मनरेगा : पांच महीनों में ही खत्म हो गया आधे से ज्यादा बजट, 'गांवों में काम की मांग बहुत ज्यादा है, लोग काम मांग रहे हैं'

सिर्फ पांच महीनों में ही मनरेगा में इतनी तेजी से खर्च हो रही राशि से साफ़ होता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा में काम की मांग अभी भी बहुत ज्यादा है।

Kushal MishraKushal Mishra   18 Oct 2020 5:11 AM GMT

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मनरेगा : पांच महीनों में ही खत्म हो गया आधे से ज्यादा बजट, गांवों में काम की मांग बहुत ज्यादा है, लोग काम मांग रहे हैंपीएइजी की रिपोर्ट के अनुसार 1.55 करोड़ लोगों को मनरेगा में काम मांगने के बावजूद काम नहीं मिल सका है। फोटो साभार : @TabeenahAnjum

"एक महीने से हमें काम नहीं मिला है, मेरे अल्लीपुर गाँव में ही कम से कम 250 लोग मनरेगा में काम करते हैं, मगर अभी कहीं काम नहीं चल रहा, लोग पंचायत में काम मांगने जाते हैं, मगर कहीं कुछ नहीं, गांवों में अभी भी मनरेगा में काम की मांग बहुत ज्यादा है, लोग काम मांग रहे हैं," सालों से मनरेगा में मजदूरी करती आ रहीं रामबेटी बताती हैं।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के पिसावां ब्लॉक की रहने वाली मनरेगा मजदूर रामबेटी को शुरुआत में अपनी ग्राम पंचायत में मनरेगा में तालाब खुदाई और भूमि समतलीकरण का काम मिला था, मगर पिछले एक महीने से रामबेटी जैसे सैकड़ों मजदूर खाली हाथ बैठे हैं। रामबेटी के मुताबिक, पिसावां ब्लॉक में 40 गाँव आते हैं और अभी किसी ग्राम पंचायत में कोई योजना न होने की वजह से मनरेगा में काम नहीं चल रहा है।

वर्ष 2004 में मनरेगा योजना की सरकारी वेबसाइट की एमआईएस रिपोर्ट को ट्रैक करने के लिए बनाए गए कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों और जन संगठनों के सदस्यों का एक समूह पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी (पीएईजी) ने हाल में मनरेगा पर अपनी रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, सितम्बर तक 1.55 करोड़ लोगों को मनरेगा में काम मांगने के बावजूद काम नहीं मिल सका है। जबकि मनरेगा के तहत आवंटित राशि का 64 फीसदी सरकार खर्च कर चुकी है।

सिर्फ पांच महीनों में ही मनरेगा में इतनी तेजी से खर्च हो रही राशि से साफ़ होता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा में काम की मांग अभी भी बहुत ज्यादा है। पीएईजी रिपोर्ट के मुताबिक, आठ सितम्बर तक मनरेगा में रोजगार की मांग कर रहे उत्तर प्रदेश के 35.01 लाख ग्रामीणों को काम नहीं मिला। यह आंकड़ा मध्य प्रदेश में 19.38 लाख, पश्चिम बंगाल में 13.03 लाख, छत्तीसगढ़ में 11.74 लाख, राजस्थान में 13.78 लाख और बिहार में 9.98 लाख रहा यानी इतने ग्रामीणों को मनरेगा में काम मांगने के बावजूद रोजगार नहीं मिल सका।

मनरेगा के तहत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को साल में 100 दिन रोजगार देने की गारंटी दी जाती है। फोटो साभार : @TabeenahAnjum

राजस्थान के उदयपुर जिले के गातौड़ ग्राम पंचायत के नालाफलां गाँव के रहने वाले मनरेगा मजदूर प्रेम शंकर मीना 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "अभी हमारे गाँव में वन विभाग से पौधा रोपण और समतलीकरण का काम चल रहा है, लेकिन काम कम है। लॉकडाउन के बाद से लोग गांव में रहकर काम करना चाह रहे हैं, इसलिए मनरेगा में काम की मांग ज्यादा बनी हुई है, लोग मनरेगा में काम के लिए, जॉब कार्ड के लिए अभी भी आवेदन कर रहे हैं।"

प्रेम शंकर के अपने जॉब कार्ड से रोजगार गारंटी के 100 दिन पूरे हो गए हैं। वह अब सरकार से कम से कम 50 दिन और रोजगार देने की मांग कर रहे हैं ताकि 100 दिन पूरे कर चुके मनरेगा मजदूरों को गाँव में रहकर रोजगार मिल सके।

मनरेगा यानी महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को साल में 100 दिन रोजगार देने की गारंटी दी जाती है। प्रत्येक लाभार्थी ग्रामीण परिवार को एक जॉब कार्ड दिया जाता है, जिसमें घर के सभी व्यस्क सदस्यों के नाम होते हैं जो मनरेगा में काम कर सकते हैं।

अभी हमारे गाँव में वन विभाग से पौधा रोपण और समतलीकरण का काम चल रहा है, लेकिन काम कम है। लॉकडाउन के बाद से लोग गांव में रहकर काम करना चाह रहे हैं, इसलिए मनरेगा में काम की मांग ज्यादा बनी हुई है, लोग मनरेगा में काम के लिए, जॉब कार्ड के लिए अभी भी आवेदन कर रहे हैं।

प्रेम शंकर मीना, मनरेगा मजदूर, राजस्थान

लॉकडाउन के बीच केंद्र सरकार ने 21 अप्रैल से मनरेगा में लोगों को रोजगार दिए जाने की छूट दी थी। इससे पहले बजट में केंद्र सरकार ने 61,500 करोड़ रुपये मनरेगा के लिए आवंटित किये थे, जबकि लॉकडाउन के दौरान 40,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त बजट दिए जाने की घोषणा के साथ वित्त वर्ष 2020-21 के लिए कुल धनराशि 1,01,500 करोड़ रुपये हो गयी थी।

पीएईजी की रिपोर्ट में सामने आया कि सरकार 09 सितम्बर, 2020 तक मनरेगा के तहत 64,000 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है यानी कुल बजट का 64 फीसदी हिस्सा सरकार पांच महीनों में ही खर्च कर चुकी है। इतना ही नहीं, हाल में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा लोकसभा में पेश की गई जानकारी के मुताबिक 11 सितम्बर तक देश के 10 राज्यों में मनरेगा मजदूरी का करीब 782 करोड़ रुपये अभी तक भुगतान नहीं किया गया है।

इन 10 राज्यों में पश्चिम बंगाल (397.57 करोड़ रुपये), उत्तर प्रदेश (121.78 करोड़ रुपये), पंजाब (63.86 करोड़ रुपये), मध्य प्रदेश (59.23 करोड़ रुपये), हिमाचल प्रदेश (46.73 करोड़ रुपये), झारखण्ड (26.86 करोड़ रुपये), आन्ध्र प्रदेश (22.86 करोड़ रुपये), केंद्र शासित राज्य पुदुचेरी (74.12 लाख रुपये) और मिजोरम (41.50 करोड़ रुपये) शामिल हैं, जहाँ करीब 782 करोड़ रुपये मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी का भुगतान लंबित है।

लॉकडाउन के बीच केंद्र सरकार ने 21 अप्रैल से मनरेगा में लोगों को रोजगार दिए जाने की छूट दी थी। फोटो : गाँव कनेक्शन

पश्चिम बंगाल में मनरेगा मजदूरी 204 रुपये प्रतिदिन तय की गयी है। इसी राज्य के पश्चिम मेदिनीपुर जिले के दातून ब्लॉक के धन्हालिया गाँव के रहने वाले संदीप सिंघा को सितम्बर में 14 दिन का मनरेगा में काम मिला था, मगर अभी तक उन्हें मजदूरी नहीं मिल सकी है।

मनरेगा मजदूर संदीप सिंघा फ़ोन पर 'गांव कनेक्शन' से बताते हैं, "लॉकडाउन के बाद से काम नहीं मिल रहा था, पिछले महीने जब 14 दिन का काम मिला तो अक्टूबर आधा बीत गया है, अभी तक उसकी मजदूरी भी नहीं मिली है। हमारी पंचायत में जो काम करना चाह रहे हैं उनका जॉब कार्ड भी नहीं बन रहा, सरकार कहती कुछ है और जमीन पर कुछ नजर नहीं आता, न ही 15 दिनों में मजदूरों को भुगतान मिलता है।"

बिहार के कटिहार जिले की चितौरिया ग्राम पंचायत में रहने वाले मनरेगा मजदूर जीतेन्द्र पासवान भी मनरेगा श्रमिकों की मजदूरी न मिलने की शिकायत करते हैं।

हमारी पंचायत में मनरेगा मजदूर संगठित हैं, मगर अभी तक करीब 200 मजदूरों को सिर्फ चार सप्ताह का ही काम मिला है, उनमें भी कई ऐसे हैं जिनको अभी तक उनके काम का भुगतान नहीं मिला है। कई लोगों ने लॉकडाउन में गाँव आकर मनरेगा में रोजगार के लिए पंचायत से जॉब कार्ड बनवाए थे, मगर उन्हें काम नहीं मिल रहा है।

जीतेन्द्र पासवान, मनरेगा मजदूर, बिहार

जीतेन्द्र बताते हैं, "हमारी पंचायत में मनरेगा मजदूर संगठित हैं, मगर अभी तक करीब 200 मजदूरों को सिर्फ चार सप्ताह का ही काम मिला है, उनमें भी कई ऐसे हैं जिनको अभी तक उनके काम का भुगतान नहीं मिला है। कई लोगों ने लॉकडाउन में गाँव आकर मनरेगा में रोजगार के लिए पंचायत से जॉब कार्ड बनवाए थे, मगर उन्हें काम नहीं मिल रहा है।"

पीएइजी की रिपोर्ट पर गौर करें तो अप्रैल से अब तक 5.8 करोड़ ग्रामीण परिवारों को मनरेगा के तहत काम मिला है। यह आँकड़ा पिछले पांच सालों की तुलना में कहीं ज्यादा रिकॉर्ड किया गया है। इतना ही नहीं, अप्रैल से अब तक 85 लाख नए जॉब कार्ड जारी किये गए हैं जो भी पांच सालों में सबसे अधिक हैं। ऐसे में लॉकडाउन के पांच महीनों बाद भी मनरेगा में काम की मांग कहीं ज्यादा बनी हुई है।

कई राज्यों में मजदूर मनरेगा में साल में 150 से 200 दिन रोजगार देने की मांग कर रहे। फोटो साभार : नरेगा संघर्ष मोर्चा

झारखण्ड के भंडारा प्रखंड के भवरों गाँव की रहने वाली शनियारो देवी भी लम्बे समय से मनरेगा में काम करती आ रही हैं। फ़ोन पर शनियारो बताती हैं, "लॉकडाउन के बाद से बड़ी संख्या मजदूरों की ऐसी है जो वापस शहरों की ओर नहीं लौटे हैं और गाँव में रहकर ही काम करना चाह रहे हैं, मनरेगा में काम चलता भी है तो जरूरतमंदों को काम मिलने की बजाये दूसरों को काम दे दिया जाता है, पहले तो हमारी दो पंचायतों में आवास योजना में लोगों को मनरेगा का काम मिला, मगर अब तो वो भी नहीं है, पंचायत के पास कोई योजना भी नहीं है जबकि लोग काम मांग रहे हैं।"

मनरेगा में रोजगार के लिए काम की मांग बढ़ने के साथ दूसरी बड़ी समस्या यह है कि जिन लोगों ने साल में मिलने वाले 100 दिन का काम पूरा कर लिया है, वे आगे रोजगार के लिए क्या करेंगे?

पीएईजी की रिपोर्ट में सामने आया है कि नौ सितम्बर तक करीब 6.8 लाख परिवारों ने अपने 100 दिन का काम पूरा कर लिया है। हालाँकि यह प्रतिशत कुल रोजगार पाने वाले ग्रामीण परिवारों में करीब एक प्रतिशत तक ही है। ऐसे में इन ग्रामीण परिवारों के सामने समस्या है कि वे रोजगार के लिए आगे क्या करेंगे?

चार महीनों में 100 दिन का काम पूरा हो चुका है, दो लोग जॉब कार्ड पर काम करने वाले हैं, अब बताओ पूरा साल पड़ा है तो कहाँ जाएँ हम लोग काम करने, लड़का बच्चा लेकर कहाँ जाएँ, कम से कम सरकार 200 दिन करे तो काम करें।

अन्जुश्री, मनरेगा मजदूर, उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के अल्लीपुर पंचायत की अन्जुश्री इनमें से एक हैं जो अब मनरेगा में कम से कम साल में 200 दिन काम देने की मांग कर रही हैं।

अन्जुश्री कहती हैं, "चार महीनों में 100 दिन का काम पूरा हो चुका है, दो लोग जॉब कार्ड पर काम करने वाले हैं, अब बताओ पूरा साल पड़ा है तो कहाँ जाएँ हम लोग काम करने, लड़का बच्चा लेकर कहाँ जाएँ, कम से कम सरकार 200 दिन करे तो काम करें।"

मनरेगा के सरकारी आंकड़ों को ट्रैक करने वाले पीएइजी समूह से जुड़े और रिपोर्ट तैयार करने में योगदान देने वाले देब्माल्या नंदी 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "मनरेगा में काम की मांग ज्यादा है क्योंकि लोग लॉकडाउन के बाद से गाँव में रहकर काम करना चाह रहे हैं और मनरेगा उनके लिए रोजगार का एक बड़ा जरिया है।"

"रिपोर्ट में जो आंकड़ें सामने आये हैं वो सिर्फ सरकारी वेबसाइट की एमआईएस रिपोर्ट को ट्रैक कर बनाये गए हैं, जबकि जमीनी स्तर पर काम की मांग और भी ज्यादा होगी। कोरोना की वजह से रोजगार को लेकर देश में संकट की स्थिति बनी है, ग्रामीण इलाकों में ऐसे लोगों के लिए मनरेगा ही एक सहारा है, इसलिए सरकार को ऐसे समय में मनरेगा में विशेष ध्यान देने की जरूरत है," देब्माल्या नंदी बताते हैं।

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