घर वापसी की जद्दोजहद: बेंगलुरु से 1750 किलोमीटर दूर यूपी के जौनपुर के लिए साइकिल से निकले 3 युवक

Arvind ShuklaArvind Shukla   7 May 2020 5:50 PM GMT

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लॉकडाउन में फंसे 23 साल के राहुल बिंद को 42 दिन अपने कमरे में बैठे-बैठे हो गए थे। ऑटोमोबाइल बनाने की फैक्ट्री में काम करते हुए जो पैसे मिले थे वो खाने में खर्च हो रहे थे। कर्नाटक में जैसे ही लॉकडाउन से थोड़ी सी ढील मिली राहुल 30 किलोमीटर पैदल चलकर बेंगलुरु पहुंचे और अपने लिए 4800 रुपए की साइकिल खरीदी ताकि वो उसी 1750 किलोमीटर दूर यूपी में अपने घर जा सकें। गांव कनेक्शन में प्रकाशित प्रवासी मजदूरों से संबंधित खबरें यहां पढे़ं

7 मई को जब गांव कनेक्शन की राहुल से बात हुई वो अपने तीन साथियों के साथ साइकिल चलाते हुए बेंगलुरु से 400 किलोमीटर आगे हैदराबाद के आसपास पहुंच गए थे। एक पेट्रोल पंप के बाहर सड़क पर रात में लेटे राहुल बिंद ने फोन पर बताया, "मैं होंडा के पार्ट बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता था, 42 दिन से घर पर थे, हमें कर्नाटक में सिर्फ एक दिन मुफ्त में सब्जी मिली थी, बाकी चीजें हम खरीदकर खा रहे थे, घर जाने की कोई सुविधा नहीं थी, इसलिए हमने साइकिल खरीद ली। हमारा घर यूपी में इलाहाबाद के आगे जौनपुर जिले में है। करीब 1700-1800 किलोमीटर दूर होगा।"

राहुल बिंद के साथ उनके दो और साथी भी हैं, जिनमें से एक लड़का उन्हें उसी साइकिल दुकान पर मिला था जहां वो साइकिल लेने गए थे। राहुल और उनके साथी आटोमोबाइल बनाने वाली कंपनी में 11500 रुपए महीने की सैलरी में काम करते थे। उनकी फैक्ट्री बैंगलौर के पास कोलार इलाके में थी और वो नरसरपुरा में कमरा किराए पर लेकर रहे थे। राहुल बिंद जैसे लाखों युवा और प्रवासी मजदूरों की अकेले कर्नाटक में आजीविका छिनी है। कोविड-19 महामारी और 25 मार्च से चल रहे लॉकडाउन के चलते भारत में बेरोजगारों की संख्या करोडों में पहुंच गई है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक अप्रैल महीने में छोटे उद्योग धंधों में काम करने वाले 9.1 करोड़ मजदूर बेरोजगार हुए हैं। वहीं 1.8 करोड़ व्यवसायी और 1.7 करोड़ मासिक वेतन पाने वाले कर्मचारी/कामगार बेरोजगार हुए हैं।


कोवि़ड19 महामारी और लॉकडाउन के बाद कर्नाटक में ढाई लाख से ज्यादा प्रवासी लोगों ने अपने राज्यों को जाने के लिए आवेदन किया था। 6 मई से श्रमिक स्पेशल ट्रेनें भी शुरू होनी थी, लेकिन 5 मई को बिल्डरों से मुलाकात के बाद और राज्य में औद्योगिक और निर्माण गतविधियां तेज होने के बाद सरकार ने ट्रेनें रद्द कर दी थी। लेकिन खाने-पीने और रोजगार को तरस रहे कर्नाटक में फंसे प्रवासी लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। सोशल मीडिया में भी बीएस येदियुरप्पा सरकार की काफी आलोचना हुई। चौतरफा दबाव के बाद सरकार ने दोबारा ट्रेन चलाने का फैसला किया है। राज्य सरकार ने 9 राज्यों को प्रवासी मजदूर, छात्र, कामगार और तीर्ययात्रियों को वापस भेजने के बावत खत लिखा

सरकार के ट्रेन रद्द करने और दोबारा ट्रेन चलाने का फैसला लिए जाने के बीच राहुल बिंद अपनी यात्रा शुरु कर चुके थे। तीन दिन पहले राहुल जब साइकिल खरीदने बाजार पहुंचे थे वहां उनकी मुलाकात सामाजिक कार्यकर्ता सुधा एन से हुई। सुधा और उनकी टीम 'हम भारत के लोग' अब तक 15000 से ज्यादा लोगों को राशन दिलाने से लेकर माइग्रेशन में मदद कर चुके हैं।

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सुधा एन फोन पर बताती हैं, कर्नाटक में फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों और निर्माण के क्षेत्र में जुड़े लाखों मजदूर घर जाना चाहते हैं, क्योंकि यहां सरकार ने उनके खाने और शेल्टर का इंतजाम करने में नाकाम रही है। एक हफ्ता पहले मैंने यहां शिवाजी नगर इलाके से सरकार को 150 से ज्यादा लोगों की लिस्ट भेजी कि मजदूरों के पास खाने को नहीं है, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने सिर्फ पांच लोगों के लिए राशन का इंतजाम किया। ऐसे में जब राहुल जैसे लोग साइकिल से हजारों किलोमीटर जाने को निकलें तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।'

राहुल बिंद फोन पर मायूसी के साथ कहते हैं, "मुझे नहीं पता मैं जौनपुर कितने दिनों में पहुंचूंगा, अभी तक करीब 400 किलोमीटर के आसपास चले होंगे, पैर सूज गए हैं। सोच रहे हैं कि अगर हैदराबाद में ट्रेन मिल जाए तो साइकिल यहीं बेच देंगे वर्ना घर तो पहुंचना ही है।" राहुल के दो रिश्तेदार 8 दिन में मुंबई से जौनपुर पहुंचे, वो अब गांव के स्कूल में क्वारेंटीन हैं। राहुल के मुताबिक वो पैदल चले थे, लेकिन रास्ते में कई जगह गाड़ियां मिल जाने वो 8 दिन में ही पहुंच गए।

लॉकडाउन के 2-3 दिन बाद से ही दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों से मजदूरों ने पलायन करना शुरु कर दिया था। लेकिन लोगों की नजर में मजदूर जब आए जब दिल्ली के आनंद बिहार बस अड्डे के आसपास लाखों मजदूर जमा हो गए। लाखों मजदूर पैदल, साइकिल, रिक्शा और टैंपो के साथ अपने घरों को पहले भी निकल चुके थे। इस दौरान कई मजदूरों की रास्ते में चलते हुए, भूख आदि से कई मजदूरों की मौत भी हो गई।

बरक अंसारी (50) 25 मार्च को महाराष्ट्र के भिवड़ी से अपने 11 दोस्तों के साथ उत्तर प्रदेश के जिला महाराजगंज के लिए निकले थे, लेकिन अपने घर नहीं पहुंच पाये। रास्ते में मध्य प्रदेश के सेंधवा में उनकी मौत हो गई। भिवंड़ी से महाराजगंज की कुल दूरी लगभग 1,600 किलोमीटर है, लेकिन तबरक कुल 390 किमी कर सफर ही तय कर पाये।

तकनीकी जानकारों की एक निजी वेबसाइट thejeshgn.com लॉकडाउन के दौरान हो रही मौतों के आंकड़े पहले दिन से ही जुटा रही है। इनके अनुसार लॉकडाउन की वजह से देश में अब तक कुल 338 मौतें ऐसी हुई हैं जिन्हें कोरोना नहीं था। ये आंकड़े देशभर की मीडिया रिपोर्टस को लेकर तैयार किये गये हैं।

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मार्च के आखिरी हफ्ते में दिल्ली से पैदल अपने घरों को निकलने वाले मजदूरों में सबसे ज्यादा मजदूर बिहार के थे। दिल्ली-बनारस और दिल्ली लखनऊ-गोरखपुर रूट पर 10-12 अप्रैल तक मजदूरों के जत्थे पैदल, ठेलिया और रिक्शें पर जाते नजर आए।

गांव कनेक्शन ने इन मजूदरों के साथ लखनऊ अयोध्य़ा, गोरखपुर से लेकर बिहार के गोपालगंज (सीमावर्ती जिला) तक का सफर किया था। इस दौरान कई मजदूर ऐसे मिले जो पिछले 6-7 दिनों से साइकिल चलाकर बिहार में अपने जिलों, छपरा, पूर्णिया और मुजफ्फरपुर, कटिहार जा रहे थे। संबंधित ख़बर औऱ वीडियो यहां देखिए-

4 अप्रैल को जब साइकिल वाली ठेलिया से अपने दो साथियों के साथ दिल्ली से बिहार जा रहे अशोक यादव से गांव कनेक्शन की मुलाकात हुई वो अयोध्या पहुंच चुके थे। अब तक वो 700 किलोमीटर से ज्यादा का सफर करके लखनऊ, बाराबंकी पार करके राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर बिहार की तरफ बढ़ रहे थे। उनका गांव दिल्ली से करीब 1400 किलोमीटर दूर बिहार में पूर्णिया जिले के श्रीनगर प्रखंड में पड़ता है। बात करने पर पता चला कि उन्होंने कल रात से कुछ नहीं खाया था, क्योंकि उनके पास बहुत कम पैसे बचे थे और मजदूरों की भीड़ कम होने के साथ सड़क पर खाना खिलाने वाले लोग भी कम हो गए थे। वीडियो सहयोग- शिवानी गुप्ता

    

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