बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। मई महीने की बेमौसम चक्रवाती बारिश और जून के शुरुआती दिनों से मूसलाधार बारिश ने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इसी बारिश के चलते उत्तर प्रदेश मेंथा की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। बाराबंकी-सीतापुर समेत कई जिलों में जलभराव के चलते किसानों की फसलें खेत में ही बर्बाद हो गई हैं और जिस तरह से बारिश का सिलसिला जारी है, बची फसलों पर भी संकट के बादल है।
90 से 100 दिन की मेंथा (पिपरमिंट) की फसल को किसानों के लिए नगदी फसल कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा जिलों में किसान इसे दो फसलों के बीच लगातार कई वर्षों से मुनाफा कमा रहे हैं, लेकिन इस वर्ष पहले मई में चक्रवाती तूफान तौकते और यास के चलते बारिश हुई फिर फसल कटाई के दौरान एक जून से लगातार हो रही है बारिश ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है।
उत्तर प्रदेश में सीतापुर और बाराबंकी जिले बॉर्डर पर बसे घघसी गांव के किसान प्रेम कुमार (28 वर्ष) गांव कनेक्शन पानी से अपने भरे हुए खेत को दिखाते हुए कहते हैं, “अबकी बार बहुत अच्छी फसल थी, लेकिन 1 जून से जो जोरदार बारिश हुई है, जिससे हमारे क्षेत्र की लगभग 70 फीसदी मेंथा की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है। पहले 20 जून के बाद बारिश होती थी, लेकिन इस बार पहले ही जोरदार बारिश होने से बहुत नुकसान हो गया।” घघसी गांव के किसानों की माने तो अकेले उनके गांव के आसपास तराई क्षेत्र में ही करीब 500 एकड़ में मेंथा था, जिसमें ज्यादातर बर्बाद हो गई।
बाराबंकी में ही सूरतगंज ब्लॉक में टांडि गांव कि अनिल वर्मा (35 वर्ष) अपने पूरे परिवार के साथ मेंथा की पेराई (आसवन) कर रहे थे, वो बताते हैं, “हमारे पास 4 एकड़ मेंथा की फसल लगी थी, बरसात में 3 एकड़ फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है और जो फसल बची है उसे जैसे-तैसे तैयार कर रहा हूं। इसमें भी मजदूरी और और खर्च निकालना दूभर हो रहा है।”
मेंथा की लागत और नुकसान का गुणाभाग कर अनिल आगे बताते हैं, “एक एकड़ में औसतन 18000-25000 रुपए तक की लागत आती है। जिसमें औसतन 50 किलो तक मेंथा ऑयल निकलता है। फसल अच्छी होने और मौसम के साथ देने पर प्रति एकड़ तेल 60 किलो से ज्यादा भी निकल आता है। लेकिन जिन किसानों की मेंथा डूब गई है, फसल बर्बाद हो गई है उनका प्रति एकड़ 10 से 15 किलो तेल निकल रहा है।” इस वक्त मेंथा का औसत रेट 900-950 रुपए किलो के आसपास है। कुछ साल पहले ये रेट 2000 रुपए किलो तक पहुंच गया था।
देश की 80 फीसदी फसल उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। उत्तर प्रदेश में बाराबंकी, चंदौली, सीतापुर, बनारस, मुरादाबाद, बदायूं, रामपुर, चंदौली, लखीमपुर, बरेली, शाहजहांपुर, बहराइच, अंबेडकर नगर, पीलीभीत, रायबरेली में इसकी खेती होती है। बाराबंकी को मेंथा का गढ़ कहा जाता है। यहां बागवानी विभाग के मुताबिक करीब 88000 हेक्टेयर में मेंथा की फसल लगाई जाती है। बाराबंकी अकेले प्रदेश में कुल तेल उत्पादन में 25 से 33 फीसदी तक योगदान करता है।
मेंथा उत्पादन में आ सकती है लगभग 30 फीसदी की कमी- डॉ. संजय कुमार
मेंथा की नई किस्में और तकनीकी विकसित करने वाले लखनऊ स्थित केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के प्रधान वैज्ञानिक संजय कुमार के मुताबिक भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक मेंथा का निर्यातक है। वो बताते हैं, “पूरे भारत लगभग 3 लाख हेक्टेयर में मेंथा की खेती होती है और करीब सालाना 30 हजार मीट्रिक टन मेंथा ऑयल का उत्पादन होता है। बारिश और मौसम के अनुरुप ये आगे पीछे होता रहता है। मेंथा एक सेंसटिव (संवेदनशील) फसल है, जिस तरह बारिश हो रही है, उत्पादन में 30 फीसदी की कमी आ सकती है। निचले इलाकों के किसानों को सीमैप की अर्ली मिंट तकनीकी से ही रोपाई करनी चाहिए।”
उत्तर प्रदेश के कई जिलों में पहले 19 और 20 मई को भारी हुई थी, जिसके चलते बाराबंकी, गोंड़ा, सीतापुर समेत कई जिलों नीचले इलाकों में फसलों को नुकसान पहुंचा था। इसके बाद एक जून से बारिश का जो सिलसिला शुरु हुआ वो रुर-रुककर आज (14 जून) तक जारी है। ज्यादातर किसान 20 मई से लेकर 25 जून तक मेंथा की कटाई करते हैं। वैसे तो मेंथा की फसल ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होता है लेकिन पेराई से पहले खेत सूखा होने पर तेल अच्छा निकलता है। लेकिन इस बार उसी दौरान बारिश हो गई।
भारत मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश में पिछले 121 वर्षों (1901-2021 के बीच मई महीने में दूसरी बार सबसे ज्यादा बारिश इस बार दर्ज की है। इससे पहले रिकॉर्ड बारिश मई महीने में 1990 में दर्ज की गई थी।
वहीं अगर एक जून से लेकर 14 जून तक बात करें तो मौसम विभाग की वेबसाइट के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में औसत 23.8 फीसदी के मुकाबले 47.9 फीसदी बारिश हुई है जो सामान्य बारिश के मुकाबले 101 फीसदी ज्यादा है।
अर्ली मिंट तकनीकी है इस नुकसान का विकल्प- डॉ. सौदान सिंह
सीमैप में उन्नत किस्म और तकनीक विकसित करने वाले प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सौदान सिंह फोन पर बताते हैं, “पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि जल्दी बरसात होने पर किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके लिए सीमैप ने अर्ली मिंट तकनीक विकसित की है। मेंथा की विकसित किस्म (सिम उन्नति) बारिश का थोड़ा ज्यादा समय तक मुकाबला किया है। किसानों को चाहिए वो समतल खेत में रोपाई न करके मेड़ (आलू की तरह) रोपाई करें। इस तकनीकि पहले सिंचाई की कम जरुरत पड़ती है, दूसरा फसल करीब 20 दिन पहले तैयार होती है। और तीसरा अगर ज्यादा बारिश हो भी जाए तो पानी नालियों से निकल जाता है, जिससें फसल को नुकसान अपेक्षा कम या नहीं होता है।”
सौदान सिंह के मुताबिक चंदौली, बाराबंकी और सीतापुर समेत कई जिलों में जिन किसानों ने अर्ली मिंट तकनीक का इस्तेमाल किया था उन्हें उनकी ज्यादातर फसलें बची हुई हैं।
किसानों को सलाह
बारिश से प्रभावित किसानों के लिए सीमैप ने कुछ सलाह दी हैं। डॉ. संजय कुमार बताते हैं, “जिनके खेतों में मेंथा लगी है वह मौसम खुलने के बाद तुरंत फसल की कटाई शुरू कर दें। मेंथा को एक जगह पर ढेर लगाकर ना रखें उसे छाया में फैला दें जिससे तेल के उत्पादन पर असर ना आए।
बाराबंकी में ही सूरतगंज ब्लाक के एक और किसान रामपाल वर्मा के पानी की डूबी फसल को देखकर आंसू छलक आए। “सोचा था फसल तैयार होगी तो लोगों का जो पैसा उधार लिया है वह दे दूंगा। घर का भी खर्च चलेगा। मेंथा की फसल के बाद धान लगा लूंगा लेकिन तैयार फसल इस तरह से बर्बाद हो जाएगी यह नहीं सोचा था।” इतना कहने के बाद रामपाल कुछ नहीं बोल पाए और अपनी बाहों से अपने आंसुओं को पोछने लगे।
प्राकृतिक मेंथा उत्पादन में भारत का दबदबा
मेंथा का उपयोग औषधियों से लेकर सौंदर्य उत्पादों में किया जाता है। संजय कुमार के मुताबिक पिछले 20 वर्षों से भारत प्राकृतिक मेंथा का दुनियाभर में सबसे बड़ा निर्यातक है। संजय बताते हैं, ” पूरे दुनिया की बात करें तो भारत करीब 80 फीसदी प्राकृतिक मेंथा का निर्यात करता है। और एक दो साल को छोड़ दिया जाए तो 20 वर्षों से भारत ये काम कर रहा है। इससे पहले ये निर्यात चीन करता था। कुछ देशों में कंपनियां सिंथेटिक मेंथा बनानी हैं लेकिन वो भारत के प्राकृतकि मेंथा के आगे टिक नहीं पाती है। इसीलिए किसानों को मेंथा के अच्छे रेट मिलते आ रहे हैं।”