारों को बस्तर जैसे इलाके में काम करने का कितना अनुभव था यह पता नहीं है लेकिन जहां नक्सिलयों के निशाने पर हर वक्त पुलिस और सुरक्षा कर्मी हों वहां कोई भी मीडियाकर्मी सुरक्षाबलों के आसपास नहीं होना चाहिये। अपने दस सालों से अधिक की बस्तर की लगातार कवरेज के दौरान कई बार पुलिस का पक्ष जानने की ज़रूरत पड़ी लेकिन किसी भी जगह हम पुलिस के साथ ऑपरेशन में नहीं गये।

न ही अनावश्यक रूप से नक्सलियों से करीबी बनाई। बस्तर में माओवादियों के कैंप में जाकर उनसे बात करने के ख़तरे अलग हैं। उस वक्त भी आप किसी पुलिस मुठभेड़ में फंस सकते हैं लेकिन नक्सली अक्सर किसी मीडियाकर्मी से मिलते वक्त खुद ही यह बात सुनिश्चित करते हैं कि उनके पीछे कहीं पुलिस तो नहीं आ रही।नक्सलियों का एक विशाल नेटवर्क आपके चारों ओर रहता है। असल कठिनाई सिर्फ पुलिस को चकमा देकर लिबरेटेड ज़ोन में घुसने की होती है।

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लेकिन किसी मीडियाकर्मी का बस्तर के अंदरूनी इलाकों में पुलिस और सुरक्षा बलों के आसपास होना आत्मघाती ही कहा जायेगा। मीडिया की गाड़ी भी किसी पुलिस थाने के आगे दिखना पत्रकार के लिये ख़तरा है। चूंकि माओवादियों के मुख़बिरों का नेटवर्क इतना घना है कि आपकी गाड़ी का नंबर उनके पास पहुंचते देर नहीं लगती। एम्बुश लगाना और बारूदी सुरंग का इस्तेमाल नक्सलियों का प्रमुख हथियार है और ग़लतफ़हमी में आप उनका निशाना बन सकते हैं। नक्सल इलाके में काम करने का मूल मंत्र यही है कि पुलिस और माओवादियों से बराबर और उचित दूरी बना कर रखी जाये।

साभार इंटरनेट

2013 के विधानसभा चुनावों में पूरा दंतेवाड़ा करीब 1 लाख से अधिक पुलिस और अर्धसैनिक बलों से भरा हुआ था। यह वही साल है जब मई में कांग्रेस के चुनाव प्रचार काफिले में माओवादियों ने जीरम घाटी में हमला किया था और 30 से अधिक कांग्रेस नेता मारे गये। इन नेताओं में महेंद्र करमा भी शामिल थे। बीजापुर के सारकेगुड़ा इलाके में चुनाव प्रचार कवर करते वक्त हमने प्रत्याशी की गाड़ी से काफी दूरी बनाकर रखी हुई थी।

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उम्मीदवार नक्सलियों की हिटलिस्ट में रहते हैं और हम उस दिन बीजेपी के महेश गागड़ा से बात करने के बाद कांग्रेस के उम्मीदवार विक्रम मंडावी का बयान लेना चाहते थे। लेकिन मंडावी अंदरूनी इलाकों में प्रचार कर रहे थे ।

अचानक सारकेगुड़ा के पास कांग्रेस का प्रचार काफिला निकला और मंडावी हमारी कार में आकर बैठ गये। उस वक्त उनका ऐसा करना हमारी जान को जोखिम में डालने जैसा था लेकिन उस वक्त काफी फोर्स हमारे आसपास थी फिर भी बीजापुर लौटते वक्त हमने सावधानी बरती की हम किसी पुलिस या नेता के आगे पीछे न दिखायी दें।

मंगलवार को हुई घटना एक बार फिर से बताती है कि दंतेवाड़ा जैसे इलाकों में काम करते वक्त पत्रकार वॉरज़ोन की कवरेज के मूल नियमों को अनदेखा नहीं कर सकते। यह ज़िम्मेदारी संपादकों और वरिष्ठ साथियों की भी है कि वह जूनियर पत्रकारों को इस बात के लिये सचेत करें कि वहां वह कैसे काम करेंगे।

(हृदयेश जोशी गाँव कनेक्शन के वरिष्ठ सलाहकार संपादक हैं और लंबे वक्त से बस्तर से रिपोर्टिंग कर रहे हैं)

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