ट्रेनें न चलने पर आठ-आठ हज़ार रुपए जुटाकर महाराष्ट्र से झारखण्ड पहुँच रहे मजदूर

श्रमिक ट्रेनें न चलने से जहाँ ये मजदूर बुरी तरह परेशान हैं वहीं सरकार इन मजदूरों को लाने के लिए अभी भी असमंजस की स्थिति में है।

Kushal MishraKushal Mishra   13 May 2020 10:21 AM GMT

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महाराष्ट्र में काम के लिए गए झारखण्ड के मजदूर लॉकडाउन में बुरी तरह फँस चुके हैं। अब तक इन मजदूरों के लिए कोई श्रमिक ट्रेन नहीं चलाई गयी है। सरकार पशोपेश में है कि महाराष्ट्र के रेड जोन वाले इलाकों से मजदूरों को कैसे वापस लाया जाए, वहीं देरी होने की वजह से ये मजदूर अब किसी तरह आठ-आठ हज़ार रुपए ट्रक या बस का किराया भरकर झारखण्ड जाने को मजबूर हो रहे हैं।

"घर जाने के लिए कोई फ़ोन बेच रहा है तो कोई सिलेंडर बेच रहा है। ट्रक वाला एक व्यक्ति का 8,000 रुपए मांग रहा है, मैंने तो किसी तरह अपने गाँव से उधार पैसा मंगवाया और छोटे भाई को कल रात ट्रक से भेजा है, अगर ट्रेनें नहीं चलीं तो हम लोग तो यहीं मर जाएंगे," अपने तीन बच्चों और पत्नी के साथ मुंबई के एंटोप हिल में फँसे मजदूर मो. जुनैल अंसारी कहते हैं।

जुनैल की तरह जो मजदूर सक्षम हैं, वो किसी भी तरह रुपयों का इंतजाम कर बस या ट्रक से झारखण्ड पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं। मगर रेड जोन से बिना किसी जांच के निकले ये मजदूर घर वापसी पर बड़ी समस्या खड़ी कर सकते हैं। ऐसे में श्रमिक ट्रेनें न चलने से जहाँ ये मजदूर बुरी तरह परेशान हैं वहीं सरकार इन मजदूरों को लाने के लिए अभी भी असमंजस की स्थिति में है।

ट्रक से झारखण्ड जाते मजदूर नौशाद अंसारी ।

झारखण्ड के लिए अपने 25 साथी मजदूरों के साथ मुंबई के रेड जोन एंटोप हिल से ट्रक से निकले नौशाद अंसारी बताते हैं, "ट्रक से जो भी जा रहा है, वह 8,000-8,000 रुपए किराया भर रहा है, हम सभी 25 लोग किसी तरह ट्रक में भर-भर कर झारखण्ड के लिए निकले हैं, किसी भी तरह घर पहुंचना है क्योंकि सरकार तो कुछ कर नहीं सकी तो हम लोगों को ही निकलना पड़ रहा है।"

नौशाद कहते हैं, "हम जहाँ रह रहे थे वहां हम लोग पानी भी खरीद-खरीद कर पी रहे थे, तो खाने के लिए इंतजाम करना तो दूर की बात है। बिना किसी काम के, राशन-पानी के और कितने दिन हम लोग वहां पर रह पाते, कम से कम अपने गाँव पहुंचेंगे तो कुछ तो कर सकेंगे।" नौशाद झारखण्ड में बोकारो जिले के कोठी गाँव के रहने वाले हैं।

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महाराष्ट्र में अलग-अलग इलाकों में फँसे प्रवासी मजदूर सिर्फ ट्रकों से ही नहीं, बल्कि बस, ऑटो रिक्शा, टैक्सी, मोटर साइकिल और साइकिल से भी निकलते हुए सामने आ रहे हैं। इनमें से कई रेड जोन इलाकों से निकले हैं और सड़कों पर बिना जांच के आगे बढ़ रहे हैं।

महाराष्ट्र के रेड जोन इलाके नागपाड़ा के ग्रांट रोड से 12 मई की दोपहर युसूफ भी दो टैक्सी का इंतजाम कर अपने 10 साथी मजदूरों के साथ झारखण्ड के लिए रवाना हो गए। खबर लिखने तक वो नासिक के आगे निकल चुके थे।

फ़ोन पर बातचीत में युसूफ बताते हैं, "हम लोगों के सामने मजबूरी थी, हम लोग बस किसी भी तरह अपने घर जाना चाहते थे, मगर ट्रेनें चालू होने के बाद भी हम लोगों के लिए ट्रेनें नहीं चलीं तो हम आज टैक्सी से जाने के लिए मजबूर हैं।"

टैक्सी के किराये के बारे में युसूफ कहते हैं, "एक व्यक्ति से 10 हज़ार रुपए किराया है," रुपयों की व्यवस्था कैसे की, के सवाल पर युसूफ ने कहा, "अभी तो हम लोगों के पास खाने के भी पैसे नहीं है, जब हम लोग अपने गाँव पहुंचेंगे तो वहीं जैसे-तैसे किराया भरेंगे, मगर अभी हमें सीधे अपने घर पहुंचना है।"

महाराष्ट्र में अल-हिन्द एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष और प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए सक्रिय रूप से भूमिका निभा रहे दिल मोहम्मद झारखण्ड के मजदूरों के लिए सरकार से लगातार श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाये जाने की गुजारिश कर रहे हैं।

दिल मोहम्मद बताते हैं, "मैं बाकायदा प्रवासी मजदूरों की पूरी लिस्ट बनाकर महाराष्ट्र और झारखण्ड सरकार को ईमेल कर चुका हूँ, जो भी नोडल अफसर तैनात किये गए हैं, सब जानकारी उन तक मुहैया कराई गयी है, मगर बार-बार पूछने पर भी वो स्पष्ट जवाब नहीं देते।"

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मुंबई में फँसे कई मजदूर ऑटो से अपने परिवार के साथ झारखण्ड की ओर निकले ।

"सरकार इन मजदूरों को हॉटस्पॉट इलाकों से लाने में रुचि नहीं ले रही है इसलिए अभी तक महाराष्ट्र से झारखण्ड के लिए श्रमिक ट्रेन नहीं चलायी गयी। मगर इस तरह से सरकार इन मजदूरों को और भी गर्त में धकेल देगी। अब तक जो मजदूर निकलने में सफल हुए हैं वो तो सिर्फ चार-पांच प्रतिशत होंगे, बड़ी संख्या में मजदूर फँसे हुए हैं," दिल मोहम्मद बताते हैं।

अब तक झारखण्ड सरकार की ओर से प्रवासी मजदूरों के लिए चलाये गए कोरोना सहायता एप्प के जरिये अलग-अलग राज्यों में फँसे 5.50 लाख से ज्यादा मजदूरों ने घर वापसी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है। इनमें से महाराष्ट्र से 65 हज़ार मजदूर शामिल हैं। इसके बावजूद बड़ी संख्या में मजदूरों के फँसे होने की सम्भावना है। ऐसे में ये मजदूर अब और रुकने के लिए तैयार नहीं हैं और कैसे भी करीब 1700 किलोमीटर का लम्बा सफ़र करने के लिए निकलने को तैयार हैं।

महाराष्ट्र में फँसे कई मजदूर झारखण्ड के लिए अपने परिवार के साथ ऑटो से भी निकलते सामने आ रहे हैं। इनमें ऑटो से निकला एक मजदूर का परिवार 12 मई को नागपुर के नेशनल हाईवे पर दुर्घटना का शिकार हो गया। इस हादसे में मजदूर सुनील कुमार, निशा देवी और ताकेश्वर साव बुरी तरह घायल हो गए, वहीं ऑटो पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। ये सभी झारखण्ड के गिरिडीह जिले के डुमरी थाना के बेको पश्चिमी पंचायत के रहने वाले हैं।

इसके अलावा फँसे हुए मजदूर अपनी घर वापसी करने के लिए सेकंड हैण्ड मोटर साइकिल की भी किसी तरह व्यवस्था कर रहे हैं। नवी मुंबई बेलापुर में फँसे अपने साथियों के साथ तीन मोटर साइकिल से मजदूर दिलीप महतो भी निकले हैं। खबर लिखने तक वो रायपुर पहुँच चुके थे।

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नवी मुंबई के बेलापुर से अपने दस साथियों के साथ तीन मोटर साइकिल से झारखण्ड के लिए निकले मजदूर दिलीप महतो।(दायें की ओर)

दिलीप बताते हैं, "हम लोग किसी तरह अपने मालिक से तीन सेकंड हैण्ड मोटर साइकिल की व्यवस्था किये हैं। मालिक ने भी हम लोगों पर दया खाकर दस-दस हज़ार रुपए में यह मोटर साइकिल दी हैं। इनमें से हमने आधा पैसा चुका दिया है और आधा पैसा जब हम लोग वापस आयेंगे तो चुकायेंगे, अभी हम लोग बस घर पहुंचना चाहते हैं।"

लॉकडाउन की वजह से ये मजदूर बेबस होकर अपनी घर वापसी करने को मजबूर हो रहे हैं। इनमें से कई मजदूर रेड जोन से भी निकले हैं और अब इनके झारखण्ड पहुँचने पर वहां संक्रमण के फैलने का खतरा भी बढ़ सकता है।

झारखण्ड में ही प्रवासी मजदूरों की घर वापसी को लेकर सक्रिय भूमिका निभा रहे सामाजिक कार्यकर्ता सिकंदर अली बताते हैं, "हम महाराष्ट्र में फँसे मजदूरों को घर वापसी के लिए लगातार समझा रहे हैं कि जब तक ट्रेनें नहीं चलती हैं तब तक आप लोग किसी भी तरह वहीं अपनी व्यवस्था करने की कोशिश करें, मगर मजदूर मानने को तैयार नहीं है। महाराष्ट्र के धारावी, एंटोप हिल जैसे इलाके हॉटस्पॉट इलाके हैं और यहाँ बड़ी संख्या में मजदूर फँसे हुए हैं। हाल में ही झारखण्ड के विरनी गाँव में ही दो मजदूर सूरत से पहुँचने में कामयाब हो गए, बाद में दोनों ही कोरोना पॉजिटिव पाए गए, इसके बाद पूरे गाँव को सील कर दिया गया है।"

सिकंदर कहते हैं, "जो रास्ते में आ रहे हैं अगर उनको क्वारंटाइन में रखा जा रहा है तो वो समय अवधि भी पूरी नहीं कर रहे हैं और वहां से भाग रहे हैं, ऐसे तो संक्रमण का खतरा और अधिक बढ़ सकता है, हम लगातार मजदूरों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि जब ट्रेनें चलायीं जाएँ तो ही पूरी जांच के साथ निकलें। ट्रेनों से यात्रा ज्यादा सुरक्षित है, मगर मजदूर भी बेबस हो चुके हैं।"

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