यूरिया के संकट की आशंका, इससे निपटने के लिए किसानों को अपनाना चाहिए ये तरीका

vineet bajpaivineet bajpai   7 Dec 2017 7:28 PM GMT

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यूरिया के संकट की आशंका, इससे निपटने के लिए किसानों को अपनाना चाहिए ये तरीकामहंगी हो सकती है यूरिया।

नई दिल्ली। पिछले दिनों रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, भारत सरकार की तरफ से बताया गया कि यूरिया प्‍लांट्स में रिनोवेशन के चलते यूरिया उत्पादन में तीन लाख टन की कमी आएगी। ऐसे में इसका सीधा असर किसानों पर पड़ेगा, क्योंकि उत्पादन कम होने से किसानों को यूरिया महंगे दामों पर मिलेगी। लेकिन अगर किसान चाहें तो न सिर्फ यूरिया से बल्कि सभी तरह के राशायनिक ऊर्वरकों से छुटकारा पा सकते हैं और अपनी लागत कम करके मुनाफा बढ़ा सकते हैं।

पहले से ही जरूरत के हिसाब से देश में यूरिया का उत्पादन कम होता है। ऐसे में अगर उसमें से भी तीन लाख टन उत्पादन कम होगा तो महंगाई बढ़ने की पूरी उम्मीद है। वर्ष 2016-17 में 2.44 करोड़ टन यूरिया का उत्पादन हुआ था, जबकि जरूरत प्रति वर्ष 3.2 करोड़ टन की होती है। इस मांग और उत्पादन के अंतर को खत्म करने के लिए यूरिया बाहर से आयात की जाती है।

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पिछले कुछ वर्षों में राशायनिक खादों का इस्तेमाल भारी मात्रा में बढ़ा है, जिससे किसानों की लागत भी काफी बढ़ गई है और मुनाफे में कमी आई है। इसलिए किसानों को इससे निपटने के लिए जैविक तरीके से खेती करने पर जोर देना होगा, जिससे लागत कम होगी और मुनाफा बढ़ेगा।

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भारत यूरिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। यूरिया पर सबसे अधिक सब्सिडी सरकार की ओर से दी जाती है। किसानों को यह 5360 रुपए प्रति टन के भाव पर बेचा जाता है। यूरिया की सब्सिडी रेट पर बिक्री के लिए सरकार सालाना 40 हजार करोड़ रुपए खर्च करती है।

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देश के बहुत से किसान जैविक खेती की तरफ रुख कर चुके हैं। वो कम लागत में अधिक मुनाफा भी कमा रहे हैं।

अक्टूबर महीने के आखिरी सप्ताह में गाँव कनेक्शन की टीम मध्य प्रदेश के दौरे पर थी। टीम ने सात जिलों (सागर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, देवास, भोपाल, इंदौर, मंदसौर) का भ्रमण किया। जहां ऐसे सैकड़ों किसानों से मिलना हुआ जो जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं।

मध्यप्रदेश के सागर जिले के किसान सिद्धार्थ चिचौंदिया पांच एकड़ में जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं। उन्होंने शुरुआत सिर्फ आधे एकड़ से की थी लेकिन जब इसमें अधिक फायदा दिखा तो उन्होंने ने रकबा बढ़ाकर पांच एकड़ कर दिया।

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''जैविक तरीके से खेती करने में बाज़ार से ऊर्वरक नहीं खरीदने पड़ते हैं, घर में ही गाय के गोबर से वर्मी क्मपोस्ट तैयार कर लेता हूं। इसके साथ ही किसी भी तरीके का कीटनाशक भी बाजार से खरीदने के बनाए गाय के मूत्र से कीटनाशक बना लेता हूं तो उसके रुपए भी बच जाते हैं,'' सिद्धार्थ ने गाँव कनेक्शन को बताया, ''खेती में किसानों का सबसे ज्यादा खर्च ऊर्वरकों और कीटनाकों पर ही होता है और जब यही घर पर बिना खर्चे के तैयार कर लिये जाते हैं तो खर्चा काफी कम हो जाता है और मुनाफा ज्यादा होता है।''

नरसिंहपुर जिले के किसान राजेन्द्र कौरव पिछले तीन वर्षों से तीन एकड़ में जैविक तरीके से धान की खेती कर रहे हैं। वो बताते हैं, ''एक एकड़ में जैविक तरीके से धान की खेती करने में सिर्फ 7 हज़ार रुपए की लागत आती है जबकि राशायनिक तरीके से करीब 12-15 हज़ार रुपए का खर्चा आता है।''

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मोदी सरकार भी जैविक खेती करने को बढ़ावा दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों अपने मन की बात कार्यक्रम में कहा था कि यूरिया के उपयोग से जमीन को गंभीर नुकसान पहुंचता है, ऐसे में हमें संकल्प लेना चाहिए कि 2022 में देश जब आजादी के 75वीं वर्षगांठ मना रहा हो तब हम यूरिया के उपयोग को आधा कम कर दें।

रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि सरकार यूरिया का कंजम्‍प्‍शन घटाने की कोशिश कर रही है। मिट्टी के अन्‍य दूसरे पोषक तत्‍वों के मुकाबले यूरिया सस्‍ता पड़ता है इसलिए इसका उपयोग काफी ज्‍यादा किया जा रहा है।

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